सीतापुर इतना उदास,बेचैन,दुखी और हताश कभी न था ,पिछले 50बरसो में इस जिले की तमाम बड़ी बड़ी सखशियत दुनिया से विदा हुई लेकिन ये शहर इतना निराश कभी न हुआ ,आज तो ऐसा लगता है जैसे इस शहर की धड़कन ही थम गई हो ,हर इंसान एक दूसरे को सिर्फ कातर निगाहों से निहार ही नहीं रहा बल्कि एक अजीब सी बेचैनी उसके मन में है कि अब क्या होगा ,,
बाबूजी रामलाल राही का जाना जिले के किसी सियासी या सामाजिक व्यक्ति का जाना मात्र नहीं है बल्कि जिले के लाखो लोगो की उम्मीदों और आशाओं का टूट जाना है,सियासत की चहारदीवारी तो टूट ही गई है ,हर जाति ,धर्म और आयु के लोगो को लगता है जैसे उसका अभिभावक ,उसके परिवार का कोई सदस्य उनसे विदा हो गया ,वे अपने आप में एक विश्विद्यालय थे ,किसी संदर्भ ग्रंथ की तरह जिले के हर इंसान की समस्याओं का हल थे बाबूजी ।
आज इस बात की बहुत चर्चा होती है कि अमुक व्यक्ति एक सामान्य स्तर से उठकर कैसे शिखर तक पहुंचा ,इसका प्रचार कर लोग भावनाओ को उधेलित करने का प्रयास करते है लेकिन एक अति निर्धन दलित परिवार में जन्म लेकर देश के गृह मंत्री बनने से लेकर उनकी जीवन गाथा किसी सपने के सच होने जैसा है,अल्प शिक्षित होने के बावजूद उनका संसदीय परम्पराओं का ज्ञान ,किसी भी विषय पर उनका गहन अध्ययन किसी को भी प्रेरणा दे सकता है,
उनके जीवन के कितने ही ऐसे संस्मरण है जो इस निराश और हताश सीतापुर के लिए एक ज्योतिपुंज का काम कर सकते है ,लेकिन आज मै कुछ भी कहने और लिखने की स्तिथि में नहीं हूं ,मै जब 2012में बिसवां से सीतापुर रहने आया तो मेरे पास सबसे बड़ी ताकत थी कि मुझे बाबू जी का संरक्षण था ,अभी बाबू जी की पार्थिव देह के पास भाई विनीत दीक्षित बताने लगे कि उन्होंने कुछ समय पहले अम्मा के जाने पर मेरी लिखी एक पोस्ट का जब बाबूजी से जिक्र किया तो बाबू जी ने कहा था कि आराध्य मेरे बेटे जैसा है ,आज सच मे मैंने एक बार फिर अपने पिता को खो दिया और संयोग देखिए मेरे पिता भी फेफड़ों के संक्रमण के रहते इस दुनिया से गए थे और आज बाबू जी भी ।
पिछले दिनों मैंने हाथरस कांड पर 2अक्टूबर को जब उपवास रखा कांग्रेस के कई नेता चाहते थे कि वो मेरा उपवास तुड़वाए लेकिन मै इसे राजनीति से अलग रखना चाहता था तो मै उनकी बताई जगह नहीं जा रहा था तभी बाबूजी का नंबर मोबाइल पर फ़्लैश हुआ और वो बोले भैया आ रहे हो न ,मैंने कहा आप वही है बोले मै अब निकल रहा हूं ,तब मै भी नहीं गया ,मुझे हमेशा अफसोस रहेगा कि उस दिन मै वहा नहीं पहुंच सका ,
बाबूजी के बारे आज भले कुछ न लिख पा रहा हूं लेकिन कल से बाबूजी के जन्मदिन 1जनवरी तक नियमित रूप से उन पर आधारित एक फेसबुक सीरीज आप मेरी वाल पर पढ़िएगा ,*याद सीतापुर के अजातशत्रु की *
मेरे पिता जी बताया करते थे कि गांधी जी के निधन के बाद सीतापुर के जेल रोड के सैकड़ों लोगो ने उनके एका दशा में अपने केश मुंडवाए थे ,पूरा सीतापुर शायद 30जनवरी 1948यानि करीब 72 साल बाद आज फिर उतना ही दुखी है ,विचार शून्य इस जिले की अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान थे हमारे बाबूजी
निशब्द हूं ,आज पहली बार मेरे पास लिखने के लिए शब्द नहीं है ,मेरे कई पत्रकार मित्र अपने पत्र के लिए आज बाबूजी से जुड़ा कोई आलेख चाहते थे लेकिन उनसे क्षमा चाहता हूं ,मै सिवा आंसू के आज उन्हें कुछ नहीं दे सकता ,– अज्ञात