कब मिटेगा अंधविश्वास का अंधेरा । 

बहुत पुरानी बात है किसी गाँव में एक मंदिर हुआ करता था। उस मंदिर में एक पुजारी थे जो बड़े विद्वान् और सज्जन थे। एक दिन पुजारी जी मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे थे कि अचानक कहीं से एक छोटा कुत्ता मंदिर में घुस आया।


वो छोटा सा कुत्ता बड़ा भूखा और प्यासा लग रहा था। पुजारी जी को दया आयी और उन्होंने पूजा बीच में ही रोककर उस कुत्ते को खाना खिलाया और पानी दिया। अब पुजारी जी फिर से पूजा करने बैठ गए लेकिन कुत्ता वहां से नहीं गया।
कुत्ता अपनी पूंछ हिलाते हुए पुजारी जी की गोद में बैठने की कोशिश करने लगा। पुजारी जी ने अपने शिष्य को बुलाया और कहा जब तक मेरी पूजा संपन्न ना हो इस कुत्ते को बाहर पेड़ से बांध दो। शिष्य ने वैसा ही किया।
अब वो छोटा कुत्ता मंदिर में ही रहने लगा और जब भी पुजारी जी पूजा करते वो गोद में बैठने की कोशिश करता और हर बार पुजारी जी उसे पेड़ से बंधवा देते। अब यही क्रम रोज चलने लगा।
एक दिन अकस्मात पुजारी जी की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनके शिष्य को पुजारी बनाया गया अब वो शिष्य जब भी पूजा करता तो कुत्ते को पेड़ से बांध देता। एक दिन एक हादसा हुआ कि उस कुत्ते की भी मृत्यु हो गयी। अब मंदिर के सभी सदस्यों और शिष्यों ने आपस में एक मीटिंग की और सोचा कि हमारे गुरूजी जब भी पूजा करते थे तो कुत्ते को पेड़ से बंधवाते थे।

अब कुत्ते की मृत्यु हो चुकी है लेकिन पूजा करने के लिए किसी कुत्ते को पेड़ से बांधना बहुत जरुरी है क्योंकि हमारे गुरूजी भी ऐसा करते थे। बस फिर क्या था गाँव से एक नए काले कुत्ते को लाया गया और पूजा होते समय उसे पेड़ से बांध दिया जाता।
आपको विश्वास नहीं होगा कि उसके बाद ना जाने कितने ही पुजारियों की मृत्यु हो चुकी थी और ना जाने कितने ही कुत्तों की मृत्यु हो चुकी थी लेकिन अब ये एक परम्परा बन चुकी थी। पूजा होते समय पुजारी पेड़ से एक कुत्ता जरूर बंधवाता था।
जब कोई व्यक्ति इस बात को पुजारी से पूंछता तो वो बोलते कि हमारे पूर्वज भी ऐसा ही किया करते थे ये हमारी एक परम्परा है।
दोस्तों इसी तरह हमारे समाज में भी ऐसे ही ना जाने कितने अन्धविश्वास पाल लिए जाते हैं। हमारे पूर्वजों ने जो किया वो हो सकता है उस समय उन चीजों का कुछ विशेष कारण रहा हो लेकिन आज हम उसे एक परम्परा मान लेते हैं।
ये केवल किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है बल्कि हमारे समाज में हर इंसान कुछ ना कुछ अन्धविश्वास जरूर मानता है और जिससे भी पूछो वो यही कहता है कि ये तो हमारी परम्परा है हमारे यहाँ सदियों से चली आयी है।
जरा अपना भी दिमाग लगाओ और इन रूढ़िवादी बातों से ऊपर उठो तभी आपका विकास संभव है।

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धन्यवाद!!  – अच्छेलाल सरोज इलाहाबाद 

                मो. नं –  7800310397 

क्रांतिकारी खबर उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से…


क्रांतिकारी खबर उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से…जेएनयू छात्र नेता दिलीप यादव को बुरी तरह पुलिस ने पीटा..
सहारनपुर में घटित जातिय हिंसा जिसमे 40 से 50 घर जला दिए गए थे स्त्रियों, बच्चो और बुजुर्गो पर तलवारें चलाई गई थी जिससे सैकड़ो घायल है और कुछ लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया था।
उसी के विरोध में यूनाइटेड ओ बी सी फ़ोरम के पहल पर लखनऊ में Joint Action committee तमाम बहुजन संगठनों के मदद से बनी। आज उस commitee का विधान सभा मार्च था।


जब लखनऊ में प्रदर्शकारियों ने जब जय भीम, जय फुले और जय मण्डल के नारे लगाये तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया जिससे कई साथी घायल हो गये है। आंदोलनरत सभी छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया।
BBAU, JNU, LU, AU, DSMNRU, MGAHV, DDUGU, आदि सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों ने विधानसभा प्रदर्शन में अपनी सहभागिता दिखाई।

 

यह प्रदर्शन इसलिए मायने रखता है क्योंकि इस आंदोलन में OBC, SC, ST और अल्पसंख्यक युवाओ की भागीदारी रही मतलब साफ है बहुजन संगठित हो रहे है। और यह यदि देश भर में हो जाता है तो बीजेपी सरकार सत्ता से बेदखल हो जायेगी।

प्रतिरोध का स्वर: ‘द ग्रेट’मुहीम चलाइए


प्रतिरोध का स्वर: ‘द ग्रेट’मुहीम चलाइएआइये सौ वर्ष पीछे ले चलता हूँ.

‘जनेऊ’ पहनना ‘द्विजपन,जातीय वर्चस्व और दंभ की निशानी है. 1920 के दशक में बिहार के कई क्षेत्रों में यादव जाति ने जनेऊ धारण करने का आन्दोलन चलाया. फिर ‘सवर्णों’ ने इनका जबरदस्त विरोध किया, हिंसा हुई, पुलिस फायरिंग हुई इत्यादि. आजकल पिछड़ी जातियां भी जनेऊ पहनती है. अर्थात् जनेऊ का महत्त्व ही ख़त्म,वैसे भी आजकल कम लोग जो जनेऊ पहनते हैं, उसे लोग किस नज़र से देखते हैं आपको पता ही है.

सनद रहे, सहारनपुर मरोड़ का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह बोर्ड ही है.

मेरे कहने का मतलब है जातीय दंभ और अहंकार के जीतने भी प्रतीक हैं उसे ध्वस्त कीजिए.इसलिए सभी जातियां को अपनी जाति के आगे ‘द ग्रेट’ लिखने की मुहीम चलानी चाहिए. अर्थात् जब सब ग्रेट तो ग्रेट शब्द दंभ और अहंकार ही अप्रासंगिक हो जायेगा. फेसबुक पर ही दो-चार ऐसा ही पोस्टर लगा कर देखिए, रिजल्ट पता लग जायेगा!!!

-प्रो. रतनलाल जी की वाल से 

सहारनपुर घटना के बाद का सच

आज रात सहारनपुर से घर पहुचे हैं।

दिल में उदासी हैं और कुछ करने का जज्बा भी।

क्योंकि पसमांदा महाज़ की  सहारनपुर सनसिटी की बैठक में सहारनपुर की टीम ने जब शब्बीरपुर के दलितों के साथ हो रहे जुल्म की दास्ताँ को बताया तो लगा कि हम आज भी ऐसे भारत में रहते है जहाँ खुल्लम खुल्ला तलवार के बल गरीब दलितों की कच्ची झोपड़ियों को फूंक दिया जाता है और पुलिस तमाशबीन बनकर देखती है और पखवाड़ा गुजरने के बाद भी हालात साज़गार नहीं होते।

चलो बहरोड़ में मेवात के पहलू ,दादरी के

अखलाख,डीगरहेड़ी में जुहरु परिवार,नॉएडा में कुरेश खानदान् ,अटाली बल्लबगढ़ आदि के लोगो के साथ हो जाये तो कोई ताज़्जुब नहीं क्योंकि वो तो आज दोयम दरजे के नागरिक से भी नीचे का जीवन जीने को मजबूर है।

लेकिन आज भी वो दलित समाज जो आज के हिन्दू समाज का सबसे बड़ा हिन्दू होने का ठेकेदार होने का दावा करता हैं, के साथ ऐसी घटनाओं का होना, हैरानी की बात है।

कल मीडिया ने भी हमसे सवाल पूछा कि ऐसे हालात में आप यहाँ क्यों आये है तो हमने जवाब दिया कि एक दर्दमंद ही दूसरे दर्दमंद का दर्द समझ सकता है,

पसमांदा समाज के साथ ये घटनाएं रोज़ किसी न किसी रूप में घटती है तो हम उस रिश्ते से दलितों के दर्द को समझते है और उसी दर्द को साँझा करने आये है।

आपके मुताबिक हम आग में घी डालने नहीं आये है बलिक इस आग को ठंडा करने आये है जिसे उत्तरप्रदेश की सरकार ठंडा नहीं होने दे रही है।

शब्बीरपुर के उन साहसी दलित वीरो को सलाम करने आये जिन्होंने अपनी बहिन बेटियो की ,वे अपनी घर की इज़्ज़त बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा दिया।

पसमांदा समाज के रहीस कुरैशी, बाबर गाजी,सलाम अधिवक्ता,इमरान अंसारी व् तमाम टीम ने दलितों के साथ मिलकर जो मदद की और भाईचारे का पैगाम दिया है वो एक नज़ीर हैं।

लेकिन शब्बीरपुर की घटना शायद दलितों को कुछ समझने का मौका देगी।

सहारनपुर के विधायक कॉमरेड संजय गर्ग के यहाँ बुद्धिजीवियो के साथ मीटिंग एक अनोख अनुभव रहा और विधायक को सुनकर लगा कि आज भी इतने सादा और ऊँचे विचारो के लोग राजनिति में मौजूद है और शायद यही वजह होगी कि बीजेपी की लहर में भी वह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।

मेवात के गौरवशाली इतिहास को सुनना हमेशा शुकुन देता है जिसका ज़िक्र सहारनपुर की दोनों मीटिंग्स में जमकर हुआ।

अली अनवर अंसारी के साथ सफर हमेशा सबकांगेज़ होता है और सहारनपुर की मेहमान नवाजी भी हमेशा याद रहेगी।
रमजान चौधरी।

पासी जागरुकता अभियान का एक और विचार – अच्छेलाल सरोज 

साथियो नमस्कार अपने समाज में अभी भी लोग पासी महापुरुषों से अनभिज्ञ है। महाराजा बिजली, लाखन उदा, माहे, वीरा, सुहेलदेव पासी जैसे वीरो को नही जान पाया है बस ये  उन्ही लोग तक सीमित है जो शोशल नेटवर्क से जुडे है या जागरुक है, तो आईये एक कदम हम भी बठाये जागरुकता की। 

दोस्तो जिन बिरादरो के घर शादी पडी हो वो शादी कार्ड के लिये कैलेंडर या छोटा कार्ड बनवाते ही होगे तो उसमे बिना काट छाट के भी महाराजा बिजली पासी या विरांगना उदा देवी की फोटो लगाये। अगर शादी का कैलेंडर बनवा रहे हैं तो बिजली पासी, उदा देवी या किसी भी पासी महापुरुष की फुल फोटो लगाये हो सके तो संक्षिप्त इतिहास के साथ प्रिंट करवाये जिससे अपने समाज के साथ साथ गैर समाज भी जाने और अपने समाज का भी मान सम्मान प्राप्त हो तथा समाज की जागरुकता बढे। 

इस तरह के कैलेंडर व शादी कार्ड कुछ लोगो ने पहले भी बनवा चुके है जो चर्चा का विषय रहा हैं 

तो दोस्तो कार्ड बनवाने की सोच रहे हो तो इस विचार को जरुर अमल करे जिससे समाज जागृत हो। 
जिस दिन पासी खुल के जीना सीख लिया उस दिन कोई आवाज नही उठायेगा मित्रो। 

जिस दिन आपने अपनी जिन्दगी को खुलकर जी लिया वही दिन आपका है,

दोस्तो जब लोग श्री नरेन्द्र मोदी तक के फोटो कार्ड मे छपवाने लगे है तो आप तो अपने राजाओं की फोटो गर्व से लगवाईये। 

कल्पना के बाद उस पर अमल जरूर करना चाहिए।

सीढिय़ों को देखते रहना ही पर्याप्त नहीं है, उन पर

चढऩा भी जरूरी है।

               – अच्छेलाल सरोज इलाहाबाद

                मो. 7800310397 

सहारनपुर जातीय दंगों का खलनायक है सांसद फूलन देवी का हत्यारा शेर सिंह राणा !


सहारनपुर। नेशनल जनमत संवाददाता 
सीन -1 . 5 मई , सुबह के नौ बज चुके हैं. सहारनपुर के शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप जयंती समारोह मनाया जा रहा है. इस समारोह के मुख्य अतिथि शेर सिंह राणा हैं. जी हां वही शेर सिंह राणा जो सांसद फूलन देवी के हत्यारे हैं. फिलहाल जेल से जमानत पर बाहर है.
समारोह में तकरीबन 1000 लोग उपस्थित हैं. इसी बीच शेर सिंह राणा के मोबाइल की घंटी बजती है और उन्हें सूचना दी जाती है कि पास के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप की शोभायात्रा निकालने को लेकर ठाकुरों और जाटवों में झगड़ा हो गया और तीन चार ठाकुर घायल हो गए है. इसके बाद शेर सिंह राणा ने मंच पर मौजूद लोगों से शब्बीरपुर चलने को कहा.
भीड़ को भड़काया राणा ने-
मंच पर मौजूद लोगों ने मना करते हुए कहा कि इससे स्थिति बिगड़ सकती है. फिर शेर सिंह राणा ने खुद माइक थामते हुए कहा कि मैं कायरों की तरह यहां बैठा नहीं रह सकता. जिसे चलना हो चले . अगर कोई नहीं जाएगा तो वो अकेला ही शब्बीरपुर जाएगा. इतना सुनते ही एक हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ शब्बीरपुर गांव की ओर चल दी. सबसे पहले इस भीड़ ने रास्ते में पड़ने वाले बाल्मीकि मंदिर को निशाना बनाया. फिर चुन-चुन कर जाटव जाति के लोगों के घरों को निशाना बनाया गया.

अगर सभी तथ्यों की सूक्ष्म पड़ताल की जाए तो ऐसा लगता है कि किसी ने सहारनपुर हिंसा की प्लानिंग बड़े ही शातिराना अंदाज में पहले ही कर ली थी. कुछ ऐसे तथ्य हैं जो इस बात का इशारा करते हैं कि सहारनपुर हिंसा एक क्षणिक आवेश की घटना नहीं थी , बल्कि इस घटना को पूरी प्लानिंग के तहत अंजाम दिया गया.
पहली बार मनाई जा रही थी महाराणा प्रताप जयंती- 
सहारनपुर के शिमलाना गांव में पहली बार महाराणा प्रताप जयंती मनाई जा रही थी. इस जयंती को इतने बड़े स्तर पर मनाया जा रहा था कि इसमें यूपी, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, एमपी जैसे राज्यों के ठाकुर समाज के लोगों को आमंत्रित किया गया. ऐसे में सवाल यह उठता है कि शिमलाना जैसे छोटे से गांव में इतने बड़े पैमाने पर कार्यक्रम को आयोजित करने के पीछे क्या मकसद हो सकता है? इस कार्यक्रम का पैसा किसने दिया. जबकि इस कार्यक्रम को करने के लिए गांव के ही ठाकुर जाति के प्रधान को विश्वास में न लेने के कारण वो नाराज है.
इसी कड़ी में दूसरा तथ्य ये भी है कि शिमलाना और आसपास के गांव में कुछ समय पहले से राजपूत रेजीमेंट बनाने के नाम पर ठाकुर जाति के युवाओं को संगठित किया जा रहा था.
इसी कड़ी में तीसरा तथ्य ये भी है कि हमलावरों की भीड़ में कुछ लोग अपने हाथों में केमीकल से भरा हुआ गुब्बारा लेकर चल रहे थे. ये गुब्बारा वो जहां पर भी मार रहे थे उससे आग लग रही थी. शब्बीरपुर में घरों में आग लगाने के लिए माचिस का इस्तेमाल नही किया गया. वहां किसी कैमिकल से ही आग लगाई गई. सीमेंट की दीवारों पर जगह -जगह कैमिकल के काले धब्बे देखे जा सकते हैं.
ऐसे में साफ है कि कोई सहारनपुर हिंसा की तैयारी पहले से कर रहा था. वरना इस तरह से कैमिकल के गुब्बारें कहां से भीड़ के पास आए. ये सहारनपुर हिंसा के प्रयोजित होने का सबसे बड़ा सबूत है.
इसके अलावा गांव में केवल जाटव जाति के ही लोगों के घर जलाए गए. जबकि जाटव जाति के लोगों के घरों के पास ही नाई,धोबी,और बाल्मीकि जाति के लोगों के भी घर हैं, उन घरों को हिंसक भीड़ ने नहीं जलाया. इन तथ्यों से साफ है कि सहारनपुर हिंसा पहले से जाटव जाति से खुन्नस निकालने के लिए रची गई थी.
ये सारे सबूत इस बात के लिए इशारा करते हैं कि इस हिंसा का सूत्रधार कोई और नहीं बल्कि फूलन देवी का हत्यारा शेर सिंह राणा ही है . पर हैरत की बात है कि पुलिस इस हिंसा में उसका नाम तक लेने से बचती दिख रही है.
साभार फारवर्ड प्रेस 

ताड़ के पेड़ से गिरकर एक शम्भू की मौत ।


बिहार /तिलौथू रोहतास 
  प्रखंड क्षेत्र के सरैया निवासी शम्भू चौधरी की मौत तुतही स्थित फारुखगंज में ताड़ के पेड़ पर से गिर जाने के कारण हो गई। गौरतलब हो कि सरैंया निवासी दयाल चौधरी का 35 वर्षीय पुत्र शंभू चौधरी प्रतिदिन की भाँति गुरूवार की शाम सात बजे रोजगार के लिए ताड़ चढ़ने गया था। मृतक शंभू चौधरी ताड़ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच गया था फिर वह ताड़ी उतारने के लिए ताड़ के पत्तों (खगड़ा) को पकड़ ऊपर बैठना चाहता था तबतक ताड़ का डंठल उखड़ गया और वह नीचे चला आया जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई। राहगीरों ने इसकी सूचना परिजनों को दी।दयाल चौधरी का पूरा परिवार ताड़ी के व्यवसाय पर ही निभर्र है। मृतक शंभू चौधरी की पत्नी पुष्पा (30 वर्ष) अपने तीन नाबालिग बच्चों को गोद में लिए अपने किस्मत को कोस रही थी तो कभी कभी फ़फ़क फ़फ़क कर रो पड़ती थी। मृतक के दो नाबालिग बेटे और एक दुधमुंही बच्ची भी है वहीं वृद्ध पिता दयाल चौधरी को बुढ़ापे की लाठी छीन जाने का गम तो है ही साथ में उन्हें बच्चे और बहु की जिंदगी कैसे पार लगेगी ईस बात की चिंता ज़्यादा सता रही है। दयाल चौधरी के तीन बेटों में मृतक शंभू मांझील बेटा था। वहीं ईश घटना के आहत सरैंया निवासी अखिल भारतीय पासी समाज संघ के तिलौथू प्रखंड अध्यक्ष सूरज चौधरी, सचिव विनोद चौधरी, नरेश चौधरी, राजेंद्र चौधरी व नकुल चौधरी ने सरकार से पासी समाज के लिए नीरा के लाइसेंस के साथ साथ जीवन बीमा भी कराने का मांग किया है। हालाँकि पीड़ित परिवार को अभी तक न किसी सरकारी पदाधिकारी द्वारा सहयोग राशि ही प्रदान की गई है और न ही कोई जनप्रतिनिधियों ने सुध लिया है।

बहराईच में हत्यारे सालार ग़ाज़ी की मजार की जगह मंदिर बनाने की मांग पर योगी सहमति और हिन्दू धर्म रक्षक महाराजा सुहेलदेव पासी की प्रतिमा भी लगाये जाने का प्रस्ताव। 

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने विश्व हिंदू परिषद की उस मांग का समर्थन किया है, जिसमें वीएचपी ने बहराइच में सालार गाज़ी की मजार/दरगाह की जगह सूर्य मंदिर का निर्माण करने की बात की गई थी। वीएचपी ने

 इसके अलावा जिले में एक स्मारक बनाने की मांग भी की थी। 

वीएचपी की तरफ से काफी समय से राजा सुहेलदेव की याद में फिर से सूर्य मंदिर निर्माण की मांग की जा रही है। 
योगी आदित्यनथ ने कहा है की वो विहिप की मांग से बिलकुल सहमत है, और जल्द ही इस दिशा में कुछ कार्य किया जायेगा 

अब बताते है हमे ये बहराइच में ग़ाज़ी बाबा की मजार क्या है, इसे ध्यान से पढियेगा 
अपने सोमनाथ मंदिर तोड़ने वाले ग़ज़नी का नाम तो सुना होगा, जिसने भारत पर कई  हमले किये, लूट कर अपने देश ले गया 

जबतक वो ज़िंदा रहा वो भारत को बराबर लूटने आता रहा, और अपने इलाके में जाकर भारत कितना धनि है बताता रहा, पर उसने किसी और को भारत में लूट के लिए आने नहीं दिया, गज़नी भारत को लूटने के मकसद से आता था, लूट कर जाता था 
गज़नी की मौत के बाद उसके मामा सालार ग़ाज़ी को भारत में हमला करने का मौका मिला, उसने अपने भांजे गज़नी से भारत के बारे में काफी चीजें सुन रखी थी 

पर सालार ग़ाज़ी सिर्फ भारत को लूटना नहीं चाहता था, बल्कि वो भारत को दारुल इस्लाम बनाना चाहता था, उसका मकसद लूट के अलावा भारत को इस्लामिक देश  बनाने का था 
 सालार ग़ाज़ी लगभग 2 लाख की सेना लेकर भारत पर हमला करने आया और हमला करते करते उत्तर प्रदेश के बहराइच तक पहुँच गया 

बहराइच तक पहुँचते पहुँचते उसने 10 लाख हिन्दुओ का कत्लेआम किया, उसकी सेना भी 2 लाख से 1 लाख की हो गयी 

बहराइच में कैंप लगाने के बाद  सालार ग़ाज़ी अयोध्या पर हमला  करना चाहता था, पर वो अयोध्या तक नहीं पहुँच सका, ये घटना 11वी सदी की है 
बहराइच में जब  सालार ग़ाज़ी ने कैंप लगाया तो वहां पास के हिन्दू राजा सुहेलदेव को उसने  घुटने टेकने के लिए कहा 

पर सुहेलदेव पासी ने इंकार कर दिया और सुहेलदेव ने आसपास के 16 हिन्दू राजाओं से बात की, और उनको बताया की अगर अभी हम एक नहीं हुए तो  सालार ग़ाज़ी अयोध्या को नष्ट कर देगा 
इस्लामिक हमलावरों ने 7वी सदी से ही भारत के खिलाफ हमला करना शुरू किया था 

ये पहले मामला था की सुहेलदेव ने अनेक हिन्दू राजाओं को एक कर दिया 
बहराइच में  सालार ग़ाज़ी के खिलाफ 16 हिन्दू राजा लड़े और इस बार हिन्दुओ ने करुणा को बिलकुल छोड़ दिया 

युद्ध ऐसा हुआ की  सालार ग़ाज़ी की सेना के 1-1 सैनिक को मौत के घाट उतार दिया, सुहेलदेव पासी ने  सालार ग़ाज़ी को चीर कर रख दिया 

पर हिन्दू संस्कृति के कारण, सुहेलदेव ने सभी को दफनवा दिया 

जहाँ  सालार ग़ाज़ी को दफनाया गया बाद में इसी स्थान पर फिरोजशाह तुगलक आया 

और उसने  सालार ग़ाज़ी की कब्र को पक्की करवा दिया, फिर बाद में मुग़ल इत्यादि आये और सालार ग़ाज़ी की कब्र पर देखते ही देखते बहराइच में ग़ाज़ी बाबा की मजार बन गयी 
और मूढ़ हिन्दू यहाँ बड़े पैमाने पर आज भी जाते है 

विश्व हिन्दू परिषद् हमेशा से ही सालार ग़ाज़ी की कब्र यानि जो आज बहराइच में दरगाह है वहां सूर्य मंदिर बनाने की मांग करी और 

आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मांग का समर्थन किया  

सूर्य मंदिर के साथ साथ इस स्थान पर सुहेलदेव पासी की प्रतिमा भी लगाने का प्रस्ताव है। दोस्तो शेयर जरुर करे – अच्छेलाल सरोज इलाहाबाद  http://www.dainikbharat.org/2017/05/blog-post_558.html?m=1

बिजनेस या नौकरी बेहतर कौन  ? 

बिजनेस या नौकरी क्या है बेहतर ?
सतहरिया जौनपुर रोड पर जीतलाल पासी की एक समोसे की दुकान थी। जीतलाल बड़े सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका एक बेटा भी था, दुकान के एक कोने पर जीतलाल समोसे तलते रहते और दूसरे कोने पर उनका बेटा पैसे लेने देने का हिसाब करता था।
दुकान के सामने एक बड़ी सॉफ्टवेर कंपनी थी। कंपनी में दोपहर को जब लंच का समय होता तो कंपनी के लोग अक्सर जीतलाल की दुकान पर समोसे खाने आते थे। हुआ यूँ कि एक दिन कंपनी के मैनेजर महेन्द्र बाबू समोसे खाने आये।
खाते खाते महेन्द्र बाबू को कुछ मजाक सुझा और वो जीतलाल पासी से बोले – भाई समोसे तो आप बहुत ही बढ़िया बनाते हो और दुकान भी आपकी काफी अच्छी चलती है लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि ये समोसे बेचकर तुम अपना कीमती वक्त खराब कर रहे हो।
अगर थोड़ा और पढ़ लेते, थोड़ी और मेहनत करते तो मेरी तरह कहीं मैनेजर होते और ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे होते। जीतलाल बेचारा सरल स्वभाव का आदमी था वो बोला – मैनेजर साहब आपके और मेरे इस काम में बहुत बड़ा फर्क है।
आगे जीतलाल पासी बोले – आपको याद होगा आज से करीब 10 साल पहले आप इस कंपनी में एक जूनियर के पद पर आये थे। उन दिनों आपकी पगार 10 हजार रूपये महीना थी। मेरे पास तब दुकान तो थी नहीं तो मैं उन दिनों टोकरी में समोसे बेचा करता था और मेरी कमाई करीब 1 हजार रुपये महीना थी।
आज 10 साल बाद आप मैनेजर बन गए और आपकी पगार है 50 हजार। मेरी अब अपनी दुकान है और मेरी कमाई है 2 लाख प्रति माह। लेकिन चलिए पैसा ही सब कुछ नहीं होता। आपने अपने जीवन में जो मेहनत की है वो आपके बेटे के काम नहीं आएगी वो आपके मालिक के बच्चों के काम आएगी।
जब मेरा बेटा बड़ा होगा तो वो मेरी दुकान को संभालेगा और उसे कोई संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। मैंने मेहनत करके अपनी दुकान को बड़ा बनाया है और ये सब मेरे बेटे को मिलेगा वो आराम से मेरा बिजनिस आगे बढ़ाएगा।
लेकिन आप तो अपने बेटे को सीधा मैनेजर पद पर नहीं बिठा सकते। आपके बेटे तो फिर से वही जूनियर पद से मेहनत करनी पड़ेगी जो आपने की है, आपकी मेहनत का उसे ज्यादा फायदा नहीं मिल पायेगा।
झेंपे से महेन्द्र बाबू बिना कुछ बोले समोसे के पैसे देकर वापस कंपनी रवाना हो लिए।
दोस्तों इस कहानी में नौकरी और बिजनेस की एक तर्कसंगत तुलना किया हू । हम ये नहीं कहते कि नौकरी करना बुरा है, दरअसल नौकरी भी अच्छी है और अच्छाई बुराई तो हर काम में होती है लेकिन बिजनेस नौकरी से कैसे उत्तम है ये बात हमने कही है। 

साथियो जो नौकरी नही पा रहे है तो बिना समय बर्बाद किये बिजनेस पर ध्यान लगाये। पासी सत्ता पत्रिका के लिंक पर जा कर अपना कीमती कमेंट हमें लिख कर भेजिए। आपके कमेंट हमें और अच्छा लिखने को उत्साहित करते हैं। धन्यवाद!!!

अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद                   7800310397

जिदंगी – जियो तो हर पल ऐसे जियो जैसे कि आखिरी हो !


नीरज पासी की इलाहबाद में एक छोटी सी दुकान थी। उसी दुकान में नीरज साइबर कैफे चलाता था। नीरज की शादी को अब 10 साल पूरे हो चुके थे, साथ ही एक बच्चा भी था लेकिन जिंदगी में अब पहले जैसी रौनक नहीं थी। सुबह उठो, बस लग जाओ पैसे कमाने में। जिंदगी अब बहुत व्यस्त हो चली थी।
एक दिन नीरज पासी जब दुकान पर गया तो सोचा कि आज मैं शाम को थोड़ा जल्दी घर जाऊँगा। रोजाना नीरज 10 बजे दुकान बंद करता था लेकिन आज 7 बजे ही दुकान बंद करके चल दिया। मन में सोच रहा था कि आज पत्नी से खूब बातें करूँगा फिर खाना खाने बाहर जायेंगे थोड़ा मन भी बहल जायेगा।
नीरज जब घर पहुँचा तो श्रीमति उनको देखकर बड़ी खुश हुईं। उस समय श्रीमती टीवी पर एक सीरियल देख रही थीं। पासी नीरज ने सोचा कि जब तक ये सीरियल खत्म हो, क्यों ना कम्प्यूटर पर मेल चेक कर लिए जाएँ। बस यही सोचकर नीरज कम्प्यूटर खोल कर बैठ गया, थोड़ी ही देर में श्रीमति ने टेबल पर ही चाय भी ला दी। नीरज चाय पीता हुआ दुकान का कुछ काम करने लगा। मन में बहुत ख़ुशी थी कि अभी थोड़ी देर में बीवी से बात करूँगा और खाना खाने बाहर जायेंगे।
टेबल पर काम करते करते समय का पता ही नहीं चला और 8 से 11 बज गए। श्रीमती ने सोचा कि पतिदेव भूखे होंगे तो टेबल पर ही खाना भी लगा दिया। नीरज ने जब घड़ी में 11 बजते देखा तो सोचा चलो खाना खा लेते हैं फिर थोड़ी देर नीचे पार्क में घूमने चलेंगे।
खाना खाते रहे इसी बीच एक मजेदार सीरियल आने लगा बस नीरज थोड़ी देर सीरियल देखने लगा और सीरियल में ऐसा खोया कि वहीँ सोफे पर ही सो गया। अचानक थोड़ी देर में आँखें खुलीं तो आधी रात हो चुकी थी। श्रीमती भी बैडरूम में आराम से सो चुकी थीं।
मन में बहुत ज्यादा अफ़सोस हुआ कि मैं क्या सोच के आया था कि आज गपशप करेंगे और खाना खाने बाहर चलेंगे लेकिन समय ही नहीं मिला।
दोस्तों हमारी भागदौड़ भरी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही हो चुकी है। हम सुबह उठते हैं और बस लग जाते हैं जिंदगी की दौड़ में, थोड़े पैसे कमाने हैं, भविष्य को बेहतर बनाना है। वो भविष्य जो कभी आता ही नहीं है, हम आज भी वर्तमान में जी रहे हैं और कल भी वर्तमान में ही जीएंगे। केवल यही समय हमारे पास है जिसमें हम अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं। ना बीते समय पर आपका अधिकार है और नाही आने वाले समय पर लेकिन वर्तमान पर आपका पूरा अधिकार है। जिंदगी जी भर के जियो यारों, क्या पता कल हो ना हो….
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    – अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद 

मो. 7800310397