उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज को बहुजन समाज पार्टी से निकाले जाने की ख़बर सुनकर मुझे परेशानी तो थोड़ी हुई पर आश्चर्य नही हुआ क्योंकि जब से बसपा को समझ रहा हूँ वह पासी समाज के नेताओं के लिए राजनीतिक ज़हर जैसा ही लगा। लेकिन इसलिए कम बोलता रहा कि क्योकि पासी समाज का सरकारी कर्मचारी /अधिकारी बसपा को अपना माई बाप मान बैठा है इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझता रहा परंतु बहुत दिनों तक बर्दास्त नही हो पाया तो लिखने लगा ।
बसपा ने राम समुझ पासी को खत्म करने के लिए आर के चौधरी का इस्तेमाल किया। चौधरी के लिए इंद्रजीत को मजबूत किया। फिर इंद्रजीत को भी रास्ता दिखा दिया। अब जोनल कोर्डिनेटर अमरेंद्र भारतीय को मजबूत किये जाने की ख़बर है। क्योंकि मायावती तथा उसकी जाति के कुछ लोग सतीश मिश्रा के कहने पर संघठन पर एक ही जाति का वर्चस्व चाहते है।
यह सच है कि बहुजन समाज पार्टी ने दलितों को सत्ता में भागीदार बनाया । उनके अंदर के स्वभिमान को जगाया। उन्हें शासक होने का एहसास कराया कि लोकतंत्र में आपको भी शासन करने का अधिकार है। सत्ता की प्राप्ति के बाद अनुसूचित जातियों के अधिकारी कर्मचारी का अपने विभागों में सम्मान बढ़ा । कथित उच्च वर्ग के छोटे कर्मचारी -अधिकारी अपने से बड़े बड़े दलित अधिकारियों का सम्मान करने लगे । स्कूल में प्याप्त जातीय भेदभाव कम हो गया ।
गांवों में जिस दलित के घर लोग पानी पीना पसंद नही करते थे । सत्ता के करीब रहने वाले दलितों के घर उच्च वर्ग के लोग आकर बैठने लगे। यह सब एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था।
लेकिन इस परिवर्तन की वजह कोई यह कहता फिरे की बहन जी ने ही सब कर दिया तो यहां मेरा विरोध रहता है।
इस सामाजिक परिवर्तन में बहुत से नवजवानों ने अपनी आहुति दीं है। बहुजन आंदोलन के लिए कोई स्कूल छोड़ दिया तो कितने नौकरी । न जाने कितनी हत्या हो गई। बहुतो का घर परिवार बर्बाद हो गया। स्वभिमान की इस लड़ाई में कई लोग सवर्णो के हत्या के आरोप में जेलों में बंद है।
बहुजनों की इस लड़ाई में यादव ,कुर्मी , मौर्य , भर -पासी- खटीक, बाल्मिकी जैसी जातियाँ प्रमुख रूप से आगे आयी । जिनके बलबूते अन्य दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों ने बसपा को वोट देने बूथों में जाने लगे। लेकिन धीरे धीरे इन सभी जातियों के नेताओं को बाहर कर दिया गया।
संगठन के ढांचे में मायावती के चलते एक जाति का वर्चस्व हो गया। सेक्टर अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष तक के पदों पर जाटव और चमार का कब्जा हो गया। ब्राह्मण दलित गठजोड़ से सत्ता पाने बाद मायावती का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच गया । संघठन पर सतीश मिश्रा का कब्जा होते ही अन्य सभी दलित और पिछड़ी जातियाँ उपेक्षित होती चली गई।
यादवों ने समाजवादी पार्टी को अपना लिया तो कुर्मियों ने अपना दल बना लिया। राजभरों ने भी पार्टी खड़ी कर ली। खटिक अधिकांश भाजपाई हो चले। पासी भटकता रह गया क्योंकि पासी बसपा को ही अपना मानने की भूल स्वीकार ही नही किया। आज भी यही हालत है।
पासी नेता भले ही बाहर हुए लेकिन उनका समाज बसपा का झंडा ही ढों रहा है। पढ़े लिखे पासी अपने समाज के नेताओं को रोंये बराबर भी नही समझता है। जब तक कि पासी जाति का नेता सत्ता में नही है। पासी समाज के लोग उसे बेरोजगार समझ कर टालते रहते है।
पासी जाति की गौरवशाली ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। लेकिन वर्तमान में सभी जातियों में यह राजनीतिक रूप से उपेक्षित है।
(सम्पादक अजय प्रकाश सरोज की कलम से)
Bahut achha likha BhaiyA aap ne