वह चाहती तो गद्दारी कर सिंहासन हासिल कर लेती !

शहीद वीरांगना ऊदा देवी पासी के बलिदान दिवस 16 नवबंर पर विशेष —

वह चाहती तो ! अंग्रेजों से मिलकर बेगम हज़रत महल को धोखकर अंग्रेजों की दया पात्र बन सिंहासन हासिल कर लेती ।

वह चाहती तो ! पति मक्का पासी की शहादत का पूरा मुवाज़ा ले लेती । बड़ी नौकरी धन दौलत, सब नाम अपने कर लेती ।

वह चाहती तो ! भाग खड़ी हो जाती जान बचाकर भी , कर लेती जौहर भी किसी डरपोक राजघराने जैसी ।

लेकिन उसके धमनियों में गद्दारी का खून न था , वफादारी से बढ़कर भी दिल पुरखों का स्वाभिमान था । मरते दम तक लड़ी बहादुर पासी की बिटिया प्यारी, वीरगति को प्राप्त हुई छोड़के जिम्मेदारी सारी ।

आइये संकल्प लें देश के वीर शहीदों की कुर्बानी को मंजिल तक पहुँचाएँ —-देश समाज के निर्माण में एक साथ मिल जुट जाएं

—अजय प्रकाश सरोज ,संपादक ,श्रीपासी सत्ता मासिक पत्रिका

जिला पंचायत अध्यक्ष के भेदभाव नीतियों से तंग आकर टोनी ने दिया इस्तीफ़ा, कहा वार्ड में नही कराते कोई काम

जितेंद्र कुमार रावत ‘टोनी ‘ ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखते है -जनता ने क्षेत्र के विकास के प्रतिनिधित्व की जो जिम्मेदारी मुझे सौंपी थी उसको पूरा करने में अध्यक्ष जिला पंचायत लखनऊ भेदभाव कर रहे हैं। जिसके कारण मलिहाबाद वार्ड नंबर 15 के विकास कार्यों को कार्य योजनाओं में शामिल नहीं किया जा रहा है।

मैं अनुसूचित जाति ब्यक्ति को सामान्य सीट से प्रतिनिधि होने के कारण क्षेत्र में विगत 2 वर्षों से कोई भी विकास कार्य मेरे प्रस्ताव पर अध्यक्ष जिला पंचायत द्वारा नहीं कराया गया । इस भेदभाव के चलते आहत होकर मुझे इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा । क्षेत्र की जनता ने मुझे जिस प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी सौंपी थी उसको पूरा करने में मैं अपना योगदान अध्यक्ष की भेदभाव नीति और मनमानी के कारण नहीं दे पा रहा हूं। जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए पद महत्वपूर्ण नहीं है।

इसलिए आज दिनांक 14.11.2018 को श्रीमान जिलाधिकारी, लखनऊ को स्पीड पोस्ट के माध्यम से मैंने अपना इस्तीफा भेज दिया है।

वीरांगना ऊदा देवी पासी की क्रांतिकारी जीवनगाथा

भारत में यूरोपियों का आगमन व्यापारियों के रूप में हुआ किंतु दो शताब्दियों के भीतर यूरोपियों में से अंग्रेज सशक्त होकर उभरे और विभिन्न रूढ़ियों में बंधा तथा जाति-पाति में बिखरा भारतीय समाज इन अंग्रेजों का सामना नहीं कर पाया और दासता की एक लम्बी दास्तां का प्रारम्भ हुआ…. इतिहास वीरांगना उदा देवी पासी के अप्रतिम वीरता का परिचय देते हुए ऐसे प्रतिमान स्थापित किए, जो इतिहास में विरले ही दिखाई पड़ते हैं.

ऊदा देवी का जन्म लखनऊ के समीप स्थित उजिरावां गांव में पासी परिवार में हुआ था. भारतीय समाज में विभिन्न जातियों के अन्तर्गत पासी जाति भी निम्न व अछूत ही समझी जाती थी. पासी जाति की सामान्य समाज से अलग क्षेत्र में बस्ती होती थी. इन बस्तियों में उच्च जाति के लोग प्रायः नहीं जाया करते थे. पासी समाज सीमित स्तर पर हस्तकलाओं द्वारा अपना जीवन यापन करता था अथवा उच्च समृद्ध लोगों के खेत में कृषक मजदूर के रूप में भी कार्य किया करता था. जब जीवनयापन के स्रोत सीमित हों और आस्तित्व की रक्षा प्रमुख चुनौती होती है तो वीरता और आत्मस्वाभिमान स्वतः ही आ जाता है. पासी जाति भी इसका अपवाद नहीं थी. यह जाति वीर और लड़ाकू जाति के रूप में भी जानी जाती थी. इसी वातावरण में उदा देवी का पालन-पोषण हुआ. जिसे इतिहास की रचना करनी होती है, उसमें कार्यकलाप औरों से न चाहते हुए भी अलग हो ही जाते हैं. उदा बचपन से ही निर्भीक स्वभाव की थी. बिना किसी झिझक के घने जंगलों में अपनी टोली के साथ खेलने चली जाती थी. खेल भी क्या थे, पेड़ पर चढ़ना, छुपना और घर लौटते समय जंगल से फल और लकड़ियां एकत्रित करके लाना.

जैसे-जैसे उदा बड़ी होती गई, वैसे-वैसे वह अपने हमउम्रों का नेतृत्व करने लगी. सही बात कहने में तो उदा पलभर की भी देर नहीं करती थी. अपनी टोली की रक्षा के लिए तो वह खुद की भी परवाह नहीं करती थी. खेल-खेल में ही तीर चलाना, बिजली की तेजी से भागना उदा के लिए सामान्य बात थी.

किशोरावस्था में प्रवेश करते-करते उदा में गम्भीरता का समावेश होने लगा. पढ़ना-लिखना उस समय असामान्य सी बात थी अतः उदा भी इससे दूर रही किंतु परिस्थितियों ने उसे शीघ्र निर्णय लेने वाली, साहसी, दृढ़ निश्चयी और कठोर हृदय वाला बना दिया था. आगे चलकर यही गुण उदा को इतिहास में उच्च स्थान दिलाने वाले थे.

सन् 1764 ई. भारतीय इतिहास में निर्णायक वर्ष था. इसी वर्ष बक्सर में अंग्रेजों, बंगाल में नवाब मीर कासिम, अवध में नवाब शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्त सेना को परास्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी थी. इस युद्द के बाद अवध भी अंग्रेजों की परोक्ष सत्ता के अधीन आ गया और अंग्रेजों ने अवध को नचोड़ना शुरू कर दिया जिससे उसकी स्थिति दिन-ब-दिन जर्जर होती गई. सन् 1856 में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया गया और नवाब वाजिद अली शाह को नवाब के पद से हटा कर कलकत्ता भेज दिया गया. सन् 1857 ई. में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया. इस समय अवध की राजधानी लखनऊ थी और वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और उनके अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कादिर ने अवध की सत्ता पर अपना दावा ठोंक दिया.

अवध की सेना में एक टुकड़ी पासी सैनिकों की भी थी. इस पासी टुकड़ी में बहादुर युवक मक्का पासी भी था. मक्का पासी का विवाह उदा से हुआ था. जब बेगम हजरत महल ने अपनी महिला टुकड़ी का विस्तार किया तब उदा की जिद और उत्साह देखकर मक्का पासी ने उदा को भी सेना में शामिल होने की इजाजत दे दी. शीघ्र ही उदा अपनी टुकड़ी में नेतृत्वकर्ता के रुप में उभरने लगी.

10 मई 1857 मेरठ के सिपाहियों द्वारा छेड़ा गया संघर्ष शीघ्र ही उत्तर भारत में फैलने लगा एक महीने के भीतर ही लखनऊ ने भी अंग्रजों को चुनौती दे दी. मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानुपर आदि क्षेत्रों में अंग्रेजों के पैर उखड़ने लगे. बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अवध की सेना भी अंग्रेजों पर भारी पड़ी. किंतु एकता के अभाव व संसाधनों की कमी के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों का मुकाबला करना मुमकिन नहीं हुआ और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुनः नियंत्रण पाने के प्रयास शुरू कर दिए. दस जून 1857 ई. को हेनरी लॉरेंस ने लखनऊ पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया. चिनहट के युद्ध में मक्का पासी को वीरगति की प्राप्ति हुई. यह उदा देवी पर वज्रपात था किंतु उदा देवी ने धैर्य नहीं खोया. वह अपनी टुकड़ी के साथ संघर्ष को आगे बढ़ाती रही.

नवंबर आते-आते यह तय हो गया था कि अब ब्रिटिश पुनः लखनऊ पर कब्जा कर ही लेंगे. भारतीय सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए लखनऊ के सिकंदराबाग में छुप गए. किंतु इस समय लखनऊ पर कोलिन कैम्पबेल के नेतृत्व में हमला हुआ. उदा देवी बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं हुई. अंग्रेजी सेना ने सिकंदराबाग को चारो ओर से घेर लिया. उदा देवी सैनिक का भेष धारण कर बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर समीप के एक पेड़ पर चढ़ गई और अंग्रेजों पर गोलियां बरसाने लगी. उदा की वीरता देख शेष सैनिक भी अंग्रेजों पर टूट पड़े. काफी समय तक अंग्रेजों को पता ही नहीं चला कि उन पर कहां से गोलियां चल रही हैं. अंत में कैम्पबेल की दृष्टि उस पेड़ पर गई जहां काले वस्त्रों में एक मानव आकृति फायरिंग कर रही थी. कैम्पबेल ने उस आकृति को निशाना बनाया. अगले पल ही वह आकृति मृत होकर जमीन पर गिर पड़ी. वह व्यक्ति लाल रंग की कसी हुई जैकेट और गुलाब रंग की कसी हुई पैंट पहने था नीचे गिरते ही एक ही झटके में जैकेट खुल चुकी थी समीप जाने पर कैम्पबेल यह देखकर हैरान रह गया कि यह शरीर वीरगति प्राप्त एक महिला का था.वह महिला पुराने माडल की दो पिस्तौलों से लैस थी एक में गोलियां भरी थी दूसरी खाली थी उसकी आधी जेब में गोलियां भरी थीं,अन्य गोलियों से अब तक यह वीरांगना 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार चुकी थी। बारलेस को जब मालूम हुआ कि वह पुरुष नहीं महिला है यह जानकर वह जोर से रोने लगा। यह घटना 16 नवंबर सन् 1857 ई. की है संग्राम में क्रांती के दीवानों ने रेजिडेंशी को लखनऊ को घेर लिया था अंग्रेजों को बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था यह देख कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जनरल कैम्पबेल था। जिसे कानपुर से लखनऊ जाते समय रास्ते में तीन बार अमेठी और बंथरा के पासी वीरों से हारकर वापस लौट जाना पड़ा था। अब सोचना है कि एक ओर अंग्रेजी फौज के साथ बंदूक थी दूसरी ओर लाठियां, कितने पासी जवान तीन बार में मारे गये होंगे। जब कैम्पबेल चौथी बार आगे बढ़ने सफल रहा तो उसने सबसे पहले महाराजा बिजली पासी के किले ही अपनी छावनी बनाई थी।

जब तक उदा देवी जीवित रहीं तब तक अंग्रेज सिकंदराबाग पर कब्जा नहीं कर सके थे. उदा देवी के वीरगति प्राप्त करते ही सिकंदराबाग अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेजी विवरणों में उदा देवी को ‘ब्लैक टाइग्रैस’ कहा गया. दुःख व क्षोभ की बात यह है कि भारतीय इतिहास लेखन में उदा देवी के बलिदान को वो महत्व नहीं दिया गया जिसकी वो अधिकारिणी हैं।
वीरांगना ऊदा देवी पासी के क्रांतिकारी त्याग संघर्ष व बलिदान को शत शत नमन।

राकेश कुमार (प्रदेश प्रवक्ता)
अखिल भारतीय आम्बेडकर महासभा
9415443546(उ. प्र)

अपार जन समर्थन से आरबीएम का विशाल भागीदारी रैली सम्पन

●गुलाबी रंग से रंग गया रायबरेली का जीआईसी मैदान
●मुख्य अतिथि सुशील पासी ने ठेका ,पट्टा, शिक्षा ,रोजगार दान ,अनुदान तथा शस्त्र लाइसेंस में संख्या के अनुपात में भागीदारी देनें की माँग उठाई
●शोषण अत्याचार के खिलाफ गुलाबी सेना के गठन का एलान

24 अक्टूबर ,बुद्धवार को राष्ट्रीय भागीदारी मिशन के तत्वावधान में विशाल भागीदारी रैली सम्पन्न हुई । लगभग दस हजार से ज्यादा अपार भीड़ व जन समर्थन से गदगद मुख्य अतिथि सुशील पासी जी ने रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि 70 सालों से देश में जाति विशेष की पार्टियों की सरकार चलती रही लेकिन संविधान में वर्णित जनता के हक और अधिकारों को किसी ने नही दिया।

आज भी ठेका ,पट्टा, ब्यवसाय ,राजनीति ,शिक्षा ,नौकरियों दलितों -अतिपिछड़ों – अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं की भागीदारी नहीं मिल पाई है । आगे उन्होंने कहा कि शक्ति के सभी स्रोतों में जहां से धन का अर्जन होता है ,उन सभी संस्थाओं में देश के 90 % जनसंख्या को समुचित भागीदारी नही मिलीं है जिसके कारण ही देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है ।
उन्होंने अमेरिका का काले और गोरे के बीच हुए वर्ग संघर्ष को उदाहरण देते हुए कहा कि पूरी दुनियां में अमेरिका का आज जो प्रभुत्व स्थापित है वह अस्वेत नागरिकों को हर जगह भागीदारी देकर के उन्हें मुख्यधारा में लाने से हुआ ।

लेकिन भारत में कुछ धूर्त लोगों द्वारा एक साजिश के तहत बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बनायें हुए संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी करके बहुसंख्यक समाज को उसके हक और अधिकारों से वंचित रखा गया है । इस देश का विकास तभी संभव है जब देश के वंचितों को उनका हक और अधिकार सुनिश्चित किया जाएगा। सबकों समान अवसर देने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय भागीदारी अधिनियम बनाने की भी बात कही।

उन्होंने कहा की मैं कोई विधायक सांसद व अभिनेता नही हूँ लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मुझें सुनने के लिए आएं है मैं आप सबके चरणों में वंदन करता हूँ । इस बात का यकीन दिलाता हूं कि आपने जो हिम्मत और हौसला मुझे दिया है इससे राष्ट्रीय भागीदारी मिशन का संगठन पूरे प्रदेश में खड़ा करने का काम करूंगा। साथ ही एक गुलाबी सेना का भी निर्माण करूँगा । जिससे जुल्म अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकें।

विशिष्ट अतिथि पत्रकार व चिंतक अजय प्रकाश सरोज ने कहा कि आधी आबादी के प्रतीक गुलाबी रंग में रंगे राष्ट्रीय भागीदारी मिशन सबकी भागीदारी सुनिश्चित कराने का संकल्प लिया है। राष्ट्रीय भागीदारी मिशन इसलिए राष्ट्रीय है क्योंकि इसके राष्ट्रीयता में देश का हर नागरिक शामिल है यह देश का पहला संगठन है जो संख्या के आधार पर सबके लिए दरवाजा खोल रखा हैं। क्योंकि देश को जातीय संघर्ष और धार्मिक उन्माद में झोंक जा रहा हैं ।

एक जाति को दूसरे जाति से लड़ाने की साजिश रची जा रहीं हैं। इसको खत्म करने के लिए अनुपातिक भागीदारी ही एक रास्ता है ,विकल्प है जिससे देश को एक सूत्र में बाँधे रखा जा सकता हैं। और विश्वपटल पर भारत का सम्मान बचाया जा सकता हैं ।
साथ ही उन्होंने कहा कि रायबरेली के उन सभी जातियों के बौद्धिक बनौजवानों के साहस को सलाम जिन्होंने सुशील पासी जैसे संघर्षशील ने नेता के साथ पूरी तन्मयता से लगकर मिशन को आगे बढ़ा रहें है। उम्मीद है आने वाले दिनों में आप के दम से पूरे प्रदेश में गुलाबी रंग का डंका बजेगा।

मिशन के नेता योगेश पासी कहा जो पार्टियां सबकी भागीदारी सुनिश्चित ना कर पाए उसे सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह देश सबका है अंतिम ब्यक्ति का विकास ही सर्वप्रिय होना चाहिए। ऐसे में राष्ट्रीय भागीदारी मिशन पूरे देश में यह दावा करता है कि एक देश एक टैक्स की बात करने वालें की अम्मा ने दूध पिलाया हो तो एक देश एक शिक्षा कर के दिखाओ ? दोहरी शिक्षा नीति खत्म कर समान शिक्षा नीति लागू करों ।

जिला प्रभारी सुरेंद्र मौर्य ने कहा हम जाति जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित करने की मांग कर रहे हैं इसके आधार पर देश की सभी वंचित जातियों को उनकी संख्या के आधार पर भागीदारी सुनिश्चित कराना चाहतें है । मिशन समाज के कमजोरों पर होने वाले जुल्म अत्याचार के खिलाफ हैं।
इस अवसर पर वेद प्रकाश मौर्य , बाराबंकी से रामयश विक्रम , हरदोई से आदित्य वर्मा , अमेठी से लीलावती , सीतापुर से इंदु रावत , इंद्रपाल पासी, फ़तेहपुर से अतुल पासवान , लखनऊ से अनिल पासी, मलिहाबाद से अखिलेश रावत ,इलाहाबाद से राम प्रवेश पासी , संजय गोस्वामी ,संजीव पुरूषार्थी ,नीरज पासी, अजीत भारती ,शहीद दिलीप सरोज के पिता राम लाल जी सहित हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहें । अध्यक्षता जिलाध्यक्ष यशपाल जी ने किया।

रावण-दहन और महिषासुर वध के विरोध में उतरे बहुजन संगठन,सौंपा प्रशासन को ज्ञापन

बक्सर( बिहार) :- पिछले कुछ सालों से देश मे जगह जगह से मूलनिवासी बहुजन संगठनों द्वारा दुर्गापूजा पंडालों में दुर्गा द्वारा महिषासुर वध का प्रदर्शन करती हुई मूर्तियों का और साथ ही साथ रावण के पुतला दहन के विरोध में आवाज उठाया जाता रहा है और ऐसा करने वालो के खिलाफ प्रशासन को ज्ञापन दिया जाता रहा है , वही दूसरी ओर मूलनिवासी संगठनो द्वारा महिषासुर शहादत दिवस मनाने का चलन भी पिछले कई सालों से जोरो पर है इसका स्पष्ट उदाहरण है जेएनयु दिल्ली में महिषासुर शहादत दिवस का मनाया जाना और उस आयोजन में चर्चित राजनीतिक चेहरों का शामिल होना ,हालांकि ये आयोजन देश मे काफी चर्चा का विषय बना और लोकसभा में इस पर काफी बहस भी हुयी , वही इस बार वर्ष 2018 के दुर्गापूजा में महिषासुर वध और रावण पुतला दहन का विरोध जोरदार तरीके से पूरे देश मे किया जा रहा है सभी मूलनिवासी और बहुजन संगठन अपने अपने इलाको से इसका विरोध कर रहे है और इस सम्बंध में प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन सौंप रहे है ,इसी कड़ी में बिहार राज्य के बक्सर जिले के तमाम संगठन रावण दहन और महिषासुर वध का विरोध कर रहे है जिसमे कुछ प्रमुख संगठनो का नाम निम्न है।

  • भारत मुक्ति मोर्चा बक्सर
  • दलित अधिकार मंच बक्सर
  • जनहित अभियान बक्सर
  • सत्य शोधक बक्सर

क्या है विरोध की वजह ?

दरअसल इस देश का एक बड़ा तबका मूलनिवासी बहुजन समाज महिषासुर और रावण और तमाम वैसे लोग जिन्हें ब्राह्मण ग्रन्थों में असुर की संज्ञा दी गयी है उन्हें अपना पूर्वज मानते है और उनके प्रति आस्था रखते है और देश के कई हिस्सों में लोगो द्वारा इनकी पूजा भी की जाती है आपको तमाम उदाहरण मिल जाएंगे आदिवासी बहुल इलाकों झारखण्ड, मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,ओडिसा और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में आज भी लोग इन तथाकथित असुर लोगो की पूजा करते है ,अब ऐसे में मूलनिवासी नायक महिषासुर की प्रतिमा को दुर्गा की प्रतिमा के साथ रखकर उनकी हत्या करते दिखाई जाती है ,रावण का पुतला बनाकर उसे बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है,और साथ ही साथ महारानी ताड़का का भी हत्या करते दिखाया जाता है जिससे मूलनिवासी समाज की भावनाएं आहत होती है ।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार धर्म,वंश,जाति, लिंग अथवा जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता है ,अतः मूलनिवासी जिन्हें अपना राजा या पूर्वज मानते है उनकी पुतला बनाना और जलाकर अपमानित करना ,प्रतिमा बनाकर उनकी हत्या करते दिखाया जाना,और राक्षस या असुर कहना केवल संस्कृति द्रोह ही नही बल्कि देश द्रोह की श्रेणी में भी आता है और ऐसा कृत्य हरेक साल दुर्गापूजा में बार बार किया जाता है और खुलेआम प्रशासन की उपस्थिति में दिखाया जाता है ,इसे पूर्णतः बन्द करने हेतु बक्सर के संगठनों भारत मुक्ति मोर्चा ,दलित अधिकार मंच ,जनहित अभियान और सत्य शोधक ने प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा है ।

सबसे बड़ा सच मौत : माइकल जैक्सन डेढ़ सौ साल जीना चाहता था!

माइकल जैक्सन डेढ़ सौ साल जीना चाहता था! किसी के साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था !उसकी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे !

जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! उसको व्यायाम करवाने के लिए 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था!

अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की!

नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया।

18 मई 1995 में किंग ऑफ पॉप ने रॉक के शहजादे एल्विस प्रेस्ली की बेटी लिसा प्रेस्ली से शादी कर ली। एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवॉर्ड्स में इस जोड़ी के ऑनस्टेज किस ने बहुत सुर्खियाँ बटोरी! हालाँकि यह जोडी सिर्फ दो साल तक ही साथ रह पाई और 18 जून 1996 में माइकल और लिसा ने तलाक ले लिया।

वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था,उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था,ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत पड़ने पर वह आकर दे दे।

उसको लगता था वह पैसे और अपने रसूख की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है लेकिन वह गलत साबित हुआ 25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी मैं हालत काबू में नहीं आए, सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए वह भी उसे नहीं बचा पाए।

उसने 25 साल तक बिना डॉक्टर से पूछे कुछ नहीं खाया! अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी 50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था! लगभग उसने बच्चों का यौन शोषण किया वह घटिया हरकतों पर उतर आया था! और 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया जिसने जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने इंतजाम कर रखा था!उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया!

जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया! कि उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था! उसका सिर गंजा था उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे! उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे!

माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था। यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं।

माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानी 25 जून 2009 को 3:15 PM पर, Wikipedia,Twitter और AOL’s instant messenger यह सभी क्रैश हो गए थे।

उसकी मौत की खबर का पता चलता है गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया! ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और गूगल क्रैश हो गया ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया!

मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं! सार यही है,बनावटी दुनिया के बनावटी लोग कुदरती मौत की बजाय बनावटी मौत ही मरते हैं!

मृत्यु निश्चित है।इससे डरना क्या-क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर ,-मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर✍

विकल्प की राजनीति क्यों ?

विकल्प की राजनीति वही लोग करते हैं जो यथास्थिति से संतुष्ट नहीं हैं। मतलब अगर आज का समाज हिंसक, और लुटेरा है तो एक नया समाज बनाना ही होगा। अगर इतिहास में जिनके साथ अन्याय हुआ है तब नए विकल्प की तलाश जरूरत बन जाती है। गैरबराबरी में सनी व्यवस्था को उखाड़ फेकना तो ठीक है लेकिन उसके बरक्स एक नया विकल्प देना भी जरूरत है।लेकिन क्या विकल्प सिर्फ राजनितिक ही होगा ?

सांस्कृतिक, धार्मिक विकल्प कहाँ से लाएंगे। सीधे शब्दों में कहूं तो दीपावली और दशहरा का विकल्प कुछ है की नहीं ? डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को भारत में जीवित करके एक नया विकल्प दिया था। आज के दिन ही बाबासाहब ने 1956 में हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

जनता को राजनितिक विकल्प के साथ साथ सांस्कृतिक और धार्मिक विकल्प चाहिए। धर्म अफीम है, या मै नास्तिक हूँ कह देने से काम नहीं चलेगा।

– डॉ 0 चंद्रसेन ,जेएनयू

प्रकाशित हो रही है बृजमोहन की लिखित ”क्रांतिकारी मदारी पासी : एक ऐतिहासिक उपन्यास “

देश में स्वतन्त्रता संग्राम के बाद का सन्नाटा था। 1857 में हुए भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को गोरों ने गदर कहा था। गदर के दमन में हजारों स्वतन्त्रता सेनानी मृत्यु के घाट उतारे जा चुके थे या कैदी बना कर प्रताड़ित करने को जेलों में भेज दिए गए थे। जो बचे पाये थे, वे बेचैनी में गुमनामी जीवन व्यतीत कर रहे थे। अँग्रेजों ने जमीनें चापलूस जमींदारों के अधीन कर दी थीं। लगान वसूली के लिए जमींदारों को अपना एजेण्ट बना दिया था। किसानों और गरीबों पर जमींदारों के कारिन्दे कहर बरपा रहे थे। महाजनां, साहूकारों के शिकंजे ग्रामीणों पर बुरी तरह कसे थे। कभी लगान वसूली के नाम पर, कभी कर्जे और सूद के नाम पर उपज, खेत और पशुधन छीन लिए जाते थे। छोटे-मोटे जेवर, जो उनके पास होते थे, उन्हें भी छीन लेते थे। धौंसपट्टी से बेगार करा लेना, कमजोरों को प्रताड़ित करना आम बात थी। समर्थों के अत्याचारों से कमजोर वर्ग के लोग भयभीत रहते थे। ऐसी क्रूरता के चलते किसानों, गरीबों की स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं थीं। मौके-बेमौके उनकी इज्जत पर हमले का खतरा बना रहता था।
उन्हीं दिनों हरदोई जिले के एक गाँव में मदारी का जन्म हुआ। पिता का नाम मोहन पासी था और गाँव का नाम मोहनगंज मजरा इटौंजा, तहसील सण्डीला। कोई नहीं जानता था कि यही बालक, भविष्य में एक जुझारू जननायक बनकर उभरेगा और गरीबों, उपेक्षितों के मसीहा के रूप में मदारी पासी के नाम से जाना जाएगा। कालान्तर में उसकी मूर्तियाँ स्थापित होंगी, कलैण्डर छपेंगे… और, एक क्रान्तिवीर के रूप में उसका इतिहास पुनः लिखा जाएगा, क्योंकि उपेक्षावश इतिहास के पन्नों में उसे वह स्थान नहीं मिल सका था, जिसका वह हकदार था।
मोहन पासी गरीब किसान थे। उनके पास पर्याप्त भूमि नहीं थी। उन्हें प्रायः मजदूरी या नौकरी पर निर्भर होना पड़ता था। वह ऐसे कुटुम्ब से थे, जिन कुटुम्बों में जन्मकुण्डली नहीं बनवाई जाती थी। अतः मदारी की भी कुण्डली नहीं बनी। जब मदारी मशहूर हुए तो उनके जन्म का वर्ष अनुमानतः सन् 1860 ई0 आँका गया।

मदारी को बचपन से ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्रचलित प्रथा के अनुसार उनका विवाह कम उम्र में हो गया और दो बेटे, दो बेटियों के पिता बन गए थे। पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों के चलते कोई विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। कोई डिग्री या शैक्षणिक प्रमाणपत्र उनके पास नहीं थे। मदारी कोई कुशल वक्ता नहीं थे, परन्तु उनके अन्तःकरण से निकली सीधी, सच्ची और क्रान्तिकारी बातें लागों को बहुत प्रभावित करती थीं। उन्होंने हिन्दी के साथ-साथ उर्दू का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वह दूसरों को उर्दू पढ़ाया करते थे। उस समय हिन्दी की अपेक्षा उर्दू का चलन अधिक था।
होश सँभालते ही उनके सामने विसंगतियाँ रहीं। ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित होने से देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। किसानों का दुतरफा दोहन हो रहा था। एक ओर भूमि सम्बन्धी अँग्रेजों के अहितकारी कानून थे तो दूसरी तरफ जमींदारों के अपने मतलब के गढ़े कायदे। अत्याचार और दमन करना अपना अधिकार समझते थे। दोहरी मार से किसान हैरान-परेशान थे। वह ऐसा समय था, जब समाज में छुआछूत, ऊँच-नीच, जाति-पाँति का भेदभाव, जमींदारों तथा साहूकारों की मनमानी का बोलबाला था। ऐसी कुरीतियों को देखते हुए उनके भीतर विद्रोह की भावना अंकिरत होने लगी और कालान्तर में प्रतिरोध की ज्वाला बन गई। उन्हें लगने लगा कि इन कुरीतियों से लड़ने के लिए ही उनका जन्म हुआ है। उनके व्यक्तित्व में अक्खड़पन आ गया और अन्यायी से लड़ने के लिए आत्मविश्वास उनमें कूट-कूटकर भर गया। अन्याय तो वह सह ही नहीं सकते थे, चाहे किसी के भी साथ हो। अन्यायी के खिलाफ हमेशा खड़े होने को तत्पर रहते थे। अगर लड़ाई भी लड़ना पड़े तो उसके लिए भी तैयार रहते थे। ग्रामीणों को जागृत करने और उनमें साहस भरने का काम उन्होंने आरम्भ कर दिया था।
अपने अभियान में मदारी यथासम्भव पैदल ही गाँव-गाँव घूमकर किसानों से मिलते थे। उनके दुख-सुख की बातें सुनते थे। सबको एक होकर रहने की बात समझाते थे। किसान उन्हें अपना सच्चा हितैषी मानकर उनसे जुड़ने लगे थे। उनसे जुड़ने वालों में छोटे किसान व भूमिहीन थे, जो जमींदारी प्रथा से त्रस्त थे और विभिन्न जाति-धर्म के थे। इस प्रकार हजारों लोग उनसे गहन रूप से जुड़ गए थे। बाद में उन्होंने एक घोड़ी पाल ली थी। घोड़ी पर दूर-दूर तक जाते थे। युवा अवस्था में जब वह एक प्रभावशाली किसान नेता के रूप उभर रहे थे, तब तक उनके समर्थक और सहयोगी खासे बढ़ चुके थे। जिनमें युवकों की संख्या अधिक थी। उन्हें ‘राजा’ कहा जाने लगा था।
देश में किसान सभाएँ गठित हुईं तो मदारी पासी किसान सभा से जुड़े और अपने क्षेत्र में उसका नेतृत्व किया। आरम्भ में महात्मा गाँधी से प्रभावित रहे और प्रतीकात्मक गाँधी टोपी धारण करने लगे। असहयोग आन्दोलन में जमकर भागीदारी करने लगे। अचानक गाँधीजी से मोहभंग हो गया और गाँधीजी की नीतियों से मुँह मोड़ लिया, लेकिन गाँधी टोपी पहनना नहीं छोड़ी। गाँधी टोपी उनकी वेशभूषा का आवश्यक हिस्सा बन गई थी।

अपना आन्दोलन सुचारु रूप से चलाने को मदारी को सुनिश्चित स्थान की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने अपने गाँव मोहनगंज को मुख्यालय बनाया और गाँव का नाम बदलकर मोहनखेड़ा रखा। कोई भी दुखिया मोहनखेड़ा जाकर अपना दुख कह सकता था। मोहनखेड़ा एक ऐसा ठिकाना बन गया था, जहाँ गुहार लगाने से न्याय की आशा की जा सकती थी। अटूट विश्वास लोगों के भीतर भरने लगा था।
वह जानते थे की अत्याचारों के खिलाफ बिना ताकत के नहीं लड़ा जा सकता। इसके लिए उन्होंने मोहनखेड़ा में ही एक अखाड़े की परिकल्पना की, जहाँ शरीर सौष्ठव और कुश्ती के दाँवपेंच का अभ्यास किया जा सके। इसके लिए उन्होंने नवयुवकों को आगे आने का आह्वान किया और अखाड़ा शुरू कर दिया। वह स्वयं मजबूत शरीर के थे और लाठी बहुत अच्छी चलाते थे। तलवार भाँजने में भी माहिर थे। वैसे धनुष-वाण उनका प्रिय अस्त्र था। धनुष और वाण हमेशा साथ रखते थे। उनका निशाना अचूक था। उनके तरकश का एक तीर ही किसी भी प्रतिरोध को खण्डित करने के लिए काफी था। अस्त्र-शस्त्र के प्रशिक्षण व अभ्यास की योजना भी उनके दिमाग में थी। सिर्फ लाठी-डण्डे से काम नहीं चल सकता था। हर एक के पास तो ढंग की लाठी तक नहीं थी। भाला, बल्लम, तलवार, तीर-कमान लोगों को सिखाना चाहते थे। लेकिन इन सबके लिए धन आवश्यक था।
अच्छा-खासा संगठन उन्होंने खड़ा कर लिया था। विरोधियों को सबक सिखाने का उनका अपना ढंग था। विषमताओं से निपटने को कमर कसे थे और सतर्क रहते थे। उन्होंने अपना विश्वसानीय खुफिया तन्त्र भी खड़ा किया, जिससे उपयोगी सूचनायें उन तक पहुँच सकें। सताया हुआ व्यक्ति भयभीत होकर भले ही अपनी पीड़ा व्यक्त न कर सके, परन्तु उन्हें मालूम पड़ जाता था। जिसकी मदद करना उनकी प्राथमिकता होती थी। वह ग्रामीणों में निर्भय वातावरण तैयार करना चाहते थे।
मदारी के विश्वसनीय साथी थे- जसकरन, गजोधर, नगई, शिवरतन, बचान, भैरव आदि व स्थानीय कार्यकर्ता। पवाँया के रघुनाथ शुक्ला भी उनसे जुड़ गए थे। मदारी के एक इशारे पर सभी जान की बाजी लगा सकते थे। वह अपने कार्यकर्ताओं को सहयोगी कहते थे। उनके सहयोग से ही उनका अभियान सक्रिय रहा, लोग जागृत हुए। जो बाद में आन्दोलन का रूप लेने लगा और एका आन्दोलन के नाम से जाना गया।

शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘क्रान्तिवीर मदारी पासी’ का अंश। लेखक: प्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार बृज मोहन , झाँसी उत्तर प्रदेश

जरायमपेशा कानून से प्रभावित जातियों के मशीहा महाशय जी का आज 2 अक्टूबर को है जन्मदिन

महाशय मसूरियादीन पासी का इतिहास

एक ही दिन पर यानी आज के दिन २ अक्टूबर को तीन महान विभूतियों ने भारत देश में जन्म लेकर भारत माता को गौरवान्वित किया। गाँधी जी, लाल बहादूर शास्त्री और मसूरियादीन पासी जैसी अदभुत प्रतिभाओ का 2 अक्टूबर के ही दिन जन्म हुआ था । हम सभी के लिये ख़ुशी का पल है। सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों के शासन से से भारत देश को स्वतंत्र करा कर हम सभी को स्वतंत्र भारत का अनमोल उपहार देने वाले महापुरूष गाँधी जी को राष्ट्र ने राष्ट्रपिता के रूप में समान्नित किया। वहीं जय जवान, जय किसान का नारा देकर भारत के दो आधार स्तंभ को महान कहने वाले महापुरूष लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र को विश्वपटल पर उच्चकोटी की पहचान दिलाई। गांधी जी ,और लालबहादुर शास्त्री के विषय में अधिकतर सभी लोग जानते है, परंतु स्वतन्त्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाने वाले पासी समुदाय में जन्मे महाशय मसूरियादीन जी को नई पीढ़ी नहीं जानती । भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में मसूरियादीन जी ने इलाहाबाद का नेतृत्व किया था और करीब नौ वर्षो तक जेल में रहे। आजादी के बाद 1951 में प्रथम लोकसभा में फूलपुर से सांसद रहे । संघर्ष के दौरान नेहरू जी के साथ कई बार जेल गए। खास तौर पर महाशय जी ने पासी जाती पर अंग्रेजो द्वारा लगाये “जरायम पेशा कानून ” को हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी।

खास बातें-

आज २ अक्टूबर के ही दिन भारत के तिन महापुरुषों गाँधी जी , लालबहादुर शास्त्री और पासी नायक मा. बापू मसुरियादीन पासी का जन्म हुआ था
पासी जाती सहित भारत के २०० जातियों पर लगे जरायम पेशा एक्ट को हटाने में अहम भूमिका निभाने वाले महाशय मसूरियादीन को नई पीढ़ी के बहुत कम लोग ही जानते है
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के बावजूद भी भारत के इतिहासकारों ने उन्हें वो सम्मान नही दिया जिसका वो हक़दार थे
माननीय बापू मसुरियादीन पासी

एक संक्षिप्त परिचय

जन्म तिथि – 02 अक्टूबर 1911

पूण्यतिथि -21 जुलाई 1978

माननीय साहब का जन्म आज के ही दिन २ अक्टूबर को हुआ था , भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में इनके इतने अहम योगदान के बावजूद भी भारत के जातिवादी और पक्षपाती इतिहासकारों ने उन्हें भारतीय इतिहास में वो जगह नही दिया जिनके वो हक़दार थे , भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में मसूरियादीन जी ने इलाहाबाद का नेतृत्व किया था ,और करीब नौ वर्षो तक जेल में रहे। संघर्ष के दौरान नेहरू जी के साथ कई बार जेल गए।

आजादी के बाद 1951 में प्रथम लोकसभा में फूलपुर से सांसद रहे । 1952 से लेकर 1967 तक संसद सदस्य रहे महाशय मसुरियादीन पासी समाज को अंग्रेजो द्वारा लगाए गए “जरायम पेशा एक्ट” को खत्म कराकर एक नया जीवन दान दिया । अखिल भारतीय पासी महासभा के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने विभिन्न कुरूतियों में जकड़े पासी समाज को मुक्त कराने के लिए संघठित आंदोलन चलवाए ।

आज पासी समाज में जो समृद्धि थोड़ी बहुत दिखाई पड़ती है । उसमें बाबू जी के खून और पसीना शामिल है । लेकिन बाबू जी के बाद कि पीढ़ी निकम्मी हो गई वह केवल राजनीतिक लाभ लेने तक सीमित हो गई ,खास तौर पर महाशय जी ने पासी जाती पर अंग्रेजो द्वारा लगाये “जरायम पेशा कानून ” को हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी।

क्या है जरायम पेशा कानून और क्रिमिनल ट्राइब एक्ट
अंग्रेजो ने भारत के उन तमाम जातियों , जनजातियो के एक समूह विशेष को प्रताड़ित करने के लिए एक विशेष कानून पास किया जिसे क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट या जरायम पेशा कानून का नाम दिया गया ,अंग्रज इस कानून का दुरूपयोग उन तमाम जाती के लोगो के विरुद्ध करते थे जो उनके खिलाफ बगावत करते थे ,उनके खिलाफ आन्दोलन करते थे , उनके बहकावे तथा प्रलोभन में नही आते थे तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे , पासी जाती भी इन जातियों में एक थी जिसने एक काफी समय तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और जरायम पेशा एक्ट का मार झेला और अपना मान सम्मान और जमीन जायदाद सब खो दिया , इस एक्ट के तहत क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाले जाती के परिवार के बच्चो को भी पुलिस नही छोडती थी और उन्हें हमेशा थाने में रिपोर्ट करना पड़ता था ,यदि दलितों को चार वर्णों पर आधारित जाति व्यवस्था के उच्चताक्रम से उपजी हिंसा और बहिष्करण का शिकार होना पड़ा तो घुमंतू जातियां अंग्रेजी शासन का शिकार बनीं. 1871 के क्रिमिनल ट्राइब एक्ट से पूरे देश में दो सौ के लगभग समुदायों को अपराधी जनजाति में घोषित कर दिया गया इन दो सौ जातियों में पासी जाती भी शामिल थी भारत के सामाजिक और विधिक क्षेत्र में घुमंतू समुदायों के लिए यह एक सामूहिक हादसा था।

1924 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट का विस्तार किया गया और कई अन्य समुदाय इस कानून की जद में ले आए गए देश को 1947 में आजादी मिली, भारत का संविधान बनाया गया और सबको बराबरी का हक़ मिला कि वह वोट डाल सके. 1952 में उन समुदायों को विमुक्त समुदाय का दर्जा दिया गया जो क्रिमिनल ट्राइब एक्ट के तहत अपराधी घोषित किए गए थे यह एक प्रकार से यह बताना था कि अमुक समुदाय अब अपराधी नहीं रह गए हैं! यह कानून की बिडंबना थी कि उन्हें एक पहचान से मुक्त कर दूसरी कम अपमानजनक पहचान से नवाज दिया गया 1959 में हैबीचुअल अफेंडर एक्ट ने पुलिस का ध्यान फिर उन्हीं समुदायों की ओर मोड़ दिया जो अब विमुक्त थे, यह सब आजाद भारत में हो रहा था

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गाँव गाँव पहुच बना रहा है बीकेआरपी – प्रमोद भारतीय

वचिंत समाज के लिए पूर्ण समर्पित है पार्टी

दिनांक 30 सितम्बर दिन रविवार को भारत क्रान्ति रक्षक पार्टी (बी.के.आर.पी.) की साप्ताहिक जन-जागरूकता एवं सदस्यता अभियान की बैठक पार्टी के प्रचारमंत्री राजेश कुशवाहा के निवास ग्राम सकरा,हेतापट्टी,झूँसी विधानसभा फूलपुर जिला इलाहाबाद में पार्टी के जिला अध्यक्ष दूधनाथ पासी के अध्यक्षता में सम्पन्न हुई ।

बैठक को सम्बोधित करते हुए जिला अध्यक्ष जी ने पार्टी के मुख्य उद्देश्यों के बारे में लोंगो को बताया और इस पार्टी में जोङकर भारत में फैले भ्रष्टाचार,बेरोजगारी,बहन-बेटियों की सुरक्षा आदि को दूर करने के लिये संगठित होने का आह्वान किया।फूलपुर विधानसभा अध्यक्ष मुकेश भारतीया ने सभी लोगो से निवेदन किया कि साप्ताह में एक दिन पार्टी को अवश्य दे,जिससे आप और पार्टी का सामाजिक स्तर का विकास हो सके।शहर उत्तरी विधानसभा के अध्यक्ष विनोद सरोज ने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए कहा कि बी.के.आर.पी. ही इन सब को दूर करने में सक्षम है,इसलिये पार्टी में आप सब जरूर जोङे और लोगो को भी जोङे।

बैठक का संचालन पार्टी के प्रवक्ता एवं विधि सलाहकर एडवोकेट प्रमोद कुमार भारतीया ने अपने भाषाण में लोंगो को बताया की पार्टी संकल्प है कि समाज के उन वचिंत लोंगो के लिये सदा तत्पर है की जो आज भी समाज के मुख्य धारा से नहीं जोङे है उन्हें आज से ही जोङकर उनका विकास करना है इसलिये पार्टी गाँव-गाँव जाकर वचिंत समाज के बारे में जानकारी प्राप्त करती है और जो जरूरत मंद मिलता है उसे पार्टी हर सम्भव मद्द करने का प्रयास करती है क्योंकि पार्टी वचिंत समाज के लिये सदैव पूर्ण समर्पित है।

अन्त में पार्टी के जिला प्रचार मंत्री राजेश कुशवाहा ने आए हुए लोगों का आभार प्रकट किया और लगभग तीन दर्जन से भी ज्यादा लोगों को आज पार्टी की सदस्यता दिलवाई।

बैठक में प्रमुख रूप से राजबली मौर्या,एम.लाल प्रजापति,चन्द्र पाल पटेल,छात्रनेता कमलेश पासी,लालमणि पासी,चन्द्र शेखर,कमलेश गौङ,संदीप पासी,बृजराज कुशवाहा,विवेक सोनी,प्रदीप गुप्ता आदि लोग उपस्थित रहे….✍
एडवोकेट प्रमोद कुमार भारतीया