आतंकी संगठन के सरगना है योगी- न्यूयार्क टाइम्स 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी

देश की मीडिया पर वर्तमान में केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार का महिमामंडन करने का आरोप लगता रहा है। देश के तमाम बुद्धिजीवी आरोप लगा रहे हैं कि देश का मीडिया सरकार के लिए काम कर रहा है। इसलिए देश का मीडिया सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से डर रहा है। लेकिन विदेशी मीडिया को कोई कैसे रोक सकता है। अमेरिका के एक मशहूर अखबार ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स #nytimes ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री पर भी हमला बोला है। अखबार ने लिखा है कि विकास की बात कहकर तीन साल पहले केंद्र की सत्ता में काबिज होने वाले प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडे की जगह हिंदुत्व ने ले ली है। अखबार ने लिखा कि मोदी सरकार भारत को हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित करने की दिशा में काम करना चाहते हैं इसलिए विकास के एजेंडे को डुबो दिया है।

अखबार ने लिखा कि मोदी सरकार के शासन में देश के 17 करोड़ मुसलमान आर्थिक और सामाजिक हाशिए पर चले गए हैं। इसके अलावा न्यूयॉर्क टाइम्स ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी हमला बोला। अखबार ने योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी को आतंकी संगठन बताया है। साथ ही योगी आदित्यनाथ को आतंकी संगठन का सरगना बताया है। अखबार ने लिखा है कि देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में एक ऐसे महंत को शासन करने के लिए चुना गया है जो पहले से ही नफरत भरे बोल बोलता रहा है।

अखबार ने “हिन्दुस्तान में एक फायरब्रांड हिन्दू पुजारी राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ता” शीर्षक से लिखे लेख में कहा कि योगी को अधिकांश लोग योगी कहकर ही पुकारते हैं। योगी की पहचान एक ऐसे मंदिर के पुजारी के रुप में है जो अपने ‘आतंकवादी हिंदू सर्वोच्च जातिवादी’ परंपरा के लिए कुख्यात है। योगी एयर कंडीशनर यूज नहीं करते हैं और जमीन पर सोते हैं। वो कई बार रात में सिर्फ एक सेव खाकर रहते हैं।

अखबार ने लिखा कि योगी ने मुसलमान शासकों द्वारा ऐतिहासिक गलतियों का बदला लेने के लिए हिन्दू युवा वाहिनी बनाई है, जिसका मकसद मुस्लिमों की फसल को रोकना है। एक चुनावी रैली में उन्होंने चिल्लाकर कहा था, “हम सभी धार्मिक युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।”

शर्मनाक – देश को सिल्वर मेडल दिलाने वाली पैरा एथलीट को भूखे रहकर टिकट के लिए बर्लिन में मांगना पड़ा भीख ।

पीएम मोदी अपने भाषणों और मन की बात में देश के खिलाडियों , और एथलीटों की बात जरूर करते है । और विदेशो में भारत की छवि ठीक करने पर कुछ ख़ास ही ध्यान देते है । लेकिन मोदी  सरकार के खेल मंत्रालय, अथॉरिटी और सिस्टम की गलती और लापरवाही के चलते भारत को विदेश में शर्मसार तो होना ही पड़ा तथा साथ ही साथ इन सब गलतियों का खामियाजा भारत की बेटी पैरा एथलीट कंचनमला पाण्डे को भूखे रहकर और टिकट के लिए पैसे न रहने पर भीख मांगकर भुगतना पड़ा । यह कितनी शर्म की बात है किसी देश के लिए की उस देश के लिए खेलने गयी खिलाडी को विदेशो में खाने और घूमने के लिए भीख माँगना पड़े।

दरअसल बर्लिन में आयोजित वर्ल्ड पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में भारत की तरफ से प्रतिभाग करने वाली पैराएथलीट कंचनमाला पांडे को पैसों के अभाव में बर्लिन में भीख मांगने को मजबूर होना पड़ा। कंचनमाला और पांच अन्य पैरा एथलीट्स को जर्मनी पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए भेजा गया था। लेकिन सरकार द्वारा भेजी गई सहायता राशि उन तक नहीं पहुंची। पैसा न होने के कारण उन्हें अनजान शहर में भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। जैसे ही ये खबर भारत पहुंची खेल प्रेमियों के साथ ही देश के लोगों ने सिस्टम के खिलाफ खूब गुस्सा निकाला। वही इस मामले में खेल मंत्रालय ने जांच के आदेश दिये हैं । 

“वहीं इस पूरे मसले पर कंचनमाला ने कहा कि ‘बर्लिन की यात्रा को सरकार ने मंजूरी दे दी थी।’ भारत की पैरालंपिक समिति (पीसीआई) ने हमें बताया कि वे पैसे नहीं दे सकते क्योंकि उनके खाते को रोक दिया गया है और हमें अपना पैसा खर्च करना है। उन्होंने कहा कि ‘मैं एक ट्राम में यात्रा कर रही थी। ट्राम में यात्रा करने के लिए, एक पास की जरूरत थी, जो मेरे कोच की जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। कंचनमाला ने कहा कि उन पर बिना टिकट यात्रा करने के लिये जुर्माना भी लगाया गया। लेकिन जुर्माना देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, ऐसे में उन्हें अपनी एक दोस्त से पैसा लेने के लिये बाध्य होना पड़ा । हालांकि इन हालातों में भी कंचन और सुयाश जाधव ने हार नहीं मानी और दोनों ने देश के लिए सिल्वर मेडल जीता और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई किया। 

    दोषी कौन जाँच का विषय   

जवाब में खेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वह जानकारी ले रहें है कि परेशानी कहां हुई? उन्होंने लिखा ‘हमने पीसीआई को फंड दे दिया था।  ‘फिलहाल खिलाड़ियों के साथ हुई इस अनदेखी के लिए पीसीआई ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को दोषी ठहराया। वहीं स्पोर्ट्स अथॉरेटी पीसीआई को इस गलती का जिम्मेदार मान रही है। दरअसल खिलाडियों की विदेश में इस तरह हुई परेशानियो की ख़ास वजह खेल मंत्रालय , पीसीआई , और सिस्टम व् अथॉरिटी की लापरवाही है साथ ही साथ वे लोग भी दोषी है जो सरकारी खर्चे पर खेल के नाम पर ऐश मौज करते है लेकिन खिलाडीयो की मुलभुत जरुरतो पर ध्यान नही देते । इस मामले की जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि देश को मैडल दिलाकर सम्मान दिलाने वाले खिलाडीयो को पैसे के आभाव में विदेश में भिख मांगने जैसा शर्मनाक काम न करना पड़े ।

मोदी जी का इज़राइल दौरा यहूदी और भारतीय चितपावन ब्राहम्णो के सम्बंध को मज़बूत करने के इरादे से तो नही ? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेपताहूँ
आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचालक  अर्थात् मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं. क्या आप जानते हैं ये चितपावन ब्राह्मण कौन होते हैं ?
चितपावन ब्राह्मण भारत के पश्चिमी किनारे स्थित कोंकण के निवासी हैं. 18वीं शताब्दी तक चितपावन ब्राह्मणों को देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा निम्न स्तर का समझा जाता था. यहां तक कि देशस्थ ब्राह्मण नासिक और गोदावरी स्थित घाटों को भी पेशवा समेत समस्त चितपावन ब्राह्मणों को उपयोग नहीं करने देते थे. 
दरअसल कोंकण वह इलाका है जिसे मध्यकाल में विदशों से आने वाले तमाम समूहों ने अपना निवास बनाया जिनमें पारसी, बेने इज़राइली, कुडालदेशकर गौड़ ब्राह्मण, कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण, जो सबसे अंत में भारत आए, प्रमुख हैं. आज भी भारत की महानगरी मुंबई के कोलाबा में रहने वाले बेन इज़राइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इज़राइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे। 

चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है. इसी समय के आसपास चितपावन ब्राह्मणों में से एक बालाजी विश्वनाथ भट्ट रत्नागिरी से चलकर पुणे सतारा क्षेत्र में पहुँचा. उसने किसी तरह छत्रपति शाहूजी का दिल जीत लिया और शाहूजी ने प्रसन्न होकर बालाजी विश्वनाथ भट्ट को अपना पेशवा यानी कि प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. यहीं से चितपावन ब्राह्मणों ने सत्ता पर पकड़ बनानी शुरू कर दी क्योंकि वह समझ गए थे कि सत्ता पर पकड़ बनाए रखना बहुत जरुरी है. मराठा साम्राज्य का अंत होने तक पेशवा का पद इसी चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ भट्ट के परिवार के पास रहा। 
एक चितपावन ब्राह्मण के मराठा साम्राज्य का पेशवा बन जाने का असर यह हुआ कि कोंकण से चितपावन ब्राह्मणों ने बड़ी संख्या में पुणे आना शुरू कर दिया जहाँ उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जाने लगा। चितपावन ब्राह्मणों को न सिर्फ मुफ़्त में जमीनें आबंटित की गईं बल्कि उन्हें तमाम करों से भी मुक्ति प्राप्त थी । चितपावन ब्राह्मणों ने अपनी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के इस अभियान में जबरदस्त भ्रष्टाचार किया।  इतिहासकारों के अनुसार 1818 में मराठा साम्राज्य के पतन का यह प्रमुख कारण था. रिचर्ड मैक्सवेल ने लिखा है कि राजनीतिक अवसर मिलने पर सामाजिक स्तर में ऊपर उठने का यह बेमिसाल उदाहरण है. (Richard Maxwell Eaton. A social history of the Deccan, 1300-1761: eight Indian lives, Volume 1. p. 192)
चितपावन ब्राह्मणों की भाषा भी इस देश के भाषा परिवार से नहीं मिलती थी । 1940 तक ज्यादातर कोंकणी चितपावन ब्राह्मण अपने घरों में चितपावनी कोंकणी बोली बोलते थे जो उस समय तेजी से विलुप्त होती बोलियों में शुमार थी।  आश्चर्यजनक रूप से चितपावन ब्राह्मणों ने इस बोली को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया।  उद्देश्य उनका सिर्फ एक ही था कि खुद को मुख्यधारा में स्थापित कर उच्च स्थान पर काबिज़ हुआ जाए।  खुद को बदलने में चितपावन ब्राह्मण कितने माहिर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने जब देश में इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत की तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने वालों में चितपावन ब्राह्मण सबसे आगे थे.
इस तरह अत्यंत कम जनसंख्या वाले चितपावन ब्राह्मणों ने, जो मूलरूप से इज़राइली यहूदी थे, न सिर्फ इस देश में खुद को स्थापित किया बल्कि आरएसएस नाम का संगठन बना कर वर्तमान में देश के नीति नियंत्रण करने की स्थिति तक खुद को पहुँचाया, जो अपने आप में एक मिसाल है।

कोलाबा में रहने वाले बेन इस्राइली महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों को कोंकण के तट पर आए 14 इस्राइल यहूदियों के खानदानों का वारिस मानते हैं। मलबारी या कोचिन के यहूदी अपना नाता बाइबल में उल्लिखित किंग सोलोमन से जोड़ते हैं। धारणा है कि जूडिया से भारत में उनका आगमन 175 ईसा पूर्व यूनानी सम्राट एंटियोकस चतुर्थ एपीफानेस के काल हुआ जब कोंकण के तट पर उनकी नौका ध्वस्त हो गई। 7 पुरुष और 7 महिलाएं-केवल 14 लोग बच पाए थे इस दुर्घटना में। यही कोंकणस्थ यहूदियों के पूर्वज माने जाते हैं। आजीविका के लिए खेतों में काम करने के अलावा वे तेल का कोल्हू चलाने लगे, स्थानीय बोली को अपनाया और उपनाम भी मराठियों की तरह ही गांव के आधार पर रख लिए, जैसे नवगांवकर, पनवेलकर (ऐसे 142 उपनाम) आदि।
 वे अपने आप को यहूदी न कहकर बेने इस्राइली कहते थे। परंतु स्थानीय लोग उन्हें शनिवारी तेली के नाम से जानते थे क्योंकि वे शनिवार के दिन (शब्बाथ) कोई काम नहीं करते थे। ठाणे के मॉयर मोजेज ने जानकारी दी, ‘समुदाय में शनिवार छुट्टी का दिन-केवल आराम (नौकर-चाकर, पशु-पक्षियों तक) के लिए मुकर्रर है। आम यहूदी परिवार इस दिन बाहर जाने, मेहमान बुलाने, खरीदारी करने तक से परहेज करता है। दिन में तीन नमाजें। यहूदी कैलेंडर का दिन शाम से शुरू होकर सुबह तक चलता है। यहूदी हफ्ते की शुरुआत रविवार से होती है।’
आम तौर पर माना जाता है कि यहूदियों का भारत आगमन कोच्चि के मार्फत 1500 वर्ष पहले हुआ। मुंबई में यहूदियों का आगमन 18वीं सदी में शुरू हुआ। उनकी दो बिल्कुल अलग धाराएं थीं- बेन इस्राइली (इस्राइली के लाल) और बगदादी। बेन इस्राइली 1749 में कोंकण के गांवों से आए थे। बगदादी यहूदी मामलूक वंश के आखिरी शासक दाऊद पाशा द्वारा 19वीं सदी की शुरुआत में मचाई गई तबाही और भीषण नरसंहार के बाद इराक से भागे थे। 

मुंबई में बसने वाला पहला बगदादी यहूदी 1730 में सूरत से आए जोसफ सेमाह को माना जाता है। कोंकण से आए सैमुअल इजेकिल दिवेकर ने मुंबई का प्रथम सिनेगॉग ‘शारे राहामीम’ (गेट ऑफ मर्सी) मई, 1796 में स्थापित किया। मसजिद स्टेशन ने अपना नाम सैमुअल स्ट्रीट के इसी सिनेगॉग से पाया है। जैकब ससून द्वारा 1884 में बना केनेथ इलियाहू भायखला के मागेन डेविड के अलावा दूसरा बगदादी यहूदी सिनेगॉग है। मागेन डेविड इस्राइल के बाहर सबसे बड़े सिनेगॉग में गिना जाता है।
बहुत वक्त तक भारत और इस्राइल के बीच राजनीतिक संबंध न होने से खुद को अलग-थलग महसूस करने वाले इस समुदाय में दोनों देशों में आई ताजा गर्मजोशी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राइल यात्रा की योजना से नई आशाएं जगी हैं।

हाल के वर्षों में भारत से इस्राइल जाकर बसे भारतीयों की नई पीढ़ियां बाप-दादों की यादें ताजा करने के लिए लौटने लगी हैं। भारत सरकार ने मुंबई सहित देश के अन्य यहूदी ठिकानों के लिए पैकेज टूर शुरू करने का निर्णय किया है।

–अजय प्रकाश सरोज ,( विभन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखित)

अमरनाथ हमला – कई अनसुलझे रहस्य , निंदा करने और कराने के बजाय कड़ी कारवाई करे मोदी


एक तरफ अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले को लेकर पूरा देश स्तब्ध है तो वही पीएम मोदी इस घटने की निष्पक्ष जांच और कड़ी कारवाई करने के बजाय कड़ी निंदा करने और कराने में लगे हुए है। अमरनाथ यात्रा हमले में कई अनसुलझे रहस्य है जिनकी जाँच होनी अनिवार्य है और जाँच में सामने आई गलतियों या सुरक्षा -व्यवस्था में हुई भूल को सुधारना अनिवार्य है । पहली और सबसे बड़ी बात की जिस बस पर हमला हुआ वो बस अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्टर्ड नही था और जिस मार्ग से बस जा रही थी वो मार्ग भी यात्रा के लिये अधिकृत नही थी ऐसे में वो बस उस रास्ते पर कैसे चली गयी थी ये भी एक सवाल है और इसमें सुरक्षाकर्मियों की भी भारी चूक नजर आती है ।तनावपूर्ण माहौल के बिच अनधिकृत मार्ग पर बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस का चलना खतरे से खाली नही था और यही हुआ भी हमले का डर था और हमला भी हुआ । ये जाँच पड़ताल और इन्क्वायरी का विषय है की गुजरात के तीर्थयात्री कैसे बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस में सवार हुए और अनधिकृत मार्ग से अमरनाथ की और रवाना हुए । एक बात और ये अमरनाथ हमला हमेशा भाजपा के शासन काल में ही क्यों होता है आपको बता दे की पिछली बार 2000 ई में अटल बिहारी बाजपेयी के शासन में अमरनाथ हमला हुआ था और अब इस बार मोदी के शासन में हमला हुआ जिसमे गुजराती मारे गए ये बात भी मन में एक सवाल पैदा करता है । दूसरी बात यह है की अमरनाथ यात्रा पर आतंकियों की नजर रहती ही है वजह है हमला करने से दो समुदायो के लोगो के बिच नफरत और बिभेद हो सकता है और आतंकियों का उद्देश्य भी यही होता है।अब सवाल यह है की इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी एक अनधिकृत रास्ते पर बस दौड़ कैसे रही थी ? जाहिर है यह सुरक्षा व्यवस्था की चूक है।इसीलिए सिर्फ यात्रियों को ही जिम्मेवार नही ठहराया जा सकता बल्कि पुलिस-व्यवस्था की गड़बड़ी की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। कही किसी तरह के भ्रष्टाचार का पोषण करके निजी गाड़िया सड़को पर तो नही दौड़ रही ? इसकी भी जांच होनी चाहिए। 

इन हमलो से निपटने का एकमात्र ही तरीका है बंदूक का जबाब बंदूक। बेशक हम राजनितिक समाधान तलाशे, बातचीत करे, पर जो बंदूक लेकर आए उसे गोली के जरिये ही जबाब दे केवल कड़ी निंदा करना ही इसका उपाय नही है। प्रधानमन्त्री मोदी ने लोकसभा के चुनाव के दौरान चुनावी रैली में कहा था की बन्दुक और बम की आवाज में बातचीत की आवाज सुनाई नही देती । मगर भारत की बिडम्बना यह है की चुनाव में कही गयी बातो पर सत्ता में आने पर अमल नही किया जाता ।जबकि हमारी राष्ट्रीय नीति भी यही होनी चाहिए, गोली और गोली का जबाब गोली और बम ही है ,और जो वार्ता के इच्छुक है , वह पहले संघर्ष विराम करे। दोनों चीजे एक साथ नही चल सकती ।

  इन हमलो का जबाब पीएम मोदी, रक्षा मंत्री जेटली ,और गृह मंत्री राजनाथ सिंह गोली और  बम से ही दे केवल निंदा और कड़ी निंदा से काम नही चलने वाला । उनलोगो को आपके कड़ी निंदा करने से कोई परवाह नही पड़ता । वो लोग बदस्तूर हमले जारी रखे और आपलोग अपने दो विश्वविख्यात शस्त्र निंदा और कड़ी निंदा का उचित अवसर देखकर प्रयोग करते रहे । 

जन्मदिन पर विशेष : बहुजन आंदोलन की धुरी थें राम समुझ पासी

,उत्तर प्रदेश में कांशीराम का आंदोलन गर्भ में था । तभी कांशीराम जी की मुलाक़ात प्रतापगढ़ निवासी राम समुझ जी से हो गई। उस समय राम रमुझ जी खण्ड विकास अधिकारी जैसी प्रतिष्ठित पद पर थे। लेकिन प्रतापगढ़ में सामंती ताकतों का बोलबाला था। जिसकों लेकर राम समुझ जी के मन मे एक पीड़ा थीं। कांशीराम जी ब्राह्मणवाद और सामन्तवाद के विरोधी हो चुके थें। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में अपने आंदोलन को गति देने के लिए ज़मीन तैयार करने में लगे थे। बातचीत के दौरान आंदोलन की तैयार रणनीति को बाबू राम समुझ जी ने समझा और मान्यवर कांशीराम के कहने पर नौकरी छोड़कर बहुजन आंदोलन को गति देने में लग गए। राम समुझ जी ने संघठन को विस्तार देने के लिए ‘बहुजन संगठन ‘ नामक अख़बार का सम्पादन भी किया। बहुत जल्द ही राम समुझ जी प्रदेश में बहुजन आंदोलन की धुरी बन गए। 
पूरे प्रदेश के घूम घूम कर बामसेफ और फिर बहुजन समाज पार्टी को मजबूत किया। पार्टी को मजबूत करने को रात दिन एक कर दिया। उस समय के लोग कांशीराम के बाद राम समुझ को दूसरा नेता मानते थे। बाद में राजनीतिक परिस्थितियां बदल गई। पार्टी में मायावती और आरके चौधरी जी की इंट्री हो गई। फिर बहुजन आंदोलन की धुरी बाबू राम समुझ को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा कर बाहर कर दिया गया। जिसका उन्हें जीवन भर अफसोस रहा। लेकिन उन्होंने अपने विभिन्न संगठनों के माध्यम से समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, और न्याय के मूल्यों के प्रति जीवन पर्यन्त समर्पित रहे ।
इस महान अम्बेडकरवादी का जन्म 11 जुलाई, सत्र 1935 को  पासी समाज में हुआ था। आदरणीय राम समुझ जी आज हमारे बीच भले न हो लेकिन उनके किये गए बहुजन समाज के प्रति कार्यो को कभी भूला नही जा सकता । 

आज उनके जन्म दिन पर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए नमन करते है-  

अजय प्रकाश सरोज 9838703861

अपराधी ब्राह्मणों के हत्या पर तड़प उठी मायावती 

पत्रिका जब भी मायावती की आलोचना करती है तो खासतौर पर मायाभक्त भड़क उठते हैं । लेकिन दलितों के बौद्धिक चिंतक समर्थन में खड़े होते है। बहुजन आंदोलन को मायावती जी स्वं की प्रॉपर्टी समझ कर उसे अपने लिए इस्तेमाल करती है। यह बात कई राजनेताओ ने कहा है । गैर जाटव दलित चिन्तक तो यह भी आरोप लगाते है कि जब जाटव/ चमार बिरादरी पर जुल्म होता है तब मायावती बोलती है । अभी हाल ही में पूर्व डीजीपी रहे दारा पूरी जी ने सहारनपुर की घटना समेत दलित उत्पीड़न पर लखनऊ में प्रेस कांफ़्रेस करने पहुचे तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर ली। तब भी मायावती नही बोली । लेकिन ऊंचाहार,रायबरेली में यादवों की हत्या के इरादे से गये पांच बाभनो की हत्या हुई तो तड़प उठी है। जबकि  कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य इन पांचों ब्राह्मणों को अपराधी बताया है। परंतु मायावती जी ने  सतीश मिश्रा को ब्राह्मणों के घर जाने का निर्देश देकर घटना को राजनीतिक मुद्दा बनाने को कहा है।

एच. एल. दुसाध की कलम से–

अक्सर दलित उत्पीडन की घटनाओं पर चुप्पी साधने की अभ्यस्त मायावती जी ने रायबरेली काण्ड में ब्राह्मणों के प्रति संवेदना जाहिर करने में सबको पीछे छोड़ दिया है.उन्होंने 5 ब्राह्मणों की हत्या को जंगलराज का प्रतीक बताते हुए पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने में विफलता को लेकर योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है.।

इस मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए उन्होंने अपनी पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ -साथ राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद सतीश चन्द्र मिश्र को पीड़ित परिवारों से मिलकर उन्हें सांत्वना देने और न्याय दिलाने का भरपूर प्रयास करने का निर्देश दिया है.उनके आक्रामक बयान के बाद वह स्वामी प्रसाद मौर्य निशाने पर आ गए हैं,जिन्होंने मारे गए लोगों को शातिर अपराधी बताया था. बहरहाल रायबरेली कांड पर अपना रुख जाहिर कर मायावती जी ने स्पष्ट कर दिया है कि उनके ब्राह्मण-प्रेम में स्थाइत्व आ चुका है और सर्वजन को छोड़कर बहुजन की ओर मुड़ने वाली नहीं हैं, भले ही बसपा पूरी तरह अतीत का विषय क्यों बन जाए!

लश्करे तैयबा का खतरनाक आतंकवादी पंडित संदीप शर्मा गिरफ्तार

 Mon, Jul 10, 2017 3:35 PM

जम्मू-कश्मीर में पुलिस ने संदीप शर्मा नाम के लश्कर ए तैयबा के एक खतरनाक आतंकवादी को गिरफ्तार किया है। संदीप शर्मा की गिरफ्तारी की खबर कश्मीर के आईजी मुनीर खान ने जानकारी दी।

यूपी का रहने वाला संदीप शर्मा खतरनाक आतंकवादी बशीर लश्करी का साथी था जो एक जुलाई को अनंतनाग में मुठभेड़ में मारा गया था। मुठभेड़ के समय आतंकवादी संदीप शर्मा भी बशीर के साथ एक ही मकान में छिपा था।

 आतंकवादी संदीप कश्मीर में बैंक और एटीएम लूट की घटनाओं में भी शामिल रहता था। पुलिस की गाड़ी लूटने में भी संदीप शर्मा का हाथ रहा है। अन्य मामलों में उसकी भूमिका की जांच की जा रही है। आईजी मुनीर खान ने बताया, “हमने संदीप शर्मा को गिरफ्तार किया है जो उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। संदीप एक पेशेवर अपराधी है जो सोपोर में आतंकी शाहरूख की मदद से लश्कर के संपर्क में आया था।”

संदीप को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से गिरफ्तार किया गया था। संदीप के पिता का नाम पंडित राम शर्मा बताया जा रहा है। पुलिस ने बताया है कि, “संदीप स्थानीय लोगों के बीच अपना नाम आदिल बताया करता था।”

आतंकवादी संदीप शर्मा पर हत्याओं के भी आरोप हैं। एसएचओ फिरोज डार की हत्या में भी संदीप शर्मा  शामिल था।  16 जून को ही फिरोज डार की हत्या की गई थी। इसके अलावा संदीप ने तीन और आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है।

पंडित राम शर्मा का बेटा संदीप  2012 में घाटी में आया था और 2017 में आतंकवाद में शामिल हुआ था।  

एंटी रोमियों वाली सरकार शादी में कण्डोम गिफ्ट करेगी !

स्वागत कीजिये ! उत्तर प्रदेश में सरकार बनते ही एंटी रोमियों स्वायड बनाकर प्रेमी युगलों को पिटवाने वाली सरकार अब शगुन में नवविवाहितों को कंडोम देने की पहल की है । 

सच कहा गया कि जो बछड़ा अधिक उछलता-कूदता हो उसके कंधे पर जुवाठ या भार रख दीजिए फिर देखिए वह कितना नरम,लोचवान,समझदार और व्यवहारिक हो जाता है।योगी जी ने प्रत्येक समस्याओं के मूल मे बसे जनसंख्या बृद्धि को दिमाग मे रख के गृहस्थ जीवन के प्रारंभिक अवस्था मे ही जनसंख्या नियंत्रण का जो खाका तैयार कर युवाओं को जागरूक करने का प्रयत्न सरकार की तरफ से करने का संकल्प लिया है,वह सराहनीय है।
 योगी जी द्वारा नव विवाहित जोड़ो को शगुन में कंडोम आदि देने के ऐलान पर मेरे एक साथी ने कहा कि योगी जी तो योगी और अविवाहित हैं फिर उन्हें कंडोम आदि के बारे में क्या पता?मैने अपने उस साथी से कहा कि डॉ लोहिया भी अविवाहित थे लेकिन नारी स्वतन्त्रता,नारी सम्मान व नारी समस्याओं पर वे जितना बेबाक बोलते और उसे लागू करने का संकल्प दिलाते थे,उतना शायद ही कोई शादी-शुदा पुरुष सोचता और समझता हो।मैने अपने उस साथी से कहा कि देश की सन्सद में कांग्रेस की महिला सांसद श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा जी ने लोहिया जी के नारीवादी व्यक्तव्यों पर चुटकी लेते हुए जब  यह कहा था कि “मिस्टर लोहिया आप तो विवाहित ही नही हैं फिर स्त्रियों के बारे में क्या जानें?”,लोहिया जी ने कहा था कि “मिसेज सिन्हा आपने अवसर ही कहाँ दिया?”

 हमारे एक साथी ने योगी आदित्यनाथ जी द्वारा कंडोम शगुन में देने पर कहा है कि अखिलेश यादव जी तो युवाओं को लैपटॉप देते थे जबकि योगी जी कंडोम दे रहे हैं।मेरा मानना है कि दोनों अलग-अलग विषय हैं।लैपटॉप बेरोजगारी दूर करने का एक संयंत्र है जबकि कंडोम जनसंख्या बृद्धि रोक के बेरोजगारी की समस्या पैदा ही न हो पाए,ऐसा पक्का उपाय करने का स्थायी साधन।

अब बेहतर तो यही है कि बेरोजगारी आये ही न।कंडोम होगा तो जनसंख्या बृद्धि रुकेगी,जनसंख्या बृद्धि न होगी तो बेरोजगारी न होगी और जब बेरोजगारी न होगी तो फिर मुफ्त लैपटॉप लेकर रोजगार करने की जरूरत न होगी।हैं न योगी जी का कंडोम फार्मूला जड़ पर प्रहार करने वाला है। योगी जो ठहरे , समस्याओं का जड़ से समाधान करना कोई इनसे सीखें। 

बिहार के रोहतास जिले के दलित उत्पीड़न मामले का राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने स्वतः लिया संज्ञान , गृह सचिव ,डीजीपी तलब

बिहार (रोहतास):-  विगत 28 जून 2017 को बिहार राज्य के रोहतास जिले के कोचस थाना के अंतर्गत परसिया गांव में अनुसूचित जाति के दो लोगो की पिट पिट कर हत्या कर दी गयी थी । दोनों मृतक भाई थे बड़ा भाई बबन मुशहर उम्र 40 वर्ष , मुराहु मुशहर 35 वर्ष पिता – सरयू मुशहर रोहतास जिले के शिवसागर थाना के पडरी गांव के निवासी थे । पीड़ित मुसहर जाती से है जो बिहार में महादलित में आते है तथा समाज के सबसे कमजोर और दबे और निचले पायदान पर है , मुशहर लोग चूहा भी खाते है ,। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री जितन राम मांझी भी मुशहर जाती से है । 

   राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है । आयोग ने इस मामले में बिहार राज्य के गृह सचिव , पुलिस महानिदेशक , रोहतास जिला के जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक को 13 जुलाई को नई दिल्ली आयोग कार्यालय में उपस्थित होने को कहा है ।जिलाधिकारी को पीड़ित परिवार के सदस्यों को भी दिल्ली लाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है । 

 रविवार को आयोग के  सदस्य डॉ योगेन्द्र पासवान जी ने प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी जानकारी दी ।उन्होंने बताया की आयोग ने पुरे मामले में शाहाबाद प्रक्षेत्र के डीआईजी पुलिस की भूमिका पर संदेह जताते हुए उनके स्थानांतरण की भी अनुशंसा की है । डॉ पासवान ने बताया की आयोग की टीम ने पांच जुलाई को घटनास्थल पर जाकर इस घटना की वास्तविकता की जांच की थी। उस समय तक रोहतास जिले का कोई वरिष्ठ पदाधिकारी पीड़ित परिवार से मिलने तक नही गए थे ।आयोग ने जिला प्रशासन को 15 जुलाई तक पीड़ित परिवार को अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण संशोधित अधिनियम नियम 2016 के अनुसार आर्थिक सहायता एवं अन्य सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है । 

भाजपा ने दिखाया जातिवादी चेहरा ,सरकारी वकीलों की तैनाती में 60% बाभन

लखनऊ । 201 वकीलों को सरकारी काम काज के लिए तैनाती देने में योगी सरकार ने जो लिस्ट जारी की है वह चौकाने वाली है। वैसे तो सरकार का दावा है कि पीएम मोदी की मंशा सबका साथ सबका विकास के अनुसार काम कर ही है, लेकिन 201 वकीलों की तैनाती में जो आंकडा है वह इसके बिलकुल उलट है।

इस लिस्ट में स्थायी अधिवक्ता (उच्च न्यायालय), मुख्य स्थाई अधिवक्ता, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता और ब्रीफ होल्डर (क्रिमिनल) के पद हैं। इसमें 182 सवर्ण हैं। यही नहीं इस लिस्ट में केवल 60 फीसदी ब्राह्मण हैं। अन्य वर्ग में 15 ओबीसी, 1 एससी और 3 मुसलमानों को इस लिस्ट में जगह दी गई है।