○अजय प्रकाश सरोज इलाहाबाद, फूलपुर उप चुनाव । समाजवादी पार्टी को जहां बहुजन समाज पार्टी का समर्थन मिल गया है । जिससे कार्यकर्ताओं उत्साह दुगना हो चुका है। सपा और बसपा के कार्यकर्ता मिलजुल कर कर गांव गांव, गली गली में मतदाताओं को को अपने पक्ष में साइकिल निशान पर वोट देने की अपील कर रहे हैं। तो वहीं सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दल अपना दल के कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ चुनावी रणक्षेत्र में डटे हैं। फूलपुर लोकसभा में लगभग तीन लाख पासी मतदाताओं कों को रिझाने के लिए पार्टियां पासी जाति के नेताओं को प्रचार के लिए उतार चुकी हैं। फूलपुर के उपचुनाव में मुख्य पार्टियों के अलावा वैकल्पिक पार्टी भी अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं । बामसेफ कि राजनीतिक संगठन बहुजन मुक्ति पार्टी के उम्मीदवार अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व निदेशक कन्हैयालाल के समर्थक भी अपने जीत का आंकड़ा बताते हैं । कन्हैया लाल सरकारी सेवा में रहते हुए लगभग 10 वर्षों से सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते रहें और उन्होंने राष्ट्रीय पासी समाज संघ, राष्ट्रीय पिछड़ा समाज संघ और राष्ट्रीय प्रगतिशील समाज संघ जैसे संगठनों का संचालन किया है । उनके साथ बहुजन मुक्ति पार्टी के कार्यकर्ता भी जी जान से जुटे हुए हैं। खास तौर पर पासी समुदाय के बीच में कन्हैया लाल की पैठ मानी जा रही है। लेकिन भाजपा के विरोध में लामबंद हुए सपा बसपा के मतदाताओं में पासी समुदाय भी है। इसके अलावा बसपा से निकाले गए इंद्रजीत सरोज और पूर्व मंत्री आरके चौधरी के सपा में आ जाने से पासी समुदाय का मतदाता सपा के साथ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखा रहा है अनुसूचित समुदाय पासी बाहुल इलाहाबाद क्षेत्र में सामंती गुंडों द्वारा विगत दिनों दिलीप सरोज की हत्या का भी पासी समुदाय में भाजपा के खिलाफ रोष है । यह मामला राष्ट्रीय पटल पर पासी समुदाय ने उठाया। साथ ही इस मसले को लेकर प्रदेश के लगभग 40 जनपदों में विरोध प्रदर्शन हुआ । जिसका फायदा भाजपा को हराने वाले प्रत्याशी को मिल सकता है। पासी समुदाय में चर्चा यह भी है कि भाजपा ने अपने कैबिनेट में एक भी पासी समुदाय के विधायक को मंत्री नहीं बनाया है। जिसका नुकसान उसे हो सकता है लेकिन भाजपा ने अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर को पासी समुदाय के बीच भेज कर पासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति बनाई है । लेकिन इसका परिणाम तो चुनाव बाद ही पता लगेगा। कुछ कट्टरपंथी पासियों के बीच में चर्चा यह भी है कि पासी समाज का इस्तेमाल समय-समय पर सभी पार्टियां करती रहती हैं । स्वतंत्र पहचान के लिए पार्टियों को खारिज कर नोटा का बटन दबाया जाए ।