आज नाग पंचमी है । यह नाग शब्द भारत की मूलनिवासी मानव जाति हैं। जिसे आर्यो ने अपने आगमन के बाद इन्हें जीव जंतु बना दिया । ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि नाग वंश, साँप जैसे जन्तुओ की वंश परंपरा है। हालांकि कई प्रसंग पौराणिक कथाओं में मिलता है की नाग कन्या का विवाह फला राजा से हुई। इसका मतलब की कन्या लड़की थीं जो मानव जाति से है। लेकिन ब्राह्मणवादियों ने पूरी नाग वंश की ऐतिहासिकता को मिटाने का षणयंत्र रचा रखा है।
भारत का मूल निवासी/ आदि द्रविण / नाग वंश / भारशिव सब एक ही है। जिसमे आज की पासी जाति का अपनी संस्कृति को थोड़ा बहुत बनाये हुए है। अधिकांश पासी जाति के घरों में शिव की पूजा की जाती है। मंदिर बनाये जाते है। या उनके घर पर प्राचीन शिव मंदिर देखने को मिल जायेंगे।
इतिहाकार राजकुमार ने अपने पुस्तक’ पासी वंश में लिखा है कि ‘ पासी – आदिवासी (द्रविण) नाग उपासक थे इस कारण इन्हें नाग पुकारा जाता है। तो वही अंग्रेज लेखक आर.वी रसेल के अनुसार” pasi in Dravidian community and tribe ,whose original occupation was toddy drawings”
उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि पासी जाति नाग वंश की परंपरा से है। जो बाद में चीनी महायानी बौद्धों को भगाकर नव नागों ने शिव लिंगो को अपने कंधों पर उठाकर गंगा में स्नान कराकर पवित्र किया । जिसके कारण इन नवनागों को भारशिव कहा गया। जिसका सम्बन्ध आज की पासी जाति से है।
भारशिवो का एक लंबा इतिहास है जिसे केपी जायसवाल की पुस्तक “अंधकार युगीन भारत” में पढ़ा जा सकता है।
आज का यह त्योहार जिसे नाग पंचमी से जाना जाता है । यह नाग वंशियो का बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन आर्यो की राजनैतिक चालाकी से मूल निवासी इसे साँप सपेरों से जोड़कर देखते है। क्योंकि नाग वंशियो को तोड़कर कर ही आर्यो ने इन्हें पराजित किया। और भगवान का डर दिखाकर खुद का संरक्षक भी बना लिया। क्योकि नाग टोटम सिंधु सभ्यता में नाग वंशियो की पहचान थीं।
आप देखिये की जितने भी इनके देवता है उनके सिर पर प्रतीकात्मक रूप से नाग का फन दिखाया जाता है। इसका मतलब की नागवंशी राजाओं ने ही इनकी सुरक्षा भी करते रहें। यह सब एक षणयंत्र है हमे अपनी मूल संस्क्रति की ओर लौटना होगा।
— — अजय प्रकाश सरोज