कई विद्ववानों के शोध में यह बात सामने आई है कि पासी राजवंश और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी का वंश एक ही व्रक्ष कि दो शाखाएँ हैं।
इस बात की पुष्टि के लिए दोनों में समानताओं पर द्रष्टिपात करिए
1- महार जाति की उत्पत्ति डा0 अंबेडकर के अनुसार नागकुल से हुई है अर्थात महार नाग कुल की एक शाखा है उसी तरह पासी की उत्पत्ति भी नाग कुल से हुई है
2- नई खोजों के अनुसार पासी शब्द भारशिव नागवंशी टाक शाखा से निकल कर गुप्तकालीन दंड-पाशिक से पासी या भर-पासी बना फिर नवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में राजपासी के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था। महार भी टाकवंशी नाग हैं। (people of Indian)
3- उ0प्र0में पासी लोगों का मुख्य कार्य शासन से बाहर होने के बाद चौकीदारी या ताड़ी निकालना पाया जाता है। महार जाति का भी मुख्य पेशा चौकीदारी पाया जाता है।
4- पासी जाती का मुख्य गढ़ मुख्यतः उ0प्र0 और बिहार हैं तो महार जाति ,का गढ़ महाराष्ट्र है
5- महाराष्ट्र में महार धरतीपुत्र कहे जाते हैं उ0प्र0 में पासी शासकों की भूमिका निभा चुके हैं
6- दोनों ही जातियाँ अपराधशील रह चुकी हैं।
7- महारों ने 1925 कट यातना झेलीं तो पासियों ने अगस्त 1952 तक जरायम एक्ट की लंबी अवधि पार की।
8- पासी और महरों का रक्त ग्रुप ए,बी,ओ है
9- वीरता के गुण पासी और महारों में समान रूप से पाया जाता है। पासी तो दंडपासी ही था
10- इसी लिए कहा जाता है की पासी का लट्ठ पठान ही झेले श्री अमृतलाल ने ‘एकदा नैमिषारण्य’ उपन्यास में कहा है कि बनवासी समाज को वश में करने के किए पहेले भर और पासी लठैत भर्ती किए। महार जाती का नाम भी काठी वाला अर्थात काठीवाला कहलाता है। काठ का अर्थ लकड़ी होता है। ‘Kathi wala means man with a stick which is word inductive of his profession
11- उ0प्र0 में पासी यदि राजवाशी कहलाते हैं तो महार लोग सोमवंशी हैं। यानी शिव भूषण चंद्र के वंशज। पासी तो भारशिव वंशज हैं ही।
12. पासी जाति के लोग अलग अलग टाईटल से देश के 14 राज्यो में पाये जाते है।
(स्रोत -इतिहासकार राम दयाल वर्मा की पुस्तक, विखरा राजवंश और भारशिव राजवंशानाम से लिया गया है। )