“मेरा देश बदल रहा है”एक दलित परिवार ने शादी के कार्ड पर गणेश की जगह अम्बेडकर की लगवाई फ़ोटो

इलाहाबाद। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम की शुरुआत भगवान श्री गणेश के नाम के साथ की जाती है। शादी हो या मुंडन आमंत्रण पद में हमेशा भगवान गणेश की फोटो लगाई जाती है। लेकिन इलाहाबाद में एक पिता ने अपनी बेटी की शादी का कार्ड अनोखे तरीके से छपवाया।

इलाहाबाद के एक दलित परिवार ने कुछ नया करते हुए अपनी बेटी की शादी का जो आमंत्रण कार्ड छपवाया उसमें भगवान गणेश की तस्वीर की जगह बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर लगवाई। शादी के कार्ड के पहले पन्ने पर भगवान की जगह भीमराव अंबेडकर की फोटो लगी है और श्लोक की जगह बुद्धवाणी लिखवाई।

इलाहाबाद के अमौरा गांव के ग्राम प्रधान हिंचलाल ने अपनी बेटी खुशबू की शादी में जो आमंत्रण कार्ड छपवाया उसमें भगवान गणेश जी की जगह भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर लगाई।


उनका कहना है जिसने उनका उत्थान किया वही उनके यहां भगवान का दर्जा पा सकता है। परिवारवालों का कहना है कि दलित होने के नाते आज समाज में जिनती भी उनकी भागीदारी है वह केवल बाबा साहब की देन हैंइसलिए वो हमारे लिए भगवान के समान है। हिचलाल के परिवार का कहना है उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है। हमें अपने फैसले पर गर्व है।

जौनपुर बस हादसा : लाशो के ढेर मेें जिगर के टुकड़े को ढ़ूढती रही मां

ब्यूरो, श्रीपासी सत्ता , जौनपुर

Updated Thu, 15 Jun 2017 10:55 AM IST

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बस हादसे के बाद का मंजर, अपनों की तलाश करती मांPC: श्रीपासी सत्ता 

जौनपुर बस हादसे के बाद वहां का मंजर बेहद भयानक था। हर तरफ चीख पुकार मची थी। बस में जिंदा बचे लोग अपने साथियों को ढ़ूढ़ रहे थे। वहीं एक घायल महिला अपने दर्द को भूल अपने जिगर के टुकड़े की तलाश कर रही थी।

पूछने पर बताया कि वह पति और बच्चे को तलाश रही है। इलाहाबाद मार्ग पर दोपहर डेढ़ बजे सई नदी के बरगुदर पुल पर हुई दुर्घटना में घायल बंजारेपुर गौराबादशाहपुर निवासी रीना के पति की मौत हो गई वहीं बच्चे घायल हो गए।

बस खाई में गिरने से रीना के बाएं पैर में फ्रैक्चर हो गया। उसके पति रवि (40) की मौत हो गई। जबकि तीन बच्चे बेटे विपिन (7), बेटी अनुराधा (5) और बेटा पवन (5) भी घायल हो गए। घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

रीना ने बताया कि वह अपने पति रवि और तीनों बच्चों के साथ अपनी बहन के यहां इलाहाबाद में शादी में शामिल होने गई थी । वहां से वह रोडवेज बस से लौट रही थी कि अचानक हादसे का शिकार हो गई। घायल होने के बाद तीनों को अलग-अलग वार्ड में भर्ती कराया गया है।

घायल रीना बार-बार अपने पति और तीनों बच्चों को खोज रही थी। घायलों का उपचार कर रहे स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक बार-बार यही कह कहकर टाल दे रहे थे कि उसके पति और तीनों बच्चों सुरक्षित है। सभी का उपचार चल रहा है।

रीना आसपास की बेड पर घायलों की तरफ बार बार उठकर देख रही थी। दर्द से कराहने के बाद भी उसकी एक ही रट थी कहां हैं मेरे पति और मेरे बच्चे। उसके इस क्रंदन से आसपास के लोग भी द्रवित दिखे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जौनपुर में सई नदी में रोडवेज बस गिरने से 8 यात्रियों की मृत्यु पर गहरा दुख जताया है।

उन्होंने शोक संतृप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की है।

सभी मृतक आश्रितों को मिलेगा पांच-पांच लाख का मुआवजा। 

महाराजा सुहेलदेव पासी  के पराक्रम की कथा। 

महमूद  गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका  भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़  आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा  पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया,लाखों हिंदू  औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले। राह में उसे एक भी  ऐसाहिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी  को रोक सके। बहराइच अयोध्या के पास है के राजा सुहेल देव पासी अपनी सेना  के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे । महाराजा व  हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला  । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया।  हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार  गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया। कुछ समय पश्चात् तुगलक  वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही  घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी।आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों  के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है।  आज वहा बहराइच में उसकी मजार पर हर साल उर्स लगता हँ और उस हिन्दुओ के  हत्यारे की मजार पर सबसे ज्यादा हिन्दू ही जाते हँ

क्या कहा जाए ऐसे हिन्दुओ को…………?

सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है। हिंदू वीर शिरोमणि सुहेल देव  पासी सिर्फ़ पासी समाज का हीरो बनकर रह गएँ है। और सलार गाजी हिन्दुओं का  भगवन बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है।

महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम की कथा कुछ इस प्रकार से है –

1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि  से 17 बार आक्रमण किया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध  मंदिरों को लूटने में सफल रहा। सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्जे  सैयद सालार मसूद गाजी ने भी भाग लिया था। 1030 ई. में महमूद गजनबी की  मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने की जिम्मेदारी मसूद  ने अपने कंधो पर ली लेकिन 10 जून, 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां के  शासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया।  इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में  व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को  भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

ऐतिहासिक सूत्रों के  अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी  जिसका प्रारंभिक नाम भरवाइच था। इसी कारण इन्हे बहराइच नरेश के नाम से भी  संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की बसंत पंचमी  के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा  गया। अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया  गया है। वे जाति के पासी थे, राजभर अथवा जैन, इस पर सभी एकमत नही हैं।  महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर  तक फैला हुआ था। गोंडा बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य  की सीमा के अंतर्गत समाहित थे। इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी  पासी राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब  3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6. मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल 10. जयपाल 11.  श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू 15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18.  नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21. कल्याण ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल  देव के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने के लिए  तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव के दो भाई बहरदेव व मल्लदेव  भी थे जो अपने भाई के ही समान वीर थे। तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते  थे। महमूद गजनवी की मृत्य के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक  बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली  पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर  रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालार सैफुद्ीन,  अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह  आदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर  युद्व प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस  लड़ाई के दौरान राय महीपाल व राय हरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर  गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट  गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन उनकी  वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा  उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी  हुई। कन्नौज का शासक भी मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को  अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं  भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजा गया तथा स्वयं  सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसार  सतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था। एक किवदंती के  अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात  ॠषियों का स्थान था, इसीलिए इस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे  सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद,  अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयद इब्राहीम बारा  हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त  मोहम्मद सरदार को राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम  बाराहजारी जिधर से गुजरते गैर मुसलमानों का बचना मुस्किल था। बचता वही था  जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। आइनये मसूदी के अनुसार – निशान सतरिख से  लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिला बाराहजारी का मिला जो  राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़ लिया  बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े  लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों  इब्राहीम बाराहजारी मारा गया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा  भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूद के पास भेजा कि वह विष से बुझी  नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो  जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल  बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के  राजाओं को संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम  अपनी ओर से। इस प्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु  संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदी बना लिए गए। इन संदेशवाहकों  में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गया लेकिन नाई  को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक  बडी सेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व  भोजपत्र बडी वीरता से लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर  सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयद सालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार  सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जब बहराइज के राजाओं को इस बात का  पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस पर सालार मसूद उसकी  सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहू का निधन  हो गया।

बहराइच के पासी राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में  सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर  प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद  पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा  प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क  ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से  मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था।  सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण – राजा  रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल,  हरपाल, हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो  गये। ये राजा गण बहराइच शहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला  नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही  रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की  नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती  हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के  अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी  रहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू  सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया।  उन्होने राजा सुहेलदेव के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी  कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम  यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी  चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन  इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए।  भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो  बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा  सुहेलदेव के नेतृत्व में निर्णायक लड़ार्ऌ हेतु तैयार हो गई। कहते है इस  युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ार्ऌ मे सम्मिलित  हुए। महाराजा सुहेलदेव के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था।  लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था।  जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व (मैमना) की  कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को  सौपा तथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण  करने का आदेश दिया। इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को  छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा  सुहेलदेव की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति  इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी  पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार  मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत  यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई। अब भारतीय  सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया  जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर कहा था। उसने सालार मसूद को धेर लिया।  इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढे भयकर युद्व  हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी  समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है। शाम हो  जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई। 10  जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद  गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी  धोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका।  राजा सुहेलदेव ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष  द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे उसका  प्राणांत हो गया। इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार  इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया। सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी  डेढ़ लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव ने  विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे  विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर  सके। संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी  पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है।

 – अच्छेलाल सरोज 

जब सोचना ही है तो बडा सोचे। 

किसी गाँव में एक गरीब लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। बेचारे परिवार वालों ने बड़ी मुश्किल से उसे पढ़ाया ग्रेजुएशन कराया लेकिन देश में बढ़ती बेरोजगारी की वजह से बेचारे को नौकरी नहीं मिली घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं बन पाती थी। एक बार वह लड़का ट्रेन से शहर में इंटरव्यू देने जा रहा था। उसके पास खाने को कुछ खास नहीं था। एक छोटे से टिफिन में चार रोटी थीं और सब्जी तो थी ही नहीं।

ट्रेन अपनी रफ़्तार से जा रही थी। लड़के को भूख लगी तो उसने अपना टिफिन खोला जिसमें केवल रोटियां थीं। उसने टिफिन से रोटियां बाहर निकलीं और रोटी का टुकड़ा तोड़कर टिफिन में ऐसे अंदर डाला जैसे उस टिफिन में सब्जी है और फिर वो रोटी का टुकड़ा खाने लगा। पास में एक आदमी ने देखा तो उसे बड़ा अजीब लगा। 

उस लड़के ने फिर एक टुकड़ा रोटी का लेकर टिफिन में ऐसे डाला जैसे टिफिन में सब्जी है और फिर रोटी खाने लगा। अब कुछ लोग उसकी इस हरकत को देख कर हैरान हो रहे थे कि टिफिन तो खाली है लेकिन फिर भी ये बार बार ऐसे क्यों कर रहा है जैसे सब्जी से रोटी खा रहा हो।

इतने में एक आदमी से रहा नहीं गया तो उसने उस लड़के से पूछ ही लिया कि भइया आपका टिफिन तो खाली है फिर टुकड़ा डालकर ऐसे क्यों खा रहे हो ?

वो लड़का बोला मुझे पता है कि ये टिफिन खाली है लेकिन मैंने ये सोचा हुआ है कि इस टिफिन में अचार है और मैं अचार से रोटी खा रहा हूँ।

फिर उस आदमी ने पूछा कि ऐसे करने से क्या आपको अचार का स्वाद आ रहा है, तो वो लड़का बोला – हाँ मुझे अचार का स्वाद आ रहा है, मुझे ये रोटी स्वाटिष्ट लग रही है क्योंकि सोचने से ही मुझे अचार का स्वाद आ रहा है।

इतने में पीछे से किसी व्यक्ति ने आवाज लगायी – अरे भाई जब सोचना ही था तो मटर पनीर या शाही पनीर सोचते, कम से कम पनीर का तो स्वाद आ जाता, ये सुनते ही आस पास बैठे सभी यात्री हंस पड़े  

सही ही तो कहा उस व्यक्ति ने, अरे जब सोचना ही है तो बड़ा सोचो, छोटा सोच कर क्या फायदा ?

दोस्तों अब्दुल कलाम जी ने कहा है कि जब भी सोचो बड़ा सोचो क्योंकि बड़ा सोचने वालों के सपने पूरे हुआ करते हैं। हम रोजाना बहुत सी बातें सीखते हैं, पढ़ते हैं, देखते हैं और सोचते हैं और भाई जब सोचना ही है तो बड़ा सोचो ना।

ये केवल एक किस्सा नहीं है बल्कि एक जादुई ट्रिक भी है आप बड़ा सोचिये फिर देखिये आपको रिजल्ट भी बड़े मिलने चालू हो जायेंगे।

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बिहार:-रिश्वत लेकर अम्बेडकर पुस्कालय की जमीन CO ने सामन्तवादी के नाम की


बिहार :- नवादा जिले के रोह प्रखण्ड में अम्बेडकर पुस्कालय की जमीन प्रखंड के CO अमरेश कुमार पासवान ने गलत मापी करवा के रोह के ही दुलारचन्द साव को दुकान बनाने का आदेश दिया ।इस से पूर्व स्थानीय विधायका श्रीमति पूर्णिमा यादव ने अम्बेडकर पुस्कालय के लिये 10 लाख रुपये आवंटित किये थे।दुलारचन्द साव के हस्तेक्षेप के कारण पुस्कालय की योजना पर संकट आ गया ।

स्थानीय समाजसेवी सरोज चौधरी ने इस मामले को जन लोक शिकायत तक पहुचाया। शिकायत संख्या999960113061705350 की सुनवाई 21/6/2017 को CO अमरेश कुमार पासवान बनाम सरोज चौधरी होनी है 

सरोज चौधरी के अनुसार खाता संख्या 1398 प्लॉट संख्या 3469 है वो जमीन अम्बेडकर पुस्तकालय के नाम पर है ।जिसे CO अमरेश कुमार पासवान ने बिना चिन्हित किय ।दुलारचंद साव को दुनका बनाना का आदेश असंवैधानिक तरीके से दे दी ।

 

मीना देवी पासी के घर रात में धावा बोलने वाले दबंग भू माफियाओं पर कार्यवाही क्यो नही ?


इलाहाबाद ब्यूरो /सरायइनायत थाना के समाने ही विधवा महिला मीना देवी अपने विकलांग बच्चों के साथ रहती है । इसी स्थान पर इनकी कई पीढ़िया गुजर गई । वर्षो पुराना कच्चा मकान जर्जर हो गया है। कब ढह जाए कुछ पता नही । पिछले कई महीनों से इसी चिंता में मीना देवी परेशान थीं  कि स्थानीय ग्राम प्रधान ने उसकी इस समस्या के  समाधान के लिए उसे एक कॉलोनी प्रस्तावित कराया जो मंजूर हो गई। कलोनी मिलते ही उसके सपनों में एक उम्मीद जगी कि उसके बच्चे भी अब पक्के मकान में रह सकेंगे । 
लेकिन मीना देवी को क्या पता था कि गांव के ही पूँजीपति किस्म के दबंगो की निगाह उसकी जमीन पर है । 6 जून की रात जब मीना अपने बच्चों के लिए  अपने घर मे खाना बना रही थीं कि अचानक यूपी पुलिस की 100 डायल वाली बोलोरो गाड़ी चमकते हुए उनके दरवाजे पंहुची उसके साथ मे एक सफारी स्टॉर्म भी थे जिसमें गांव के वहीं दबंग भू माफ़िया अविनाश जायसवाल ,गणेश ,सोनू उतरे और बाहर बैठे विकलांग बालक रोहित को लात घूंसों से पीटने लगे आवाज सुनकर मीना बाहर आई तो देखा कि उसके विकलांग बेटे को लोग बेहरमी से पीट रहे है । मीना शोर मचाने लगी तो दबंगो ने उसे भी जातिसूचक गालिया देते हुए पीटने लगे बोले कि जितनी जल्दी हो सके यह घर छोड़कर भाग जाओ वरना जिंदा जला दिए जाओगी । 

 रोजी रोटी बचाओ संग़ठन की नेता अनु सिंह , नीरज पासी ने लोगो के साथ इस मामले को लेकर आज जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन करके ज्ञापन दिया और दबंगो पर जल्द कार्यवाही की मांग की है । नीरज पासी ने बताया कि इन दबंग भूमाफियाओ पर उपजिलाधिकारी द्वरा ग्राम सभा की जमीनों पर कब्जा करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई है । लेकिन पुलिस अब तक इन्हें गिफ्तार नही कर रही है ।

 
धरने के समर्थन करने पंहुचे संपादक अजय प्रकाश सरोज ने कहा कि योगी सरकार में भू- माफ़ियाओ के हौशले बुलन्द है वे पट्टे पर ग्राम सभा की जमीनों पर रह रहें दलितों को बेदखल करने के कामों में लगे है । ऐसे लोगो के खिलाफ़ आवाज़ उठाया जाता रहेगा । धर्मेन्द्र कुमार भारतीय , राम सागर सिंह,ग्राम प्रधान अंतिम यादव, लल्ला यादव , सहित पीड़िता मीना देवी , राधा देवी आदि बड़ी संख्या में महिलाए उपस्थित रहीं 


महाराजा सुहेलदेव पासी को जबरदस्ती अपनाने की कोशिश में है राजभर समाज के लोग

आजकल यूपी में श्रावस्ती बहराइच के पासी महाराजा सुहेलदेव पासी को राजभर लोग अपना बताने की नाकाम कोशिश में लगे हुए है लेकिन राजभर लोग सच्चाई का सामना नही करना चाहते बल्कि जबरदस्ती और आधारहीन तर्क दे रहे है की महाराजा सुहेलदेव पासी पासी नही राजभर थे । जबकि इतिहास में साफ साफ़ दर्ज है की राजभर , खटीक , बेलछा, ब्याध और राजपासी सब एक ही पासी परिवार के अंग है ।

(गजेटियर आफ दी प्राविन्‍स आफ अवध वाल्‍यूम 2, 1877, पृष्ठ संख्या 355)

उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग और एनसीआरईटी की पुस्तक में भी महाराजा सुहेलदेव पासी के पासी होने का ही जिक्र है ।

लेकिन इन सब तमाम सबूतो को धता बताकर यूपी के मात्र 2.5% राजभर वोटर्स और सरकार में उनके 4 विधायक और कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर महाराजा सुहेलदेव पासी को राजभर बताने पर तुले हुए है । कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के उस बयान से पासी समाज में काफी आक्रोश है जिसमे उन्होंने महाराजा सुहेलदेव पासी को राजभर बताया है ये वही ओमप्रकाश राजभर है जो कभी महाराजा सुहेलदेव पासी को पासी बताया करते थे और उनकी प्रतिमा लगाने की बात करते थे । उनके बयान को लेकर पासी समाज के तमाम संगठनो की सभा 10 जून को पासी विजय दिवस के दिन की गयी तथा ओमप्रकाश राजभर के बयान की निंदा की गयी तथा उनके बयान वापस न लेने की स्थिति में आंदोलन करने की रणनीति बनायीं गयी । राजभर लोग सीएम योगी के बयान को भी मूर्खो वाला बयांन बता रहे है तथा सोशल मीडिया पर उन्हें पागल तक बोल रहे है । लेकिन सच्चाई तो सच्चाई है की महाराजा सुहेलदेव पासी ही थे इस सच्चाई का सामना राजभर लोगो को करना चाहिए क्योंकि राजभर पासी जाती की ही उपजाति है सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते राजभर लोग पिछड़ा वर्ग में शामिल हो गए है और अब वे लोग पासी महाराजाओ को हाईजैक करने की कोशिश में है ।

                           अमित कुमार 

                          दिनारा रोहतास बिहार

पासी समाज के महापुरुषों के नाम से छेड़छाड़ मान्य नहीं

देश में महापुरुषों के इतिहास के साथ हमेशा छेड़छाड़ की घटनाएं हमेशा होती रही हैं।इसी कड़ी में पासी समाज से सम्बन्ध रखने वाले महाराजा सुहेल देव पासी के इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा रही है।कुछ जाति विशेष के लोग उन्हें राजभर जाति से जोड़ने पर तुले हुए हैं।जो उनकी मानसिकता को प्रदर्शित करता हैं।वैसे तो महाराजा सुहेल देव पासी सभी समाज के माननीय महाराजा रहे हैं।सभी समाज के लोग उनके ऊपर गर्व करते है।सलार गाजी के साथ हुए जंग में सलार गाजी को मारकर और उसके ऊपर विजय की गाथा पूरे देश में गाई जाती है।लेकिन पासी जाति से सम्बन्ध रखने के कारण पासियों का उनके ऊपर गर्व करना स्वाभाविक हैं।बहुत समय पहले राजभर और पासी एकदूसरे के बहुत नजदीक रहे है।लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियां राजभर और पासी को अलग अलग कर के देख रही हैं।उनमें आपस में वैमस्यता फैलाने की और लड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है।उसी कड़ी में महाराजा सुहेल देव पासी को महा राजा सुहेल देव राजभर के नाम से प्रचारित करने की कोशिश कर रही हैं।और राजभर वन्धुओ क भड़का कर पासियों से लड़ाने की पूरी कोशिश कर रही हैं।जो ठीक नहीं है।पासी समाज इसका पुरजोर विरोध करता हैं।अभी योगी जी के निर्णय से पूरे पासी समाज में खुशी की लहर हैं कि स्कूलों के पाठ्य क्रम में महाराजा सुहेल देव पासी की वीर गाथा के बारे में बच्चों को पढ़ाया जायेगा।इस उद्घोषणा से पासी समाज योगी जी को बधाई देता हैं।और महाराजा सुहेल देव पासी के नाम के साथ किसी भी तरह के छेड़छाड़ का पुरजोर विरोध करता हैं।पासी समाज में इस तरह के छेड़छाड़ के विरोध में लोग संवैधानिक तरीके से विरोध जताने के लिए तैयार है। जय महाराजा सुहेल देव पासी।जय माँ विरांगना ऊदा देवी पासी।जय भीम । एस आर भारतीया

पासी समाज के विभिन्न संगठनो ने मनाया महाराजा सुहेलदेव पासी का विजयोउत्सव। 

आज दिनांक १० जून दिन शनिवार को पडिला महादेव मंदिर स्थित पासी धर्म शाला मे पासी समाज के बुद्धिजीवियों और नवयुवकों की हिन्दू राष्ट्र रक्षक महाराजा सुहेलदेव पासी की विजय दिवस के अवसर पर भारतीय जनता पार्टी के  कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के उस बयान की निंदा और आक्रोश व्यक्त किया गया जिसमे उन्होंने राजा सुहेलदेव पासी को राजभर बताया था जबकि वही माननीय लगातार कई वर्षों से राजा सुहेलदेव पासी नाम से समारोह करवाते चले आ रहे हैं और पाठ्यक्रम मे शामिल करने की बात भी कह रहे हैं अगर कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर जी ने अपना बयान वापस नही लिया तो पासी समाज के नवयुवकों ने उग्र आंदोलन की चेतावनी देते हुए सरकार को कहा कि सडको पर उतरने के लिये विवश होगे बैठक में शामिल अपना दल विधायक जमुना प्रसाद सरोज ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने का अश्वासन दिया।



इस मौके पर नरेन्द्र पासी, नीरज पासी, अच्छेलाल सरोज, शुभाष पासी, और अजीत पासी आदि सैकडों पासी समाज के लोग शामिल हुए।

आज के दिन 10 जून  को महाराजा सुहलदेव पासी ने मुस्लिम आक्रांता  मुहम्मद मसूद  सलार गाजी व  उसके  डेढ लाख सैनिको को मार कर हिन्दुस्तान को लुटने से बचाया था  इस उपल्क्षय में जन नायक मदारी पासी जागृति मंच ने  आज केन्द्रीय कार्यालय व ग्राम लौगंहियाँ ब्लाक सुरसा में  बैठक कर समाज जागरुकता अभियान चलाकर ,विजय दिवस मनाया इस मौके पर संगठन  पदाधिकारियो के अलावा गांव के सैकड़ो लोग मौजूद रहे ।

समाज के विभिन्न संगठनो ने अमेठी व पासी पावर हरदोई पासी समाज के संगठन महाराजा सुहेलदेव पासी की विजय उत्सव मनाया, जय पासी समाज 

-अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद 

मो. 7800310397 

 

पासी प्रेमी ने जान देकर निभाया ब्राह्मण लड़की से प्रेम

चाहत थी साथ जीने की थी लेकिन जमाने को यह मंजूर नहीं था। समाज की बंदिशें इस रिश्ते के आडे आ रही थी। नतीजन प्रेमी युगल ने एसा कदम उठाने का फैसला लिया जिसके बारे में सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया। किसी मंदिर में शादी करने के बाद दोनों नए यमुना पुल पर पहुंच गए। लड़की की मांग में सिंदूर था और शरीर पर शादी का जोड़ा। दोनों हाथ पकड़कर नदी में कूद गए। लड़की तो नहीं मिली लेकिन मछुआरों ने लड़के को जिंदा निकाल लिया। वह एक घंटे तक जीवित रहा।

आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए उसने पुलिस को अपनी पूरी कहानी सुनाई। घंटे भर बाद उसने भी दम तोड़ दिया। बाद में लड़की का भी शव बरामद हो गया। इस तरह इस प्रेम कहानी का अंत हो गया। 
सराय ममरेज के बरियावा गांव के रहने वाले संजय शुक्ला कोलकाता में रहकर प्राइवेट नौकरी करते हैं। बेटी सिमरन (17) फूलपुर स्थित एक कालेज इंटर की छात्रा थी। वह अक्सर बस से कालेज आया जाया करती थी। बस का कंडक्टर संतोष भारतीय (22) बौड़ई लंका फूलपुर का रहने वाला था। करीब डेढ़ साल पहले सिमरन और संतोष में दोस्ती हो गई। दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे। 
संतोष और सिमरन की सामाजिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था। दोनों जानते थे कि इस रिश्ते को घरवाले कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे चुपके-चुपके शहर आकर मिला करते थे। लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते। दोनों के रिश्तों की भनक घर वालों को लग गई। लड़की के घर वाले आगबबूला हो गए।

उन्होंने धमकाने से लेकर पिटाई तक का सहारा लिया लेकिन सिमरन और संतोष अब पीछे हटने को तैयार नहीं थे। 

पासी लड़के जो वादा करते है वो निभाते है, कभी धोखा नही देते। 

उन लोगों ने तय कर लिया कि घर वाले भले ही साथ जीने न दें, मरने से नहीं रोक सकते। गुरुवार की दोपहर सिमरन घर से निकल गई। शाम को संतोष ने भी घर छोड़ दिया। शाम तक सिमरन के घर वाले उसे ढूंढते हुए संतोष के घर पहुंचे लेकिन वह भी वहां नहीं मिला। सिमरन और संतोष रात में किसी मंदिर गए। संतोष ने पहले से दुल्हन के जोड़े और सिंदूर का इंतजाम कर रखा था।

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ईश्वर को साक्षी मानकर उन्होंने मंदिर में एक दूसरे का हाथ थाम मिला। रात मंदिर के प्रांगण में बिताई। सुबह चार बजे जब गाड़ियां चलने लगीं तो दोनों आटो से नए यमुना पुल पहुंच गए। एक-दूसरे का हाथ थाम सिमरन और संतोष यमुना में कूद पड़े। वहीं आसपास तमाम मछुआरे मौजूद थे। उन लोगों देखा तो वे बचाने के लिए नदी में कूद पड़े। संतोष को जीवित बाहर निकाल लिया गया। सूचना पर पुलिस ने उसे एसआरएन अस्पताल पहुंचा दिया। यहां घंटे भर संतोष जीवित रहा और अपनी पूरी कहानी पुलिस को बताई। इसके बाद उसने भी दम तोड़ दिया। कुछ देर बाद सिमरन का शव भी मिल गया। और दोनो के परिजनों ने लिखित तहरीर दी कि वो कोई कार्यवाई नही चाहते। 

3,जून 2017 अमर उजाला 

अच्छेलाल सरोज, इलाहाबाद 

मो. 7800310397