जन्म | 26 दिसम्बर 1899 |
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मृत्यु | 31 जुलाई 1940 (उम्र 40) पेंटोविले जेल , यूनाइटेड किंगडम |
अन्य नाम | राम मोहम्मद सिंह आजाद |
संगठन | गदर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन, भारतीय श्रमिक संघ |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
धार्मिक मान्यता | सिक्ख (दलित) |
जलियांवाला बाग नरसंहार, किसका खून नही खुल जाता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर? ऐसा कोई भारतीय नही , जिसका दिल और दिमाग अंग्रेजों के प्रति घृणा से भर नहीं उठता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर। पर बहुजन क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह जैसे देश के वीर सपूत ने अंग्रेजों की इस कायरता का भरपूर जवाब दिया , और लन्दन में जाकर जलियांवाला बाग नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को उसी की सरजमीं पर गोलियों से भून डाला , शहीद उधम सिंह की सबसे बड़ी बात ये थी की उन्होंने माइकल ओ डायर के सिवाय और किसी को भी निशाना नही बनाया और ठीक भगत सिंह जी के अंदाज में आत्मसमर्पण कर दिया , अंग्रेजों ने फांसी की सजा की सुनवाई के दौरान जब उधम सिंह से पूछा कि उन्होंने किसी और को गोली क्यों नहीं मारी, तो वीर उधम सिंह का जवाब था कि सच्चा हिंदुस्तानी कभी महिलाओं और बच्चों पर हथियार नहीं उठाते। ऐसे थे हमारे शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह। उधम सिंह को बाद में शहीद-ए-आजम की वही उपाधि दी गई, जो सरदार भगत सिंह को शहादत के बाद मिली थी। आज 31 जुलाई को शहीद वीर उधम सिंह जी का शहादत दिवस है श्री पासी सत्ता परिवार उनको श्रध्दांजलि अर्पित करता है !
विशेष जानकारी
- जालियावाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे उधम सिंह
- शहीद उधम सिंह ने लन्दन जाकर जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लिया
- सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है
- उत्तर भारतीय राज्य उतराखंड के एक ज़िले का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है
जीवनी :-
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में सिक्ख (दलित ) परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।
- जलियावालाबाग हत्याकांड के 21 सालो बाद लन्दन जाकर लिया बदला
उधम सिंह के सामने ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। वे प्रत्यक्षदर्शी थे , राजनीतिक कारणों से जालियावाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई, सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी। अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका , नैरोबी ,ब्राज़ील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
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शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है.
आइये आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर , सुनाम स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रन्तिकारी का घर है… कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए करोडो रुपये बहाती है, बीजेपी सरकार संघियों के स्मारक और मुर्तिया लगाने के लिए करोडो खर्च करती है लेकिन आजतक इस देश के सच्चे वीर सपूत के नाम से कोई स्मारक नही बना और न ही इनके घर और पूर्वजो की निशानी को संरक्षित किया गया