युवा उद्धयोगपति प्रमोद कुमार सरोज जी को मिला इंडीयन लीडरशिप अवार्ड !

नई दिल्ली में आज 20 मई को ऑल इंडिया अचीवर फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित इंडीयन लीडरशिप अवार्ड इन इंडस्ट्रीयल डिवेलप्मेंट आयोजन में CPS Developers & Consultancy PVT. LTD. को नैशनल लीडरशिप का अवार्ड मिला । प्रमोद कुमार सरोज जी समाज के कुछ गिने चुने युवा उद्योगपतियों में से है । प्रमोद जी इस कम्पनी के निदेशक है और यह अवार्ड उन्हें डा० भीष्मा नारायण सिंघ पूर्व गवर्नर एंड यूनीयन मिनिस्टर , श्री बी पी सिंघ पूर्व गवर्नर ( सिक्किम ) ,वेद प्रकाश सेक्रेटरी ओफ़ इंडीयन कोंग्रेस कमिटी और श्री हरिकेश बहादुर पूर्व मेम्बर ओफ़ पार्लियामेंट के हाथो प्राप्त हुआ । 

प्रमोद कुमार सरोज जी युवा उद्धयोगपति है जो अपने बिज़नेस को बुलंदियों पर ले जाने के लिए हमेशा प्रयासरत तो  रहते ही  है पर साथ ही साथ समाज के प्रति भी काफ़ी रुचि रखते है । और सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति अक्सर दिखती रहती है । 


आज के समय में जहाँ बहुजन और पिछड़ो के बारे में हमेशा नेगेटिव समाचार छपते रहते है इस तरह के समाचार समाज को गर्व करने का मौक़ा देते है । बहुत बहुत बधाई प्रमोद कुमार सरोज जी । – राजेश पासी, मुंबई 

मरने के बाद मोमबत्तियां जलाने वालों , जीते जी प्रोफेसर वाघमारे के साथ खड़े होने का साहस कीजिये  !

प्रोफेसर सुनील वाघमारे 34 साल के नवजवान है ,जो महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के खोपोली कस्बे के के एम सी कॉलेज के कॉमर्स डिपार्टमेंट के हेड रहे है और इसी महाविद्यालय के वाईस प्रिंसीपल भी रहे है .
उत्साही ,ईमानदार और अपने काम के प्रति निष्ठावान . वे मूलतः नांदेड के रहने वाले है , वाणिज्य परास्नातक और बी एड करने के बाद वाघमारे ने वर्ष 2009 में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर इस कॉलेज को ज्वाइन किया था .वर्ष 2012 तक तो सब कुछ ठीक चला , मगर जैसे ही वर्तमान प्राचार्य डॉ एन बी पवार ने प्रिंसिपल का दायित्व संभाला .प्रोफेसर वाघमारे के लिये मुश्किलों का दौर शुरू हो गया .
प्राचार्य पवार प्रोफेसर वाघमारे को अपमानित करने का कोई न कोई मौका ढूंढ लेते ,बिना बात कारण बताओ नोटिस देना तो प्रिंसिपल का शगल ही बन गया ,वाघमारे को औसतन हर दूसरे महीने मेमो पकड़ा दिया जाता ,उनके सहकर्मियों को उनके विरुद्ध करने की भी कोशिस डॉ पवार की तरफ से होती रहती .
इस अघोषित उत्पीडन का एक संभावित कारण प्रोफेसर वाघमारे का अम्बेडकरी मूवमेंट से जुड़े हुए  होना तथा अपने स्वतंत्र व अलग विचार रखना था .संभवतः प्राचार्य डॉ पवार को यह भी ग्वारा नहीं था कि एक दलित प्रोफेसर उप प्राचार्य की हैसियत से उनके बराबर बैठे .इसका रास्ता यह निकाला गया कि वाघमारे को वायस प्रिंसिपल की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया तथा अपने वाणिज्य विभाग तक ही सीमित कर दिया गया .
प्रोफेसर सुनील वाघमारे महाराष्ट्र के दलित समुदाय मातंग से आते है .वे  अपने कॉलेज में फुले ,अम्बेडकर और अन्ना भाऊ साठे के विचारों को प्रमुखता से रखते तथा बहुजन महापुरुषों की जयंतियों का आयोजन करते ,जिससे प्राचार्य खुश नहीं थे .देखा जाये तो वाघमारे और पवार के मध्य विचारधारा का मतभेद तो प्रारम्भ से ही रहा है . धीरे धीरे इस मतभेद ने उच्च शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त जातिगत भेदभाव और उत्पीडन का स्वरुप धारण कर लिया और यह बढ़ता ही रहा .
प्रोफेसर वाघमारे ने अपने साथ हो रहे उत्पीडन की शिकायत अनुसूचित जाति आयोग  से करनी चाही तो कॉलेज की प्रबंधन समिति ने उनको रोक लिया तथा उन्हें उनकी शिकायतों का निवारण करने हेतु आश्वस्त भी किया ,लेकिन शिकायत निवारण नहीं हुई ,उल्टे प्रिंसिपल ने इसे अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और मौके की तलाश में रहे ताकि दलित प्रोफेसर वाघमारे को सबक सिखाया जा सके .
मन में ग्रंथि पाले हुए ,खार खाए प्रिंसिपल पवार को यह मौका इस साल 15 मार्च को प्रोफेसर वाघमारे के एक व्हाट्सएप मैसेज फोरवर्ड से मिल गया .
दरअसल 15 मार्च 2017 की रात तक़रीबन पौने बारह बजे के एम सी कॉलेज के एक क्लोज्ड ग्रुप पर प्रोफेसर वाघमारे ने एक मैसेज फोरवर्ड किया ,जिसका सन्देश था कि  “हम उन बातों को सिर्फ इसलिए क्यों मान ले कि वे किसी ने कही है .” साथ ही यह भी कि – ” तुम्हारे पिता की दो दो जयन्तियां क्यों मनाई जाती है ” कहा जाता है कि इसका संदर्भ शिवाजी महाराज की अलग अलग दो तिथियों पर जयंती समारोह मनाने को लेकर था .इस सन्देश पर ग्रुप में थोड़ी बहुत कहा सुनी हुई ,जो कि आम तौर पर हरेक ग्रुप में होती ही है .बाद में ग्रुप एडमिन प्रो अमोल नागरगोजे ने इस ग्रुप से सबको निकाल दिया ,सिर्फ प्रिंसिपल , नागरगोजे और वाघमारे ही रह गए ।
बात आई गई हो गई क्योकि यह कॉलेज फेकल्टी का एक भीतरी समूह था जिसमे सिर्फ प्रोफेसर्स इत्यादि ही मेम्बर थे. लेकिन इसी दौरान प्राचार्य महोदय ने अपनी जातीय घृणा का इस्तेमाल कर लिया ,उन्होंने उस वक़्त इस सन्देश का स्क्रीन शॉट ले लिया जब ग्रुप में नागरगोजे तथा वाघमारे एवं प्रिंसिपल तीनों ही बचे थे . 
प्राचार्य ने इस स्क्रीन शॉट को योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया ,जन भावनाओं को भड़काने का कुत्सित कृत्य करते हुए प्रोफेसर वाघमारे के खिलाफ अपराधिक षड्यंत्र रचते हुये उनके विरुद्ध भीड़ को तैयार किया .इस सामान्य से व्हाट्सएप फोरवर्ड को शिवाजी का अपमान कहते हुए एक प्रिंसिपल ने अपनी ही कॉलेज के एक प्रोफेसर के खिलाफ जन उन्माद भड़काया तथा उन्मादी भीड़ को कॉलेज परिसर में आ कर प्रोफेसर वाघमारे पर हिंसक कार्यवाही करने का भी मौका दे दिया .इतना ही नहीं बल्कि भीड़ के कॉलेज में घुसने से पूर्व ही प्रिंसिपल बाहर चले गये और आश्चर्यजनक रूप से सारे सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए गये .
17 मार्च 2017 की दोपहर दर्जनों लोगों ने कॉलेज परिसर में प्रवेश किया तथा कॉलेज मेनेजमेंट के समक्ष प्रोफेसर वाघमारे की निर्मम पिटाई की ,उनको कुर्सी से उठा कर लोगों के कदमो के पास जमीन पर बैठने को मजबूर किया गया ,भद्दी गालियाँ दी गई ,मारते हुए जमीन पर पटक दिया और अधमरा करके जोशीले नारे चिल्लाने लगे . इस अप्रत्याशित हमले से वाघमारे बेहोश हो गये और उनके कानों से खून बहने लगा .बाद में पुलिस पंहुची जिसने लगभग घसीटते हुए वाघमारे को पुलिस जीप में डाला और थाने ले गये .थाने में ले जा कर पुलिस सुरक्षा देने के बजाय आनन फानन में वाघमारे पर ही प्रकरण दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस अभिरक्षा में धकेल दिया गया .
दलित प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ( ए ) अधिरोपित की गई ,उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने शिवाजी का अपमान करते हुए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया .ग्रुप एडमिन प्रोफेसर नागरगोजे की शिकायत पर केस दर्ज करवा कर वाघमारे को तुरंत गिरफ्तार कर हवालात में भेज दिया गया . बिना किसी प्रक्रिया को अपनाये कॉलेज प्रबन्धन समिति ने एक आपात बैठक बुला कर प्रोफेसर वाघमारे को उसी शाम तुरंत प्रभाव से निलम्बित करने का आदेश भी दे दिया . इससे भी जयादा शर्मनाक तथ्य यह है कि प्रोफसर वाघमारे को खोपोली छोड़ कर अपने परिवार सहित वापस नांदेड जाने को विवश किया गया .अब वे अपनी पत्नी ज्योत्स्ना और दो जुड़वा बेटियों के साथ लगभग गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर है .
कॉलेज प्रबंधन और प्राचार्य ने महाविद्यालय परिसर में घुस कर अपने ही एक प्रोफेसर पर किये गये हमले के विरुद्ध किसी प्रकार की कोई शिकायत अब तक दर्ज नहीं करवाई है ,जबकि संवाद मराठी नामक एक वेब चैनल पर हमले के फुटेज साफ देखे जा सकते है ,एक एक हमलावर साफ दिख रहा है ,मगर प्राचार्य मौन है ,वे हमलावरों के विरुद्ध कार्यवाही करने के बजाय वाघमारे के कैरियर और जीवन दोनों को नष्ट करने में अधिक उत्सुक नज़र आते है .
अगर व्हाट्सएप फोरवर्ड शिवाजी महाराज का अपमान था तो उस मैसेज का स्क्रीन शॉट ले कर पब्लिक में फैलाना क्या कानून सम्मत कहा जा सकता है  ? कायदे से तो कार्यवाही ग्रुप एडमिन नागरगोजे और स्क्रीन शॉट लेकर उसे आम जन के बीच फ़ैलाने वाले प्राचार्य पवार के विरुद्ध  भी होनी चाहिए ,मगर सिर्फ एक दलित प्रोफेसर को बलि का बकरा बनाया गया और उनके कैरियर ,सुरक्षा और गरिमा सब कुछ एक साज़िश के तहत खत्म कर दी गई है .
इस सुनियोजित षड्यंत्र के शिकार प्रोफेसर वाघमारे ने अपनी ओर से खोपोली पुलिस स्टेशन में 1 मई 2017 को प्राचार्य डॉ पवार के विरुद दलित अत्याचार अधिनियम सहित भादस की अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है ,जिसके लिए भी उन्हें बहुत जोर लगाना पड़ा और अब कार्यवाही के नाम पर कुछ भी होता नज़र नहीं आ रहा है .
उच्च शिक्षा के इदारे में जातिगत भेदभाव और आपराधिक षड्यंत्र करते हुए एक दलित प्रोफेसर के जीवन और कैरियर को नष्ट करने के इतने भयंकर मामले को लेकर प्रतिरोध की जो आवाजें दलित बहुजन मूलनिवासी आन्दोलन की तरफ से उठनी चाहिए थी ,उनका नहीं उठना निहायत ही शर्मनाक बात है .पूरे देश के लोग महाराष्ट्र के फुले अम्बेडकरवादी संस्था ,संगठनो ,नेताओं से प्रेरणा लेते है और उन पर गर्व करते है ,मगर आज प्रोफेसर वाघमारे के साथ जो जुल्म हो रहा है ,उस पर महाराष्ट्र सहित देश भर के भीम मिशनरियों की चुप्पी अखरने वाली है .
आखिर वाघमारे के साथ हुए अन्याय को कैसे बर्दाश्त कर लिया गया ? छोटी छोटी बातों के लिए मोर्चे निकालने वाले लोग  सड़कों पर क्यों नहीं आये ? सड़क तो छोड़िये प्रोफेसर वाघमारे से मिलने की भी जहमत नहीं उठाई गई . देश भर में कई नामचीन दलित संगठन सक्रिय है ,उनमें से एक आध को छोड़ कर बाकी को तो मालूम भी नहीं होगा कि एक दलित प्रोफसर की जिंदगी कैसे बर्बाद की जा रही है .
जुल्म का सिलसिला अभी भी रुका नहीं है .शारीरिक हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के बाद अब प्रोफेसर वाघमारे की आर्थिक नाकाबंदी की जा रही है .नियमानुसार उन्हें निलम्बित रहने के दौरान आधी तनख्वाह मिलनी चाहिए ,मगर वह भी रोक ली गई है ,ताकि हर तरफ से टूट कर प्रोफेसर वाघमारे जैसा होनहार व्यक्ति एक दिन पंखे के लटक कर जान दे दें …और तब हम हाथों में मोमबत्तियां ले कर उदास चेहरों के साथ संघर्ष का आगाज करेंगे .कितनी विडम्बना की बात है कि एक इन्सान अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ अकेला युद्धरत है ,तब साथ देने को हम तैयार नहीं है .शायद शर्मनाक हद तक हम सिर्फ सहानुभूति और शोक जताने में माहिर हो चुके है . 
आज जरुरत है प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के साथ खड़े होने की ,उनके साथ जो साज़िश की गई ,उसका पर्दाफाश करने की ,लम्बे समय से जातिगत प्रताड़ना के विरुद्ध उनके द्वारा लड़ी जा रही लडाई को पहचानने तथा केएमसी कॉलेज के प्रिंसिपल की कारगुजारियों को सबके सामने ला कर उसे कानूनन सजा दिलाने की .
यह तटस्थ रहने का वक्त नहीं है .यह महाराष्ट्र में जारी मराठा मूक मोर्चों से डरने का समय नहीं है ,यह देश पर हावी हो रही जातिवादी मनुवादी ताकतों के सामने घुटने टेकने का समय नहीं है ,यह समय जंग का है ,न्याय के लिए संघर्ष का समय है . सिर्फ भाषणवीर बन कर फर्जी अम्बेडकरवादी बनने के बजाय सडक पर उतर कर हर जुल्म ज्यादती का मुकाबला करने की आज सर्वाधिक जरुरत  है .
बाद में मोमबतियां जलाने से बेहतर है कि हम जीते जी प्रोफेसर वाघमारे के साथ संघर्ष में शामिल हो जायें. मुझे पक्का भरोसा है वाघमारे ना डरेंगे और ना ही पीछे हटेंगे ,उनकी आँखों में न्याय के लिए लड़ने की चमक साफ देखी जा सकती है .बस इस वक़्त उन्हें हमारी  थोड़ी सी मदद की जरुरत है .
– भंवर मेघवंशी 

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता है ,जिनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )

दलित के नाम पर नया गुप्त मनुवाद !


जिस वर्ग-जाति से हम उम्मीद नही करते है वह हमारे पासी समाज के इतिहास को बचाने व सैकडों पासी भाईयो को सम्मानित करता है यह है डा. मनोज कुमार पांडेय (बाभन) जो महाराजा माहे पासी की मूर्ति स्थापित, सोलर विद्युत व किले की गेट सुन्दरी करण करवाया व माहे पासी किले पर पासी समाज के लोगो को सम्मानित भी करते रहते है दोस्तों यह चाहे वोट के लिये ही क्यो ना करते हो पर अपने समाज के लिये कार्य तो करते है , ऐसे ही सीतापुर का सातन पासी किला का मूर्ति व किले की गेट सुन्दरीकरण किसी जायसवाल(बनिया) ने किया है , और एक तरफ हमारा sc वर्ग (बसपा) जिसे हम वोट भी करते है और उम्मीद भी करते है कि पासी समाज को भी सम्मान करेगा पर कई बार मुख्यमंत्री(चमार) रहते हुये ना कोई स्मारक ना ही कोई सम्मेलन ना कोई सम्मान मिला बस चमार चमार चमार हर जगह चमार बाकी धोबी, खटिक, धरिकार व अन्य अनुसूचित जातिया सिर्फ दलित के नाम पर वोट करे अन्य अनुसूचित जाति किसी दूसरे पार्टी या व्यक्ति को सपोर्ट भी कर दिये तो चमार लोग ब्राह्मण-भक्त, संघी, दलाल गद्दार घोषित होने में देर नही लगाते।
क्या इनके महापुरुष हमारे है और हमारे महापुरुष इनके नही क्यो ये महाराजा बिजली पासी लाखन पासी विरांगना उदा देवी की जयंती व शहादत दिवस नही मनाते?
अखंड भारत न्यूज में छपी खबर के अनुसार माहे पासी किले पर हर वर्ग के लोग पहुचते है पर एक वर्ग ना कभी सोचता है ना पहुंचता है – अच्छेलाल सरोज ,इलाहाबाद

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माहे पासी किले पर आयोजित भव्य मेले में प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ने की शिरकत…

अंतिम संस्कार एवं पर्यावरण असंतुलन

मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर को आग के हवाले करने की परंपरा के चलते भारत में हर साल 50 से 60 लाख पेड़ काटे जाते हैं. ऐसे समय में जब दुनिया में पर्यावरण असंतुलन पर गंभीर विमर्श हो रहा हो, अंतिम संस्कार के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई क्या उचित है? क्या इस पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए? अंतिम संस्कार वायु प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है, इसलिए अंतिम संस्कार की वैकल्पिक पद्धतियों को प्रयोग में लाना चाहिए इसके चलते ‘जंगल काटे जा रहे हैं और मृत शरीरों के दहन से दूषित करनेवाले गैस निकलते हैं, जो हवा को प्रदूषित करते हैं.’भले ही लोग मृत शरीर के खुले में जलाये जाने को ‘आत्मा के मुक्त होने’ और ‘मोक्ष प्राप्ति’ से जोड़ते हों, वास्तविकता में वह पर्यावरण के लिए खतरा है,
मसलन, दिल्ली में पर्यावरण की बेहतरी के लिए सक्रिय एक संस्था ‘मोक्षदा’ ने दहन के वैकल्पिक तरीकों को विकसित करने की कोशिश की है. संस्था के मुताबिक, पारंपरिक तरीकों के दाह संस्कार से लकड़ी के जलने से हवा में लगभग अस्सी लाख टन कार्बन मोनोआॅक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. दहन के बाद निकलनेवाली राख जलाशयों या नदियों में फेंकी जाती है, जो उनकी विषाक्तता बढ़ाती है.
एक शव को ढंग से जलाने में लगभग चार क्विंटल लकड़ी लग जाती है. वजन बढ़ाने के लिए लकड़ियां गीली रखी जाती हैं, जो अधिक धुआं पैदा करती हैं,
निश्चित ही लकड़ी पर जलाने के बजाय विद्युत शवदाह गृह ज्यादा अनुकूल एवं आसानतरीका हो सकता है या सीएनजी आधारित शवदाह गृह भी प्रयुक्त हो सकते हैं, मगर लोगों में जो धारणाएं मौजूद हैं, वह इस रास्ते में बड़ी बाधा हैं. शवदाह गृहों के बंद होने, उनमें अचानक खराबी आने जैसी समस्याओं का लोगों को सामना करना पड़ता है. ऐसे शवदाह गृहों पर जो कर्मचारी तैनात होते हैं, वे भी जागरूक नहीं होते.
इस मसले पर जागरूकता ही सबसे महत्वपूर्ण है. कोई कानून काम नहीं आयेगा, हर जीते इनसान को ही बोलना होगा कि मृत्यु के बाद उनके परिजन ऐसा कोई तरीका इस्तेमाल न करें, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हो. कब्रगाहों के बारे में भी अक्सर यही बात आती है कि अब जगह कम पड़ने लगी है यानी वहां भी देर-सबेर कोई दूसरा उपाय तलाशना पड़ेगा.
जैसा माहौल देश में बन रहा है, यह भी संभव है कि धार्मिक आजादी की बात करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करनेवाले इस मसले पर बात ही न होने दी जाये. हालांकि, उम्मीद की जानी चाहिए कि समाज के सचेत लोग इसे अपनी आस्था के साथ जोड़ कर नहीं देखेंगे और पर्यावरण एवं समाज के भविष्य के बारे में जरूर सोचेंगे।
जय पासी समाज

लेखक : अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद

​सहारनपुर की घटना की निंदा  लेकिन चमार नेतृत्व स्वीकार नही– नीरज पासी

कांशीराम के आंदोलन से दलित एकता के नाम पर भावनात्मक रूप से जुड़कर पासी नेतृत्व की बलि चढ़ गई थी। आज फिर भीम आर्मी से जोड़कर दलित एकता बात बड़ी तेजी से हो रही है। इसका भी हश्र वही होगा जो कांशीराम के दलित आंदोलन का हुआ है। आप को याद होगा  इलाहाबाद के झूसी,नैनी और गोरखपुर जैसी दर्जनों जगहों पर पासियों का कत्लेआम हुआ तो कोई दलित आंदोलन क्यों नही शुरू हुआ ?

 मै आगाह करना चाहता हूं पासी समाज के नवजवानों, बुद्दजीवियो और नेताओं को की इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है और फिर दलित एकता के नाम पर जाति विशेष का नेतृत्व उभारने की कोशिश हो रही है। कही फिर हम लोग ऐतिहासिक भूल को दोहराने तो नही जा रहे हैं ? हमें सहारनपुर की घटना से पूरी तरह गमदर्दी है और सामाजिक बन्धुओ पर हुए हमले पर  इनकी चुप्पी पर शिकायत भी है। लेकिन जाति विशेष का नेतृत्वई स्वीकार नही है।

 अध्यक्ष – पासी महासभा इलाहाबाद

शहीद वाल पर वीरांगना उदा देवी पासी तस्वीर के नीचे शीतल जल  का उदघाटन


इलाहाबाद में  पासी समाज के लोगों ने जिस शहीद ऊदादेवी पासी की तस्वीर को शहीद वाल सिविल लाइंस में लगाया था।
 उसी के नीचे निशुल्क शीतल जल की व्यवस्था का उद्घाटन माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पंकज मित्तल ने किया।

आपको बता दे कि श्री पासी सत्ता पत्रिका द्वारा तैयार वीरांगना ऊदा देवी पासी की जीवनी व चित्र के साथ 16 नवम्बर2016 की पूर्व संध्या पर पासी समाज के नवयुवकों ने शहीद वाल पर स्थापित किया था। 

यह शहीद वाल सिविल लाइन बस स्टॉप के सामने हिन्दू इंटर कालेज की दीवाल पर बनाया गया है। इसे देखने वाले लोग आते रहते है। गर्मी आते ही न्यायधीश पंकज मित्तल ने इसी तस्वीर के नीचे एक शीतल प्याऊ का उदघाटन किये। 

आप भी उधर गुजरे तो ठंडा पानी पीकर जाएं । 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा के लिए राज्य सरकार उत्तरदायी। दोषियों के खिलाफ हो सख़्त कार्यवाई  –स्वराज इंडिया 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिला में अप्रैल महीने से ही असुरक्षा व हिंसा का माहौल बना हुआ है। अम्बेडकर जयंती पर समाज सुधारकों की मूर्तियां स्थापित करने से रोका गया और इजाजत न होने का बहाना बनाया गया।  यही सवाल फिर 5 मई को महाराणा प्रताप के जन्मदिन के अवसर पर उठाया गया। दबंगों द्वारा लोगों के घर जलाए गए, मारपीट की गयी और जातीय पहचान के मंदिर को नुकसान पहुँचाया गया। 
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि समाज में कितना जातीय द्वेष फैला हुआ है। ऐसी घटनायें इस बात का भी सबूत हैं कि सरकार समाज में समरसता स्थापित करने और जातीय द्वेष को मिटाने में नाकामयाबी साबित हुई है। हिंसा की इन घटनाओं के खिलाफ 9 मई को जब प्रदर्शन हुआ तो उस पर पुलिस ने ताकत का इस्तेमाल किया और उग्र टकराव हुआ।
स्वराज इंडिया राज्य सरकार से पूछना चाहती है कि समाज में समता व जीने के अधिकार की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह करने में असफल हुई सरकार अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करते हुए घटना की जिम्मेवारी लेगी या नहीं? आज समाज के ज्यादा ताकतवर वर्ग द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों पर हमला किया जा रहा है और किसी व्यक्ति या समूह के सम्मानजनक जीने के सांवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश की जा रही है। 
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि यदि इस तरह के हमले रोकने में राज्य सरकार नकारा साबित होती है तो पीड़ित समाज की तरफ से प्रतिक्रिया होना अवश्यम्भावी है जिससे संघर्ष की चिंगारियाँ उठने की आशंका बनी रहेगी। इससे समाज में पहले से व्याप्त असुरक्षा और अधिक बढ़ेगी। 
इन हालातों के लिए राज्य व केंद्र सरकार हर हालात में उत्तरदायी होंगी। इसके दो कारण हैं। एक, समाज में हिंसा व जातीय दायित्व का मौजूद होना; और  दूसरा, राज्य सरकार की वह समझ जो जातीय श्रेष्ठता व वर्चस्व के विचार को मजबूत करने के पक्ष में दिखती है। ऐसे में, स्वराज इंडिया समाज में अमन व बराबरी के पक्ष में खड़े व्यक्ति व समूह  से आह्वान करती है कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ संघर्ष के लिए पूरी ताकत के साथ उतरें।

श्रीपासी सत्ता द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सफलता पूर्वक संपन्न!

13 मई 2017 को इलाहाबाद संग्रहालय सभागार में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार सफलता पूर्वक पूर्ण हुआ । इस आयोजन में  उत्तरप्रदेश के अलावा दिल्ली , मुंबई , मध्य प्रदेश  और बिहार के साथियों ने भी भाग लिया । सेमिनार के लिए देश भर से पत्रिका से जुड़े लोग , साहित्य लेखन से जुड़े लोग , ऐसे युवा जो अपनी पहचान सिर्फ़ अपने बल बूते पर बनाए है और समाज  में ऐक्टिव है ऐसे सीमित लोगों को ख़ास तौर पर आमंत्रित किया गया था । राजनीतिक  और पासी समाज  की संस्थाओ को फ़िलहाल इसमें शामिल नही किया गया था । यह सेमिनार पत्रिका की वेब्सायट के एक साल पूर्ण होने पर हमारे साथी डा० रमेश ( कॉर्प्रोट मंत्रालय ) की सलाह पर प्रयोग के तौर पर किया जो पूरी तरह से सफल था ।

मंच पर उपस्थित लोगों में प्रमुख अतिथि श्री छोटालाल पासी (IAS) अपर आयुक्त फ़ैज़ाबाद मंडल थे , इतिहासकार में लखनऊ से राजकुमार इतिहासकार जी और हरदोई से बहुजन चिंतक राम दयाल वर्मा जी थे , युवा साथी डा० रमेश आईएएस अलायड ( कारपोरेट मंत्रालय ) , राम सुचित भारतीय जी (प्रबन्ध सम्पादक), फ़िल्मकार केशव कैथवास जी , प्रोफ़ेसर भगवानदीन उपस्थित थे ।

सेमिनार शानदार वातानुकूलित हाल में लंच की वयस्था के साथ रखा गया था । सभी उपस्थित साथियों के नाम तो पॉसिबल नहि है पर सम्पादकीय मंडल के R K सरोज ( कवि /दरोग़ा ) , बिहार के वेद प्रकाश ( सोशल मीडिया स्टार ) उनके साथ अमित जी , राम यश विक्रम जी , बनारस के सोनू सिंह पासी , मुंबई के राजेश पासी , प्रतापगढ़ के वेद ( आर्यन ) जी , साथी यशवंत सिंह , प्रियांक जी , नोयडा से संजीव जी ,रागिनी जी , राजू पासी जी , नीरज जी आकर्षण के केंद्र थे ।

चूँकि यह एक दिवसीय सेमिनार था उपस्थित सभी लोगों ने अपने विचार रखे । मुख्य अतिथि छोटे लाल पासी जी कहा कि पासी समाज का चरित्र स्वाभिमानी है। वह आत्म सम्मान से समझौता नही करता है।इतिहासकार और साहित्य से जुड़े लोगों ने समाज पर अपना नज़रिया रखा । सम्पादक अजय जी ने  अपने व्याख्यान में समाज में वर्तमान के सभी पहुलुओं पर अपना पक्ष रखा । कम उम्र में इतनी परिपक्वता भरा विश्लेषण ने सभी का ध्यान खींचा। महिला साथियों में डा० सुधा जी ने महिलाओं और शिक्षा पर अपना दमदार पक्ष रखा , इलाहाबाद  के आसपास में सामाजिक रूप ऐक्टिव मिस रागिनी जी ने समाज में महिलाओं की भागीदारी पर ज़ोर दिया ।

इस सेमिनार  में भाग लेनेवाले 70% से ज़्यादा साथी 35 साल के आसपास के थे । सीनियर साथियों के सहयोग से आयोजित इस सेमिनार को युवा पासी समाज सेमिनार कहना ग़लत न होगा । और सबसे अच्छी बात  सेमिनार में अलग -अलग क्षेत्रों से  जुड़े लोगों का समावेश था । तक़रीबन  हर क्षेत्र में माहिर लोग  चाहे शिक्षा , साहित्य , फ़िल्म , लेखक , इतिहासकार , डॉक्टर , इंजीनियर , कवि , सरकारी अफ़सर , टीचर , विद्यार्थी , पत्रकार , सोशल मीडिया स्टार सभी क्षेत्र के लोग इस सेमिनार में उपस्थित थे । सभी लोगों से मिल कर एक दूसरे से मेल मुलाक़ात कर सभी बिंदुओं पर चर्चा हुई । 
सेमिनार में मंचाधीन साथियों के हाथो श्री पासी सत्ता पत्रिका के इस महीने के अंक का भी विमोचन हुआ । यह अंक मदारी पासी को समर्पित किया गया है जो जल्द ही आपके हाँथों में होगा ।
सेमिनार के अंत में हरदोई के पत्रकार साथी स्व0 हरिनाम रावत के सड़क हादसे में हुई असामयिक मृत्यु पर दो मिनट की शोक सभा होकर सम्पन्न हुई।

जय भीम , जय भारत

राजा सुहेलदेव पासी की वीरता पाठ्य पुस्तकों  में होगी शामिल–मुख्यमंत्री योगी


आखिर युपी के सीएम योगी ने भी मान ही लिया कि महाराजा सुहेलदेव पासी पासी ही थे । अंग्रेज इतिहासकारों ने भी महाराजा सुहेलदेव पासी के पासी होने का प्रमाण दिया है । यहा तक कि उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग के पुस्तक में भी महाराजा सुहेलदेव पासी का ही जिक्र ही है । केवल एक मात्र जैन ग्रंथ में ही महाराजा सुहेलदेव का राजभर के रुप में जिक्र है लेकिन जैन ग्रंथों को सबुतों के तौर पर प्रमाणिक नहीं माना जाता है । अंग्रेज इतिहासकारों ने सुहेलदेव को भारपासी (भारशिव पासी) माना है। मतलब महाराजा सुहेलदेव पासी (भारशिव वंशज ) ही थे ।ईस बात को बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने भी माना है । अब आशा करते है कि योगी जी अपने किये वायदे के अनुसार महाराजा सुहेलदेव पासी के इतिहास को केवल महाराजा सुहेलदेव नहीं बल्कि उनके पुरे नाम महाराजा सुहेलदेव पासी के नाम से पाठ्यक्रम मे शामिल करायेंगे ।  – अमित कुमार जी की वाल से