घोर जातिवादी मायावती नेतृत्व करे तो वाल्मीकि और पासी समाज का क्या होगा ? –दर्शन ‘रत्न’ रावण

कभी-कभी हम छोटी-छोटी घटनाओं से अति उत्साहित हो जाते हैं। यह ठीक है कि अच्छे नतीजों का हम खैरमखदम करें। मगर अपने पुराने तुज़रबों को भी सामने रखना चाहिए। बात कर रहा हूँ उपचुनावों से पैदा हुई स्थिति और हज़ारों उम्मीदों की।

इस बात में कतई झूठ नहीं कि भाजपा आरएसएस जैसे संगठन भारत के लिए घातक हैं। इन्हें मिल-जुल कर रहना ना आता है ना ही ये चाहते हैं। संसार का ऐसा कोई हिस्सा नाहीं जहां एक ही नस्ल के इंसान रहें और जी लें।

मगर मैं जिस पसोपेश से गुजर रहा हूँ वो यह है कि मौजूदा पसमंज़र के हिसाब से एक तरफ कट्टर हिदुत्व के लोग हैं। जिनमें बहुत सारे बरग़लाए हुए समूह हैं। वोट के महत्त्व को अपने भविष्य के सोच कर गाय, गोबर पर चिन्तित हो रहा है। बावजूद इसके कि गाय कूड़े के ढेर पर पहुँच चुकी है।

मैं बात कर रहा था कि एक तरफ हिन्दू-कट्टरपंथी हैं। जिसके निशाने सभी दलित, आदिवासी, अल्पसंखयक व पिछड़े हैं। इसमें एक तथ्य यह कहना चाह रहा हूँ कि पिटने वाले अकेले नहीं हैं। भविष्य में एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं।

दूसरा पहलु यह है कि अगर देश का नेतृत्व मायावती जैसी औरत करती है तो नसीमुद्दीन के रूप अल्पसंख्यक उनके कृपा-पात्र रहेंगे। कुछ पिछड़े कुर्मी के रूप में और सबसे करीब ब्राह्मण मिश्रा जैसा कोई निश्चित रहेगा। मगर वाल्मीकि समाज जिसकी जनसँख्या दलितों में सबसे भारी है उन्हें 403 सीट {ऊ.प्र.} में से कोई हारने वाली सीट भी नहीं मिलेगी।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि कांग्रेस अभी भी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही। दलितों को लुभाने के लिए मायावती का नाम एक रणनीति के अंतर्गत उछाला जा सकता है। फिर देश का सफाई कामगार समाज क्या करे ? अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले पासी समाज क्या करेगा ? जिसके पुरखों ने बसपा को बनाने में अपना सर्वस्व निछावर कर दिया। सवाल पर बाकि सवालों को एक तरफ रख कर सोचना होगा। इसी तरह अन्य उपेक्षित अनुसूचित जातियों का क्या होगा ?

(रावण जी के दीवार से संसोधित)

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