दलित फूड्स
बाज़ार में ” दलित फूड्स ” ने छुवा छूत को कड़ी चुनौती दिया!!
यह अविष्वसनीय है किंतु सत्य है! आजादी के बाद बहुत ही कम समय में ही अनुसूचित जातियों का इतना अधिक विकास होना निश्चित ही हजारों साल पुराने मनुवाद को बहुत बड़ी चुनौती है!यहाँ हम बात कर रहे हैं पासी समाज(अनुसूचित जाति) में जन्मे प्रसिद्ध दलित हित चिंतक बुद्धि जीवी चंद्रभान प्रसाद साहब की जिन्होंने जाती गत भेद भाव को पैक्ड फ़ूड से दूर करने की ठानी है। इनमें वह खाद्य वस्तुएँ शामिल हैं जो सदियों तक पशुओं या दलित पिछड़ी जाति के लोगों का आहार रही है। मनुवादी समाज के लोग जिन्हें दोयम दर्जे का मान कर मुह बिचकाते थे। यह और बात है अब बड़े बड़े वैज्ञानिक साक्ष्य से ज्ञात हो चूका है। कि इन आहारों में कई गुना पोषक तत्व थे। जो मानव की सेहत के लिए बहुत अधिक गुणकारी थे। अब इनकी स्वीकारिता बढ़ती जा रही है। श्री प्रसाद जी ने हाल ही में मसाले अचार और मोटा अनाज बेंचने के लिए “दलित फूड्स” सेवा ऑन लाइन लॉन्च किया है। श्री प्रसाद जी ने एक इंटरवियू में बताया था कि जब वह बड़े हो रहे थे गांव में अपनी शिक्षा के दौरान उन्हें और उनके परिवार जाति समाज के लोगों को न चाहते हुवे भी मोटा अनाज ही खाना पड़ता था। उस समय जौ ,चना, बाजरा, ज्वार ,मक्का आदि निम्न दर्जे का भोजन माना जाता था सवर्णो के यहाँ इसे नौकर और पशुओं को खिलाया जाता था। समय का बदलाव देखिये आज इसे ही सुपर फ़ूड कहा जाता है । दलित फूड्स योजना उन्ही खाद्य वस्तुओं को जन साधारण में लोक प्रिय बनाने के लिए दृढ संकल्पित है।
बड़े बड़े होटल आज स्वस्थ्य जागरण होने के नाते प्रायोगिक तौर पर दलित फूड्स खरीद रहे है। बड़े बड़े शहरों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।।
उद्द्योग संगठन एसोचैम की माने तो घरेलु पैक्ड फ़ूड मार्केट को सन 2017-18 तक 50 अरब डॉलर हो जाने के आसार है। बीते साल में इसका बाजार 32 अरब डॉलर का था वर्तमान उद्द्यमी, लेखक और महान दलित चिंतक, कार्यकर्त्ता श्री प्रसाद जी ने बताया कि दलित फूड्स अभी बहुत छोटी रेंज में अंचार और अनाज बेंच रही है। इसमें पिसी हल्दी,आम का अंचार,जौ का आटा और कुछ दालें शामिल हैं। आगे चल कर इसमें और कई उत्पाद जोड़े जाने की योजना है। जैसे अभी कुछ समय पूर्व ही सूचना मिल रही है टीशर्ट भी इस बैनर तले बहुत कम रेट पर बिकेगी। इसी परिपेक्ष्य में श्री प्रसाद जी ने बताया था कि मेरे परिवार के तीन सदस्सयो की मौत कैंसर के कारण हो चुकी है। मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है जो इस रोग से बचाता भी है तथा और भी कई बीमारियों से रक्षा या बचाव भी करता है। साथ ही समाज में फैली कुरीति छुआछूत जो सन 1955 से कानूनी तौर पर पूर्णतया प्रतिबंधित है फिर भी व्यवहारिक तौर पर दूर नहीं हो सकी है। आज भी लोग दलितों के हाथ से बने खाद्य पदार्थ को अशुद्ध मानते है यही सब कारण है की मेरा रुझान दलित फूड्स योजना की स्थापना की तरफ हुवा है । यह एक सामाजिक बदलाव के लिए प्रयोगात्मक प्रक्रिया भी है। इस कार्य से दलित समाज के प्रति फैली छुआछूत दूर करने का एवम उनकी बेरोजगारी दूर करने का प्रयास भी किया जाएगा। लोगों में उद्द्योग के प्रति रुझान भी पैदा हो यह प्रयास भी किया जायेगा।।
मेरी(लेखक की)सोच है कि समाज के लोगों को इससे ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुडना चाहिए इसमें कई सीढियां बनायीं जा सकती है बाबा राम देव की तरह इसमें लोगो को जोड़ कर देश व्यापी बिक्री हेतु प्रयास किया जाना सकता है । जब अपने जीवन के सभी पायदान पर सफल श्री चंद्रभान प्रसाद साहब इस क्षेत्र में प्रयास कर सकते है तो अन्य लोग क्यों नहीं?? इसी कड़ी में मेरी सोच है अन्य शाखाएं भी बनायीं जा सकती है जैसे “सुपर फाइबर फ़ूडस” या “मूल खाद्य पदार्थ” आदि नामो से बाजार में उतरने पर सफलता के चांस बढ़ जाएंगे।( पत्रिका दलित शब्द से इत्तेफाक नहीं रखती)
आर के सरोज़
Ph no.9450639644
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
हाल पता:- साऊथ सिटी लखनऊ