पद्मावती पर एक जुबानी जंग थरूर और सिंधिया में भी हो गई। सच सुनकर सिंधिया का भी राजपूत खून उबल पड़ा, और थरूर को इतिहास पढ़ने की नसीहत दे डाली । अब इतिहास के सच उतने ही हैं, जितने इतिहास हैं। हिन्दुओं ने इतिहास कभी लिखे नहीं।
इतिहास लेखन मुसलमानों ने शुरू किया है। उनके बाद अंग्रेजों ने शुरू किया । हिन्दुओं ने जो लिखा, वह इतिहास की लीपापोती है। हमारे शहर में भी हिन्दू युवा वाहिनियों ने अल्टीमेटम दे दिया है कि पद्मावती को सिनेमा हाल में नहीं लगने देंगे। अगर लगी तो आग लगा देंगे। कल किसी राजपूत ने कहा कि दीपिका पादुकोण की सूपनखा की तरह नाक काट देंगे।
मेरठ के एक राजपूत ने दीपिका और भंसाली के सिर काटकर लाने वाले को पांच करोड़ रुपये का ईनाम देने की घोषणा की है। जैसे पुष्यमित्र सुंग ने बौद्धों का सिर काटने के लिए ईनाम रखा था। लगता है कहीं पुष्यमित्र का शासन ही तो नहीं लौट आया।
असल में आग लगाने, नाक-कान काटने और सिर काटने का इन लोगों का पुराना अनुभव है। यह इस कृत्य में जल्लादों से कम नहीं हैं। गुजरात, कंधमाल, सहारनपुर,की घटनाएं इसे साबित भी करती हैं। आरएसएस और भाजपा से भी यही खेल अच्छे से खेलना आता है। इसी हिंसा का इनको बेहतर अनुभव भी है। सरकार चलाना इनके बस की बात नहीं है। क्योंकि यह काम इनसे आता ही नहीं है। इनसे जो आता है, वही ये कर रहे हैं और वही यह कर सकते हैं।। मेरी एक दो राजपूतों से बात हुई, जिनकी आन, बान और शान को पद्मावती फ़िल्म ने बट्टा लगा दिया है। मैंने पूछा, आप पद्मावती का विरोध क्यों कर रहे हैं। जी इसने राजपूत स्त्रियों को गलत ढंग से दिखाया है। क्या गलत ढंग से दिखाया है ।
इतिहास से छेड़छाड़ की है। इतिहास क्या है जी पद्मावती ने जौहर किया था। फ़िल्म में क्या दिखाया है। जी फ़िल्म लगने नहीं देंगे। यानी फ़िल्म लगी नहीं है, तो तुमने देखी भी नहीं है। हाँ। फिर बिना फ़िल्म देखे तुम्हें कैसे पता कि पद्मावती में क्या है। जी हमें तो विरोध करना ही है। क्यों यह ऊपर से आदेश मिला है। ऊपर से कहाँ से। हमारे नेताओं से। बस यही हो रहा है। जो महाशक्ति इस विरोध को हवा दे रही है, उसी के संकेत पर यह खत्म होगा। उस महाशक्ति को कौन नहीं जानता।