लखनऊ: कवि और कवितायें हमेशा मानव जीवन को प्रभावित करते आए है । कवि जो कुछ ही शब्दों में बहुत कुछ कह देते है । मानव की हमेशा से यही प्रवृत्ति रही है कि हम अपने दुख से कभी दुखी नहीं होते, हम हमेशा पड़ोसी के सुख से दुखी होते हैं!
मित्र रामयश विक्रम जी की यह कविता है जो कम शब्दों में बहुत कुछ कहती है । रामयश विक्रम जी कहते है हमने कभी प्रेम और सद्भाव की बातें नहीं किया, हम सदैव ईर्ष्या और द्वेष में जीवन के सुख ढूंढते हैं! मानव मन की इन्हीं संक्रियाओ पर आधारित
यह कविता जिसने जीवन की दिशा बदलने का काम किया ,आज आपके साथ साझा कर चाहता हूं की सदैव
आपका स्नेह पात्र बना रहूं!!
मैंने उलझी गांठो को ,कभी नहीं सुलझाया!
इसीलिए अंबेडकर ,गांधी ,बुद्ध नहीं बन पाया !!
ईटों का उत्तर पत्थर से देना सीखा है ,
सत्य आहिंसा में घाटा ही घाटा दीखा है!!
गाली देने वालों का बढ़कर सिर फोड़ा है,
धैर्य क्षमा से हरदम ही मैंने मुख मोड़ा है!!
इतिहास अंगुलिमालों का हमने हीं दोहराया !
इसीलिए अंबेडकर गांधी बुद्ध नहीं बन पाया !!
मेरा सीमित आकाश उड़ाने भी सीमित हैं !
सांसो में स्वार्थ भरी सांसे ही जीवित हैं !!
फूल बिछाने वालों के पथ पर कांटे बोए!
देख पड़ोसी की खुशियां भीतर भीतर रोए !!
अपने सुख के लिए राह में दूजों की कूप खुदाया!!
इसीलिए अंबेडकर गांधी बुद्ध नहीं बन पाया!!
मैंने अहंकार के नाग विषैले पाले हैं!
पृष्ठंकित जीवन के सारे पृष्ठ तभी तो काले हैं !!
द्वेष दंभ ही मेरी नैया के खेवन हारे हैं
बर्फीले झंझाबातों में तारण हारे हैं !!
पापी मन को मैंने सत्कर्मों से दूर हटाया ।।
इसीलिए अंबेडकर गांधी बुद्ध नहीं बन पाया!!
जीवन अंतिम सांसों तक फंसा रहा भोगों में,
भौतिकता की अंधी दौडो में उद्योगों में!
चक्कर में माया मोह के हरदम फंसा रहा ,
काम क्रोध मद कीचड़ में ही हरदम धंसा रहा!
प्रेम भक्ति का कमल हृदय में कभी नहीं खिल पाया
इसीलिए अंबेडकर गांधी बुद्ध नहीं बन पाया!!
— रामयश विक्रम “प्रदीप”- 9918710118