वीरांगना उदा देवी यह नाम भारत की उस वीर नारी का है जिसने भारत की आज़ादी की क्रांति को गर्म हवा देने के लिए अंग्रेजो के 36 सिपाहियो को मार गिराया था। ऐसी घटना विश्व के किसी देश में पढ़ने और सुनने को नही मिलती । देश के खातिर अपनी जान की बाज़ी लगाकर बहादुरी के साथ दुश्मनो से लड़कर शहीद होने वाली वीरांगना उदा देवी भारत में महिला संम्मान और स्वभिमान की एक मात्र प्रतीक बनकर उभरी है। देश की सवर्णवादी जातीय मानसिकता के कारण हम कई बार गुलाम हुए। इसलिए कि देश में लड़ने की जिम्मेदारी केवल एक जाति को सौंपी गई थी। सोचिये अगर उदा देवी जैसे सैकड़ो बहादुर महिलाओं की फ़ौज हमारे पास होती तो क्या तब भी देश गुलाम हो पाता ? इसी तरह पुरुषों की भी एक लंबी फेहरिस्त है । जिन्हें लड़ाई से दूर रखा गया । सवर्ण महिलाओ को सिर्फ भोग का वस्तु बनाकर रखा गया। तो अवर्णों ने महिलाओं को चूल्हे, चौके सहित खेती बारी तक सीमित रखा। पुरुषवादी मानसिकता ने उसे कभी एहसास ही नहीं करने दिया कि वह भी समाज और देश की समस्याओं पर खुलकर अपनी बात रख सकती है। और जरूरत पड़ने पर देश की रक्षा के लिए हथियार भी उठा सकती है। लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई कोरी , दुर्गा भाभी ,फूलन देवी निषाद , ने देश और समाज के लिए क्या कुछ नहीं किया ? लेकिन हमारे देश के पुरुषवादी मानसिकता के महिलाओ की बहादुरी को नोटिस नही किया गया। यंहा तक की उनकी स्मृति में बने पार्क और प्रतिमाओं को निशाना बनाया जा रहा। कितनी शर्म की बात है कि पिछले महीनो कानपुर में उदा देवी पासी के नाम बने पार्क को सरकार ने तोड़ दिया ।
आज़ादी के बाद ड़ॉ अम्बेड़कर द्वारा संबिधान ने उन्हें बराबरी का अधिकार दिया। शिक्षा के साथ ही उन्हें देश और समाज की नीतिया बनाने में भी भागी दार बनाया जा रहा है । आज कई उदाहरण हमारे सामने है। फिल्म, उधोग, शिक्षा , समाज, पा, मिडिया के साथ ही राजनीति के उच्च पदों पर आप महिलाओं की भागीदारी को देख पा रहे है। बावजूद इसके बहुत से सेक्टरों में अभी इन्हें जाना शेष है । इसके लिए हम सबको अपने पुरुषवादी मानसिकता से निकलकर उनके साथ आगे बढ़ना होगा। – अजय प्रकाश सरोज