मै कुछ कहना चाहता हूं। 

दलित , महादलित, अनार्य, शुद्र, महार ,चमार, डॉम .ऐसे  अन्य जातिया जिन्हें जाती के रूप में हमारे ऊपर थोपा  गया पहले हमे इन जातियों से छुटकारा पाना हैं 

खुद को एक इन्शान बनाना हैं जो नहीं बनना चाहते उन्हें छोडो एक दिन वो खुद इस दुनिया से चले जायेगे पर जो नए आयेंगे उन्हें तो खुछ नया सिखाओ,,, बाबा साहेब  समानता चाहते थे जो खुद हम दलितों में नहीं मुझे दलित शब्द का प्रयोग करना बिल्कुल पसन्द नहीं पर क्या करू  लोग इस शब्द को अपने माथे पे चिपकाये हुए हैं क्यों नही छोड़ते  हम इस शब्द को क्या खुद को एक सभ्य मानव जाति का नही बना सकते जो न माने उन्हें जाने दो क्यों उनके पीछे पड़े हो ….मानता हूँ बाबा साहेब प्रयासों से आज हम कुछ हद तक समानता के साथ  हैं पर जब तक हम खुद को ऊँचा नहीं उठा लेते हम बाबा साहब के सपनो को साकार नहीं कर सकते हम खुद को दलित कहना छोड़ दें क्या ये जरुरी नही मैं ये सवाल उन बुध्दि जीवी दलित लोगो से पूछ रहा हूँ जो खुद को दलित समुदाय का नेता या मार्ग दर्शक कहते फिरते हैं मैं  खुद को एक इन्शान के रूप में देखना चाहता हूँ मुझे इतना पता हैं की बाबा साहेब ने कहा था””पैदा हिन्दू हुआ पर मरुगा नहीं ”” इसका मतलब क्या हैं यही न की पैदा हुआ इन्शान क्या हिन्दू पैदा होता हैं ? “नहीं” मेरा जवाब यही रहेगा और हर एक इन्शान का जवाब यही होगा लेकिन एक कट्टरवादी का जवाब हिन्दू ,मुसलिम या  कोई धर्म या जाती से होगा में कहता हूँ क्या हम पैदा होते ही जय श्रीराम या खुदा  का नाम लेते हैं या खुद को दलित कहते हैं नही हम एसा कुछ नहीं कहते हम जब पैदा होते हैं  हम रोते दर्द होता हैं पर हम बोल नहीं सकते उस वक्त न हम हिन्दू न मुस्लिम या आर्य न शुद्र हम सिर्फ एक नई उपज होते हैं जिसको कोई ज्ञान नहीं होता हमे कुछ पता नही होता  सिखाने वाले हमारे माता  पिता सबसे पहले गुरु फिर हमारा परिवार फिर समाज फिर दुनिया जो हमको सिखाती हैं हम अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं सीखते जो खुद सीखते हैं वो सबसे जुदा होते हैं जैसे बाबा साहेब , महावीर, बुध्ध ,ऐसे  कई नाम हैं जो कभी इस संसार को सही बात बताने आये पर हम खुद में उलझे रहना पसंद करते हैं राम का नाम या मोहम्मद की बात या करो ईशा की बात सबने एक ही बात बताई  इन्शानियत की बात, बस कुछ लोगो की राजनीती इनको बदनाम कर चुकी हैं इनके नाम पे हमे कट्टर बनाया जाता हैं फिर हमको आपस में लड़ाया जाता हैं हमे कट्टर नहीं हमे एक इन्शान बनना होगा   सुखी रहेगे।।। मानता हूँ मेरी बातो को कुछ लोग पसंद नही करेगे क्योंकि  सभी के दिमाग में एक कट्टर धार्मिक इन्शान हैं पर कही एक इन्शान नहीं मिलता बस और क्या कहूँ में जिसे ढूढने निकला ओ भगवान नहीं मिलता———-– अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद

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