उधर निठल्ले तोंदियल अलसाए राणा जी लड़ने चले नहीं कि इधर रानी साहिबा के जल मरने की तैयारी शुरू। राणा जी लगभग शत प्रतिशत हार जाते थे। या भाग खड़े होते थे।
शुक्र है कि भारत में झलकारी बाई कोरी, उदा देवी पासी, रानी दुर्गावती, अवंतीबाई लोधी, महावीरी देवी जैसी वीरांगनाएँ रही हैं।
सिर्फ एक मिसाल लें तो, उदा देवी के पति 1857 अंग्रेज़ों से लड़ते हुए मारे गए तो उदा देवी सती नहीं हुईं। तलवार उठाई और 30 से ज़्यादा अंग्रेज़ों को मारकर शहीद हो गई।
इसे कहते हैं शौर्य।
वह नहीं कि फोकट में जल मरीं।
वो जो सती बनी, जिन्होंने निठल्ले राणा जी के लिए जौहर किया, उनसे देश को क्या मिला? इसलिए देश ने भी उन्हें इतिहास के कूड़े में फेंक दिया।
हालाँकि मुझे नहीं लगता कि कोई महिला अपनी मर्ज़ी से सती होती होंगी। ज़बरन पकड़कर जला दिया जाता होगा।
अच्छा है कि यह प्रथा अब ग़ैरक़ानूनी है।
बहरहाल, झलकारी बाई कोरी, उदा देवी पासी, रानी दुर्गावती, अवंतीबाई लोधी, महावीरी देवी की मूर्तियाँ देश के अलग अलग हिस्सों में लगी हैं। उन्हें फूल मालाएँ पहनाई जाती हैं। उनके नाम पर सरकार ने डाकटिकट जारी किए। उनके नाम पर स्कूल कॉलेज हैं। उनके नाम पर पुरस्कार दिए जाते हैं।
उन वीरांगनाओं को शत शत नमन।