अक्सर हम शहरी लोगों को भ्रम होता रहता है की इस देश में जाती पति की समस्या ख़त्म हो चुकी है । हमें लगता है यह जाती वैग्रह गाँवों क़स्बों की समस्या है । हमें लगता है कि कोरपोरेट कम्पनीज़ में जाती वैग्रह कोई समस्या नहि होती ।इसी वजह से बहुत से लोग आरक्षण पर भी सवाल उठाते है की इतने साल बाद क्या ज़रूरतहै …यह लोग यह नहि सोचते की आज़ादी के इतने सालोंबाद भी जातीय अहंकार क्यों नहि जाता ।
अब क्या हम सोच सकते है की इनफ़ोसिस जैसे कम्पनी के सीईओ विशाल सिक्का अपने क्षत्रिय होने पर गर्व करते है उन्हें लगता है की क्षत्रिय होने की वजह से वह यौद्धा है और किसी भी समस्या से लड़ सकते है ….
जब दुनिया की इतनी बड़ी कम्पनी के CEO के अंदर इतनी जातीय अनहकार भरा है तो देश के बाक़ी लोगों में जाती के नाम पर कितना घमंड होगा ।
ऐसे जाति वादी लोग जब इंटर्व्यू के सिलेक्शन लेंगे तो क्या जाती का ख़याल नहि रखेंगे ।
२०१४ में फ़ेमस टीवी रिपोर्टर राजदीप सरदेसाई ने भी ख़ुद के सारस्वत ब्राह्मण होने पर गर्व बताया था ।
आप सोचिए सरकारी लोगों को छोड़िए प्राइवट और इंटर्नैशनल लेवल पर काम करने वाले लोगों के मन में जब इतना जातीय घमंड भरा है तो आम लोगों के मन में कितना घमंड होगा जाती का ।
राजेश पासी ,मुंबई
https://www.google.co.in/amp/www.hindustantimes.com/editorials/infosys-sikka-s-kshtriya-warrior-comment-doesn-t-behove-a-ceo-of-a-modern-tech-firm/story-AJ9NcezAGhaNUVDQuiAv3H_amp.html
आरक्षण ख़त्म करने की बात करने वालों
को यह नहीं दिखाई पड़ता।
सबसे पहले जातीयता ख़त्म करने की पहल होनी चाहिए।