भारत में सदियों से बहुजन और विशेषाधिकारयुक्त लोगों के बीच जो वर्ग संघर्ष जारी है वह, हम लगभग हार चुके हैं । भारत का इतिहास आरक्षण पर संघर्ष का इतिहास है और देवासुर संग्राम के बाद मंडल के दिनों में तुंग पर पहुंचे इस संघर्ष के बाद ऐसा लगा था कि हजारो साल के वंचित सम्पदा-संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी पा लेंगे पर, बहुजन नेतृत्व की अदुरदार्शिता और अकर्मण्यता के चलते सब व्यर्थ हो गया।
आज जिनका सत्ता पर कब्ज़ा है वे लाभजनक उपक्रमों को निजी हाथों बेचने के साथ अस्पताल, रेलवे ,एयर इंडिया इत्यादि को निजी हाथों में देने लायक हालत पैदा कर रहे हैं। नरसिंह राव से शुरू होकर आरक्षण के खात्मे का जो सिलसिला वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने आगे बढाया , उसको मोदी तीन सालों में बहुत आगे बाधा दिया है. राव, वाजपेयी और मनमोहन को मोदी ने बिलकुल बौना बना दिया है. इस कारण वह आज सवर्णों के सबसे नायक के रूप में उभरे हैं।
आज हमें जिस प्रतिपक्ष के साथ लड़ना है उसकी शक्ति का जायजा लेना जरुरी है. उसके मातृ संगठन के साथ 28 हजार से अधिक विद्या मंदिर और 2 लाख से अधिक आचार्य हैं.। उसके पास 4 हजार पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता हैं एवं साथ ही 48 लाख अधिक छात्र, 83 लाख से ज्यादा मजदुर जुड़े हुए हैं। उसके 56 हजार से अधिक शाखाओं के साथ 56 लाख से अधिक लोग जुड़कर उसे बल प्रदान करते हैं।
इस अपार शक्तिशाली प्रतिपक्ष से लड़ने के लिए हमारे पास एक ही चीज थी, विपुल संख्या-बल . लेकिन पहले से ही छितराए इस संख्याबल को मोदी ने आरक्षण में वर्गीकरण का उपक्रम चलाकर और छिन्न-भिन्न कर दिया है।
इन्ही सब कारणों से मैं कह रहा हूँ कि हम इतिहास के सबसे भयावह दौर से गुजर रहे। उपस्थित विद्वान वक्ता इस संकट की घडी में इन सब हालातों को ध्यान में रखते हुए, उचित मार्ग दर्शन करेंगे, इसकी उम्मीद करता हूँ। (मावलंकर हाल में बहुजन सम्मयक सम्मेलन में दिए गए वक्तब्य पर आधारित)