हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स ( स्टैंडिंग कौंसिल्स / गवर्नमेंट एडवोकेट्स एवं ब्रीफ होल्डर्स) का एप्वाइंटमेंट बेहद ही महत्वपूर्ण दायित्व वाला पब्लिक सर्विस का पद है जिसकी नियुक्तियों में संविधान के प्राविधानों का पालन अनिवार्य है ।
लेकिन अफ़सोस की पंजाब एवं बिहार राज्यों को छोड़कर देश के तमाम राज्यों में राज्य सरकारों के पास हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति के लिए आज तक कोई पारदर्शी एवं लिखित प्रक्रिया नहीं है जिसमे उत्तर प्रदेश भी शामिल है।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होते ही लगभग सभी सत्ताधारी विधायकों एवं नेताओं के यहां सरकारी वकील बनाने के लिए ‘निजी रोजगार दफ्तर’ खोल दिए जाते हैं और प्रदेश के लगभग सभी वकील लोग अपने-२ जुगाड़ टेक्नोलॉजी के प्रभाव -दबाव के लाव लश्कर के साथ अपना-२ बायोडाटा लेकर सत्ताधारी राजनेताओं -विधायकों-मंत्रियों के उक्त रोजगार कार्यलयों में दरबार लगा चापलूसी की पराकाष्ठा करते रहते हैं।
चापलूसी एवं जुगाड़ टेक्नोलॉजी का यही गंदा एवं घिनौना खेल हाई कोर्ट्स में सरकारी वकील (लॉ ऑफिसर्स) महीने -दो महीने चलता है और बड़े से बड़े चापलूस, अपनी-2 चापलूसी की अति महान योग्यता एवं भारी भरकम जुगाड़ से “योग्यता / मेरिट” की सीढ़ी को पकड़ कर हाई कोर्ट्स में सरकारी वकील [लॉ ऑफिसर्स] बन जाते हैं ।
जिसका सीधा -2 अर्थ हुआ की देश की हायर जुडिसियरी में भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं क्यूंकि हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स (सरकारी वकील)की “चयन एवं नियुक्ति” के लिए ना कोई पारदर्शी / लिखित नियम हैं ना प्रक्रिया है ।
जिसके चलते संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का अवमानना है। क्यूंकि इन सरकारी वकीलों की नियुक्ति में एस सी / एस टी / ओबीसी वर्ग के आरक्षण के प्रावधान बिलकुल ही लागू नहीं किये जाते हैं । इस मांग को लेकर कुछ वकीलों ने कल लखनऊ में धरना परदर्शन भी किया।
ऐसे में देश की उच्च न्यायपालिकाओं के बारे में वर्ग विशेष का कब्जा बना रहता है। और वंचित समुदाय के लोगो की भागीदारी नही मिल पाती है। जिससे संवैधानिक प्रक्रियाओं में बंधा उतपन्न होती रहेगी। न्यायपालिका में मानक और योग्यता के अनुसार अभी समुदाय के वकीलों की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।