भोजपुरी में एक कहावत है कि ” जइसने रसूलन बीबी, ओइसने भभकर मियां” मसला यह है कि सरकार, न्यायपालिका एवं यूजीसी सब मिलकर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित वर्गों का संवैधानिक प्रतिनिधित्व खत्म कर ही रही है, लेकिन इसका विरोध करने के लिए भी आरक्षित तबके के प्राध्यापक एवं शोधार्थी आगे नहीं आ रहे है। पूरे देश मे लगभग 200 के करीब ही प्राध्यापक एवंशोधार्थी है जो इस मसले पर चिंतित है। बाकी सब उस फिल्मी भीड़ की तरह मृतप्राय है जो सिर्फ काम खत्म हो जाने पर तालियां बजाने का इंतज़ार करते है।
यह स्थिति बहुत ही भयावह है। यदि आरक्षित वर्ग के प्राध्यापक एवं शोधार्थी इस आंदोलन में शरीक नहीं हुए तो वे झुनझुना बजाने लायक भी नहीं रह जाएंगे। फिर दूल्हे के फूफा की तरह रूठते रहिएगा की मुझे किसी ने पूछा ही नहीं? खुद आगे बढिये औऱ इस अकादमिक अन्याय का विरोध कीजिये। जैसे भी कर सकें।इसको राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाना पड़ेगा वरना हमारा बहुत नुकसान हो सकता है।
आज का प्रकाश जावेडकर जी का बयान बहुत निराशाजनक है। उन्होंने कहा है कि यूजीसी नहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहा है। हमें अपनी पूरी ताकत लगाकर के अपने प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों को जगाना पड़ेगा। आपसे इसमें और अधिक सक्रियता की अपेक्षा है_rajesh paswan