समाज के सरकारी नौकर जो अपनी जिंदगी के 60 बरस फाइलों में गवां दिए हो।
समाज का दर्द क्या ,जो अपने गांव वाले परिवार का दर्द भी महसूस न किये हो।
भ्रष्टाचार से अकूत धन कमाने के लिए जो अपने मित्र और रिस्तेदारों तक को न बक्शा हो ।
जिनके मन और मष्तिष्क में लोभ ,लालच, हवस भरा हो। जिनकी निगाहें गरीब बहन बेटियों पर तिरक्षी हो।
जिनको सरकार अब फ़ाइल पलटने और उस पर दस्तख़त के लायक भी न समझ रही हो ।
रिटायर्ड होने के बाद ऐसे लोग समाज को संगठित करने का ठेका लेते है।
कहाँ ले जाएंगे समाज को ? जीवन के अंतिम पड़ाव पर संगठन जैसा जोख़िम भरा काम कैसे कर सकेंगे ?
न उम्र की दौलत ,न शारीरिक क्षमताएँ ,बस अंहकार की दौलत के सहारे कब तक चलेंगे ?
कैसे होगा समाज का बेहतर निर्माण , कैसे होगा युवाओं का सपना साकार ।
कुछ तो शर्म करों ,युवाओं का साथ दों
खुद को सम्मान दों, समाज को बढ़ने दों।
बहुत सुंदर