नमस्कार शुभ प्रभात राय माँगने पर भी नहीं मिलता है,बदलता भारत ..क्या बदलाव आया है,हम कुछ बदलाव को पूरा बदलता नहीं कहेंगे,क्यूँ कि मालूम है,देश की जनता जो मूल देश की धरोहर है,मूल निवासियों की बात कर रहे हैं,
आज जंगल,रोड़,स्टेशन,फुटपाथ,अन्य,जगह जगह पर सोने को मजबूर हैं,खाना,पानी,तो दूसरी बात,,वो आज तक वोट तक नहीं डाला है,,तो सरकार ने १९५७से किसका बदलाव कर रही है,मेरे समझ में आया है,हम कुछ पढ़ें लिखे हैं जानते हैं,पर ६०%देश की जनता अनपढ़ है,साछर हैं,पर दसखत करने भर आगे कुछ भी नहीं आता,यहाँ तक दूसरों पर निर्भर रहते हैं,बैंक मे पैसा निकालने,या पैसा गिनना बाबू साहब या पंडित जी को ले जाते हैं,चाहे अपना घर की लड़की,लड़का,बीए पास हो भरोसा नहीं है,,, आप बदलाव की बात कर रहे हैं बहुत अच्छा लगता है,पर क्या समाज के लिए शासन प्रशासन,या समाजिक,समाजसेवी संस्थाओं,का काम क्या है,ंअपना घर भरे,या यूज कर छोड़ कर मंत्री बन कर अपना जीवन सफल बना ले,समाज जहाँ है,वहाँ पर छोड़ कर भागने वाले दलबदल नेता जी हैं,हम गुलगुलिया समाज को देखते रूह कांप जाती है,झूठा भोजन जो आप की पत्तल का बचा हुआ फेका जाता,एक तरफ कुत्ते और एक तरफ गुलगुलिया समाज के लोग,खाना चुनते हैं,और पता नहीं कितने दिन खाते हैं,हम बासी रोटी नहीं खाते हैं,जो अपने बच्चों को करतब और भीख माँगने पर मजबूर हैं,सरकार क्या कर रही हैं,या समाज के लोग क्या कर रहे हैं,हम आज भी गुलाम है,स्रवनो के मानसिकता गुलाम है,हम कुछ दोस्तों के साथ रहा जो मुझे पसंद करते हैं पर जाति पाति के नाम पर,ंछोटजातिया कहते थे,हमारे साथ रहना खाना खा ना और कुछ रहना,पर उनकी अभिलाषा की हमेशा गुलाम की तरह ही रहे हमे गुलामी पसंद नहीं है,हमने उनको छोड़ दिया, हम आकेला मंजूर रहना पर स्वाभिमान के साथ जीवन जिऊँगा,बाबा साहब के वासूलो पर चलूँगा,जय भीम जय भारत,,
लेखक- अर्जुन रावत
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