पुणे भीमा कोरेगाव दलित हमले के विरोध में इसवा और भीम आर्मी बिहार ने पटना में फूंका मुख्यमंत्री फणनवीस का पुतला !

पटना (बिहार) :- बीते 01 जनवरी 2018 पुणे भीमा कोरेगाव की हिंदूवादी संगठनों आरएसएस और अन्य संगठनों द्वारा शौर्य दिवस मानाने जा रहे दलितों पर किये गये हमले की घटना को लेकर पुरे देश के मूलनिवासी बहुजनो में रोष है , इसका असर महाराष्ट्र बंद से पता चल रहा है है साथ ही देश के कोने कोने से अनेको दलित और बहुजन संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस का पुतला दहन किया जा रहा है और इस मामले की किसी हाइकोर्ट के सिटिंग जज के उच्चस्तरीय जांच कराइ जाने की मांग की जा रही है ,  इसी कड़ी में बिहार की राजधानी पटना के कारगिल चौक पर इंडियन स्टूडेंट वेलफेयर एसोसिएशन व भीम आर्मी बिहार की ओर से भीमा कोरेगाव हमले के विरोध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस का पुतला दहन करते हुए उन पर ये आरोप लगाया गया की उनको पता था की इस बार शौर्य दिवस का 200वा वर्षगाठ है तो भीड़ तो जुटेंगी ही तो इसके अनुपात में उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था क्यों नही करायी , भीमा कोरेगाव दलित हमलो के पीछे आरएसएस , शम्भाजी भिड़े  और हिन्दू एकता मंच के संस्थापक मिलिंद एकबोते  का हाथ है और इन सभी को महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार और बीजेपी पार्टी का भी समर्थन प्राप्त है , आपकी जानकारी के लिए बता दू की भीमा कोरेगाव हिंसा में शम्भाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे पर प्रथिमिकी दर्ज हो चुकी है , ये शम्भाजी भिड़े वही है जिसे पीएम मोदी अपना गुरु भी मानते है ,

बिहार की राजधानी पटना के कारगिल चौक पर बुधबार को करीब सौ  डेढ़ सौ की संख्या में छात्रो ने पुतला दहन तथा प्रदर्शन किया , भीम आर्मी बिहार तथा इसवा के प्रदेश अध्यक्ष अमर आजाद ने कहा की महाराष्ट्र के पुणे के भीमा कोरेगाव में हिन्दू आतंकवादियों द्वारा  दलितों पर जानलेवा हमला बेहद शर्मनाक है ,भाजपा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार बाधा है जिस देश का संविधान बाबा साहेब आंबेडकर ने बनाया , उनके समुदाय के लोगो पर अभी तक अत्याचार हो रहा है , दलितों को सिर्फ वोट लेने क्ले समय हिन्दू का दर्जा दिया जाता है , चुनाव ख़तम होते ही आरएसएस और बीजेपी के लोग दलितों को दरकिनार कर देते है ,

मौके पर रामबाबू , दीपक कुमार , संजीत , विकाश कुमार, अनुज , गौतम ,त्रिलोकी , संतोष कुमार, दामोदर कुमार ,सुभाष पासवान, अमरदीप राणा , रणजीत , अजय यादव , प्रवीण कुमार मौजूद थे

भारत में महिलाओं की शिक्षा की देवी सावित्रीबाई फूले

नाम– सावित्रीबाई फूले , जन्म– 3 जनवरी सन् 1831 , मृत्यु– 10 मार्च सन् 1897

*उपलब्धि- कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए अनेक कल्याणकारी काम किये.उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है।

*जन्म व विवाह*- सावित्रीबाई फूले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फूले से हुआ।

महात्मा ज्योतिबा फूले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही पिछड़े समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय थी और उन्हें पढ़ने लिखने की अनुमति तक नहीं थी। इस रीति को तोड़ने के लिए ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने सन् 1848 में लड़कियों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला स्त्री विद्यालय था।

*सावित्रीबाई फुले कहा करती थीं* – अब बिलकुल भी खाली मत बैठो, जाओ शिक्षा प्राप्त करो! 💡 सचमुच जहाँ आज भी हम लैंगिक समानता (gender equality) के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं अंग्रेजों के जमाने में सावित्रीबाई फुले ने ओबीसी महिला होते हुए हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जो संघर्ष किया वह अभूतपूर्व और बेहद प्रेरणादायक है. ऐसी महान आत्मा को शत-शत नमन!

*समाज का विरोध* –

सावित्रीबाई फूले स्वयं इस विद्यालय में लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। उन्हें लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने न केवल लोगों की गालियाँ सहीं अपितु लोगों द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों की मार तक झेली। स्कूल जाते समय धर्म के ठेकेदार व स्त्री शिक्षा के विरोधी सावित्रीबाई फूले पर कूड़ा-करकट, कीचड़ व गोबर ही नहीं मानव-मल भी फेंक देते थे। इससे सावित्रीबाई के कपड़े बहुत गंदे हो जाते थे अतः वो अपने साथ एक दूसरी साड़ी भी साथ ले जाती थीं जिसे स्कूल में जाकर बदल लेती थीं। इस सब के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी व स्त्री शिक्षा, समाजोद्धार व समाजोत्थान का कार्य जारी रखा।

*विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष–

स्त्री शिक्षा के साथ ही विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया। साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके। आज देश में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति को देखते हुए उस समय कन्या शिशु हत्या की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना और उसे रोकने के प्रयास करना कितना महत्त्वपूर्ण था इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। विधवाओं की स्थिति को सुधारने और सती-प्रथा को रोकने व विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी उन्होंने बहुत प्रयास किए। सावित्रीबाई फूले ने अपने पति के साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को न केवल आत्महत्या करने से रोका अपितु उसे अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल की और समय पर डिलीवरी करवाई।

बाद में उन्होंने उसके पुत्र यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और ख़ूब पढ़ाया-लिखाया जो बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना। *कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फूले* उन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखीं- ‘काव्य फूले’ ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’ बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करने के लिए वे कहा करती थीं- “सुनहरे दिन का उदय हुआ आओ प्यारे बच्चों आज हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज” *पिछड़ा शोषित उत्थान में अतुलनीय योगदान* सावित्रीबाई फूले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने जीवनकाल में पुणे में ही उन्होंने 18 महिला विद्यालय खोले। 1854 ज्योतिबा फूले और सावित्रीबाई फूले ने एक अनाथ-आश्रम खोला, यह भारत में किसी व्यक्ति द्वारा खोला गया पहला अनाथ-आश्रम था। साथ ही अनचाही गर्भावस्था की वजह से होने वाली शिशु हत्या को रोकने के लिए उन्होंने बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी स्थापित किया। समाजोत्थान के अपने मिशन पर कार्य करते हुए ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ *‘सत्यशोधक समाज’* नामक संस्था का निर्माण किया। वे स्वयं इसके अध्यक्ष थे और सावित्रीबाई फूले महिला विभाग की प्रमुख।

इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शूद्रों(obc) और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त कराना था। ज्योतिबा के कार्य में सावित्रीबाई ने बराबर का योगदान दिया। ज्योतिबा फूले ने जीवन भर निम्न जाति, महिलाओं और पिछड़े शोषितों के उद्धार के लिए कार्य किया।

इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फूले ने जो योगदान दिया वह अद्वितीय है। यहाँ तक की कई बार ज्योतिबा फूले स्वयं पत्नी सावित्रीबाई फूले से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। 28 नवम्बर 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के साथ ही सावित्रीबाई फूले ने भी सत्य शोधक समाज को दूर-दूर तक पहुँचाने, अपने पति महात्मा ज्योतिबा फूले के अधूरे कार्यों को पूरा करने व समाज सेवा का कार्य जारी रखा।

*मृत्यु- इतनी बड़ी करुणा की देवी कि, मौत को भी गले लगा लिया* सन् 1897 में पुणे में भयंकर प्लेग फैला। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए, प्लेग से तड़पते हुए अछूत जाति के बच्चे को पीठपर लाद कर लाने के कारण सावित्रीबाई फूले स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च सन् 1897 को उनका भी देहावसान हो गया।

*सन्देश- उस ज़माने में ये सब कार्य करने इतने सरल नहीं थे जितने आज लग सकते हैं। अनेक कठिनाइयों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद महिलाओं का जीवनस्तर सुधारने व उन्हें शिक्षित तथा रूढ़िमुक्त करने में सावित्रीबाई फूले का जो महत्त्वपूर्ण दया, त्याग और योगदान रहा है उसके लिए देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

समाज की धरोहर के साथ हो रहा खिलवाड़ , किले का अस्तित्व खतरें में

महाराजा बिजली पासी किले को देख कर जितनी खुशी हुई उससे कही ज्यादा दुख हुआ क्योकि किले के विकास के लिये जो फण्ड आता है उसका प्रयोग किले पर कही देखने को नही मिला किले की हालत बद से बत्तर हो चुकी है किले पर समाज द्वारा 25 दिसम्बर 2017 को कार्यक्रम किया गया था कुछ जानकारी के अनुसार उस कार्यक्रम के लिये किले की समिति ने पैसे चार्ज किये थे उसका भी कोई प्रयोग नही हुआ किले पर कि उसी पैसे से किले की सफाई करवा दी जाती वो भी नही हुई।

-पासी स्वाभिमान स्तम्भ टूटा हुआ है। -किले की लाईट गायब है खम्भे माए से। – बहुत से खम्भे ही गायब है। – महाराजा बिजली पासी के मूर्ती के पास दिवाल टूटी हुई है। -फर्स टूटी हुई है। -सीढिया टूटी हुई है। -मैदान मे कचड़ा भरा पडा है। – मैदान मे जानवर टहल रहे है।

आदि बहुत सी कमिया है किले पर इसका जिम्मेदार कौन? पासी शिरोमणि महाराजा बिजली पासी बहुउद्देशीय कल्याण ट्रस्ट इसकी देख रेख कर रहा है तो जिम्मेदारी भी इसकी बनती है किन्तु ये ट्रस्ट सिर्फ समाज के साथ धोखा कर रही है। आप सब से निवेदन है आप सब इस पोस्ट को लाइक करने के बजाये ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और ये बात इस ट्रस्ट के कानो व समाज तक और सरकार तक जरूर पहुचे जिससे सब को पता चले कि समाज की धरोहर के साथ कितना बडा खिलवाड़ हौ रहा है।

-वेद प्रकाश सरोज लालगंज प्रतापगढ़

तेलंगाना में हुइ पासी समाज की बैठक , अनसुचित जाती का दर्जा हासिल करने को बनायीं गयी रणनीति !

तेलंगाना (भाद्रदरी कोठागुदेम ):- आज दिनांक 31 /12/2017 दिन रविवार को तेलांगना राज्य के भाद्रदरी कोठागुदेम जिला के बुदिदागाद्दा बस्ती इलाके में पासी समाज के लोगो की एक बैठक हुयी ,इस बैठक में तेलंगाना में मौजूद सभी पासी भाइयो के जागरूकता , शिक्षा , रोजगार और आपसी तालमेल , समाज को कैसे आगे ले जाया जाए इन सब मुद्दों पर प्रमुखता से चर्चा हुयी , साथ ही साथ सबसे बड़ा चर्चा का विषय ये रहा की तेलंगाना का पासी समाज अनुसूचित जाती का दर्जा कैसे हासिल करे , इन सब मुद्दों पर पासी समाज के लोग एक मीटिंग के रूप में एकत्रित हुए और सभी ने अपना अपना विचार रखा , इस सभा में मुख्य रूप से तेलंगाना पासी समाज के अध्यक्ष सत्यनारायण पासी , उपाध्यक्ष हीरा लाल पासी , सचिव बालाप्रसाद पासी , कोषाध्यक्ष बाबादीन पासी , और राज्य कार्यकारिणी के सदस्य राधेश्याम पासी उपस्थित हुए , इन सब ने उपर्युक्त सभी मुद्दों पर गहन विचार विमर्श किया ,

आपको बता दे की तेलंगाना में पासी जाती के लोग लगभग 10000 दस हजार से 15000 पन्द्रह हजार की जनसँख्या में है और तेलंगाना में इनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति दोनों ही दयनीय है बावजूद इसके तेलंगाना सरकार ने इन पासियो की अनदेखी करते हुए इन्हें पिछड़ा वर्ग में रखा है जबकि भारत के अन्य हिस्सों  उत्तरप्रदेश , बिहार तथा झारखण्ड जहा पासी बहुतायत में पाए जाते है वहां पासी जाती अनुसूचित जाती में है ,

तेलंगाना में पासी जो आज है उनके पूर्वज करीब 129 साल पहले तेलंगाना गए थे , अंग्रेज उन्हें कोयला खदानों में काम करने के लिए लेकर गए थे तब से वे वाही बस गए और आज तक वही है , उन्होंने अनुसूचित जाती का दर्जा हासिल करने के लिए सरकार और सम्बंधित विभागों को बहुत लिखा , बहुत भागदौड़ की लेकिन सरकार और तंत्र इनकी एक नही सुन रही है , इन्होने अन्य राज्यों में पासी जाती के अनुसूचित जाती में होने का हवाला भी सम्बन्धित विभागों को आवेदन के माध्यम से जानकारी देकर दिया लेकिन आज तक कोई ठोस करवाई नही हुई , ये लोग अनुसूचित जाती का दर्जा हासिल करने के लिए आज के सभा में धरना प्रदर्शन और आन्दोलन करने का निर्णय लिया , सभा में महिलाओं की भी भागीदारी रही

आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में पासियो को नही मिलता अनुसूचित जाति का दर्जा , राज्य सरकार ने शामिल किया पिछड़े वर्ग में!

22 दिसम्बर को लखनऊ महाराजा बिजली पासी के किले में आयोजित महराजा बिजली पासी के जन्मोत्सव और आखिल भारतीय पासी समाज के राष्ट्रिय महाधिवेशन में देश के सभी राज्यों से पासी जाती के लोग आये थे और अपनी विचार और अपनी समस्याओ को सामने रख रहे थे , उनमे से कुछ लोग तेलंगाना से भी आये थे तेलंगाना से आये लोगो का प्रतिनिधित्व कर रहे राधेश्याम पासी ने अपनी समस्याओ को मंच पर साझा करते हुए कहा की तेलंगाना में हम पासियो को आर्थिक और सामाजिक स्थिति बदतर होते हुए भी तेलंगाना सरकार ने हम पासियो को अनुसूचित जाती में रखने की बजाय पिछड़े वर्ग में रखा है जिसके कारन हम पासियो को कई तरह की समस्याओ का सामना करना पड़ता है , सबसे बड़ी बेरोजगारी की समस्या है हमारे बच्चे बी टेक , ऍम टेक , एमऐ , बीए, बीसीए ,एमबीए करने के बाद भी नौकरियों में भी नही जा पाते और दूसरी बात हमारी सामाजिक स्थिति भी बहुत दयनीय है , बावजूद इसके तेलंगाना सरकार हमारी समस्याओ पर ध्यान नही दे रही है , इन्होने इसके सम्बन्ध में बताया की हमने इस बारे मनमे सम्बंधित बिभागो को कई बार लिखा है , और भारत के  दुसरे राज्यों में पासी जाती के अनुसूचित जाती में होने का हवाला भी देते हुए सरकार और सम्बंधित विभागों को कई बार आवेदन भेजा लेकिन अब तक कोई जबाबी करवाई नही हुयी ,

राधेश्याम पासी जो की तेलंगाना में जाकर बस गए है मूल रूप से उत्तरप्रदेश के ही है उनसे हुयी लम्बी बातचीत में उन्होंने बताया की करीब 129 साल पहले अंग्रेज कोयला खदानों में काम करने के लिए उत्तरप्रदेश से लोगो को बढ़िया मजदूरी , घर , खाने पिने की  बढ़िया व्यवस्था देने का आश्वासन देकर ले गए जिनमे उत्तरप्रदेश से पासी समाज के लोग एक अच्छी खासी आबादी में गये जिनमे राधेश्याम पासी और जो लपसी आज तेलंगना में है उनके पूर्वज लोग शामिल थे , चूँकि उस समय यातायात का उतना सुगम साधन नही था अत: लोग बैलगाडी से ही गये और पुरे 45 दिनों की लम्बी यात्रा के बाद  22 अक्टूबर 1889  को तेलंगाना के खम्मम जिला के एलेन्दु गाव पहुचे , उस समय आंध्रप्रदेश और तेलंगाना पर निजाम का शासन था , अंग्रेज कोयला के खदानों में काम करने के लिए वहां के स्थानीय  लोगो को शुरू में लगाये तो वो लोग कम करने में सफल नही हो सके वो लोग खादानो में दब के मर जाते थे और मरे हुए लोगो के लाशो को निकल भी नही पाते थे अत: उन्होंने भयभीत होकर काम न करने के कारण अंग्रेजो को देख कर भाग खड़े होते थे अत: अन्ग्रेजो ने मज़बूरी में उत्तरप्रदेश के पासी लोगो को लेकर कम करने के लिए तेलंगाना लेकर आये , जिनमे से लगभग सारे लोग यही तेलंगाना भी बस गए कुछ लोग कभी कभी वापस गये और फिर आ भी गये , चूँकि यातायात का साधन न होने के कारन लोग उत्तरप्रदेश से आवागमन नही कर पते थे अंततः वे यही बस गये  शादी व्याह भी यही पासी लोग पासी में ही करने लगे और यही के हो के रह गये ,

राधेश्याम जी ने आगे बताया की यहाँ तेलंगना में पासी लगभग दसहजार से पन्द्रह हजार की संख्या में होंगे कुछ छित पूट आंध्रप्रदेश में है लेकिन 99% पासी तेलंगना में ही है , पासी यहाँ पर व्यवसाय , और मजदूरी और कुछ छोटा मोटा कम करके आजीविका चलाते है , सरकारी नौकरियों में बहुत कम है , उन्होंने बताया की हमलोगों के प्रयासों से 1992 -1993 में जब आंध्रप्रदेश में एन टी रामाराव की सरकार थी एक सर्वेक्षण हुई थी हम पासियो की स्थिति पर उसकी रिपोर्ट के अनुसार हम पासियो को अनुसूचित जाती में डालने की स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी लेकिन पता नही किन कारणवश उस रिपोर्टको दिल्ली नही भेजा गया ,  आखिल भारतीय पासी समाज के राष्ट्रिय महाधिवेशन में संगठन के पदाधिकरियो और राष्ट्रिय अध्यक्ष आर ऐ प्रसाद ने इस मुद्दे पर तेलंगना सरकार से उचित करवाई करने के लिए आवेदन करने का वादा किया है सुनवाई न होने की स्थिति में धरना प्रदर्शन होगा ,तेलंगना सरकार को पासी जाती की कुर्बानियों और स्वतंत्रता संग्राम में इस समाज के अहम योगदान को देखते हुए इस समाज के लोगो को तुरंत अनुसूचित जाती का दर्जा देनी चाहिए , क्यूंकि स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के कारन अंग्रेजो ने इस जाती पर क्रिमिनल ट्राइब एक्ट लगा दिया जिसके कारन इस पासी समाज के लोग आर्थिक सामाजिक और जनसंख्या की दृष्टि से भी पिछड़ गये , वही दूसरी और हिन्दू धर्म की महिलाओं की मुस्लिम आक्रमणकारियों से रक्षा हेतु इसी पासी जाती के लोगो ने गाव के बाहर बसना और सुवर का पालन प्रारंभ किया जिससे की मुस्लिम आक्रमणकारी गाव में प्रवेश न करे और गाव के बाहर पासी ही मुस्लिम आक्रमणकरियो से लड़ते थे , देश और समाज की अस्मिता बचाने के लिए पासी समाज में सुवर का पालन करके अपनी सामाजीक प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया , अत पासी समाज की इन तमाम कुर्बानियों को मद्देनजर रखते हुए तेलंगना और आंध्रप्रदेश और बाकि और भी ने राज्य जहा पासियो को विशेष सुविधा नही दी जाती है वह इन्हें तत्काल प्रभाव से अनुसुचित जाती में डाला जाये और तमाम सरकारी सुविधाओ सहित आरक्षण का लाभ दिया जाए

मनुस्मृति दहन दिवस सह महाराजा बिजली पासी जन्मोत्सव मनाया गया!

मनुस्मृति दहन दिवस सह महाराजा बिजली पासी जन्मोत्सव बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय स्थित सासाराम ओझा टाउन हॉल में 25 दिसंबर 2017 को मनाया गया। इस कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलित कर व संविधान निर्माता डॉ0 भीमराव अंबेडकर जी और महाराजा बिजली पासी जी के तस्वीरों पर माल्यर्पण व पुष्प अर्पित कर किया गया। इसके बाद अम्बेडकरवादी सभी कार्यकर्ताओं द्वारा कार्यक्रम स्थल से मनुस्मृति के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सासाराम स्थित पोस्ट ऑफिस चौक पर पहुँचकर वहाँ मनुस्मृति को जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया। समाज में व्याप्त कुरीतियों दलितों, अछूतों के खिलाफ में जो मनुस्मृति में दंड विधान लागू किया गया है वो आज के सभ्य समाज में कहीं भी न्यायोचित नहीं है। मनुस्मृति में उल्लेखित तमाम दलितों के खिलाफत विषयों की जानकारी कार्यक्रम के माध्यम से अम्बेडकरवादियों को देकर जागरूक किया गया तथा महाराजा बिजली पासी के जीवनी पर प्रकाश डाला गया।

इस कार्यक्रम का उद्घाटन ए जे अम्बेडकर ने किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद कुमार चक्रवर्ती एवं मंच संचालन अंकुर कुमार ने किया।

इस अवसर पर मानवतावादी एवं समाजवादी लक्ष्मण चौधरी , मानवाधिकार संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यम यादव , अखिल भारतीय युवा पासी समाज के बिहार प्रदेश के सचिव अमित कुमार , अखिल भारतीय युवा पासी समाज बिहार प्रदेश के मीडिया प्रभारी अनिल कुमार, जदयू दलित प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष मुंगेरी पासवान , रालोसपा के दलित प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष केशनाथ चौधरी, ऑल इंडिया रेलवे शू साइन वर्कर्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम इकबाल राम , सम सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष गिरिजाधारी पासवान ,ऱाजद के युवा प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यछ ईकबाल अहमद खान, भीम आर्मी रोहतास के अध्यक्ष कृष्ण आनंद नवादा से विजय चौधरी , शंकर सिंह कुशवाहा, डॉ संजय पासवान , अरुण पासवान , शिव दर्शन सिंह , उमेश कुमार, रवि , चन्द्रमा राम, विरेन्द्र यादव, छोटेलाल से कुशवाहा, धर्मपाल पासवान, ईम्तयाजुल हक, पिंटु पासवान, नगेन्द्र कुमार सहित हजारों अम्बेडकरवादी कार्यकर्ता उपस्थित थे।

महाराजा बिजली पासी की जयंती समारोह में एकजुटता पर दिया बल

नवादा : अखिल भारतीय पासी समाज नवादा के बैनर तले सोमवार को चौधरी नगर स्थित चौधरी भवन में समाज के सम्राट महाराजा बिजली पासी की जयंती मनाया गया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षक चन्द्रिका चौधरी ने किया जबकि मंच का संचालन सुनील कुमार चौधरी ने किया । कार्यक्रम की शुरुआत बिजली पासी के तस्वीर पर माल्यार्पण कर किया गया ।कार्यक्रम के मुख्य उदघाटनकर्ता सुरेन्द्र कुमार चौधरी प्रदेश कार्यकरी अध्यक्ष ,मुख्य अतिथि राजा चौधरी प्रदेश युवा अध्यक्ष ,विशिष्ट अतिथि रेखा चौधरी प्रदेश महिला प्रकोष्ट संयोजक एवं पिंकी भारती जिला परिषद सदस्या सिरदला मौजूद थे । कार्यक्रम में चौधरी भवन के ज़मीन दाता हरि चौधरी एवं जगदीश चौधरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश चौधरी के द्वारा दिया गया मानद उपाधि ‘पासी रत्न ‘ सम्मान का शील्ड देकर सम्मानित किया गया ।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार चौधरी ने कहा समाज के महान सम्राट बिजली पासी महाराजा थे यह उस विकट स्थिति में महाराजा बने जब हमारे समाज का शोषण होता था । हमारे समाज के लोगों को पूर्वजों से सीख लेनी चाहिए कि चाहे स्थिति जो हो संघर्ष कर सफलता हासिल करना होगा । हमारा समाज महापुरूषों का रहा है । समय बदला शिक्षा का आभाव हुआ और धीरे -धीरे पतन की ओर चलते चले गए । प्रदेश महिला प्रकोष्ट के नेत्री रेखा चौधरी ने कहा समाज को आगे ले जाने के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है शिक्षा की ज्योति जलाना । शिक्षा वह शेरनी का दुध है जो पियेगा वह दहाड़ मारेगा । यानी बिना शिक्षा हमारे समाज का विकास सम्भव नहीं है ।

जिला पार्षद पिंकी भारती ने कहा समाज उत्थान के लिए सभी वर्ग के लोगों को आगे आना होगा । आज समाज के जो भी लोग विभिन्न उच्च पड़ पर है वे समाज के प्रति सोचें उसके उत्थान के लिए प्रयास करें । कुछ लोग सरकारी सेवा रिटायर्ड हो जाते हैं तब समाज की याद आता है । मुख्य अतिथि राजा चौधरी प्रदेश युवा अध्यक्ष ने कहा लखनऊ के महाराजा लाखन पासी तेरह सौ साल पहले के महाराजा थे ।जब रामायण काल का भी पता नहीं था पर इतिहास के पन्नों में कुछ साछ्य को छुपाया गया । साथ उन्होंने कहा 20 फरवरी को पटना में पासी समाज के लोगों को एक कार्यक्रम में आने का आग्रह किया ।

कार्यक्रम में विजय चौधरी , परमेश्वर मंडल ,रामदेव चौधरी अधिवक्ता ,पोस्टमास्टर राजेश्वर कुमार चौधरी , सीआईडी ऑफिसर राज़ कुमार भारती ,निशांत चौधरी ,चंदन कुमार भीम आर्मी जिलाध्यक्ष ,राजेश कुमार चौधरी शिक्षक ,देव कुमार चौधरी प्रदेश महासचिव वैशाली ,योगेन्द्र चौधरी ,मनोज चौधरी ,संजय चौधरी ,राजेंद्र भारती सिरदला ,भोला चौधरी पोस्टमास्टर ,गोरेलाल चौधरी ,केडी चौधरी ,सत्येन्द्र कुमार सत्येंद्र ,जानकी मेहता ,नरेश चौधरी सरपंच आदि लोग उपस्थित हुए ।

प्रजावत्सल शासक महाराजा बिलजी पासी ने राज्य के स्वाभिमान से समझौता नही किया

आज की पासी जाति में अनेक राजाओं महाराजाओं ने जन्म लेकर इस जाति के स्वभिमान को बढ़ाया है । इतिहासकारों का मानना है कि आज की पासी जाति के पुरखें जो हीनयान बौद्ध औऱ फिर भारशिव थें उनका सम्राज्य पहली शताब्दी से लेकर 12वीं सदी तक रहा है। जिनके राज्य में प्रजा खुश रहती थीं। इन राजाओं में किसी भी अन्य राजा की स्वाधीनता स्वीकार नही की , पूरे स्वभिमान के साथ अपने शासनकाल को चलाया करते थे । समय बदलता है कोई बहुत दिनों तक राज्य तो कर नही सकता । पासी राजाओं के साथ भी ऐसा ही हुआ।

बारहवीं शताब्दी पासी राजाओं के साम्राज्य के लिए बहुत अशुभ साबित हुई। इसी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अवध के सबसे शक्तिशाली पासी महाराजा बिजली वीरगति को प्राप्त हुए थे। सन् 1194 ई. में इससे पहले राजा लाखन पासी भी वीरगति को प्राप्त हुए।

महाराजा बिजली पासी की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा। बिजली पासी के कार्य शेत्र में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नटवा के नाम पर नटवागढ़ की स्थापना की। यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की द्रिष्टि से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली पासी किला पड़ा। जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।

राजा बिजली पासी महाराजा बिजली पासी के नाम से विभूषित हो चुके थे। यह किला लखनऊ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर सदर तहसील लखनऊ के अंतर्गत दक्षिण की ओर बंगला बाजार के आगे सड़क के दाहिनी ओर आज भी महाराजा बिजली पासी के साम्राज्य के मूक गवाह के रूप में विद्यमान है।

महाराजा ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे। 1- नटवागढ़ 2- बिजनौरगढ़ 3- महाराजा बिजली पासी किला 4- माती 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम किलों के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। 7- पुराना किला 8- औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसेंड किला। उत्तर में पुराना किला, दक्षिणी में नींवाढक जंगल सीमा सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। इसके मध्य में महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी के अंतर्गत 94,829 एकड़ भूमि अथवा 184 वर्ग मील का भू-भाग सम्मिलित था, इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ थी, धान, गेहूं, चना, मटर, ज्वार। बाजरा आदि की खेती होती थी।

महाराजा बिजली पासी की प्रगति से कन्नौज का राजा जयचंद्र चिन्तित रहने लगा क्योंकि महाराजा बिजली पासी पराक्रमी उत्साही और महत्वकांक्षी थे। बिजली पासी के सैन्य बल एवं वीर योद्धाओं का वर्णन सुनकर जयचंद्र भयभीत रहता था। लेकिन अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए जयचंद्र की भी इच्छा रहती थी।

सातन कोट उन्नाव के शाषक राजा सातन पासी और लखनऊ नरेश राजा बिजली पासी आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ थें। यह एक दूसरे की सैन्य रूप से मदत करते थें। जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन पासी के किले पर आक्रमण कर दिया। महाराजा बिजली को कमजोर करने के लिए जयचंद ने सातन पासी के राज्य पर आक्रमण कर दिया । लेकिन इस लड़ाई में बिजली पासी अपनी सेनाओं के साथ सामिल होकर जयचंद को खदेड़ दिया ।

इस अपमान जनक पराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था। किंतु बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। इसके बाद पहाड़ नगर टिकरिया गये। बिजनौरगढ़ से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर सरवन टीलें पर उन्होंने डेरा डाला। यहां से उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा बिजली पासी किले से संबंधित सूचनाएं एकत्र की।

जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनता स्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासी घबराये नही। बल्कि धैर्य से उसका मुंह तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक अंश भी देने को तैयार हैं। जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल झुंझलाकर आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी। यह खुला मैदान था, यहां पेड़ पौधे नही थे। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ।

यह मैदान इतिहास में गांजर भांगर के नाम से मशहूर है। यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। गांजर भूमि पर तलवार और खून ही खून था इसलिए इसे लौह गांजर भी कहा जाता है। वर्तमान में इस स्थान पर गंजरिया फार्म है। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी पासी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

यह युद्ध सन् 1194 ई. में हुआ था। यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। परन्तु आल्हा ऊदल के साले जोगा भोगा राजा सातन ने खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और पड़ोसी राज्य से सच्ची मित्रता तथा पासी समाज के शौर्य का परिचय दिया। महाराजा बिजली पासी के किले के अलावा उनके अधीन 11 किलों का वर्णन इतिहास में बहुत ही सतही ढंग से किया गया है।

अज़ादी के बाद कि सरकारों ने महाराजा बिजली पासी की बीरता को पाठ्यक्रम में दर्ज तो नही किया । लेकिन उनके नाम से डाक टिकट जारी कर तथा महाविद्यालय खोलकर उनके अस्तित्व को संरक्षित करने का काम किया है।

– लेखक: अजय प्रकाश सरोज

(इतिहास कारो से मिले साक्ष्यों से साभार)

पूर्व मंत्री आरके चौधरी की बीएस-4 का समाजवादी पार्टी में विलय

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक सदस्य पूर्व मंत्री तथा बीएस-4 के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री आर.के. चौधरी ने आज अपने संगठन का समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया। पूर्व मंत्री श्री ओमवेश ने भी आज अपने सैकड़ों साथियों के साथ समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। दोनों नेताओं ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में आस्था जताते हुए भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने में अपने सभी साथियों से एकजुट होने का आव्हान किया।

समाजवादी पार्टी मुख्यालय, लखनऊ में आज बसपा के हजारों साथियों एवं पूर्व सांसदों पूर्व विधायकों के अतिरिक्त बीएस-4 के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। इनमें प्रमुख थे पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव, राणा प्रताप सिंह, मो0 निजामुल्ला खान, मुन्नू राम आदि। स्वामी ओमवेश के साथ श्री आदित्यवीर सिंह और चौधरी जयपाल सिंह आदि भी पार्टी के सदस्य बने। इनके अतिरिक्त सीतापुर की श्रीमती प्रतिभा सिंह तथा यशस्वी सिंह ने भी सदस्यता ली। समाजवादी पार्टी में आए सभी नेताओं का स्वागत करते हुए श्री अखिलेश यादव ने उम्मीद जताई कि इनके आने से समाजवादी पार्टी को मजबूती मिलेगी।

उन्होंने कहा कि गुजरात के चुनावों से भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही सन् 2019 में भाजपा का रास्ता रोकेेगी। उन्होंने कहा भाजपा मुद्दो से ध्यान हटाने का काम करती है। सबको मालूम हो गया है कि गुजरात माॅडल धोखा है। अब समाजवादी जमींन की लड़ाई लडे़ंगे और भाजपा को रोकेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बदतर है। राजधानी में एक पूर्व विधायक के बेटे की हत्या हो गई। अपराध बढ़े हुए हैं। भाजपा गरीब, किसान, नौजवान की बात नहीं करती है। आलू किसान परेशान हैं। धान की खरीद नहीं हुई हैं। बिजली के दाम बढ़ा दिए गए हैं। आज जिस तरह की राजनीति हो रही है उससे देश आगे नहीं बढ़ सकता हैं।

श्री यादव ने कहा कि केंद्र और राज्य की सरकारों ने कोई काम नहीं किया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार यूपीकोका के माध्यम से जनता को डराना चाहती हैं। एक यूनिट बिजली नहीं बनाई लेकिन बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं। जनता को बहकाने की कला में भाजपाई पारंगत हैं। हमने एक्सप्रेस-वे पर लड़ाकू जहाज, मालवाहक जहाज उतार दिए लेकिन पानी पर जहाज उतार कर गुजरात में चुनाव जीत लिया। भाजपा कों मूल मुद्दों से ध्यान बटाने की कला आती हैं।

जातियों को संख्या के आधार पर मिले भागीदारी–

श्री अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी वंचितों, दलितों को उनका हक दिलाएंगे। हम चाहते हैं कि हर किसी को उसकी जनसंख्या के आधार पर हक मिलें। हम किसी का हक छीनना नहीं चाहते हैं। हक की लम्बी लड़ाई जीतने के लिए बूथ स्तर पर संगठन को सृदृढ़ करना होगा। तभी हमारी जीत होगी।

श्री आर.के. चौधरी ने अपने साथियों से कहा कि वे समाजवादी पार्टी के नेताओं-कार्यकताओं के साथ तालमेल से काम करें। अब हम सबको समाजवादी पार्टी को मजबूती देनी है। स्वामी ओमवेश ने कहा कि अब देश के भाईचारे को जाति-धर्म के बहाने तोड़ने की साजिश हो रही है। उन्होंने श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में विश्वास जताया और कहा कि वे अपनी सांस रहते समाजवादी पार्टी की मजबूती के लिए काम करेंगे।

इस अवसर पर सर्वश्री माता प्रसाद पाण्डेय, बलराम यादव, राजेंद्र चौधरी, अवधेश प्रसाद, इंद्रजीत सरोज, सुशीला सरोज, एसआरएस यादव, अरविन्द सिंह गोप, अरविन्द कुमार सिंह, जावेद आब्दी, पवन पाण्डेय, विकास यादव, विजय यादव आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

पूर्वमंत्री धर्मवीर जी को श्रद्धांजली व माल्यार्पण

आज दिनांक 22 दिसम्बर 2017 को पूर्व ग्रहमंत्री उ०प्र० व केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार स्व० श्री धर्मवीर जी की 33वी पुण्यतिथि पर प्रातः 10:00 बजे सुलेम सराय स्थित उनके आवास पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती इंदिरा देवी, पुत्रगण सांसद कौशंभी शैलेंद्र कुमार व पूर्व विधायक सोराव सत्यवीर मुन्ना सहित सम्पूर्ण परिवार व निकट सहयोगियों द्वारा वैदिक रीति से पूजा/हवन किया गया।

तत्पश्चात् ट्रान्स्पोर्ट नगर, इला० स्थित *स्व० धर्मवीर मूर्तिस्थल पर 11:00 से 11:30 बजे के मध्य माल्यार्पण के कार्यक्रम व ग़रीबों को कड़कती ठंड में सैकड़ों की संख्या में कम्बल वितरण का कार्यक्रम संपन्न हुआ।* माल्यार्पण के पश्चात् अपने सम्बोधन में *पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार ने कहा की स्वर्गीय धर्मवीर जी राजनीतिक सुचिता व समाज सेवा रूपी साध्य का सदैव पालन करते रहे जिसका आज के राजनीतिक परिदृश्य में अभाव सा हो गया है*।

इस अवसर पर अपने नेता को श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में सर्वश्री दरियाव सिंह पटेल, रवीन्द्र पाण्डे, आनंद आर्य, अशोक सिंह, कालीचरण पाल, अशोक केसरवानी, दिनेश केसरवानी, मोईंनउद्दीन, छात्र नेता अखिलेश यादव, राम सुरेमन आर्य, उषा शैलेंद्र, मधुवीर, दीक्षा आर्य, मनोज कुमार, शाश्वत वीर, सूर्यवीर, वेदांत आर्यन, चंदन पासी, बहादुर सरोज, समर सरोज, बबलू पटेल, रामभजन त्रिपाठी, अचल यादव, राजीव पासवान, मनीष गुप्ता, राकेश पासी अन्नू कुशवाह, महेंद्र, उत्तम शर्मा आदि थे।

अंत में पधारे हुए लोगों का ‘धर्मवीर सामाजिक संस्थान ‘ के प्रबंधक व पूर्व विधायक सत्यवीर मुन्ना ने धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि यह संस्थान सदैव स्व० धर्मवीर जी के पदचिंहो पर चलते हुए ग़रीबों व मजलूमो की सेवा में तत्पर रहेगा।