आज़ादी के मायने और देशभक्ति का जश्न

72 वें स्वतन्त्रता दिवस की संध्या पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें ..●अजय प्रकाश सरोज

दिनभर स्वतंत्रता की धमा चौकड़ी थीं चारो और तिरंगा ही तिरंगा लहरा रहा था । हर पेशे से जुड़े लोग अपने अपने तरीक़ो से तिरंगे का सम्मान करते हुए देखे गए। शहर में सब्जी वाला ,दूध वाला ,फल वाला , ऑटो वाला ,रिक्शा वाला , ठेले वाला ,खुमचा वाला, तिरंगा टोपी लगाए घूम रहन थें तो चाय वाला कैसे पीछे रहता ! वह तो प्रधानमंत्री का बिरादरी जो ठहरा ,उसके चेहरे का चमक तो तिरंगामय हो गया। सावन का महीना है तो कावड़िया वालों ने सरकारी सुरक्षा ब्यवस्था में तिरंगा हाथ मे लिए बोल बम के जयकारों में स्वंतत्रता का जमकर आनंद लिया। तो नवयुवक नें अपनी अपनी टोली टोली बनाकर हाथ मे तिरंगा लिए चौरहों पर आज़ादी के जश्न में सरोबार होकर सेल्फ़ी लिया और सोशल मीडिया पर छायें रहें।

ऐसे ही न जाने कितने लोग है जिन्हें आज़ादी के मायने नहीं पता लेकिन उन्हें पता है आज कुछ विशेष दिन है इस दिन तिरंगा लगा कर देश प्रेम की भावना प्रकट किया जाता है । सो वह भी कर लेते हैं।

भले की देश की ब्यवस्था ने उन्हे त्रस्त कर रखा हो ,आज़ादी के 71 वर्ष बाद भी देश के 40 % आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहीं है। उनके पास मूलभूत आवश्यकता रोटी ,कपड़ा व मकान तक नही है। आज भी लोग पहाड़ो में, जंगलों में धूप गर्मी और बारिश में जैसे तैसे उनके जीवन काट रहें हैं। शहरों में भी न जाने कितनी बस्तियां है जिन्हें मानवीय जीवन का एहसास तक नही । उनके जीवन स्तर में कोई अर्थपूर्ण बदलाव देखने को नही मिलता ।

क्या उन्हें यह पता है कि भारतीय समाज की गुलामी की विविध परतों को तोड़ते हुए वास्तविक आज़ादी का अहसास देश के लोग कर सके इसके लिए पहला कदम 15 अगस्त को ही बढाया गया था , शायद नही ! जिस आज़ादी के लिए अनगिनत शहीदों ने बलिदान दिया।

कोई भी आजादी बिना अधिकार और दायित्व के सम्पूर्ण नही हो सकती । इसलिए दूसरी आज़ादी का अवसर तब प्राप्त हुआ जब इन अधिकारों और दायित्वों का दस्तावेज भारतीय संविधान के रूप में 26 जनवरी 1950 अस्तित्व में आया। बाबा साहेब अम्बेडकर का वह सन्देश बहुत ही सारगर्भित है जब वे राजनैतिक लोकतन्त्र को सामाजिक लोकतन्त्र में बदलने का आव्हान करते हैं और सही मायनों में वही तीसरी आज़ादी और असल आज़ादी का दिन होगा।

लेकिन आज़ादी के दो तकनीकी पक्षों स्वतंत्रता व गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली हांसिल कर लेने के बाद भी सामाजिक लोकतन्त्र का लक्ष्य हांसिल कर तीसरी आज़ादी प्राप्त करने का स्वप्न धूमिल हुआ है क्योंकि यह तभी हांसिल हो सकती थी जब नागरिकों को समस्त संवैधानिक अधिकार मिलते और नागरिक भी अपने संवैधानिक दायित्वों को भी निभाते, लेकिन ऐसा हो नही पाया।

लोकतन्त्र सामन्तवाद पूंजीवाद और धार्मिक ,जातीय मफिआयों के चंगुल में है ,तो चालाक नागरिक अपना कोई भी दायित्व निभाने से पहले उसकी इतनी कीमत चाहता हैं। वह अपने नेताओं से चुनाव से पहले ही सौदा कर लेना चाहता हैं। नेता भी अपनी सुविधा के अनुसार मतदाताओं की खरीद फ़रोख़्त कर अपनी गणित फिट करके पांच साल गायब हो जाता हैं। उसे जनता से सरोकार नही रह जाता ।

ऐसी परिस्थिति में जिन लोगों ने तीसरी आज़ादी का स्वपन देखा है जिनमे ऐसे लोग शासन में शामिल हो जो आर्थिक ,समाजिक आज़ादी को केंद्र में रखकर वंचितों को मूलभूत आवश्यकताओं से भर सकें। और जो अपने महापुरुषों के इस स्वप्न के प्रति अपने को समर्पित पाते हैं उन्हें ही आगे आकार परिस्थिति बदलनी होगी, व्यवस्था परिवर्तन करना होगा।

देश की दिशा और दशा में आमूलचूल परिवर्तन के लिए 40 %हासिये के समाज के लिए मानवीय जीवन की मूलभूत अवश्यताओं में रोटी, कपड़ा, मकान ,शिक्षा रोजगार के अवसर प्रदान करके ही हम उन्हें सच्चे अर्थों में आज़ादी का एहसास करा सकतें है।

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