टिप्पणी◆  इंद्रजीत सरोज का निकलना कोई आश्चर्य नही 

उत्तर प्रदेश के ​पूर्व मंत्री  इंद्रजीत सरोज को बहुजन समाज पार्टी से निकाले जाने की ख़बर सुनकर मुझे परेशानी तो थोड़ी हुई पर आश्चर्य नही हुआ क्योंकि जब से बसपा को समझ रहा हूँ वह पासी समाज के नेताओं के लिए राजनीतिक ज़हर जैसा ही लगा। लेकिन इसलिए कम बोलता रहा कि क्योकि पासी समाज का  सरकारी  कर्मचारी /अधिकारी बसपा को अपना माई बाप मान बैठा है इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझता रहा परंतु बहुत दिनों तक बर्दास्त नही हो पाया तो लिखने लगा । 

 बसपा ने राम समुझ पासी  को खत्म करने के लिए आर के चौधरी का इस्तेमाल किया। चौधरी के लिए इंद्रजीत को मजबूत किया। फिर इंद्रजीत को भी रास्ता दिखा दिया। अब जोनल कोर्डिनेटर अमरेंद्र भारतीय को मजबूत किये जाने की ख़बर है। क्योंकि मायावती तथा उसकी जाति के कुछ लोग सतीश मिश्रा के कहने पर संघठन पर एक ही जाति का वर्चस्व चाहते है। 
यह सच है कि बहुजन समाज पार्टी ने दलितों को सत्ता में भागीदार बनाया । उनके अंदर के स्वभिमान को जगाया। उन्हें शासक होने का एहसास कराया कि लोकतंत्र में आपको भी शासन करने का अधिकार है। सत्ता की प्राप्ति के बाद अनुसूचित जातियों के अधिकारी कर्मचारी का अपने विभागों में सम्मान बढ़ा । कथित उच्च वर्ग के छोटे कर्मचारी -अधिकारी अपने से बड़े बड़े दलित अधिकारियों का सम्मान करने लगे । स्कूल में प्याप्त जातीय भेदभाव कम हो गया । 
गांवों में जिस दलित के घर लोग पानी पीना पसंद नही करते थे । सत्ता के करीब रहने वाले दलितों के घर उच्च वर्ग के लोग आकर बैठने लगे। यह सब एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था। 

लेकिन इस परिवर्तन की वजह कोई यह कहता फिरे की बहन जी ने ही सब कर दिया तो यहां मेरा विरोध रहता है। 
इस सामाजिक परिवर्तन में बहुत से नवजवानों ने अपनी आहुति दीं है। बहुजन आंदोलन के लिए कोई स्कूल छोड़ दिया तो कितने नौकरी । न जाने कितनी हत्या हो गई। बहुतो का घर परिवार बर्बाद हो गया। स्वभिमान की इस लड़ाई में  कई लोग सवर्णो  के हत्या के आरोप में जेलों में बंद है। 
बहुजनों की इस लड़ाई में यादव ,कुर्मी ,  मौर्य , भर -पासी- खटीक, बाल्मिकी जैसी जातियाँ प्रमुख रूप से आगे आयी । जिनके बलबूते अन्य दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों ने बसपा को वोट देने बूथों में जाने लगे। लेकिन धीरे धीरे इन सभी जातियों के नेताओं को बाहर कर दिया गया। 
संगठन के ढांचे में मायावती के चलते एक जाति का वर्चस्व हो गया। सेक्टर अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष तक के पदों पर जाटव  और चमार का कब्जा हो गया। ब्राह्मण दलित गठजोड़ से सत्ता पाने बाद मायावती का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच गया । संघठन पर सतीश मिश्रा का कब्जा होते ही अन्य सभी दलित और पिछड़ी जातियाँ  उपेक्षित होती चली गई।
यादवों ने समाजवादी पार्टी को अपना लिया तो कुर्मियों ने अपना दल बना लिया। राजभरों ने भी पार्टी खड़ी कर ली। खटिक अधिकांश भाजपाई हो चले। पासी भटकता रह गया क्योंकि पासी बसपा को ही अपना मानने की भूल स्वीकार ही नही किया। आज भी यही हालत है। 
पासी नेता भले ही बाहर हुए लेकिन उनका समाज बसपा का झंडा ही ढों रहा है। पढ़े लिखे पासी अपने समाज के नेताओं को रोंये बराबर भी नही समझता है। जब तक कि पासी जाति का नेता सत्ता में नही है। पासी समाज के लोग उसे बेरोजगार समझ कर टालते रहते है। 
पासी जाति की गौरवशाली ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। लेकिन वर्तमान में सभी जातियों में यह राजनीतिक रूप से उपेक्षित है।   

(सम्पादक अजय प्रकाश सरोज की कलम से)

  

राष्ट्रीय महासचिव पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज भी बसपा से बाहर

​इलाहाबाद. बसपा के बड़े नेता इंद्रजीत सरोज को बुधवार को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। वे बसपा सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे। उन्हें बसपा चीफ मायावती का बेहद करीबी माना जाता था और इलाहाबाद व कौशांबी में वे बसपा के मजबूत और बड़े नेताओं में गिने जाते थे। दूसरी ओर, सरोज के निष्कासन से नाराज सैकड़ों बसपा वर्कर्स ने तत्काल पार्टी से इस्तीफा दे दिया। पैसा न वसूल कर पाने के चलते निकाला गया… 
 

– वहीं, पार्टी से निकाले जाने के बाद इंद्रजीत सरोज ने आरोप लगाया कि मायावती मुझसे 15 लाख रुपए मांग रही थीं। जब मैंने विरोध किया तो मुझे निकाल दिया गया। पैसों के लिए किडनी तक बेचने को कहा जाता है।

– सरोज के मुताबिक, मंगलवार शाम 5 बजे मायावती ने खुद फोन पर उनसे बात की और पैसा वसूली न कर पाने की वजह से पार्टी से निकाले जाने की जानकारी दी। सरोज ने आगे कहा कि मायावती का मानसिक संतुलन खराब हो चुका है। उन्हें अपना इलाज कराना चाहिए।

 

1996 में पहली बार चुने गए विधायक… 

– इंद्रजीत सरोज 1996 में 13वीं विधानसभा में पहली बार बसपा की ओर से कौशांबी जिले की मंझनपुर से विधायक चुने गए। वे 1997 से 1998 के बीच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति समितियों के मेंबर रहे। इसके अलावा वह याचिका समिति के भी मेंबर रहे। 

– साल 2001 में उन्हें बसपा के विधानमंडल दल का सचेतक बनाया गया। 2002 में हुए 14वीं विधानसभा चुनाव में वे फिर से विधायक चुने गए। मई 2002 से अगस्त 2003 तक मायावती मंत्रिमंडल में वे समाज कल्याण मंत्री, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण मंत्री और बाल विकास पुष्टाहार मंत्री रहे। 

– इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश समाज कल्याण निर्माण निगम के अध्यक्ष रहे। साथ ही वह सदस्य कार्य मंत्रणा समिति के भी मेंबर रहे। 

 

2007 से 2012 के बीच मिली कई विभागों की जिम्मेदारी 

– 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में इंद्रजीत सरोज एक बार फिर कौशांबी के मंझनपुर से निर्वाचित हुए। बसपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी। इस बीच 2007 से 2012 के दौरान सरोज को मायावती मंत्रिमंडल में कई विभागों की जिम्मेदारी मिली।

– वे समाज कल्याण विभाग, बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग, कृषि विपणन विभाग और अनुसूचित जाति एवं जनजाति विभाग के मंत्री बनाए गए। इस बीच वह नियम समिति, विशेषाधिकार समिति, कार्य मंत्रणा समिति के सदस्य चुने गए। 

– 2012 के विधानसभा चुनाव में वह चौथी बार मंझनपुर से विधायक चुने गए। जून 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी में शामिल होने के बाद इंद्रजीत सरोज को प्रतिपक्ष का नेता बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन बाद में मायावती ने गयाचरण दिनकर को ये जिम्मेदारी दे दी। इसी के बाद से पार्टी के अंदर दिक्कतें शुरू हो गईं। 

 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की पढ़ाई… 

– कौशांबी जिले के नगरोहा गांव में 14 जनवरी 1963 को जन्मे इंद्रजीत सरोज ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन तक की एजुकेशन प्राप्त की। 

– 2 नवंबर 1984 को उनकी पुष्पा सरोज से शादी हुई थी। दोनों के एक बेटा और तीन बेटियां हैं। 

नाराज नेता जिन्होंने  बसपा  छोड़ी-

गुजरात में पासी जाति ,एक अवलोकन

गुजरात मे पासी जाति की बड़ी आबादी है। कि जिले पासी बहुल हो चुके है लेकिन सरकार द्वरा  जनगणना न कराये जाने कारण इनकी संख्या कम बतलाई जाती है।

 पासी जाति की मुख्य उप जाति गूजर  है। जो यहाँ की बहुतायत मात्रा में पाई जाति है। “गूजर” जातियों के निवास के कारण ही यह क्षेत्र महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात बना । उत्तर प्रदेश के गुजर असज भी अपने को पासी बताते है। वो जानते और मानते है कि हमारे पुरखे पासी थें। जाति की पहचान पुरखों की वजह से होती है।
पासी जाती  भारत की एक मुख्य उपजाति हैं जिसे भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। यह उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की दूसरी बड़ी आबादी वाली उपजाति है । अनुसूचित जाति की आबादी में 16 प्रतिशत पासी हैं।

गुजरात राज्य में अनुसूचित जाति की सूची में पासी जाति को 24 वा स्थान प्राप्त हुआ है जबकि हरियाणा में 27 वे क्रम पर हिमाचल में 42 वे क्रम पर झारखंड में 10 वा स्थान प्राप्त हुआ है।
गुजरात सरकार द्वारा कराये गए 2001 के सर्वेक्षण के आंकड़ों से प्राप्त जानकारी के तहत पासी जाति के लोग 2,278 हैं लगभग पूरे गुजरात में 20,000 से अधिक पासी जाति के लोग का समावेश है।
किंतु पासी जाति के लोग अपनी जाति अधिकतर भिन्न-भिन्न लिखते हैं इसलिए सही आंकड़ों का मिल पाना संभव नहीं हो पाता जैसे —पासी,राजपासी,पासवान, गूजर ,अहेरिया ,बहेलिया ताड़मालि,चौधरी,भारतीय,सरोज,रावत,बोरासी,बहेरिया,रघुवंशी,नागवंशी,वर्मा,कैथवास’पसमांगता इत्यादि ।
वर्षों से शोषित वंचित तिरस्कृत यह समाज आजादी के बाद तेजी से विकास किया है। आज  के दौर में यह जाति भारतीय समाज में सम्मानजनक स्थान पर है। अपनी मेहनत लगन और काबिलियत से यह स्थान पासी जाति ने प्राप्त किया है ।
पासी जाति सामाजिक रुप से संगठित होने के कारण अपनी ही जाति के लोगों में ज्यादातर विवाह होता है । पर आज के आधुनिक युग में अब अंतरजातीय विवाह भी देखने को मिल रहा है जो बच्चों के उज्जवल भविष्य को देखते हुए समाज में स्वीकार होने लगे हैं।

गुजरात में पासी समाज ऐसे घुल मिल गया है जैसे शरबत में शक्कर आज पुलिस,वकील डॉक्टर,जज,बिजनेसमैन,इत्यादि सम्मानजनक स्थान पर पासी जाति के लोग कार्यरत हैं
गुजरात में पासी समाज की अनेक संस्थाएं हैं “गुजरात पासी विकास ट्रस्ट”,  ‘पासी समाज वडोदरा ‘जो कि समय समय पर कार्यक्रम करती रहती हैं । 26 जनवरी 15 अगस्त इन दिनों में कार्यक्रम होते हैं जिसमें मुख्य मुद्दे होते हैं।
जाति के प्रमाण पत्र को लेकर जो कि अभी यह कोर्ट में चल रहा है पासी समाज के बच्चों के भविष्य को  लेकर वरिष्ठ लोग उनका मार्गदर्शन करते हैं
युवक-युवती परिचय इस मौके पर कराया जाता है जिसमें लडके एवं लडकिया अपना परिचय देते हैं वह क्या करते हैं कहां से हैं इत्यादि।
पासी समाज द्वारा अहमदाबाद में *पासी समूह विवाह* का भी आयोजन 2008 में किया गया था जिसमें कई वरिष्ठ अतिथियों को बुलाया गया था 
लखनऊ से इलाहाबाद,आगरा मध्य प्रदेश से विवाह में सम्मिलित होने के लिए अतिथिगणों ने आकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी । एवं वर वधू को बधाई और शुभ आशीर्वाद दिया था । 
गुजरात में पासी संस्थाएं अब और भी सक्रिय भूमिका अदा करने लगी हैं 2017 में वडोदरा में हुए 26 जनवरी के कार्यक्रम में देखने को मिला दूर-दूर से लोग कार्यकर्म में समिलित होने के  लिए आये थे।

इस से ही पता लगता है कि पासी समाज की संस्थाएं अपनी सक्रिय भमिका अदा कर रही है।

(लेखिका –शोभा सरोज सोलंकी  जी मूलतः  गुजरात की है विवाह के बाद अब मुम्बई में रहकर पढ़ाई के साथ सामाजिक कार्य भी करती है)

पासी समाज से मंत्री नहीं बनाये जाने पर नाराजगी


बिहार की नवगठित एनडीए की सरकार में पासी जाति के मंत्री नहीं बनाये जाने पर राष्ट्रीय पासी सेना ने नाराजगी जाहिर की है। पासी सेना के अध्यक्ष सुजीत कुमार चौधरी ने कहा कि पिछली सरकार में पासी जाति के दो मंत्री मुनेश्वर चौधरी एवं डॉ. अशोक चौधरी थे, पर इस बार मंत्रिमंडल में पासी जाति की उपेक्षा की गयी है, जिसके कारण देशभर के पासी जाति के लोगों में घोर निराशा है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि एनडीए में पासी जाति के विधायक नहीं है, मनीष कुमार एनडीए में एकमात्र जदयू के विधायक हैं, जो पासी जाति के हैं। ये लागातार तीन बार से जीत रहे हैं। फिर भी इन्हें नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि हम मुख्यमंत्री से मिलकर पासी जाति के मंत्री बनाने की मांग करेंगे।

सिकंदरा से कांग्रेस विधायक बंटी चौधरी ने भी पासी समाज से मंत्री नहीं बनाये जाने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ताड़ी पर प्रतिबंध लगा कर पहले ही पासी समाज का परंपरागत रोजगार छीन कर सबको बेरोजगार कर दिए हैं।
समावेशी विकास की बात करने वाले नीतीश ने पासी समाज की उपेक्षा क्यों कि इस सवाल का जबाब पासी समाज के लोग जानना चाहते है।

भाजपा नेता स्वामी ने कहा – आरक्षण को वहां पहुंचा देंगे, जहां होना या न होना बराबर होगा

नई दिल्ली ।। आरक्षण को एकदम खत्म करने की बात करना पगलपन है, लेकिन भाजपा सरकार आरक्षण को उस स्तर तक पहुंचा देगी, जहां उसका होना या नहीं होना बराबर होगा। इस दिशा में काम शुरू हो गया है।

उपरोक्त बातें एक महिला पत्रकार के सवाल के जवाब में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कही है। महिला पत्रकार का सवाल था कि 97 फीसदी मार्क्स लाने के बाद भी प्रवेश विश्वविद्यालयों में नहीं मिल रहा है। जबकि 50 फीसदी वाले छात्र कक्षा में बैठ जाते हैं।

इस मुद्दे पर फेसबुक पर डॉ. सुनील कुमार सुमन लिखते हैं…

पैर के नीचे की ज़मीन खोदने के कई तरीके होते हैं। जरूरी नहीं कि इसे दिखाकर ही किया जाए। ये महाधूर्त और मायावी लोग हैं। विध्वंस करने में सिद्धहस्त हैं। ये बोलते कम हैं, करते बहुत ज्यादा हैं। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो कहा, भाजपा सरकारें इस काम में लगी हुई हैं। अभी हमारे लोगों को नहीं दिख रहा, लेकिन वंचित तबकों के वजूद की संवैधानिक ज़मीन दरकाने का काम अंदर-अंदर तेजी में चल रहा है।

Achchhelal Saroj 

बिहार के पासी समाज के साथ भेदभाव , नवगठित सरकार के मंत्रिमंडल में जगह नही

मनीष कुमार (विधायक धुरैया जदयू ) 

विशेष तथ्य :-

  • मनीष कुमार लगातार तिन बार से है धुरैया के विधायक ।
  •  जदयू -बीजेपी वाली राजग गठबंधन की सरकार में एकमात्र पासी विधायक है मनीष , बावजूद इसके मंत्रिमंडल में शामिल नही किया गया ।
  • राजग और नितीश कुमार ने पासी समाज के साथ किया भेदभाव ।   

 

पटना (बिहार):- बिहार में राजनितिक उठापटक के बीच राजग गठबंधन वाली नई सरकार गठित हो गयी साथ ही साथ नए मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो गया, लेकिन यह मंत्रिमंडल विस्तार बिल्कुल निराशाजनक है महागठबंधन वाली सरकार के तुलना में क्यूंकि इस सरकार के मंत्रीमंडल में इस बार तीन ही महादलित सदस्यों को मंत्री बनाया गया है ।जबकि पिछली सरकार में चार महादलित सदस्य थे जिसमे दो लोग पासी समाज से थे और वो भी अच्छे मंत्रालयो  का प्रभार उन दोनों लोगो के पास था  अशोक चौधरी(कांग्रेस) को शिक्षा मंत्रालय का प्रभार मिला था जबकि राजद के मुनेश्वर चौधरी को खनन व भूतत्व मंत्रालय का प्रभार मिला था ।हालाकि मुख्य्मंत्री नितीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड से एक भी नही थे जबकि उनकी पार्टी से मनीष कुमार जी बांका के धुरैया विधानसभा से लगातार तिन बार जीतते आ रहे है लेकिन इस बार के सरकार में मनीष कुमार जी के सतासिन पार्टी में पासी समाज के एक मात्र सदस्य होने के  कारण उनका मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने की सरकार और नितीश कुमार से बहुत उम्मीद था पासी समाज को लेकिन मनीष कुमार जी को मंत्रिमंडल में जगह न देकर एक बार फिर नितीश कुमार ने पासी समाज का अपमान किया है और अपनी पासी विरोधी नीतियों पर कायम है क्यूंकि जनता दल यूनाइटेड से वैसे वैसे लोगो को मंत्रिमंडल में जगह दिया गया है  जो बहुत कम पढ़ लिखे लोग है उदाहरण के लिए आपलोग निचे दी हुई सूचि देख सकते है किस तरह नितीश कुमार नेआठवी पास ,दसवी पास और बारहवी पास लोगो को नितीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया कई लोगो को तो  दुबारा मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है जैसे संतोष निराला और जयकुमार सिंह इन दोनो लोगो को दुबारा जगह दी गयी है जबकि साफ़ सुथरा छवि वाले सुशिक्षित सीबीएसई सैनिक स्कूल तिलैया से पढ़े और पार्टी के प्रति समर्पित लगातार तिन बार से बांका के धुरैया बिधानसभा क्षेत्र से जितने वाले विधायक मनीष कुमार को नितीश कुमार ने मंत्रिमंडल में जगह नही दिया ये विचारणीय सवाल है ? न तो मनीष कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप है और न ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप है तो फिर उन्हें मंत्रिमंडल में क्यों नही शामिल किया गया  । ये पासी समाज का घोर अपमान है । बिहार राज्य में पासी जाती का सरकार में एक मात्र सदस्य मनीष कुमार है जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नही किया गया है जबकि बिहार में पासी समाज की जनसंख्या करीब 25 से 30 लाख है ।  नितीश ने मनीष कुमार को मंत्रिमंडल में शामिल न करके  अपनी पासी विरोधी छवि को कायम कर दिया है जैसे पिछले दिनो पासी समाज के रोजगार ताड़ी के उतारने और बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर किया था । मनीष कुमार की तमाम उपलब्धियों के बावजूद उनको मंत्रिमंडल में शामिल न करना नितीश कुमार का पासी के प्रति भेद भाव वाली मानसिकता को प्रदर्शित करता है जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनावो में भुगतना पड़ेगा ।

नाम शिक्षा
1.       ललन सिंह ग्रेजुएट
2.       संतोष निराला ग्रेजुएट (एल एल बी )
3.       जयकुमार सिंह इंजीनियरिंग (सिविल)
4.       श्रवण कुमार बारहवी पास
5.       मंजू वर्मा बारहवी पास
6.       खुर्शीद उर्फ़ फिरोज अहमद दसवी पास
7.       कपिल देव कामत आठवी पास
8.       दिनेश चन्द्र यादव दसवी पास
9.       मदन सहनी ग्रेजुएट
10.   बिजेंद्र यादव ग्रेजुएट
11.   रमेश ऋषिदेव पोस्ट ग्रेजुएट

ये सूचि नितीश के पार्टी जदयू के मंत्रियो का है जिसमे उनकी शिक्षा पर प्रकाश डाला गया है आपलोग खुद देखिये नितीश जी का चुनाव मंत्री पद के लिए कितना उपयुक्त है कैसे उन्होंने पार्टी में एक कुशल और लगातार तिन बार से जीत दर्ज करते हुए और पार्टी के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले धुरैया विधायक मनीष कुमार को मंत्रिमंडल में जगह न देकर उनकी उपेक्षा की , क्या मनीष कुमार इन सभी उपर्युक्त नेताओ से किन्ही मायने में कम है जो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नही दिया गया ? या फिर इसका वजह  नितीश कुमार का पासी विरोधी मानसिकता है ? सवाल है ? जरुर सोचियेगा .

लन्दन जाकर जालियावालाबाग हत्याकांड का प्रतिशोध लिये थे बहुजन क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह ने , शहादत दिवस पर नमन !

             

जन्म 26 दिसम्बर 1899
मृत्यु 31 जुलाई 1940 (उम्र 40)
पेंटोविले जेल , यूनाइटेड किंगडम
अन्य नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद
संगठन गदर पार्टीहिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशनभारतीय श्रमिक संघ
आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
धार्मिक मान्यता सिक्ख (दलित)

     जलियांवाला बाग नरसंहार, किसका खून नही खुल जाता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर? ऐसा कोई भारतीय नही , जिसका दिल और दिमाग अंग्रेजों के प्रति घृणा से भर नहीं उठता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर। पर बहुजन क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह  जैसे देश के वीर सपूत ने अंग्रेजों की इस कायरता का भरपूर जवाब दिया , और लन्दन में जाकर जलियांवाला बाग नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को उसी की सरजमीं पर गोलियों से भून डाला  ,  शहीद उधम सिंह की सबसे बड़ी बात ये थी की उन्होंने माइकल ओ डायर के सिवाय और किसी को भी निशाना नही बनाया और ठीक भगत सिंह जी के अंदाज में आत्मसमर्पण कर दिया , अंग्रेजों ने फांसी की सजा की सुनवाई के दौरान जब उधम सिंह से पूछा कि उन्होंने किसी और को गोली क्यों नहीं मारी, तो वीर उधम सिंह का जवाब था कि सच्चा हिंदुस्तानी कभी महिलाओं और बच्चों पर हथियार नहीं उठाते। ऐसे थे हमारे शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह। उधम सिंह को बाद में शहीद-ए-आजम की वही उपाधि दी गई, जो सरदार भगत सिंह को शहादत के बाद मिली थी।    आज  31 जुलाई को शहीद वीर उधम सिंह जी का शहादत दिवस है श्री पासी सत्ता परिवार उनको श्रध्दांजलि अर्पित करता है !

  विशेष जानकारी  

  • जालियावाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे उधम सिंह         
  •    शहीद उधम सिंह ने लन्दन जाकर जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लिया  
  •     सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है
  •   उत्तर भारतीय राज्य उतराखंड के एक ज़िले का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है   

जीवनी :- 

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर  जिले के सुनाम  गाँव में सिक्ख (दलित ) परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

  • जलियावालाबाग हत्याकांड के 21 सालो  बाद लन्दन जाकर लिया बदला 

उधम  सिंह के सामने ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। वे प्रत्यक्षदर्शी थे ,  राजनीतिक कारणों से जालियावाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई, सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी। अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका , नैरोबी ,ब्राज़ील और अमेरिका  की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

  • शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है.

आइये आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर , सुनाम  स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रन्तिकारी का  घर है… कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए करोडो रुपये बहाती है, बीजेपी सरकार संघियों के स्मारक और मुर्तिया लगाने के लिए करोडो खर्च करती है लेकिन आजतक इस देश के सच्चे वीर सपूत के नाम से कोई स्मारक नही बना और न ही इनके घर और पूर्वजो की निशानी को संरक्षित किया गया

     

 

 

बिहार :-नवादा में पासी समाज द्वारा बनाया जा रहा है भवन “चौधरी सेवा संस्थान”

अखिल भारतीय पासी समाज की एक दिवसीय बैठक सम्पन्न !

नवादा :बिहार . 30/जुलाई 2017

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बिहार मे यह गौरव की बात है की सामाजिक बैठक के लिये चौधरी भवन का निर्माण करवाया जा रहा है .यह बैठक उसी नवनिर्मित चौधरी भवन मे किया गया जो चौधरी नगर के वार्ड संख्या 28 मे आता है ! जिला मे बीते दिन घटना या विकास के मुद्दे पर बात चीत करने के लिये जगह नही थी इसी पर पासी समाज के सामाजिक और राजनैतिक कार्यकताओं ने चिंतन कर चौधरी भवन का निर्माण करवाया जो अभी पूरा भवन तैयार नही हो पाया है इसलिए एक बैठक बुलाई गई जिसने कमिटी का भी गठन किया गया !

 बैठक प्रमोद चौधरी की अध्यक्षता मे की गई !पासी सेवा संस्थान के नाम से संगठन का रजिस्टेशन करवाने का भी प्रस्ताव रखा गया !इस बैठक मे बसंती देवी पूर्व जिला परिषद .चन्दन कुमार चौधरी .भीम आर्मी जिलाध्यक्ष .अम्बिका चौधर प्रमुख,निशांत चौधरी(प्रतिनिधि बिहार श्री पासी सत्ता पत्रिका).सीता राम चौधरी .गुड्डू चौधरी .संजय चौधरी .प्रमुख .विजय चौधरी के अलावा दर्जनों पासी समाज के कार्यकर्ता शामिल हुये !

 by:- चन्दन कुमार चौधरी ,नवादा (बिहार)

Editजय भीम .जय बिजली पासी .

भभुआ कैमूर में छत्रपति शाहूजी महाराज के 143वी जयंती के उपलक्ष्य में हुआ संगोष्ठी का आयोजन ।

 

भभुआ (कैमूर, बिहार ) :- आज दिनांक 30-07-2017 को बिहार राज्य के कैमूर जिले के जिला मुख्यालय भभुआ में छत्रपति शाहूजी महाराज के 143वी जयंती के उपलक्ष्य में एकदिवसीय बहुजन संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी “आज के सामाजिक परिदृश्य में आरक्षण पर बहुजन छात्र /युवाओ की भूमिका “ बिषय पर आयोजित की गयी ।                                      


       मुख्य बाते

  • आरक्षण के जनक थे छत्रपति शाहूजी महाराज ।
  • कुर्मी जाति में जन्म लिए थे ।
  • 143वी जयंती के अवसर पर संगोष्ठी आयोजित की गयी ।
  • संगोष्ठी का विषय “ आज के सामाजिक परिदृश्य में आरक्षण पर बहुजन छात्र ,युवाओ की भूमिका।     

       

भभुआ में आयोजित इस जयंती समारोह सह संगोष्ठी में शामिल होने के लिए पुरे देश के तमाम विख्यात बहुजन चिन्तक, और सामाजिक कार्यकर्त्ता उपस्थित हुए । प्रमुख रूप से दिल्ली विश्वविधालय के हिन्दू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल , अम्बेडकर चेतना मंच के चेयरमैन बुद्ध शरण हंस , आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ के इंजिनियर हरीकेश्वर राम ,वाराणसी हिन्दू विश्वविधालय से किशोर कुणाल, रोहतास जिले के विख्यात दलित चिन्तक अरविन्द कुमार चक्रवर्ती , मनीष रंजन , डॉ विनोद पाल, संतोष यादव ,इ. सुजीत कुमार, संजय कु. सुमन , उत्पल बल्लव ,रजनीश कुमार अम्बेडकर आदि लोग उपस्थित हुए , तथा इन सभी वक्तो ने बारी बारी से आपने विचार प्रस्तुत किये । इस सभा में पुरे कैमूर और निकटवर्ती रोहतास जिले के सैकड़ो बहुजन छात्र और युवा शामिल हुए , और समारोह सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ।

सड़क पर है चयनित दलित सहायक समीक्षा अधिकारी 

उत्तर प्रदेश में लोकसेवा आयोग से चयनित ७८ दलित सहायक समीक्षाधिकारी योगदान न कर पाने के कारण पिछले 5 वर्ष से सडक पर हैं |उनका अपराध यह है कि वे दलित हैं |दलित होने के कारण इनकी ज्वाइनिंग नही हो पा रही है |पिछली सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और वर्तमान सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के समक्ष सार्वजनिक रूप से मैंने इनके मुद्दे को उठाया था और लिख कर भी दिया था |तमाम दलित सांसद और विधायक भी मुख्यमंत्री ,मुख्य सचिव से मिल कर इनकी पैरवी कर चुके हैं |पिछले महीने प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन और कार्मिक तथा न्याय विभाग के अधिकारी  मुख्य सचिव के यहाँ बैठक किये और तय हुआ कि पद उपलब्ध है तो इन्हें ज्वाइन कराने के लिए कैबिनेट के समक्ष प्रस्ताव भेजा जाय |प्रस्ताव भेजा जाता इसके पहले प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन जो दलित समाज के थे स्थानांतरित हो गये |अब बदले हालात में फिर पत्रावली विपरीत दिशा में चलने की सूचना मिल रही है |
इतना सब होने के बाद भी चयनित दलित अधिकारी हिम्मत से लड़ रहे हैं |ये बिना किसी राजनैतिक भेदभाव के भाजपा,समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी के कार्यालयों पर भी फरियाद कर चुके हैं |बसपा कार्यालय में तो बहन जी से मिलने की जिद पर  इन अभ्यर्थियों के साथ मारपीट भी की गई |वहीँ पिछले वर्षों में  एक मंत्री के कहने पर सैफई गये इन अभ्यर्थियों से एक बेहद जिम्मेदार पदाधिकारी ने यहाँ तक कह दिया कि तुम लोग दलित हो तुम्हारी ज्वाइनिंग नही होगी |भाजपा के सांसद कौशल किशोर ,संसद सदस्य  सावित्री बाई फूले भी इनकी पैरवी कर रही हैं किन्तु इन्हें न्याय नहीं मिल रहा |मैंने इस केस को स्टडी किया है इनका अधियाचन सही था इनका चयन भी सही था ,अडचन सिर्फ यह आ रही है कि ७८ दलित अधिकारी एक साथ कैसे ज्वाइन करा दिए जायं |इनका अपराध सिर्फ यह है की ये दलित है |ये लड रहे हैं ये जीतेंगे ,हम सब इनके साथ हैं |यह जुलुस इन्ही का है न्याय के लिए लड़ रहे ७८ लोकसेवा आयोग से चयनित  दलितसहायक  समीक्षाधिकारी |(– लाल जी प्रसाद निर्मल की वाल से )