स्त्री और पुरुष में शारीरिक संरचना के आधार पर भले अलग हो बल्कि यूँ कह लीजिए कि कुदरत का यही विभेद ही उनकी अपनी ख़ासियत भी है लेकिन उनकी जीवन की जरूरतें लगभग एक तरह की है। जैसे भूख,प्यास,थकान,बीमारी आदि आदि।
परन्तु सौन्दर्य बोध की गलत अवधारणा ने महिलाओ और पुरुषों को एक प्रतियोगिता में शामिल कर दीया है।
हवाई जहाज से लेकर दाड़ी बनाने वाली ब्लेड का प्रचार भी बिना स्त्री के पूरा नही होता यहाँ तक की महिलाओं के बिना गाली दे कर किसी का विरोध और प्यार भी न जताया जा सकता है।
महिलां आजादी की बात भी उठी तो विदेशी महिलाओं की तरह शारीरिक आजादी तक ही सिमित रह गयी और आर्थिक आजादी को दरकिनार किया गया।
और हमने स्वछन्दता को ही आजादी की परिभाषा बता डाली। आजादी का मतलब नियमो और कानूनो के दायरे में रहना और स्वछन्दता का मतलब बिना नियम कानून के समाज में जीवन यापन करना । हम लड़की को लड़के की तरह बनाने और लड़की लड़के से कम नहीँ होती । यह बताने में ही हम शेखी बघारने लगे और कुदरत की इस विविधता को घृणा में बदल दिया।
इसलिए महिला दिवस के इस अवसर पर कुदरत की इस विविधता का सम्मान करते हुए आधुनिक और वैज्ञानिक समाज बनाने के लिए संकल्पबद्ध हो | niraj pasi mob.9839782772