सन् 1871 में अंग्रेजी शासन ने प्रथम जनगणना जातीय आधार पर करवाया था।उसी के बाद एक बड़ी जनसंख्या जिसने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था उसको जरायम ऐक्ट की धारा 109,110के आधार पर अपराधशील घोषित किया जिसमें सम्पूर्ण भारत की 197 जातियों को शामिल किया गया था।इनमें से 50% जातियाँ उत्तर प्रदेश में निवास करती थीं।इन सभी जातियों पर आई पी सी की धारा 30 के अन्तर्गत कार्यवाही होती थी जिसके अनुसार दूसरीबार अपराध करने पर सात वर्ष की सजा और तीसरी बार अपराध करने पर आजन्म कारावास या कालापानी की सजा का प्रावधान था।
प्रत्येक थाने में एक रजिस्टर होता था जिसे रजिस्टर नं. 8 से जाना जाता था इसमें अपराधशील जातियों के प्रत्येक व्यक्ति के नाम को दर्ज करने के शख्त आदेश थे साथ ही यदि वे लोग कहीं जाते थे तो थाने में सूचित करना अनिवार्य था कि कहाँ जा रहे हैं और जहाँ जाते थे उसकी जिम्मेदारी थी कि वह सम्बंधित थाने में सूचित करे कि हमारे यहाँ अमुक थाना निवासी अमुक आये हैं।इस रजिस्टर में जिन बच्चों की आयु दस वर्ष की हो जाती थी उनका नाम लिखा जाना अति आवश्यक था।
सन् 1871 से 1924 तक आते-आते प्रत्येक जनगणना में इन जातियों में सुधार का भी आंकलन किया जाता था जिसके विश्लेषण के आधार सन् 1924 में 50 जातियों को विमुक्त कर दिया गया जिसमें डॉ.बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर जी की जाति महार भी शामिल हो गई इस प्रकार सहित 50 जातीयों के उन्नति का मार्ग1924 से खुल गया।
शेष बची 147जातियों के लिए श्री अनन्त शयनम् अय्यंगर(सांसद)जी की अध्यक्षता में गठित आयोग की शिफारिश के आधार पर अगस्त 31,1952 को जरायम एक्ट से मुक्त किया गया।
अय्यंगर आयोग तथा बाद में बने लोकर कमीशन दोनों की रिपोर्टों में कहा गया कि देश की एक बड़ी जनसंख्या को आजादी की लड़ाई लड़ने के कारण अंग्रेज़ी शासन में अपराधशील घोषित किया गया और जरायम एक्ट लगाकर मुख्यधारा से अलग कर दिया गया था मुक्त किया जाता है तथा इन विमुक्त जातियों को विशेष सुविधाओं और विशेष अवसर देने की संस्तुति की जाती है।इन दोनों की संस्तुति के आधार पर विमुक्त हुई जातियों को साथ में दिये गए विशेष सुविधाओं और विशेष अवसर आज तक स्वपन ही हैं और एक पहेली बन कर रह गए। इन जातियों को पहले विमुक्त जाति बाद में परिगणित जाति और अब अनुसूचित जाति लिखा जाता है।