महाराजा महासेन पासी (महासेन बाबा) बलिदान दिवस:- अषाढ मास सत्तमी

सांकेतिक व काल्पनिक तस्वीर
पासी धर्म रक्षक राज वंश की हस्तियां मिट गयी ,
राष्ट्र धर्म और राज्य धर्म निभाने मे ।

गद्दार राजवंशो की गद्दारी सन्धि मे टिक गयी ,

परतंत्र भारत मे शर्म नही आयी राजा कहलाने मे ।।

मित्रो ,बात है १२वीं सदी की उस समय तक गुजरात पर मुगलो का शासन हो गया था । वहां के बाछिल राजपूतो का आधिपत्य समाप्त हो गया था । मुगलो ने सन्धि के तहत देश के अन्य राज्यो पर अधिकार करने के लिए अपने साथ मिला लिया ।

उस समय बहुत राजपूत इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था ।उनमे से बहुत से परिवार आज भी भारत मे है उनकी अलग पहचान है खांन पठान टाइटिल से जाने जाते हैं ।

   जयचन्द के हमराही बाछिल राजपूत अहवंश ने गुजरात राजपूत सोफी गोपी और मुगल सैनिको के साथ मिल कर मितौली खीरी के राजा मितान पासी , अमृता पासी के महलो पर रात्रि मे हमेसा करके धोखे से मार कर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। इसका बदला लेने के लिए महोली के राजा हंसा पासी ने अहवंश की पुत्री चन्द्रा से विवाह/ युद्ध का प्रस्ताव भेजा जिस पर वह विवाह के लिए राजा हो गया । वारात विदाई के समय धोखे से राजा हंसा सहित वराती सैनिको को भी मरवा दिया ।इसी कडी मे अहवंश ने अपने सहयोगी बाछिल राजपूत और मुगल सैनिको के साथ एक कर पासी राजाओं पर धावा बोल दिया , महासेन पासी राजा को उनके कोडरी ढीह किले के पास कोडरी डेगरा के मैदान मे घेर लिया घात युद्ध मे पासी राजा महासेन सहीद हो गये । समयकाल 1170 से 1190ई की है उस दिन असाढ मास की सत्तमी थी ।

तब से आज तक क्षेत्र के पासी लोग उस दिन को बलिदान दिवस के रूप मे मनाते हैं । शोकाकुल पासी खरो मे इस दिन तबा तक नही चढता था और पासी लोग डेगरा के मैदान मे इकट्ठा होते थे और अपने रिस्तेदारों को भी बुलाते है । बदला लेने के लिए कूबत इकट्ठा करने का काम करते थे ।

 मित्रो समयकाल का तकाजा है लोग इकट्ठा आज भी होते हैं , बलिदान दिवस आज भी मनाते हैं ,घरों मे तवा तो आज भी नही चढता , लेकिन इतिहास को लोग भूल चुके हैं अब तो यह बस केवल परम्परा है । इकट्ठा होने के नाम पर मेला लगने लगा , बलिदान दिवस के नाम पर बकडो की बलि चढने लगी , तवा न चढा कर कढाई मे पूडियां बनने लगी । 

महासेन पासी राजा की पत्नी महोठेरानी भी महोली मे सहीद हो गयी थी कई पासी सैनिक भी सहीद हुए थे । इनका एक किला कसमण्डा के उत्तर टीले के रूप मे विद्दमान है ।

ऊंचा खेरा कसमण्डा मार्ग पर झरसौवां के पास महासेन महोठेरानी द्वारा बनवाया गया महरुवा तालाब आज भी है लेकिन इस पर पट्टे और अतिक्रमण हो गया है!

  जनपद सीतापुर मे लहरी पासी राजा लहरपुर सन् 1375 के बाद पासी राज समाप्त हो गया।

लेकिन पासी अपने को राजपासी, राजबंसी कहते अपने को परशुराम का वंशज कहकर शन्तोष पा लेते है।

  मेरे बडे बेटे द्वारा हमे और आपको सम्बोधित पंक्ति-

”उठो रावत वीर सपूतो, रइयत तुम पर नजर पसारे है।   महापुराणो मे देखो भगवान भी तुमसे हारे हैं।

मातृ शक्ति का आवाहन करता अभिकल लाल तुमारा है।

पहचानो अपनी ताकत को,यमराज भी तुम से हारा है।।

ऊदा,लक्ष्मी,झलकारी जैसी ताकत तुममे,पल मे दुश्मन संहारा है।

20वीं शदी के उन्नत युग मे हो रहा शोषण अत्याचार तुम्हारा है।।

मां काली,दुर्गा,चण्डी बन जाओ तुम,मातृभूमि रक्षा को अवतार तुम्हारा है।।

चौका चूल्हा लालन पालन बहुत किया, अब भारतीयता और विकास के पथ पर पग धारो।

काला सफेद होगा भारत सोने की चिडिया ,बस राजनीतिक गुण्डो को मतान्तर से पछारो

कमला रावत

सीतापुर उ.प्र.

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