उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिला में अप्रैल महीने से ही असुरक्षा व हिंसा का माहौल बना हुआ है। अम्बेडकर जयंती पर समाज सुधारकों की मूर्तियां स्थापित करने से रोका गया और इजाजत न होने का बहाना बनाया गया। यही सवाल फिर 5 मई को महाराणा प्रताप के जन्मदिन के अवसर पर उठाया गया। दबंगों द्वारा लोगों के घर जलाए गए, मारपीट की गयी और जातीय पहचान के मंदिर को नुकसान पहुँचाया गया।
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि समाज में कितना जातीय द्वेष फैला हुआ है। ऐसी घटनायें इस बात का भी सबूत हैं कि सरकार समाज में समरसता स्थापित करने और जातीय द्वेष को मिटाने में नाकामयाबी साबित हुई है। हिंसा की इन घटनाओं के खिलाफ 9 मई को जब प्रदर्शन हुआ तो उस पर पुलिस ने ताकत का इस्तेमाल किया और उग्र टकराव हुआ।
स्वराज इंडिया राज्य सरकार से पूछना चाहती है कि समाज में समता व जीने के अधिकार की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह करने में असफल हुई सरकार अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करते हुए घटना की जिम्मेवारी लेगी या नहीं? आज समाज के ज्यादा ताकतवर वर्ग द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों पर हमला किया जा रहा है और किसी व्यक्ति या समूह के सम्मानजनक जीने के सांवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश की जा रही है।
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि यदि इस तरह के हमले रोकने में राज्य सरकार नकारा साबित होती है तो पीड़ित समाज की तरफ से प्रतिक्रिया होना अवश्यम्भावी है जिससे संघर्ष की चिंगारियाँ उठने की आशंका बनी रहेगी। इससे समाज में पहले से व्याप्त असुरक्षा और अधिक बढ़ेगी।
इन हालातों के लिए राज्य व केंद्र सरकार हर हालात में उत्तरदायी होंगी। इसके दो कारण हैं। एक, समाज में हिंसा व जातीय दायित्व का मौजूद होना; और दूसरा, राज्य सरकार की वह समझ जो जातीय श्रेष्ठता व वर्चस्व के विचार को मजबूत करने के पक्ष में दिखती है। ऐसे में, स्वराज इंडिया समाज में अमन व बराबरी के पक्ष में खड़े व्यक्ति व समूह से आह्वान करती है कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ संघर्ष के लिए पूरी ताकत के साथ उतरें।