●लेखक – एस .आर .भारतीय
वर्तमान मीडिया, प्रिन्ट मीडिया, सरकारी व प्राईवेट टीवी चैनल ,अखबार ,पत्रिकायें लोगों के आचार विचार में रंगभेद का दंश भरता जा रहा है। अभी देश की जनता जातिभेद, धर्म भेद की लड़ाई लड़ रही हैं। और ये लड़ाई प्रारम्भिक दौर से गुजर रही है। इस लड़ाई में किसकी जीत होगी हैं आम जनता की या फिरका परस्तो की।
इस लड़ाई के पहले ही एक और लड़ाई की ज़मीन ये मीडिया और प्रासाधन बनाने वाले लोग खड़ी कर रहे हैं। रंग भेद(महिलाओं पुरुषों) में उनके रंगरूप पर कटाक्ष करने वाले विज्ञापन, लेख।साँवला रंग देश की नब्बै परसेन्ट महिलाओं और पुरुषों के रंग का प्रतिनित्व करता है। लेकिन साजिशन गोरे चिट्टी महिलाओं पुरुषों का विज्ञापन, सांवले रंग वाले लोगों को चिढ़ा रहे हैं। और मानसिक रुप से महिलाये इसका शिकार हो रही हैं।
व्यापारिक कम्पनियां इस रंग भेद को ज्यादा बढ़ावा दे रही हैं। सांवले रंग की लड़की का अस्तित्व लगता हैं अंधकार मय होता जा रहा है। सुन्दरता का पैमाना अब बड़ी बड़ी प्रसाधन बनाने वाली कम्पनियां तय कर रही हैं। जो ठीक नहीं है। सरकार को इस झूठे विज्ञापनो पर रोक थाम की दिशा में भी सोचना चाहिए। देश की साँवली बेटियों का भविष्य और जीवन अंधकार मय हो गया है। जब हर तरफ गोरी चिट्टी महिलाओं पुरुषों की मांग होगी तो ये सांवले रूप रंग वाले कहाँ जायेगे। वैसे भी शास्त्रों में सांवले रुप रंग वाले लोगों को कोई अहमियत नहीं दी गई है। उन्हें बहुजन समाज की श्रेणी में रखा गया है।
देश में रंगभेद, नस्लभेद, जातिभेद, सम्प्रदाय भेद, धर्म भेद का कोई जगह नहीं है ऐसा कोई करता है तो वो असंवैधानिक होगा देश की90% सांवले रंग वाली महिलाओं और बच्चियों को हीन भावना से ग्रसित होने से बचाने में सरकार को सोचना चाहिए। विज्ञापन कर्ता ऐसा शो करता है। जैसे साँवला रंग अभिशाप हो गया है। सांवला रंग महिलाओं की सारी प्रतिभा पर भारी क्यों पड़ता हैं ?