कांशीराम के आंदोलन से दलित एकता के नाम पर भावनात्मक रूप से जुड़कर पासी नेतृत्व की बलि चढ़ गई थी। आज फिर भीम आर्मी से जोड़कर दलित एकता बात बड़ी तेजी से हो रही है। इसका भी हश्र वही होगा जो कांशीराम के दलित आंदोलन का हुआ है। आप को याद होगा इलाहाबाद के झूसी,नैनी और गोरखपुर जैसी दर्जनों जगहों पर पासियों का कत्लेआम हुआ तो कोई दलित आंदोलन क्यों नही शुरू हुआ ?
मै आगाह करना चाहता हूं पासी समाज के नवजवानों, बुद्दजीवियो और नेताओं को की इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है और फिर दलित एकता के नाम पर जाति विशेष का नेतृत्व उभारने की कोशिश हो रही है। कही फिर हम लोग ऐतिहासिक भूल को दोहराने तो नही जा रहे हैं ? हमें सहारनपुर की घटना से पूरी तरह गमदर्दी है और सामाजिक बन्धुओ पर हुए हमले पर इनकी चुप्पी पर शिकायत भी है। लेकिन जाति विशेष का नेतृत्वई स्वीकार नही है।
अध्यक्ष – पासी महासभा इलाहाबाद
चमार लोगो ने पासियो को मोहरा बनाकर ठगने का काम किया । पहले तो कहते है हम दलित850/0 है और बाद यह दलित विरादरी एक जाति तक सीमित हो जाती है ।