दलित फूड्स

दलित फूड्स
बाज़ार में    ”  दलित फूड्स ” ने छुवा छूत को  कड़ी चुनौती दिया!!
 यह अविष्वसनीय है किंतु सत्य है! आजादी के बाद बहुत ही कम समय में ही  अनुसूचित जातियों का इतना अधिक विकास होना निश्चित ही हजारों साल पुराने मनुवाद को  बहुत बड़ी चुनौती है!यहाँ  हम बात कर रहे हैं पासी समाज(अनुसूचित जाति) में जन्मे प्रसिद्ध दलित हित चिंतक बुद्धि जीवी चंद्रभान प्रसाद साहब की  जिन्होंने जाती गत भेद भाव को  पैक्ड फ़ूड से दूर करने की ठानी है। इनमें वह खाद्य वस्तुएँ शामिल हैं जो सदियों तक  पशुओं या दलित पिछड़ी जाति के लोगों का आहार रही है। मनुवादी समाज के लोग जिन्हें दोयम दर्जे का मान कर मुह बिचकाते थे। यह और बात है अब बड़े बड़े वैज्ञानिक साक्ष्य से ज्ञात हो चूका है। कि इन आहारों में कई गुना पोषक तत्व थे। जो मानव  की सेहत  के लिए बहुत  अधिक गुणकारी थे। अब  इनकी स्वीकारिता बढ़ती जा रही है। श्री प्रसाद जी ने हाल ही में मसाले अचार और मोटा अनाज बेंचने के लिए  “दलित फूड्स” सेवा  ऑन लाइन लॉन्च किया है। श्री प्रसाद जी ने एक इंटरवियू में बताया था कि जब वह बड़े हो रहे थे गांव में  अपनी शिक्षा के दौरान उन्हें और उनके परिवार जाति समाज के लोगों को न चाहते हुवे भी मोटा अनाज ही खाना पड़ता था। उस समय जौ ,चना, बाजरा, ज्वार ,मक्का आदि निम्न दर्जे का भोजन माना जाता था सवर्णो के यहाँ इसे  नौकर और पशुओं को खिलाया जाता था। समय का बदलाव देखिये आज इसे ही सुपर फ़ूड कहा जाता है । दलित फूड्स  योजना  उन्ही खाद्य  वस्तुओं को जन साधारण में लोक प्रिय बनाने के लिए दृढ संकल्पित है।

बड़े बड़े होटल आज स्वस्थ्य जागरण होने के नाते प्रायोगिक तौर पर दलित फूड्स खरीद रहे है। बड़े बड़े शहरों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।।

    उद्द्योग संगठन एसोचैम की माने तो घरेलु पैक्ड फ़ूड मार्केट को सन 2017-18  तक 50 अरब डॉलर हो जाने के आसार है। बीते साल में इसका बाजार 32 अरब डॉलर का था वर्तमान उद्द्यमी, लेखक और महान दलित चिंतक, कार्यकर्त्ता श्री प्रसाद जी ने बताया कि दलित फूड्स  अभी बहुत छोटी रेंज में  अंचार और अनाज बेंच रही है। इसमें पिसी हल्दी,आम का अंचार,जौ का आटा और कुछ दालें शामिल हैं। आगे चल कर इसमें और कई उत्पाद जोड़े जाने की योजना है। जैसे अभी कुछ समय पूर्व ही सूचना मिल रही है टीशर्ट भी इस बैनर तले  बहुत कम रेट पर बिकेगी। इसी परिपेक्ष्य में श्री प्रसाद जी ने बताया  था कि मेरे परिवार के तीन सदस्सयो  की  मौत कैंसर के कारण हो चुकी है। मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है जो इस रोग से बचाता भी है तथा और भी कई बीमारियों से रक्षा या बचाव भी  करता है। साथ ही समाज में फैली कुरीति छुआछूत जो सन 1955 से कानूनी तौर पर पूर्णतया प्रतिबंधित है फिर भी व्यवहारिक तौर पर दूर नहीं हो सकी है। आज भी लोग दलितों के हाथ से बने खाद्य पदार्थ को अशुद्ध मानते है यही सब कारण है की मेरा रुझान दलित फूड्स योजना की  स्थापना  की तरफ हुवा है । यह एक सामाजिक बदलाव के लिए प्रयोगात्मक  प्रक्रिया भी है। इस कार्य से दलित समाज  के प्रति फैली छुआछूत दूर करने का एवम उनकी बेरोजगारी दूर करने का प्रयास भी किया जाएगा। लोगों में उद्द्योग के प्रति रुझान भी पैदा हो यह प्रयास भी किया जायेगा।।

    मेरी(लेखक की)सोच है कि समाज के लोगों को इससे ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुडना चाहिए इसमें कई सीढियां बनायीं जा सकती है बाबा राम देव की तरह इसमें लोगो को जोड़ कर देश व्यापी बिक्री हेतु प्रयास किया जाना  सकता है । जब अपने जीवन के सभी पायदान पर सफल श्री चंद्रभान प्रसाद साहब इस क्षेत्र में प्रयास कर सकते है तो अन्य लोग क्यों नहीं?? इसी कड़ी में मेरी सोच है अन्य शाखाएं भी बनायीं  जा सकती है जैसे “सुपर फाइबर फ़ूडस”  या “मूल खाद्य  पदार्थ” आदि नामो से बाजार में उतरने पर सफलता के चांस बढ़ जाएंगे।( पत्रिका दलित शब्द से इत्तेफाक नहीं रखती)

 आर के सरोज़

Ph no.9450639644

प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
हाल पता:-   साऊथ सिटी लखनऊ

पासी समाज के सम्मान में मुक्तक !


Title: (1) पासी  समाज के लिए
मुक्तक  जो किसी भी पासी सम्मेल्लन में पढ़े जा सकते है।।
👍👍👍👍👌👌👌💐👌👌👌👍👍👍👍👍

 जो सबको दे शुकून  वो समीर चाहिए  ।
जो सच्चा प्यार कर सके वो हीर चाहिए।
उन्नति का पथ प्रसश्त हो पासी समाज का।
जो पासियों के हित लड़ें वो वीर चाहिए।।
★★★★★★★★★★★★★★★★

             (  2)

 

मुग़ल भारत में जब आये मुकाबिल उनसे पासी थे।
और अंग्रेज जब आये लड़े उनसे भी पासी थे  ।
टूट जाए झुके ना जो  यही पहिचान पासी की।
धर्म की रक्षा की खातिर  मिटे जो वीर पासी थे।।
★★★★★★★★★°°℃℃℃ ★★★★★★

            (  3)
राजा से क्यों दलित हुवे ये जान लीजिए।
छीना गया जो हमसे उसे उसे छीन लीजिये
पासी के संगठन खड़े है साथ आपके।#
शिक्षा है सबकी कुंजी इसे जान लीजिए।।
★★★★★★®★★★★★★★★

           (  4)
झुका कर जो चले खुद को वो पासी हो नहीं सकता।
पसवां जो न कहलाये, वो पासी हो नहीं सकता।
खून में है वफादारी यही इतिहास कहता है।
नहीं जज़्बा है क़ुरबानी , वो पासी हो नहीं सकता।।
★★★★★★★★®★★★★★★★★★

                            ( 5)
मां गोमती का बरद हस्त जिस धरा को है।
लाखन ने बसाया इसे , अभिमान हमको है।
इतिहास बिजली पासी उदा।    वीरांगना ।
सौ बार नमन लखनऊ गौरव सभी को है।।
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दलित उत्पीड़न के आरोपियों पर चुप क्यो रहती है बिहार पुलिस ?-श्री पासी सत्ता मासिक पत्रिका

बिहार मे जबसे नितिश बाबु की सुशासन वाली सरकार बनी है तब से दलित लोगो को लगातार उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है । दलितो पर हो रहे हमले बदस्तुर जारी है और शासन और प्रशासन मुकदर्शक बन कर तमाशा देख रही है । नीतीश के शासन में दलितों को हर तरह से प्रताड़ित किया गया , दिस उम्मीद से दलित लोगों ने वोट देकर नीतीश सरकार को वोट देकर नीतीश को दुबारा मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया वही नीतीश कुमार ने दलितों को कही का न छोड़ा । सबसे पहले सरकारी ऩौकरीयों मे प्रमोशन में रिजर्वेशन को खत्म कर दिया गया, दलित छात्रों को मिलने वाली छात्रवृति में कटौति की गयी , दलित वर्ग के पासी जाति के लोगो के पुश्तैनी रोजगार ताड़ी विक्री पर प्रतिबंध लगाया गया । अब दलित अत्याचार , यौन शोषण , उत्पीड़न की बात करते है । छात्रवृति कटौति के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पुलिस द्वारा दौड़ा दौड़ा कर पिटा गया जबकि 2012 में पटना मे रणवीर सेना सुप्रीमो की मौत के बाद गुंडातत्व उपद्रव करते रहे और पुलिस मुकदर्शक बनी रहीं ।मुजफ्फर केन्द्रिय विधालय में दलित (पासी) जाति के छात्र को पीटा गया , हाजीपुर अंबेडकर छात्रावास में दलित छात्रा डीका कुमारी यौन शोषण , बलात्कार और हत्या का शिकार हुई , पीएमसीएच  में दलित जुनियर डॉ आलोक रविदास को सरेआम सवर्ण प्राचार्य द्वारा पीटा गया व  गाली गलौज तथा धमकी भी दी गई , आईजीआईएमएस में दलित (पासी) जाति के डॉ अजय के साथ प्राचार्य द्वारा गाली गलौज एवं धक्कामुक्की की गयी । ईन दोनों मामलो मे एससी एसटी एट्रोसिटि एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ , आरोप साबित भी हो गया तथा आरोपितों की गिरफ्तारी के आदेश भी जारी किये गये बिहार पुलिस के कमजोर वर्ग के आईजी के द्वारा । लेकिन बिहार पुलिस उन्हे स्टे आर्डर लेने तक गिरफ्तार करने मे नाकाम रही । बिहार की दलित रेप पीड़ीता के आरोपी आटोमोबाईल कारोबारी निखिल प्रियदर्शी और ब्रजेश पांडेय को भी अब तक गिरफ्तार करनें में पुलिस नाकाम रहीं है अब तक । लेकिन बीएसएससी पेपर लीक मामले मे पुर्व सचिव परमेश्वर राम (दलित) तथा चेयरमैन सुधीर कुमार (दलित आईएएस) को गिरफ्तार करने मे बिहार पुलिस ने अतिसक्रियता दिखलाई । यहा तक कि सुधीर कुमार को देर रात्रीं में गिरफ्तार किया गया । ईस गिरफ्तारी का विरोध आईएएस एसोसिएसन द्वारा भी किया गया । अब सवाल जाहिर सी है कि देर रात्री में गिरफ्तारी करने वाली पुलिस दलित उत्पीड़न के आरोपितों को पकड़ने मे नाकाम क्यो हो जाति है? क्या उन्हे शासन के दबाव मे आकर पुलिस द्वारा समय दिया जाता है स्टे आर्डर लेने तक ? सवाल है जरुर सोचियेगा 
 अमित कुमार दिनारा रोहतास                              प्रतिनिधि बिहार प्रदेश 

गुरमेंहर कौर क्या देश द्रोही है ? और महान खिलाड़ी वीरेन्द्र सहवाग देशभक्त ?

एक २० साल की युवती गुरमेहर कौर जिसने अपने पिता को सिर्फ़ २ साल की उम्र में खो दिया । एक ऐसी लड़की जिसने अपना जीवन बिना पिता के गुज़ारा क्योंकि उनके पिता कैप्टन मंदिप सिंह १९९९ के कारगिल युद्ध में शाहिद हो गए थे । जिसने अपने पिता को सिर्फ़ २ साल की उम्र में खो दिया उस लड़की को सिर्फ़ इस लिए देश द्रोही कहा जा रहा है क्योंकि उसका मानना है कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहि युद्ध ने मारा है ।
बस इतना ही कहना की पाकिस्तान ने नहि युद्ध ने मारा है ,कथा कथित देश भक्तों का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर है । यह वही देश भक्त है जो कभी गाय को माता जब्रजसती मनवाते है , वेलेंटाइन डे पर युवाओं को पिटते है थीयटर में राष्ट्र गान में खड़े न होने पर मार पीट करते है , आज सरकार का इनपर हाथ है क्योंकि इन सब की शाखायें एक ही पेड़ से निकली है । ऐसे हवाबाज देश भक्त गुरमेहर की देश भक्ति पर सवाल उठा रहे है , गैंग रेप और हत्या की धमकी दे रहे है , देश द्रोही कह रहे है । 

विरेंद्र सहवाग बक़ायदा ट्वीट करके मज़ाक़ उड़ाते है कहते की डबल सेंचुरी मैंने नहि मेरे बल्ले ने बनाई है । हालाँकि कल उन्होंने उस ट्वीट की सफ़ाई दी पर आग तो उन्होंने लगा ही है ।
और यह सिर्फ़ इसलिए की वह चाहती है की दोनो देश के चलाने वाले लोग युद्ध बंद करे , वह चाहती है की भारत के लोग पाकिस्तान से और पाकिस्तान के लोग भारत से नफ़रत न करे । उसका कहना है की जब फ़्रान्स और जर्मनी , जापान’ और यूएसए जो कभी एक दूसरे के जानी दुश्मन थे आज सबकुछ भूल कर आगे बढ़ रहे है तो भारत और पाकिस्तान क्यों हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते है ।

पर यह तथाकथित देश भक्त और यहाँ के कुछ लोग नहि चाहते की लोग पाकिस्तान से नफ़रत करना छोड़ दे । क्योंकि पाकिस्तान से यहाँ के लोगों की नफ़रत से ही कुछ लोगों की दुकानदारी चलती है । 

कुछ दीनो पहले सेरजिकल स्ट्राइक का हौवा खड़ा किया और फिर पाकिस्तान का डर दिखाकर हज़ारों करोड़ का राफ़ेल सौदा ( लड़ाकू विमान ) का सौदा हो गया । जनता ख़ुश की हमारी सेना मजबूत हो गई । और इस सौदे का कॉंट्रैक्ट जीसे मिला वह रिलायंस का पार्ट्नर है । पर जनता को तो बस पाकिस्तान याद रहता है 
गुरमेहर भी आम भारतीय की तरह उसी सोच के साथ बड़ी हुई पाकिस्तान से नफ़रत, मुसलमानो से दूरी । बल्कि गुरमेहर के मन में पाकिस्तान के प्रति ज़्यादा ग़ुस्सा था क्योंकि पाकिस्तान ने उसका बचपन छीन लिया था , इसी सोच के कारण जब वह सिर्फ़ ६ साल की थी एक बुर्क़ा पहने महिला को धक्का देने वाली थी । पर जैसे जैसे वह बड़ी हुई पढ़ाई लिखाई हुई उन्हें समझ में आया की पाकिस्तान में भी हमारे जैसे लोग ही रहते है , वहाँ के लोग भी अमन चाहते है , पर देश के हुक्मरान युद्ध चाहते है । उनकी सोच में बड़ा बदलाव आया जब उन्होंने उस पाकिस्तान के उस पायलट से बात की जिसने उनके पिता के जहाज़ को मीसाईल से उड़ा दिया था , उसने बताया कि उसे उस बात का अफ़सोस है और दुःख है पर उसके पास कोई और रास्ता नहि था क्योंकि उसे ऐसा करने के लिए ऊपर से ऑर्डर मिला था । 
गुरमेह का यह कहना की उनके पिता को पाकिस्तान ने नहि युद्ध ने मारा है क्या ग़लत है इसमें । अगर युद्ध नहि होता उसके और उसके जैसे हज़ारों बच्चों के पिता ज़िंदा होते । क्या यह सच नहि है की भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध सिर्फ़ दोनो देशों के हुक्मरानों की वजह से होते है । दोनो देश ओस मुद्दे को अपने अपने तरीक़े से भुनाते है । मरते है आम सैनिक । जब दो सैनिक आमने सामने होते है तो उनकी आपस की क्या दुश्मनी होती है । पर इस देश के चलाने वाले ऐसा मौहौल बनाते है की युद्ध हो ।

ABVP की देशभक्ति वाली हरकतें बढ़ती जा रही है , जब से सरकार बनी है वह निरुकुश हो रहे है , हो भी क्यों न जिसके एक पत्र से देश की मानव संसाधन मंत्री हरकत मे आ जाती है , वह ताक़त वर तो रहेंगे ही , रोहित वेमुला के केस में यह थे , JNU विवाद में यह थे , अब रामजस कोलेज के छात्रों से बादतिमिजी करने के बाद , दिल्ली यूनिवर्सिटी इनके निशाने पर है । दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों को समर्थन करने वाली गुरमेहर कौर को इन्होंने न देश द्रोही क़रार दिया है बल्कि धमकी भी दी है । उस पर इतना प्रेशर बनाया की आख़िर कार उन्हें दिल्ली छोड़ कर जाना पड़ा नहि तो शायद ……

हमारे देश में यह बहुत शर्मनाक घटनाए हो रही है देश भक्ति के नाम पर जबरजसती और मनमानी हो रही है ।

इसका विरोध कीजिए ।
राजेश पासी ,मुंबई 

चढ़ावे से लुटते लोग

मंदिरों, सत्संगो , प्रवचन और पुजा समारोहो मे दान और चढ़ावा चढ़ाना कोई नयी बात नहीं है और खासकर बड़े मंदिरो मे गुप्तदान , सोना चांदी ,जेवर और मुकुट चढाना भी आम हो गया है आजकल । बालाजी , साई बाबा , वैष्णो देवी मंदिर तथा देश के सभी बड़े मंदिरों मे नकद रुपये , हीरे जवाहरात ,सोने चांदी के मुकुट और सिंहासन चढ़ते रहे है।

  1.  महज गलतफहमी                                   ज्यादातर लोगों को मुर्तियों को खिलाने, सजाने, मनाने व रिझाने का दौरा पड़ता है , उन्हे ईंसानो से ज्यादा मुर्तिया अहम लगती है । ईन्ही मुर्तियो और पंडे पुजारियों के चक्कर में पड़ कर लोग अपनी मेहनत की कमाई को दान और चढ़ावे में बेकार कर देते है । धर्म की आड़ में पैसे बटोरने के बहुत तरीके है कथा ,प्रवचन ,सत्संग ,जागरण व मठममदिरों मे सिखाया व समझाया जाता है कि भगवान को जितना चढ़ाओगे, उससे कई गुना ज्यादा भगवान तुम्हे देगा ईसलिए गरीब लोग तो कर्ज ले कर भी दान ,पुण्य व पुजापाठ कराने में लगे रहते है और ज्यादा पाने के चक्कर में जेब भी ढीली करते रहते है। 
  2. नुकसान                                                  ईस से समाज का नुकसान होता है भाग्य और भगवान के नाम पर लोगो में मेहनत से जी चुराने का बीज पड़ता है कामचोर लोग करामातों के बल पर अमीर होने के सपने देखने लग जाते है । देश और समाज तो तब आगे बढ़ता है जब लोग मेहनत करते है , फुजूल के गोरखधंधो में पड़े लोग अक्सर आलसी ,नशेड़ी व निकम्में बनते है जहा तहा लुटते पिटते है वही दुसरी ओर धर्म के नाम पर मक्कार लुटते है                                             धर्म के ठेकेदारों का मेहनत कर के पैसे कमाने से कोई लेना देना नहीं है , उन्हे अपने शिकार की तलाश रहती है , जो उन्हे आसानी से मिल जाते है। बेहिसाब चढ़ावा आने के चलते मंदिरों में लगी दानपेटिया लबालब भर जाती है, कई मंदिरों में तो अब ईतना चढ़ावा आने लगा है कि वहा भी ऩई तकनीक से काम होने लगा है बैंको की तरह नोट गिनने के लिए मशीने लगा दी गई है ,वैबसाईटे बना दी गयी है कई मंदिऱों ने अपने टीवी चैनल चला रखे है                                     

             अमित कुमार , दिनारा रोहतास बिहार

भारतीय क्रिकेट का उभरता हुआ करिश्माई गेंदबाज़ !

पारसनाथ रावत
पासी समाज से उभरते हुये क्रिकेटर पारस रावत.
यूं तो पासी समाज के होनहारो ने विश्व मे सभी क्षेत्रो मे अपना परचम लहराया है ,चाहे वह चिकित्सा जगत हो ,व्यवसाय हो,अथवा राजनितिक क्षेत्र किन्तु आज वर्तमान समय मे खेलो मे सबसे अधिक लोकप्रिय ओर हर उम्र के लोगो के दिलो पर राज करने वाले क्रिकेट से हमारे समाज की दूरी बनी हुई थी ।किन्तु अमेठी जनपद के जगदीशपुर विधानसभा मे थाना बाजार शुकल के ग्रामीण क्षेत्र मे निवास करने वाले पारस रावत ने इस कमी को पूरा करने का ख्वाब अपनी आंखो मे देखा हे ।जिसमे काफी हद तक आप सफल भी हो चुके है ।पारस रावत आज अपनी उपलब्धि से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाते जा रहे है ;इन्होने अपने रहस्मय कहर बरसाती गेंदो से कई अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेटर को अपनी तारीफ करने के लिए मजबूर किया है ।अन्तरराष्ट्रीय प्रशिक्षको ने तो यहा तक कह दिया है की पारस रावत शेन वॉर्न ओर मुथैया मुरलीधरन के मिश्रण है ओर ऐसे क्रिकेटर बहुत कम मिलते है ।इसी कारण से पारस रावत की उपलब्धियों ओर प्रसिद्धि मे दिन प्रतिदिन बढोतरी होती जा रही है ।पारस रावत से हमे यह सीख अवश्य अवश्य मिलती है कि प्रतिभा पैसे की मोहताज नही होती है ।लगातार पिछले दस वर्षो पारस रावत ने खुद अपने कमाई से देश के नामी गिरामी प्रशिक्षण संस्थानो मे प्रशिक्षण के साथ कई बार नेपाल एवं बांग्लादेश मे भी अपने प्रतिभा का लोहा मनवाया है ।दिल्ली मे काफी दिनो के प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वर्तमान मे पारस रावत गोवा के प्रशिक्षण संस्थान मे पसीना बहाते हुये देखे जा सकते है पारस रावत की उपलब्धियों पर हमे गर्व है साथ ही हम आप के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते है।ओर आशा करते है की पारस रावत बहुत ही जल्द भारत की अन्तरराष्ट्रीय टीम के हिस्सा होंगे। साथ ही समाज के सक्षम लोगो से अपील है मेरी की पारस रावत के प्रतिभा को एक प्लेटफार्म देने मे अवश्य सहयोग करे जिस से समाज का नाम विश्व पटल पर सुशोभित हो सके धन्यवाद। डॉ रमेश रावत एम बी बी एस (7800977008)

मार्शल कौम “पासी समाज”

साथियों प्रो. सैमुअल बायरन का कहना है “या तो इतिहास बदलने में समय और उर्जा लगाओ या भविष्य पर फोकस होकर उसे बेहतर करने में जुट जाओ, दुनिया की जितनी जटिल कौमें हैं, सब इतिहास बदलने में, उसे अपने हिसाब से बनाने-दिखाने में लगी हैं, जिन कौमों का इतिहास नही है, कई बार वे बहुत बेहतर भविष्य की ओर जाती दिखती हैं संक्षेप में बात यह है कि जटिल न बनना, भविष्य बदलने में लगना| ब्रिटिश इंडिया एवं आधुनिक भारत की अनुसूचित जाति में शामिल पासी बिरादरी भारत वर्ष की बहादुर कौम होने के साथ ही प्राचीन मानव सभ्यता की जननी भूमि आधुनिक उत्तर प्रदेश के अवध प्रान्त सहित तराई भूमि की मूल निवासी जाति है जिसने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के किसान मदारी पासी का “एका आन्दोलन” हो या अमर शहीद वीरांगना उदा देवी की शहादत व पासी राजाओ के विस्म्रत कर दिये गये किले परिणाम है यदि आप आने वाली पीढियों को अपने पूर्वजो पर गर्व करना नही सिखायेगे तो इतिहास में ही मिलकर रह जायेंगे प्रस्तुत है पुस्तक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम : लखनऊ (1857) का अंश ….
पासी जाति का बलिदान
लखनऊ जनपद पासी जाति बाहुल्य क्षेत्र रहा है। ग्यारहवीं शताब्दी में पासी राजाओं का राज्य था। राजा लखना रजपासी था। उसी के नाम पर लखऊ का प्राचीन नाम लखनावती पड़ा। लखनऊ नगर से पश्चिम की ओर नौ मील दूर हरदोई रोड पर काकोरी नामक एक कस्बा है। वह स्थान अपने आम के बागों और क्रान्तिकारी काण्ड के लिये प्रसिद्ध है ही, अपने रोचक इतिहास के लिये भी प्रसिद्ध है। ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में काकोरी पर कसमंडी (कसमंडप) महिलाबाद के निकट राजा कंस का अधिकार था जो जाति का पासी था। उस समय यहां पासी जाति की बस्ती थी। सन् 1130 में जब सैयद सालार गाजी मसूद दिल्ली से तशरीफ लाये तब उनकी इस राजा से जम कर जंग हुई और इस भयंकर लड़ाई में काकोरी राज्य कंस के हाथ से निकल गया तथा मुसलमानों के कब्जे में आ गया। कुछ मुस्लिम फकीर यहां आकर बस गये। लेकिन महमूद गजनवी के प्रभाव के कम होने के साथ ही काकोरी फिर पासियों का गढ़ बन गया। उसके बाद पासियों के जोर को दबाने के लिये सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश ने मलिक नसीरुद्दीन को यहां भेजा जो पासियों को पराजित करके दिल्ली की हुकूमत कायम कर गया मोहम्मद तुगलक के आखिरी वक्त तक इस पर दिल्ली का कब्जा बना रहा। सन् 1393 ई: में जौनपुर शर्की सल्तनत का केन्द्र बन चुका था और काकोरी का क्षेत्र शर्की राज्य की जागीर हो गया। जौनपुर से इस इलाके को संभालना कोई आसान काम नहीं था, ऐसे में पासियों ने फिर अपना सिक्का जमा लिया और धीरे-धीरे काकोरी को अपने अधीन्स्थ कर लिया। इसी युग में रजपासी राजा काकोरी ने काकोरी का किला बनवाया और इसके चारों तरफ बस्ती आबाद की। यह किला बिलकुल खंडहरों में बदल गया है फिर भी प्रवेशद्वार, जीर्ण-शीर्ण चहारदीवारी के कुछ भग्नावशेष अब भी शेष हैं। शर्की राज्य के तीसरे बादशाह सुल्तान इब्राहीम शर्की ने सन् 1401 में मानिकपुर के निकट राजा फकीर को पराजित किया और फिर यहां इस्लामी सत्ता कायम की जो सन् 1458 तक ठीक प्रकार से चलती रही।
लखनऊ शहर के दक्षिण-पूर्व में कस्बा बिजनौर बसाने वाला राजा बिजली रजपासी एक समय लखनावती का प्रमुख माना जाता था-इसके बनवाये हुए बारह दुर्ग लखनऊ के आस-पास फैले हुए थे। उनमें से कुछ भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं, जिनमें पुराना किला, नरंगाबाद किला, जलालाबाद किला, मोहम्मदी नगर के अब भी नाम लिए जाते हैं। बिजली दुर्ग राजा बिजली रजपासी के बहुत दिन बाद मीरबिन कासिम के हाथों लगा। उसने इस किले को अपने दामाद जलालुद्दीन को बतौर नजराना दे दिया जिसके बाद किला जलालाबाद नाम पड़ा।
अंग्रेजों ने भी लखनऊ को अपना प्रमुख केन्द्र बनाया। रेजीडेन्सी, बेलीगारद में अंग्रेज अधिकारी रहते थे। सन् 1857 ई. की क्रान्ति में रेजीडेन्सी को क्रान्तिवीरों ने चारों ओर से घेर रखा था। क्रान्तिवीरों का नेतृत्व चेतराम रैदास कर रहे थे, जिनका बनवाया हुआ टिकैत राय तालाब के निकट चेतरामी तालाब आज भी मौजूद है। बेगम हजरत महल, मम्मू खां, जनरल बरकत अहमद ने एक योजना बनाई कि कानपुर से जब तक हेवलक की सेनायें लखनऊ आयें उससे पहले रेजीडेन्सी पर आक्रमण करके अपने अधिकार में ले लिया जाये। किन्तु रेजीडेन्सी में प्रवेश कर पाना उतना ही कठिन था जितना गोमती की धारा को उल्टा बहाना। चारों ओर से रेजीडेन्सी पर तोपें लगी थीं। अंग्रेज सैनिक मुस्तैदी से किसी भी आक्रमण को विफल करने के लिए तैयार थे।
हमारे पासी जाति के पुरखे सुरंग उड़ाने में बड़े पटू थे। अक्सर बेलीगारद वालों को उनसे नुकमान पहुंचता रहता था। 10 अगस्त 1857 को जनरल बरकत अहमद के नेतृत्व में पासी जाति के लोगों को साथ लेकर फौज ने बेलीगारद पर आक्रमण कर दिया। तीन दिन तक घमासान युद्ध होता रहा-बेलीगारद की सुंरगें उडऩे लगीं। रेजीडेन्सी में फंसे अंग्रेज भयभीत हो गये। लेकिन कानपुर से मि. हेवलक की सेनायों लखनऊ सीमा पर आ पहुंची तथा दूसरी ओर फैजाबाद से चिनहट तक आ गयीं। बंथरा मे उनका मुकाबला स्वयं बेगम हजरत महल ने किया लेकिन जख्मी हो गयीं और उनके वफादार सेनापति मानसिंह तथा कुंवर जियालाल सिंह उन्हें शहर ले आये।
सिकन्दर बाग के पास घमासान लड़ाई हो रही थी। कम प्रतिष्ठित पंक्तियों की स्त्रियां (अछूत) नगर की रक्षा के लिये अपने प्राणों को न्यौछावर कर रही थीं, वे स्त्रियां जंगली बिल्लियों की तरह लड़ रही थीं, और उनके मरने के पहले यह पता नहीं चलता था कि वह स्त्रियां है या पुरुष। सिकन्दर बाग में सेमर के वृक्ष के नीचे जिसने अनेक अंग्रेजों को मार गिराया, वह महिला उजरियांव की थी जिसका नाम जगरानी था और जाति की पासी थी। अन्त में यह महिला भी गोली से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुई। दुर्भाग्यवश बेलीगारद की क्रान्ति विफल हो गयी और उसमें 220 देशभक्त शहीद हुए तथा 150 घायल हुए जिसमें अधिकांश पासी जाति के अज्ञात अमर शहीद थे।
सभार -डी.सी. डीन्कर
(स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान पुस्तक से धन्यावाद सहित)

ज़िम्मेदारियों की कशमकश !

लेखक एक उच्च शिक्षित नौजवान है , परंतु उसकी अपनी बहुत सारी योग्यताएं भी उसे अभी तक आधुनिक जीवन में स्थापित नहीं कर पाई हैं । उसके अपने सपने जो उसने स्वयं के लिए और समाज के लिए देखे थे। आज समाज में फैली असमानता, जातिगत दुर्भावना, ऊँच-नीच की मानसिकता, धर्म की राजनीति भारतीय समाज के ढांचे में उच्च स्तर पर बैठे कुछ प्रतिशत लोगों की ओछी मानसिकता ने पिछले 2000 सालों से चली आ रही असमानता को और बढ़ावा दिया है, लेखक की इच्छा थी कि वह उन लोगों के लिए कुछ करें जो समाज की मुख्यधारा से मीलों पीछे छूट गए हैं, पर समय ने उसे ऐसा जकड़ा है कि उसे अपने लिए स्वयं सहायता की आवश्यकता महसूस हो रही है ,आज संबंधों में बंधा हुआ हर इंसान किसी ना किसी जिम्मेदारी में बंधा है मां- बाप, बेटा- बेटी, चाचा – चाची, भतीजा- भतीजी, भैया -भाभी ,नाना- नानी, मामा- मामी इत्यादि कुछ लोग इसे ऐसा भी कहना चाहेंगे कि मैं फला जिम्मेदारी में फंसा हूं परंतु यह कहना क्या अतिशयोक्ति नहीं होगा , कि जिम्मेदारी अपने परिवार की, जिम्मेदारी अपने समाज की, जिम्मेदारी अपने देश के प्रति कैसे पूरी करें, क्या मेरी यह जिम्मेदारी नहीं है, कि मैं अच्छी कमाई करूं , समय पर शादी कर अपने परिवार को बढ़ाऊँ, तथा बाकी परिवार को मानसिक सुख दूं, उनकी छोटी-छोटी इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करूं परंतु अफसोस की बात है कि आज मैं ३५ की उम्र को पहुंच कर भी अपने आप को स्थापित नहीं कर पाया, तथा कहीं ना कहीं समाज कि नजरों में गैर जिम्मेदार दिखाई देने लगा, आज मैं इसी कशमकश में जी रहा था , कि भारतीय संस्कृति के अनुसार मेरे ऊपर एक जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, कि मेरे माता पिता मेरी शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं और इसी के चलते उन्होंने कहीं मेरी शादी तय कर दी है, आज समझ में नहीं आता मुझे कि वास्तव में जिम्मेदारियां जीवन में स्वाद भर्ती हैं या उसे बेस्वाद करती हैं, मुझे पता है कि मैं गलत नहीं हूं और मुझे इस बात का भी एहसास है कि मेरे घरवाले भी गलत नहीं है , जो इस समाज में अव्यवस्था फैली है, उसका क्या और इसकी क्या गारंटी है कि शादी के बाद जिंदगी खूबसूरत हो जायेगी, पर यह जरूर है कि कुछ नए रिश्तो का सृजन होगा जिन के प्रति भी जिम्मेदारियां और बढ़ेंगी सच में मुझे जिंदगी पर तरस आता है, इंसान को पता होता है कि बहुत सारे कार्य गलत हैं, फिर भी वह उन्हें करने को आतुर रहता है, बस यह सोच कर कि जो भी होगा अच्छे के लिए होगा जबरन वह उस कार्य में कोई सकारात्मक पहलू खोजने की नाकाम कोशिश करता है, हंसी आती है जब वह उन सभी नकारात्मक चीजों को बलात ही ना करने की कोशिश करता है , चीख-चीखकर उसे वह कार्य करने से मना करती हैं फिर मुझे एक लेखक की बात आती है, की जिम्मेदारियों को पूरा करने से अच्छा है कि एक नई जिम्मेदारी ले लेना इस कारण लोग पुरानी जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर देते हैं , उनका पूरा ध्यान उस नई जिम्मेदारी की ओर होता है, अब बहुत सारी जिम्मेदारियों को पूरा करते करते व्यक्ति का अहम भी बीच में आना स्वाभाविक ही है, जिसके कारण चाह कर भी वह वह जिम्मेदारी पूरी करने के बजाय वह उसके पीछे भागने की कोशिश करता है, जिसमें उसे निजी सुख मिले परंतु उसकी अंतर- आत्मा उसे ऐसा करने से रोक देती है , जिससे वह वो कार्य करता है, जिससे उसकी जिम्मेदारी पूरी होती है, फिर उसे सुख मिले या दुख क्या फर्क पड़ता है जैसे आज समाज में एक ज्वलंत मुद्दा अंतरजातीय विवाह कर समाज सुधार में योगदान करें या उसी सड़ी-गली परिपाटी पर चलें आज समझ में नहीं आता है कि जिम्मेदारियों को पूरा करके अहम को शांति मिलती है जो किसी के अच्छे बुरे का ख्याल नहीं करता है, क्या वास्तव में आत्मिक सुख मिलता है? जो दूसरों के काम पूरा होने या दूसरों की खुशी से मिलता है । इंसान इस पृथ्वी का सबसे खूबसूरत रचना है, परंतु यह भी सत्य है कि उसके अंदर का अहम इस पृथ्वी पर सबसे बुरा है। भारत जैसे देश में आज इसका सबसे अच्छा उदाहरण शादी है शादी हर मां बाप के लिए एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है लेकिन जब वह शादी माता – पिता की इच्छा से ना हो तो बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाता है । आज का आलम यह है कि जिम्मेदारियों के बीच बंधा हुआ इंसान जिम्मेदारियों को पूरा करते करते ऐसी जगह पहुंच जाता है जहाँ से जिम्मेदारियां भले ही पूरी हो ना हो परंतु इस के चक्कर में उसके संबंध जरूर खराब होने लगते हैं, काश इंसान यह समझ पाता कि हर जिम्मेदारी उस बिंदु पर आकर दम तोड़ देती है जिस बिंदु से उस व्यक्ति को उसके आसपास का समाज प्रताड़ित करना शुरू करता है, तो क्यों ना सर्वप्रथम समाज को संगठित करने का बीड़ा उठाया जाए समाज में व्याप्त असमानता ऊँच-नीच ,अज्ञानता ,छुआ -छूत ,अशिक्षा को दूर करने का बीड़ा उठाया जाये , और समाज को एक नई दिशा दी जाए जहां से समाज में एक नई ऊर्जा का संचार हो, क्यों ना हम बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर के पदचिन्हों पर चलें, क्यों ना हम माननीय स्वर्गीय श्री कांशी राम जी और बहन कुमारी मायावती पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से सीख ले कर समाज को एकता रुपी धागे में पिरोने का काम करें तथा क्यों ना हम समाज के नव युवकों को महाराजा सुहेलदेव,महाराजा सातन ,महाराजा बिजली पासी जैसा शक्तिशाली योद्धा बनने को प्रोत्साहित करें ,क्यों ना हम अपने समाज की महिलाओं को वीरांगना उदा देवी की तरह निर्भीक और शक्तिशाली बनने पर जोर दें, क्योंकि यह भी तो एक जिम्मेदारी ही है, समाज के नौजवानों को अपने छोटे-छोटे सुखों की तिलांजलि देकर समाज की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी अगर इसमें कष्ट है तो भी क्या कष्ट तो हर काम में है, परंतु यदि नौजवान समाज को मजबूत करने के रास्ते पर चलेगा तो उसका समाज दुनिया में दिखाई देगा, चमकेगा, दमकेगा क्योंकि जिम्मेदारियों का असली मकसद तो खुशी है, और समाज की सेवा करना और राष्ट्र की सेवा करने से ज्यादा सुख किसी और काम में कहां, तो साथियों खुशियों की बलि देकर भला कैसी जिम्मेदारी निभाना और अगर जिम्मेदारी ही निभाना है, तो इस संसार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्यों न निभाई जाए । – लेखक नीरज सिंह सरोज ,क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट , एमसीडी स्कूल, दिल्ली

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार मे नेताओं के बयान का गिरता स्तर और चुनाव आयोग की खामोशी 

उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए राजनितिक पार्टियों द्वारा की जा रही रैलियों मे प्रमुख नेताओं द्वारा एक दुसरे पर जमकर हमला बोला गया । एक दुसरे पर टिका टिप्पणी करने का दौर ईस तरह चला कि नेताओ ने अपना संयम खो दिया और उन्हे अपनी भाषा और मर्यादा का ख्याल ही न रहा । उत्तरप्रदेश चुनाव मे तीन पार्टिया बसपा, सपा और भाजपा ही मुख्य रुप से लड़ाई मे है ।सपा और कांग्रेस गठबंधन में है। एक चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री की तुलना गधे से कर दी । तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी उत्तरप्रदेश के सपा शासन मे श्मशान और कब्रिस्तान में भेदभाव की बात कर दी और रमजान और दिवाली ,होलि मे बिजली के आपुर्ति पर सवाल करते हुए कहा कि रमजान मे बिजली ज्यादा दि जाति है जबकि होलि और दिवाली मे बिजलि की कटौति की जाती रही है । मोदी ने बसपा को बहन जी की संपत्ति पार्टी बताई तो मायावती ने भी मोदी और अमित शाह पर पलटवार किया । सपा के बयानवीर आजम खान ने भी एक विवादित बयान दिया कि मुस्लिम युवकों के पास कोई रोजगार ही नहीं है ईसिलिए वे केवल बच्चे पैदा करते है। भाजपा नेता विनय कटियार ने भी राममंदिर मुद्दे पर बड़ा बयान दिया कि ” अयोध्या में रहना है तो मंदिर कहना है ” ।मस्जिद कहने वाले जिद्द कर रहे है मस्जिद कही था ही नही । अयोध्या को विकास के साथ मंदिर भी चाहिए । भाजपा के एक और बड़े नेता साछी महाराज ने को यहा तक कह दिया कि कब्रिस्तान होने ही नहीं चाहिए ।कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश चुनाव प्रचार में वोटों के धुव्रीकरण के लिए विवादित और संप्रदायिक बयानों का सभी पार्टियों द्वारा जमकर उपयोग किया गया विशेषत:भाजपा द्वारा ज्यादा ही । फिर भी चुनाव आयोग द्वारा ईन सभी पार्टियों की गतिविधियों को नजरअंदाज करते हुए केवल सभी पार्टियों के नाम एक अपील पत्र जारी किया गया जिसमे पार्टी और पार्टी नेताओं को ऐसे बयानों से बचने की सलाह दी गयी थी । क्या चुनाव आयोग को नेताओं के बयान पर कारवाई नहीं करनी चाहिए ?                                 प्रस्तुति :-                                                     अमित कुमार                                                 दिनारा रोहतास बिहार

                     

चुनाव में ख़ामोश क्यों हो गया वीरांगना उदा देवी की खण्डित प्रतिमा का मुद्दा ?

वीरांगना उदा देवी पासी कि प्रतिमा को भूमाफियाओ ने तोडा। प्रशासन कर रहा है मदद । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यालय से नहीं हुई कोई कार्यवाही

  लखनऊ :कौन थी वीरांगना उदा देवी –सिकंदर बाग लखनऊ जहां उदा देवी ने 36 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया और वीरगति को प्राप्त हुईं
ऊदा देवी 16 नवम्बर 1857 को 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जब वो पेड़ से उतर रही थीं तब गोली मार दी थी। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।
 चँदीपूरवा नौबस्ता स्थित वीरांगना ऊदा देवी पासी सार्वजनिक पार्क मे स्थित वीरांगना ऊदा देवी की मूर्ति को प्रशासन ने तुड़वा दिया और उस मूर्ति को उठवाकर कर फिकवा दिया जब इसके विरोध मे स्थानीय लोगो तथा समाज के लोगो ने विरोध किया तो पुलिस ने उनपर लाठी चार्ज किया एवं मौके पे पहुँचे कुछ पत्रकारो ने जब जानकारी लेनी चाही तो उनका कैमरा तोड़ दिया गया और उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया गया और उन्हे बुरी तरह से मारा पीटा गया यह पार्क लगभग ३० वर्ष पूर्व पासी समाज के लोगो ने स्थापित करवाया था और यह ज़मीन भी पासी समाज की ही है| जिसमे आज तक सार्वजनिक कार्यक्रम जैसे शादी विवाह इत्यादि के उत्सव हुआ करते थे| इस पार्क मे स्थित मूर्ति को तोड़ने से पहले प्रशासन ने कोई भी सूचना नही दी थी और जब स्थानीय लोगो ने जब सूचना की माँग की तो उन्हे सूचना देने से साफ इनकार कर दिया गया यह प्रशासन की तरफ से एक असंवेदनशील कृत्य है जिससे जनता मे इसको लेकर आक्रोश है और इसमे सैकड़ो लोग एकत्रित हो गये और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की स्थानीय जनता का कहना है कि मूर्ति के साथ जो व्यवहार किया गया उससे उन लोगो के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुची है और वह मौजूद ऐ सी एम पंचम तथा अधिशाषी अभियंता उत्तर प्रदेश आवास विकास प्रमोद कुमार ने कहा की मूर्ति माननीय उच्च न्यायलय के आदेश से तोड़ रहे है पासी प्रगति संस्थान के पदाधिकारियो ने आदेश की प्रति मांगी तो देने से साफ़ मना कर दिया यह सोची समझी साज़िश वहाँ के बहु माफियाओ द्वारा करवाया गया जिसमे कुछ भ्रस्ट अधिकारियो ने पूरा साथ दिया है पासी समाज तथा अन्य क्षेत्रीय लोगो में जबरदस्त आक्रोश है।
इस प्रकरण के पीछे कौन लोग है ……………………
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना उदा देवी की प्रतिमा तोड़ कर कब्जे का प्रयास कर रहे है उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद् के योजन संख्या 18 हंस पुरम के अधिसशी अभियंता प्रबोध कुमार ने खसरा संख्या 1233 जो कि ग्राम समाज कि भूमि हैं को खसरा संख्या 1232 बताकर के रमाकांत गुप्ता को दे दी इस सम्बन्ध में जब सामाजिक संस्था पासी प्रगति संस्थान ने उच्च न्यायालय में अपील कि तो न्यायलय से आदेश मिला कि पुनः सिमंकत कर प्रकरण को निस्तारित किया जाये | परन्तु प्रबोध कुमार ने कोई भी जाँच नहीं करवाई और उस जमीन को 1232 बता दिया इस प्रकरण में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जब पत्र लिखा गया तो वहा से कार्यवाही का अस्वासन मिला परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई | इस घटना से समस्त दलित समाज में जबरदस्त आक्रोश है और क्षेत्रीय जनता ने कहा कि भुमफियाओं को सरकार मदद कर रही है |और जमीन पर अवैध तरीके से कब्ज़ा करके समस्त बहुजन समुदाय के साथ अन्याय कर रही है |
मुख्यमंत्री कार्यालय से पासी प्रगति संस्थान के पदाधिकारियों को फ़ोन आया कि जल्द कार्यवाही होगी | परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई है |