(नोट : लेख में कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग है जिन्हें शायद असभ्य या अश्लील माना जाय ,पर ऐसे शब्दों के बिना आज की यह सच्चाई समझ में नहीं आएगी , इसलिए नाबालिग़ और कट्टर धार्मिक लोग इस पोस्ट से दूर रहे )
एंटी रोमियो स्क्वाड बनाते देख जाने लोग इतने आश्चर्य में क्यों भर गए हैं? रह-रह कर तर्क दे रहे हैं कि रोमियो एक महान आख्यान का नायक और प्रेमी किरदार है। उसे छेड़छाड़ वाला क्यों बना रहे हो?
क्या आपको सच में लगता है कि बनाने वालों को नहीं पता है? उनको प्रेम, मुहब्बत, इश्क़ और छेड़छाड़, जबरदस्ती, बलात्कार का अंतर पता है और पर समझना चाहेंगे इसमें मुझे घोर संदेह है।
दरअसल उनके लिए छेड़ और जबरन की जा रही चीजें स्वीकार्य हैं पर प्रेम नहीं। यह बात अज़ीब लग रही है आपको?
आप भला हमारे समाज को किन चश्मों से देखते हैं कि रह-रह कर आश्चर्य में भर उठते हैं?
यहाँ प्रेम निषिद्ध है। यहाँ प्रेम वर्जित है। यहाँ विवाह होते हैं प्रेम नहीं।
प्रेम का मतलब उच्श्रृंखलता, नाक कटाना, इज्जत गवाना जैसा सब कुछ होता है। जिस आदमी को माँ-बाप, रिश्तेदार, समाज की अनुमति से तय कर लेते हैं वो अचानक से कुछ अटपटे मन्त्रों के बाद एक बिस्तर साझा करने के योग्य हो जाता है। पर यदि कोई लड़की/स्त्री किसी लड़के/पुरुष को परिचय, दोस्ती, प्रेम और लालसा वश ही चुनती है तो वो सबकी बेइज्जती हो जाती है। मुझे पहले कभी भी समझ नहीं आया कि स्वयं द्वारा चयनित सम्भोग इस समाज में इतना घृणित क्यों माना जाता है कि उसके लिए लोग क़त्ल तक कर जाते हैं। वहीं परिवार के लोगों द्वारा थोपा सम्भोग पवित्र माना जाता है।
फिर जब सोचना शुरू किया तो पाया कि क्योंकि प्रेम उदार बनाता है, प्रेम इनकी सीमाओं(धर्म, जाति, बिरादरी और भी बहुत) सीमाओं को तोड़ता है, प्रेम एक स्तर पर समानता भी लाता है। इसलिए समाज और पितृसत्ता के ठेकेदार तो उसके खिलाफ रहेंगे ही। प्रेम के कारण न सिर्फ स्त्रियों बल्कि युवा वर्ग पर भी प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा इसलिए इनके लिए वो अस्वीकार्य है।
आपने देखा है न दहेज़ का रोना रोते, बेटी को न चाहने की वजह दहेज़ की लोभी वृत्ति को बताने और लड़की को बोझ मानने वाले तथाकथित संस्कारी लोगों को। वे हर हाल में इन्हीं रूढ़ियों का वहन करना चाहते हैं जिनका रोना रोते हैं। बेटी/बेटा कोई इन सीमाओं से हट प्रेम कर ले तो दहेज़ इनके लिए मूल समस्या नहीं कटी हुई अदृश्य नाक है।
इसलिए कंफ्यूज होने वाले मेरे फेसबुकिए दोस्तों मत सोचिए कि आपके त्रासद नायक ‘रोमियो’ को प्रेम से वंचित कर छेड़छाड़ का प्रतीक बनाया जा रहा है।
ये प्रेम के निषेध का एक संस्कारी और सरकारी उपाय है।
Note: क्राँतिकारी विचारों के जो दोस्त कृष्ण को छेड़छाड़ का प्रतीक बना रहे हैं उनसे मेरा निवेदन है मिथकों को इतने सरल रंगीन चश्मों से न देखें। कृष्ण कथाओं को पढ़िए। कृष्ण की वो सारी लीलाएँ चुहल थीं और चुहल और मोलेस्टेशन में फर्क होता है। चुहल जिससे की जाती है उसे भी गुदगुदी होती है। कृष्ण अक्सर इसलिए छेड़ते रहे कि जिनको छेड़ रहे हैं उनके मन को वह भा रहा था। वो ऐसा चाहती थीं। उनकी कामना थी कि कन्हैया उनको सताएँ।
मटकी तोड़ने, माखन खाने से लेकर प्रेम का निवेदन तक कृष्ण ने सामने वाले के रंजन के लिए किया है। किसी कृष्ण साहित्य में नहीं दिखाया गया है कि कृष्ण ने जबरन किसी को प्रेम/छेड़/चुहल की और उस गोपिका/स्त्री ने अपमान अनुभव किया। जरुरी नहीं है कि हम सभी पाठों को किसी विषाक्त विमर्श में तोड़-मरोड़ दें।
ये कहते हुए मैं बताना चाहती हूँ कि कृष्ण के मिथकीय चरित्र के प्रति मेरा आकर्षण है पर उसके लिए कोई आग्रह नहीं। कमज़ोरी नहीं। पुराण और आख्यान पढ़ना पसंद है और उसी ज्ञान के आधार पर कह रही हूँ। कृष्ण को पूर्ण पुरुष कहा जाता है। क्यों? ये पता कीजिएगा।
वैसे भी आप जिनका विरोध कर रहे हैं वो राम के आग्रही हैं, कृष्ण को वो स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे। पत्नी को त्यागने वाले, स्त्री को अपने प्रेम नहीं मान-अपमान की वस्तु बना बदला ले उसकी अग्नि परीक्षा लेने वाले को आदर्श मानने वाले लोग क्या कृष्ण को समझेंगे?
और हाँ अगर मायथोलॉजी से एंटी स्क्वाड बनाना ही है तो
#एंटी_इंद्र_स्क्वाड बनाए जो स्त्री के शोषण में किसी भी भाषा के किसी आख्यान के महानतम खलपात्र को मात दे सकता है।
#एंटी_विष्णु_स्क्वाड बनाएं। (उन्होंने दूसरे को हराने के लिए उसका वेश बना उसकी पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बनाया।)
#एंटी_ब्रह्मा_स्क्वाड बनाएं जिसने पुत्री की मर्ज़ी के खिलाफ उससे बलात्कार किया और बदले में हमारे प्रिय शिव ने एक सिर काट दिया।
पर जैसा कि लिख चुकी हूँ। इनको स्त्री के हित के लिए नहीं उसको काबू में करने के लिए बनाना है। तो प्रेम-विरोधी ही बनाएंगे न ?