प्रिय पाठकों ! हमारा और आपका रिश्ता भाईचारे का हैं ,प्रेम का हैं . इसलिए हम तमाम मुश्किलों के बावजूद आपके बीच बनें हैं । कोई हमें मान देता हैं तो कोई अपमान ! लेकिन इन सब के बीच हमने अपनी विश्वनीयता बरक़रार रखी हैं ,और भारत के विविध सामाजिक ताने बानें में आप सबकी आवाज़ को एक अलग पहचान देनें की भी लगातार कोशिश की हैं । आज 26 जनवरी के मौके पर आप सबसे दो बात करने की नियति से यह लिख रहा हूँ की हम जातिय पहचान में भलें हैं लेकिन हम देश के नागरिक हैं इस बात की जिम्मेदारी का एहसास हमें रहना चाहिए .”आज ही के दिन यानी 26 जनवरी सत्र 1950 को भारत ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से मुक्त होकर, विविधता से भरें भारत को संचालित करने के लिए बाबा साहब अम्बेडकर की निगरानी में बनाए गए भारतीय संविधान को लागू किया गया था। और भारत गणतांत्रिक देश के रूप में स्वीकार हुआ ।इस गण अर्थात जन, तंत्र के आगे कहीं भी हिन्दू ,मुसलमान ,बौद्ध,सिख ईसाई, पारसी ,यहूदी शब्द नही जोड़ा गया । यह देश के राष्ट्र निर्माण की बुनियाद थीं कि देश की जनता का ही तंत्र होगा वही देश का असली शासक होगा ।जिसका कोई विशेष रूप रंग ,भाषा ,जाति यहां तक कि लिंग भी नही होगा । जो जिस तरह का होगा बस वह देश की जनता के रूप में देखा जाएगा किसी नश्ल के रुप में नही ! यह सोंच ही भारत को एक अनोखे देश के रूप में समृद्ध किया । लेकिन वर्तमान परिदृष्य में देश की एकता व अखण्डता को तोड़ने की कोशिश हो रहीं है। जिसके लिए हम सबको मुठ्ठी तानकर और आंखे भींचकर खड़े होने की जरूरत हैं ।भारत की डाइवर्सिटी जिसे हम “अनेकता में एकता “के रूप में देखतें है यहीं भारत को दुनियां के अन्य मुल्कों से अलग करतीं हैं । इसे बचाएं रखना ही हम सबका पहला और अंतिम कर्तब्य होना चाहिए । यहीं विविधता ही हमें बचाएं रखेंगी वरना हमारी पहचान भी खतरें में होगी ।
” गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं सहित ”
आपका मित्र ,
डॉ .अजय प्रकाश सरोज(संपादक -श्रीपासी सत्ता पत्रिका )