जाति की राजनीति सपा, बसपा नेता ही नही इनकाँ समाज भी कर रहा है इसकी झलक इलाहाबाद के बहादुरपुर ब्लाक प्रमुख चुनाव में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।
पहले सपा के टिकट पर ठाकुर प्रत्याशी था और विपक्ष में यादव प्रत्याशी निर्दलीय था। तो यादव समाज का 90% वोट सपा पार्टी के ठाकुर प्रत्याशी के विरोध में था। इस चुनाव में बहुत बवाल हुआ था , एक व्यक्ति की हत्या हो गई। लोग यह कह रहे थे कि सवर्ण- ठाकुर प्रत्याशी होने के चलते हम लोग विरोध कर रहे हैं और अपने जाति के यादव प्रत्याशी के साथ हैं।
लेकिन अब अविश्वास के बाद सपा के टिकट पर पिछड़े वर्ग से कुर्मी प्रत्याशी बनाया गया है और विपक्ष का यादव प्रत्याशी भाजपा के टिकट पर लड़ रहा है। अब वही लोग कह रहें है कि हम लोग बिरादरी के साथ है। अभी दूसरी जाति कोई प्रत्यासी सपा से भाजपा में जाता तो यही लोग उसको पता नही किन किन बातों से गरियाते। लेकिन प्रत्याशी बिरादरी है इसलिए सब सही है।
इससे स्पष्ट हो गया कि यादवों को न सपा का सवर्ण प्रत्यासी अच्छा लगा और न अब पिछड़ा उन्हें केवल अपनी जाति से मतलब है वह चाहे जिस पार्टी का प्रत्यासी हो । मैं एक बात अच्छी तरह से समझ गया हूं कि जातिवाद को जो बीज सपा ,बसपा के नेताओं ने बोया था वह अब विशाल पेड़ बन चुका है।
और इनका समाज भी अपने समाज के नेता द्वारा हर अच्छे बुरे फैसले को सही और जायज ठहराने की वकालत करते हुए दिखाई दे रहा है।
यह बहुत ही खतरनाक सोंच है इस तरह तो हर व्यक्ति अपनी जाति को अपना कैदखाना बना लेगा। और इसका लाभ हर जाति के ताकतवर लोगों को मिलेगा। कमजोर तो केवल अनुसरण करेगा। यह लोकतंत्र के लिए गम्भीर चुनौती बन गया है
नीरज पासी, इलाहाबाद