संघ मुक्त भारत से संघ युक्त क्यों हुए नीतीश कुमार ?

•अजय प्रकाश सरोज 

बात वर्ष 2014 में हुए लोकसभा से शुरू करता हूँ जब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा बनाना तय किया। तब बिहार में भाजपा के सहयोग से चल रहीं नीतीश ने सरकार गिरा दीं। क्योंकि नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी का चेहरा पसन्द नही था। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी पर गुजरात में दंगे कराने का गम्भीर आरोप है। 

बिहार में सरकार गिरने के बाद नीतीश ने लालू यादव से समर्थन मंगा तो धुर विरोधी लालू की पार्टी ने नीतीश को समर्थन देकर सरकार बचा ली । नीतीश पुनः मुख्यमंत्री बनें फिर लोक सभा का चुनाव हुआ तो नरेंद्र मोदी चुनाव भारी बहुमत से जीतकर प्रधानमंत्री बन गए। नरेंद्र मोदी की जीत नीतीश कुमार पचा नही पाएं तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन जल्दी ही राजनीतिक भविष्य पर संकट देखा तो मांझी को हटा कर पुनः मुख्यमंत्री बन बैठे । मांझी ने कहा था कि नीतीश सत्ता के लोभी है बिना सत्ता के वो नही रह सकते ,उनका सत्ता का त्याग सिर्फ दिखावा हैं। 
फिर विधानसभा के चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू के  राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन किया जिसमें कांग्रेस भी शामिल हुई। धर्मनिर्पेक्षता वाले इस गठबंधन को बिहार की जनता ने मुहर लगा दी ,गठबंधन की सरकार बन गई। जिसमे मुख्यमंत्री पुनः नीतीश कुमार ही बनें। लेकिन 20 महीने बाद नीतीश ने तेजस्वी पर लगे आरोप का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए। और राष्ट्रीय जनता दल ,कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर चौबीस घण्टे के अंदर अपने विरोधी भाजपा से गठबंधन बनाकर पुनः मुख्यमंत्री बन गए। 

सवाल यह है कि नीतीश को बार बार इस्तीफ़ा देना फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेने में इतनी दिलचस्पी क्यों है ? लोकसभा चुनाव में भाजपा से हारने के बाद ही नीतीश ने विपक्ष की गोलबंदी करनी शुरू की। भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ खूब बोलते रहे। यहां तक कह दिया कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन दुबारा भाजपा से हाथ नही मिलाऊँगा । संघ मुक्त भारत का नारा देकर नीतीश ने विपक्षी पार्टियों को एक करने का अभियान शुरू किए। 

उत्तर प्रदेश में भी कई रैलियां करके गठबंधन को मजबूत करने लिए सपा – बसपा को साथ आने के लिए न्योता दिया। लेकिन बात बनी नही ।  इस दौरान उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल और आरके चौधरी के नेतृत्व वाली बीएस4 के साथ इनका सम्बन्ध कुछ महीनों तक चला लेकिन यह गठबंधन परवान नही चढ़ा पाया।
केंद्रीय राजनीति में जाने को उत्सुक नीतीश कुमार ने विपक्ष के कई नेताओ से सम्पर्क किया। जिसमे अरविंद केजरीवाल ,ममता बनर्जी आदि शामिल है। सबकी सहमति लेकर नीतीश तेजी से आगे बढ़ रहे थे लेकिन उनकी पार्टी का संघठन बिहार के अलावा कहीं मजबूत न होने के कारण नीतीश चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें अपना प्रत्यासी बनाये इसकी पुष्टि उनके इस बयान से किया जा सकता है कि ”जब हम भाजपा के खिलाफ़ बोलना शुरू करते है तो कांग्रेस बीच मे रोड़ा डाल देती है। ” इसका मतलब कांग्रेस नीतीश को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा नही बनाना चाहती  थीं ।

 कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों की मदत से मोदी पर हमला करना तो चाहती है लेकिन किसी अन्य नेता को चेहरा बनाना नही चाहती। लोकसभा के चुनाव में रामविलास पासवान ने भी कांग्रेस पर इसी तरह का आरोप लगा लगाया था। भाजपा से गठनबधन के समय राम विलास पासवान और चिराग पासवान ने कई बार कहा कि हम अपने पुराने साथी कांग्रेस को छोड़ना नही चाहते थे लेकिन गठबधन को लेकर राहुल गांधी और सोनिया से समय मांगा तो समय नही दिए । कई महीने इंतजार के बाद हमने एनडीए में जाने का फैसला लिया। 

सम्भव है नीतीश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हो कि नीतीश की छवि मोदी के खिलाफ एक बड़े चेहरे के रूप में देश मे देखा जाने लगा था लोग नीतीश को लेकर चर्चाएं शुरु कर रहे थें लेकिन यह कांग्रेस को नागवार गुजर रहा था कि भाजपा के सत्ता से ऊब कर जनता फिर कांग्रेस को ही सत्ता सौंपीगी ,तो नीतीश को चेहरा क्यों बनाएं।
 जबकि नीतीश बार बार यह कह रहे थे कि विपक्ष अपना एजेंडा तय करें प्रतिक्रिया की राजनीति देश की जनता के लिए ठीक नही। परन्तु कांग्रेस आलाकमान ने कोई फैशला नही लिया। तेजस्वी के मामले में भी नीतीश ने राहुल से हस्तपक्षेप की मांग की लेकिन कुछ न हुआ। पिछले दिनों रामचंद्र गुहा ने लिखा था कि कांग्रेस को चाहिए की नीतीश को अपना नेता मान लेना चाहिए क्योंकि नीतीश बिना पार्टी के नेता है और कांग्रेस बिना नेता की पार्टी हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करना मुनासिफ नही समझा। 

यहीं कारण की सारा देश घूम कर नाउम्मीद नीतीश कुमार पुनः मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला लिया , और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही कांग्रेस को भी सत्ता से बाहर करके ठेंगा दिखाया । इस कारण नीतीश अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को त्याग कर संघ युक्त बिहार का रास्ता चुन लिया। 
(लेखक-नेहरू ग्राम भारती विश्वद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार का शोधार्थी है)

नवगठित बिहार सरकार के गठन पर पटना हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

पटना (बिहार) :- बिहार राज्य की सर्वाधिक विधायको वाली पार्टी राजद को बिना बुलाये  राज्यपाल द्वारा जदयू और भाजपा के गठबंधन वाली पार्टी को सरकार बनाने का आमंत्रण दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर पटना हाईकोर्ट 31 जुलाई को सुनवाई करेगा , पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश राजेंद्र मेनन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दो अलग अलग याचिकाओ पर एक साथ सुनवाई करने के लिए 31 जुलाई की तारीख निर्धारित की गयी है

                                                  

           विशेष

  • 31 जुलाई को मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ करेगी सुनवाई
  • असंवैधानिक है नवगठित सरकार
  • बडहरा के राजद विधायक सरोज यादव व नौबतपुर के समाजवादी नेता जितेन्द्र कुमार ने दायर की है याचिका

आपको बता दे की बिहार राज्य में नई सरकार के गठन में बिहार के राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 163, 164 व 174 का खुला उल्लंघन किया गया , ऐसा भी माना जा रहा है की राज्यपाल ने सबसे ज्यादा विधायको वाली पार्टी राजद को बिना बुलाये ही सर्कार गठित करके सरकारिया कमिशन का भी उल्लंघन किया है राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट  में दो जनहित याचिका दायर किया गया है , जिसमे पहली याचिका बडहरा के राजद विधायक सरोज यादव जबकि दूसरी याचिका नौबतपुर के समाजवादी नेता जितेन्द्र कुमार ने दायर की है याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के फैसले पर हैरानी जाहिर कर कहा है ली नियमत: सबसे पहले राजद को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना चाहिय्रे था ,लेकिन अफरातफरी में नितीश कुमार को बुला लिया गया , ऐसा कर राज्यपाल ने गैर संवैधानिक कार्य किया   इस तरह की राजनीती से पुरे देश में गलत सन्देश जाएगा याचिका में एसआर बोमई केस का हवाला दिया गया है जब ऐसी स्थिति बनती है तो राज्यपाल व् केंद्र सरकार को क्या करनी चाहिए ? साथ साथ  सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में रामेश्वर प्रसाद और भारत सरकार के मामले में भी व्यवस्था दी थी की सबसे अधिक विधायको वाली पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए न्योता पहले दी जनि चाहिए उसके इंकार के बाद ही दुसरे दलों को मौका दिया जाना चाहिए , याचिकाकर्ता के वकील जगन्नाथ सिंह ने बताया की पूरा घटनाक्रम गैर संवैधानिक तरीके से हुआ इसमें हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए

नागवंशी -भारशिव पासी जाति की सभ्यता से जुड़ा है नागपंचमी

आज नाग पंचमी है । यह नाग शब्द भारत की मूलनिवासी मानव जाति हैं। जिसे आर्यो ने अपने आगमन के बाद इन्हें जीव जंतु बना दिया । ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि नाग वंश, साँप जैसे जन्तुओ की वंश परंपरा है। हालांकि कई प्रसंग पौराणिक कथाओं में मिलता है की नाग कन्या का विवाह फला राजा से हुई। इसका मतलब की कन्या लड़की थीं जो मानव जाति से है। लेकिन ब्राह्मणवादियों ने पूरी नाग वंश की ऐतिहासिकता को मिटाने का षणयंत्र रचा रखा है। 

भारत का  मूल निवासी/ आदि द्रविण / नाग वंश / भारशिव सब एक ही है। जिसमे आज की पासी जाति का अपनी संस्कृति को थोड़ा बहुत बनाये हुए है। अधिकांश पासी जाति के घरों में शिव की पूजा की जाती है। मंदिर बनाये जाते है। या उनके घर पर प्राचीन शिव मंदिर देखने को मिल जायेंगे। 
इतिहाकार राजकुमार ने अपने पुस्तक’ पासी वंश में लिखा है कि ‘ पासी – आदिवासी (द्रविण) नाग उपासक थे इस कारण इन्हें नाग पुकारा जाता है। तो वही अंग्रेज लेखक आर.वी रसेल के अनुसार” pasi in Dravidian community and tribe ,whose original occupation was toddy drawings” 

उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि पासी जाति नाग वंश की परंपरा से है। जो बाद में चीनी महायानी बौद्धों को भगाकर नव नागों  ने शिव लिंगो को अपने कंधों पर उठाकर गंगा में स्नान कराकर पवित्र किया । जिसके कारण इन नवनागों को  भारशिव कहा गया। जिसका सम्बन्ध आज की पासी जाति से है।  

भारशिवो का एक लंबा इतिहास है जिसे केपी जायसवाल की पुस्तक “अंधकार युगीन भारत” में पढ़ा जा सकता है। 

आज का यह त्योहार जिसे नाग पंचमी से जाना जाता है । यह नाग वंशियो का बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन आर्यो की राजनैतिक चालाकी से मूल निवासी इसे साँप सपेरों से जोड़कर देखते है। क्योंकि नाग वंशियो को तोड़कर कर ही आर्यो ने इन्हें पराजित किया। और भगवान का डर दिखाकर  खुद का संरक्षक भी बना लिया। क्योकि नाग टोटम सिंधु सभ्यता में नाग वंशियो की पहचान थीं। 
आप देखिये की जितने भी इनके देवता है उनके सिर पर प्रतीकात्मक रूप से नाग का फन दिखाया जाता है। इसका मतलब की नागवंशी राजाओं ने ही इनकी सुरक्षा भी करते रहें। यह सब एक षणयंत्र है हमे अपनी मूल संस्क्रति की ओर लौटना होगा। 

— — अजय प्रकाश सरोज

नाग पंचमी के दिन मैंने गुड़िया पीटने का विरोध किया


आज नागपंचमी है जो बड़े धूम धाम से मनाते है इसे गुड़िया भी कहते है। बचपन के वो दिन आज भी याद आते है सुबह से ही घर की सफाई धुलाई होती थी और फिर दूध और लावा चढ़ाया जाता था और फिर पुरे घर में छिड़का जाता था और घर में कई तरह के पकवान बनते थे ,गुझिया, सेवई, पूरी, आदि । फिर सब खा पीकर आराम करते तो चाचियां बोलती आओ गुड़िया बनाये शाम को तुम लोग ले जाओगे न हम पूछते कहा ले जायेंगे आपलोग को बता दू ,हमारे यहाँ का रिवाज पता नहीं आपलोग के यहाँ था या है और कई जगह अभी भी है खासकर मेने प्रतापगढ़ की तरफ ज्यादा देखा है क्योंकि हमारा बचपन वही पर बिता है ।कि लड़कियां (बहन)गुड़िया बनाती है और लड़के (भाई) उसे पीटते थे और पीट पीट कर उसे एकदम खराब कर देते थे जैसे मनो वो मर गई हो ।पहले तो हम लोग को बड़ा अच्छा लगता था हम लोग सौख से गुड़िया बनाते थे और उसे शाम को पोखर पर जाते और भाइयो के सामने फेकते और वो उसे पीटते और खूब खेलते क्योंकि बचपन में किसी को कुछ पता नहीं होता जैसे में बड़ी हुई में इसका विरोध की और चाचियों से पूछा चाची ऐसा क्यों करते है तो बोलती पुराने रिवाज है किया जाता है लेकिन मुझे अच्छा नही लगता था तो मैने ये सब करना बंद कर दिया और जब कोई पूछता तो बोल देती क्या हम लडकिया इस तरह पीटने लायक है हमारी कोई इज्जत नहीं है हम इतने प्यार से वो गुड़िया बनाते और भैया लोग उसे इतनी बेरहमी से पीट पीट कर खराब कर देते है ये कहा लिखा है कि ये त्यौहार ऐसे मनाओ। उस समय से आज तक हमारे घर में गुड़िया (नागपंचमी )मीठे पकवानों का त्यौहार है न की गुड़िया पीटने का और हम गुड़िया नहीं बनाते और न ही कही जाते है। हमें तो यही लगता था कि ये पितृसत्ता का एहसास दिलाया जाता है और मनुवादी शोच को थोपा जाता है ,हम आज की नारिया पुरषों से कम नहीं।हम आपलोग से पूछते है ये कहाँ कहा गया है कि आप लोग गुड़िया के दिन एक नारी को ऐसे पीटो और ख़ुशी मनाओ । नारी घर की पहचान है उसका सम्मान करो अपमान नहीं । नारी है तो कल है ।
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रागिनी पासी
(इलाहाबाद)

क्रांतिकारी शोधार्थी दिलीप यादव को जेएनयू के हॉस्टल से बाहर किया गया 

जेएनयू में पीएचडी दाखिले के लिए मौखिक परीक्षा का वेटेज करने वाले Dileep Yadav को हॉस्टल से निकाल दिया गया है। दिलीप और उनके साथी पीएचडी पहले से ही कर रहे थे।

वो अपने लिए नहीं लड़ रहे थे। वो सारे छात्रों के लिए लड़ रहे थे। सभी छात्रों के लिए अनशन कर रहे थे।अब कुलपति जगदेश कुमार इन सभी आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं को न पीएचडी पूरी करने दे रहा है, और न ही हॉस्टल में रहने दे रहा है। 

ये आपके लिए अपना कैरियर दाँव पर लगा चुके हैं। आप लोग सलामत रहिए। पढ़िए-लिखिए, कैरियर बनाइए..बधाई हो- 
-महेंद्र यादव दिल्ली

अरुण की मां और नई साडी

अरुण अपनी मां से बेहद प्यार करता था उसकी मां लोगों के घरों में बर्तन मांज कर घर का खर्च चलाती थी अरुण हालांकि अभी 12 साल का था पर परिवार की मदद के लिए छोटे-मोटे काम वह भी कर लेता था के कभी वह किसी होटल में बर्तन धो देता था तो कभी किसी के घर सामान पहुंचाने का काम कर दिया करता था इस तरह के काम करके वह महीने में चार पांच सौ रुपया कमा लिया करता था अरुण की मां का जन्म दिन नजदीक आ रहा था अरुण का बहुत मन था कि वह अपनी मां को नई साड़ी दिलाएं उसने पिछले कई महीनों में जोड़कर ₹1000 इकट्ठा किए थे जब रोड अपनी मां के लिए साड़ी लेकर आया तो उसकी मां बहुत नाराज हुई पहले तो वहां रोड़ पर चोरी का इल्जाम लगाने लगी जब उसने बताया कि यह पैसे उसने खुद मेहनत करके कमाए हैं

 वह बोली हमारे ऊपर कर्ज कम है क्या जो तुमने सारे पैसे इस सारी पर गवा दिए तुम्हारा पूरा जीवन ऐसे ही Karz में बीत जाएगा तुम कभी कुछ नहीं अच्छा कर पाओगे उन्होंने अरुण को बहुत भला बुरा कहा और साड़ी उसे वापस कर दी। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया इस्तीफा राजनीति में भूचाल 
यह बात अरुण के मन में बैठ गई उसे बहुत बुरा लगा कि आज उसने कितने शौक से अपनी मां के लिए तोहफा खरीदा लेकिन मैंने उसे वापस कर दिया कई साल बीत गए और  अरुण पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करने लगा उसने अपना घर अपनी गाड़ी खरीदी एक बार फिर मां का जन्मदिन आया अरुण के लिए खरीदी व साड़ी अब तक संभाल कर रखी थी उसने जब मां को जन्मदिन पर वह साड़ी दी उनकी आंखों में आंसू आ गए वह बोली मैं वह दिन कभी भूल नहीं सकती तुमने अपनी पहली कमाई से मेरे लिए साड़ी खरीदी और मैंने अपना सारा गुस्सा तुम पर निकाल दिया मैं कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगी अरुण बोला आज मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं तो इसकी वजह आपका उस दिन का गुस्सा ही है। 

Achchhelal Saroj 

बिहार के सीएम नितीश कुमार ने दिया इस्तीफा , बिहार में राजनितिक भूचाल 


पटना बिहार:-  बिहार के मुख्यमंत्री नितीश जी ने अपने पद से इस्तीफा देकर बिहार की राजनीती में एक नया संकट पैदा कर दिया है ।मुख्यमंत्री नितीश के इस्तीफे पर बिहार में गहमागहमी है । मुख्यमंत्री नितीश ने इस्तीफा देते हुए कहा की मैंने ये इस्तीफा भ्रष्टाचार के मुद्दे और अपने जीरो टॉलरेंस की निति को कायम रखने के लिए दिया है । आपको बता दे की मुख्यमंत्री नितीश ने तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपो पर सफाई माँगा था और इसके लिए समय भी दिया गया था और तेजस्वी के इस्तीफे की मांग भी की गयी थी लेकिन तेजस्वी यादव , राजद सुप्रीमो लालू यादव इस्तीफा देने के पक्ष में नही थे । नितीश जी ने इस्तीफे का कारण लालू का अड़ियल रवैया बताया उन्होंने लालू यादव पर आरोप लगाये की लालू यादव संकट में बचाने का दबाव डाल रहे थे अतः उन्होंने इस्तीफा दे दिया । वही बीजेपी में नितीश के इस्तीफे को लेकर ख़ुशी है । प्रधानमंत्री मोदी ने नितीश को ट्वीट कर के इस्तीफे की बधाई दी और लिखा की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुटने के लिए बधाई । वही बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा की बिहार की जनता को मध्यविधि चुनाव का सामना नही करने देंगे अगर समर्थन देना पड़ा तो नितीश को समर्थन दे सकते है । नितीश ने बीजेपी के समर्थन के सवाल पर कहा की अगर यह राज्य के हित में हो तो हम समर्थन ले सकते है । 

वही नितीश के इस्तीफे पर लालू यादव ने कहा की नितीश ने बिहार की जनता को थप्पड़ मारा है । महागठबंधन के टूटने के सवाल पर उन्होंने कहा की महागठबंधन टुटा नही है केवल मुख्यमंत्री का इस्तीफा हुआ है हमलोग महागठबंधन के तीनो सदस्य पार्टियो के बिधायक आपस में बैठ कर नया नेता चुन लेंगे । वही एक बड़ा बयान देते हुए लालू यादव ने कहा की नितीश कुमार पर हत्या का केस है उन्होंने एक पुराने केस का हवाला दिया । वही कांग्रेस पार्टी का कहना है की उन्हें नितीश कुमार के इस्तीफे की जानकारी नही थी । सोनिया गांधी ने नितीश कुमार से बातचीत करने को बोली है । हालांकि अभी बिहार का कोई भी राजनितिक पार्टी मध्यविधि चुनाव के पक्ष में नही है ।लालू यादव ने एक बयान देते हुए कहा की नितीश कुमार को जनता के दिए बहुमत का सम्मान करना चाहिए उन्हें बीजेपी के साथ नही जाना चाहिए बिहार की जनता ने उन्हें बीजेपी के खिलाफ मैंडेट दिया था और पांच साल के लिए मैंडेट दिया था और हमारी महागठबंधन की जिम्मेवारी है की आपसी मतभेद आपस में सुलझा कर जनता के मैंडेट का सम्मान करते हुए पांच साल तक सरकार चलाए ।

कोल्हापुर के नरेश और आरक्षण के जनक क्षत्रपति साहू जी महाराज की जयंती पर विशेष 

छत्रपति साहू महाराज ( अंग्रेज़ी : Chhatrapati Shahu Maharaj , जन्म- 26 जुलाई , 1874 ; मृत्यु- 10 मई , 1922 , मुम्बई ) को एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए। साहू महाराज के शासन के दौरान ‘ बाल विवाह ‘ पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक ‘सत्य शोधक समाज’, फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।

जन्म परिचय

छत्रपति साहू महाराज का जन्म 26 जुलाई , 1874 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम ‘यशवंतराव’ था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण

दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च ,

1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था।

विवाह

छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के

मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।

शिक्षा

साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के ‘राजकुमार महाविद्यालय’ और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति साहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि- “आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।

यज्ञोपवीत संस्कार

साहू महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए

श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- “चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।” ब्राह्मण पंडित की बातें साहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज साहू के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी दी। तब इस मामले पर साहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर साहू महाराज ने गुस्सा होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।

आरक्षण की व्यवस्था

सन 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन

1894 में, जब साहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे। साहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में साहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया। दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा द्वारा अगस्त , 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 23 फ़रवरी , 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की थी। यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के क़रीबी थे। 10 जुलाई , 1905 को इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि- “चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है, जो कि क्षत्रिय घराना था। इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति साहू महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं।”

स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना

मंत्री ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या

क्षत्रिय हो तो किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर

शूद्र शख्स बैठा हो तो दिक्कत होती थी। छत्रपति साहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति साहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा , महार, ब्राह्मण,

क्षत्रिय , वैश्य , ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने की पहल की। साहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा के तौर पर साहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने ‘ प्रार्थना समाज’ के लिए भी काफ़ी काम किया था। ‘राजाराम कॉलेज’ का प्रबंधन उन्होंने ‘प्रार्थना समाज’ को दिया था।

कथन

छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- “वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।”

साहू महाराज जी ने 15 जनवरी , 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- “उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि- “छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।”

15 अप्रैल, 1920 को नासिक में ‘उदोजी विद्यार्थी’ छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए साहू महाराज ने कहा था कि- “जातिवाद का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए।

समानता की भावना

छत्रपति साहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के लोगों को समानता की नज़र से देखा। साहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।

भीमराव अम्बेडकर के मददगार

ये छत्रपति साहू महाराज ही थे, जिन्होंने ‘ भारतीय संविधान ‘ के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की। महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए, ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके। साहू महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के ‘मूकनायक’ समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी।

निधन

छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई,

1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे जायेंगे।

असमानता के खिलाफ लड़ाई में भारत का बेहद खराब प्रदर्शन ,152 देशो की सूची में भारत 132वे स्थान पर ।

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफेम एंड डेवलपमेंट इंटरनेशनल द्वारा विश्व के 152 देशो के असमानता को कम या खत्म करने की प्रतिबद्धता को लेकर एक रैंकिंग इंडेक्स जारी किया गया है जिसमे भारत का बेहद ख़राब प्रदर्शन है और भारत इस 152 देशो की सूची में 132वे स्थान पर है जबकी स्वीडन शीर्ष पर है और इस सूचकांक में नाइजीरिया सबसे निचले पायदान पर है ।इस इंडेक्स में ओईसीडी (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) में शामिल देशों ने स्वीडन की अगुवाई में सर्वोच्च प्रदर्शन किया है जबकि नाइजीरिया सबसे निचले पायदान पर है. विकसित देशों में अमेरिका सबसे असमानता वाला देश है. हालांकि, यह दुनिया के इतिहास में सबसे धनी देश रहा है. हैरत की बात यह है कि ‘ग्रॉस नेशनल हैपिनेस’ का टर्म इजाद करनेवाला भूटान इस इंडेक्स में भारत से भी नीचे 143वें नंबर पर है. भारत के निकट पड़ोसी देशों में नेपाल (81) और चीन (87) को छोड़कर सभी का स्थान 138 से 150 के बीच है. इस तथ्य के मद्देनजर कि इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी गरीब आबादी रहती है, यह खबर चिंताजनक है. अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) आक्सफैम और डेवलपमेंट फाइनेंस इंटरनेशनल ने मिलकर सूचकांक एवं असमानता रिपोर्ट जारी की है. इसका मकसद उन देशों की सरकारों के असमानता मिटाने की दिशा में अब तक के प्रयासों का आकलन करना है, जिन्होंने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के तहत असमानता घटाने का संकल्प लिया था. इंडेक्स में मुख्य रूप से उन कदमों पर फोकस किया गया है, जो सरकारें समाज में बराबरी लाने के लिए उठा सकती हैं, न कि उन कदमों पर जिनसे बढ़ती असमानता पर ब्रेक लग सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर सरकारी खर्च आश्चर्यजनक रूप से कम है. टैक्स का ढांचा भी कागजों पर तो आम लोगों के हित में दिखता है, लेकिन व्यावहारिक धरातल पर कई प्रोग्रेसिव टैक्स वसूले नहीं जाते. श्रम अधिकारों के पैमाने पर भी भारत का प्रदर्शन कमजोर है. यही हाल वर्क प्लेस पर महिलाओं के सम्मान का भी है. रिपोर्ट कहती है कि भारत को व्याप्त असमानता में एक तिहाई कटौती करनी होती तो अब तक 17 करोड़ लोगों को गरीबी से निजात दिला दी जाती. लेकिन, इसके उलट नामीबिया ने स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करके अपने यहां गरीबी की दर 53% को आधा कम कर 23% पर ला दिया है.। 

भारत देश का असमानता ख़त्म करने की प्रतिबद्धता खत्म करने को लेकर जारी की सूचकांक में 132वे स्थान पर आना चिंताजनक है और यह सरकारो(केन्द्र एवं राज्य) का विकाश की रेस में पिछड़े लोगो के प्रति उदासीन रवैये को प्रदर्शित करता है ।अगर समय रहते स्थित्ति में सुधार नही लाया गया तो देश की दशा और बिगड़ सकती है ।

प्रतिशोध का प्रतीक है वीरांगना फूलन देवी की अमर गाथा

25 जुलाई ​शहादत दिवस पर विशेष} 

राम विलास पासवान को राखी बांधती हुई फूलन देवी

फूलन देवी (10 अगस्त 1963  25 जुलाई 2001) 

वीरांगना फूलन देवी डकैत से सांसद बनी एक भारत की एक राजनेता थीं। एक निम्न जाति में उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा का पूर्वा में एक मल्लाह के घर हुअा था। फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में हुई थी लेकिन उनके पति और पति के परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था। बहुत तरह की प्रताड़ना और कष्ट झेलने के बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ था। धीरे धीरे फूलनदेवी ने अपने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बनीं।

गिरोह बनाने से पहले गांव के कुछ लोगों ने कथित तौर पर फूलन के साथ दुराचार किया। फूलन इसी का बदला लेने इसी का बदला लेने की मंशा से फूलन ने बीहड का रास्‍ता अपनाया। डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्‍लाह से रही। माना जाता है कि पुलिस मुठभेड में विक्रम की मौत के बाद फूलन टूट गई।

आमतौर पर फूलनदेवी को डकैत के रूप में (रॉबिनहुड) की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था। सबसे पहली बार (1981) में वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में तब आई जब उन्होने ऊँची जातियों के बाइस लोगों का एक साथ तथाकथित (नरसंहार) किया जो (ठाकुर) जाति के (ज़मींदार) लोग थे। लेकिन बाद में उन्होने इस नरसंहार से इन्कार किया था।

बाद में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकड़ने की बहुत सी नाकाम कोशिशे की। इंदिरा गाँधी की सरकार ने (1983) में उनसे समझौता किया की उसे (मृत्यु दंड) नहीं दिया जायेगा और उनके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा और फूलनदेवी ने इस शर्त के तहत अपने दस हजार समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

सांसद फूलन देवी जी की अर्थी को कंधा देते मुलायम सिंह यादव

बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया। 1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से (लोकसभा) का चुनाव जीता और वह संसद पहुँची। 25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी। उसके परिवार में सिर्फ़ उसके पति उम्मेद सिंह हैं। 1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर बहुत सारी आपत्तियां दर्ज कराईं और भारत सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी। फूलन के साथ जमिदारों ने बलात्कार किया था।

दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में कैद अपराधी शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्‍या की। हत्‍या से पहले वह देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से फर्जी तरीके से जमानत पर रिहा होने में कामयाब हो गया। 

सांसद फूलन देवी का हत्यारा शेर सिंह राणा

हत्‍या के बाद शेर सिंह फरार हो गया। कुछ समय बाद शेर सिंह ने एक वीडियो क्‍िलप जारी करके अंतिम हिन्‍दू सम्राट पृथ्‍वीराज चौहान की समाधी ढूढंकर उनकी अस्थियां भारत लेकर आने की कोशिश का दावा किया। हालांकि बाद में दिल्‍ली पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फूलन की हत्‍या का राजनीतिक षडयंत्र भी माना जाता है। उसकी हत्‍या के छींटे उसके पति उम्‍मेद सिंह पर भी आए। हालांकि उम्‍मेद आरोपित नहीं हुआ।

आज 25 जुलाई को उनकी शहादत दिवस पर शत शत नमन