प्लेटो का आदर्श राज्य न्याय पर आधारित है , न्याय ही राज्य की एकता को बनाए रखने का सूत्र है , प्लेटो का कहना है की “समाज अथवा राज्य समाज की आवश्यकता और व्यक्ति को दृष्टि में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए कुछ कर्तव्य निश्चित करते है और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा संतोषपूर्वक अपने अपने कर्तव्यों का पालन करना ही न्याय है , प्लेटो का आदर्श राज्य एक ऐसी वयस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कर्तव्यों का पालन करता है ।
प्लेटो म उपरोक्त कथन उनकी राज्य के प्रति अवधारणा की स्पष्ट करता है । किसी देश की अंतरात्मा उसके संविधान में निहित होती है । भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है इस देश का संविधान इसका नेतृत्व करता है , जिसके जनक बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर है किसी देश की प्रकृति कैसी है यह उसके संविधान से स्पष्ट होता है उसकी न्याय प्रणाली ,सामाजिक वयस्था , राजनीतिक तंत्र ये सभी संविधान से बँधे होते है ।
संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसको आत्मर्पित करने वाले लोग सही नहि होंगे तो उस देश का भविष्य अच्छा हो सकता । बाबा साहब के संविधान पर महान दार्शनिक प्लेटो के उपरोक्त कथन का प्रभाव स्पष्टत: इंगित होता है , अब इसे हम संयोग kahe या बाबा साहब की विध्व्ता जिन्होंने सैंड्रा के सभी अच्छे संविधानों के बेहतरीन तथ्य भारतीय संविधान में तिरोहित किया है । बाबा साहेब ने संविधान निर्माण के समय विश्व के सभी देशों के संविधान का अध्याय निश्चित रूप से किया होगा , साथ ही साथ विश्व के महान दर्शिनको तथा विद्वानों का भी अध्यन किया होगा , तभी तो भारत का संविधान इतना उत्कृष्ट बना है ।२९ अगस्त सन १९४७ को जब बाबा साहेब को भारतीय संविधान निर्माण की ज़िम्मेदारी मिली तभी यह स्पष्ट हो गया था कि एक ख़ूबसूरत संविधान देखने को मिलने बाला है । तथा बाबा साहब ने दिन रात मेहनत करके २ वर्ष ११ महीने १८ दिन में इस आशय को सिद्ध भी कर दिया । संविधान निर्माण समय बैन साहेब के समक्ष लगभग ३० करोड़ जनसंख्या को न्याय दिलाने और सब की उम्मीदों के अनुरूप निर्माण की चुनौती थी , जिसे बाबा साहेब ने बख़ूबी निभाया ।
भारतीय समाज का इतने भागो में विभाजित होना , भारतीय समाज में विश्व की लगभग सभी जातियों और वर्गों के निवास करने और उन सब में अंतर्कलह की स्थिति के बावजूद संविधान में हर तबके के लिए सम्पूर्ण वयस्था निहित है । आज़ादी के पूर्ण भारत में भारत की ६० प्रतिशत जन्स्ख्या ग़ुलामों जैसी ज़िंदगी जी रही थी , वैसे तो भारत की ८०प्रतीशत् जन्स्ख्या की यहाँ बड़ी ही हेय दृष्टि से देखा जाता था । फिर भी विषम परिस्थितियों बाबा साहेब ने संविधान का निर्माण किया । महान दार्शनिक प्लेटो तथा अन्य महान विद्वानों ने जो आदर्श राज्य के जो नियम प्रतिपादित किए थे उन सभी को संविधान में तिरोहित किया । उन्होंने समाज के har वर्ग को उसकी योग्यता अनुसार राष्ट्र के vikas के लिए उसके कर्तव्य निर्धारित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया , जिससे देश का प्रत्येक नागरिक पढ़ लिख कर तरक़्क़ी कर सके और और राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे सके
परंतु पिछले ६७ वर्षोंसे कुछ वर्ग विशेष के लोग उन्हें निरंतर दबाने में लगे है , जिन्हें बैन साहब , ज्योतिबा फुले ने संघर्ष कर अधिकार दिलाया था , यदि इन मनवादियो को उस तबके की तार्किक से इतनी नफ़रत है तो ऐसी कौन सी मजबूरी थी ? जिसके वजह से इन मनवादियो ने बैन साहेब को पूना पैक्ट के लिए मजबूर किया था , जो दबे कुचले है उन्हें यथावत उसी स्थितियों में बनाए रखना था , अंकन वाई तबक़ा तरक़्क़ी करने लगा तो इन मनवादियो को कष्ट होने लगा , जिसके फ़लस्वरोप सदैव उसकी राहों में रोड़े अटकाए गए । आजाती के इतने वर्षों के पश्चात भी संविधान में की गई आरक्षण कि पूर्ण व्यवस्था पूरी तरह से आज भी लागू नहि की गई , न्यायालय ,सेना, PMO , प्राइवट सेक्टर में तीन -तीन पीढ़ी बीत जाने के बाद भी कोई ख़ास प्रतिनिधित्व आज राज क्यों नहि मिला ? ऐसा क्या चल रहा है इन मनुवादी के मस्तिष्क जो उन दबे कुचले लोगों को अग्रिम पंक्ति में नहि आने देना चाहता ।
यदि आज हम किसी भी संस्थान में उठा कर देखे ले तो उच्च पदों पर या तो नियुक्ति ही नहि की जाती यदि की भी जाती है तो विषम परिस्थितियों में न के बराबर आज़ादी के पश्चात –
– क्या तीनो सेनाओं के प्रमुख के रूप में किसी वंचित समाज के सदस्य की नियुक्ति हुई ?
– क्या कोई प्रधान मंत्री बना
– एक राष्ट्रपति छोड़ क्या धारक कोई राष्ट्रपति बना
– न्यायालयों में आजतक कितने चीफ़ जस्टिस पहुँचे ।लोवर तबके पर कितने वंचित समाज के वकीलों को सरकारी वक़ील या जज के रूप में प्रमोशन मिलता है ? एक चीफ़ जस्टिस नियुक्त हुए थे कुछ समय के लिए जब चीफ़ जस्टिस की को अपनी संपती की घोषणा सार्वजनिक रूप से करनी थी ।
– विश्वविद्धलयो में कितने कुलपति , प्रोफ़ेसर अब तक नियुक्त हुए ?
– विभिन्न राज्यों में अब तक कितने मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने ?
– कहा जाता था की कांग्रेस वंचित समाज की सहयोगी पार्टी है अब तक कितने अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बने ?
– कांग्रेस की सरका रहते कोई प्रधान मंत्री बना ?
– ५०-५५ वर्षों के कांग्रेस शासन में कितने कैबिनेट मंत्री बने ?
– आज भाजपा की सरकार है कितने वंचित समाज से संबंधित उसकी कैबिनेट मंत्रालय में है ?
– कितने लोगों को इन्होंने पार्टी के शीर्ष पदों स्थान दिया है ?
– भारतीय क्रिकेट टर्म जहाँ एक सिख और मुस्लिम स्थान लगभग हमेशा संरक्षित रहा SC/ST के कितने खिलाड़ियों को प्रतिनिधित्व का मौक़ा मिला?
– अन्य खेलो जैसे हाकी फ़ुट्बॉल इत्यादि में अब तक इस वर्ग को कितना प्रतिनिधित्व मिला है
– विश्व हिंदू परिषद, आर॰एस॰एस॰ ,बजरंग दल, शिवसेना , प्रांतीय दल , रक्षक वहिनी , दुर्गा वहिनी , न जाने कितनो में वंचित समाज की भागीदारी करोड़ो में होती है , परंतु जैन अधिकार ,प्रतिष्ठा की बात आती है तो हमेशा अगली पंक्ति में मनुवादी के पोषक ही दिखाई पड़ते है
– संघीयों ने अब तक कितने पासी ,जाटव,कोरी ,धोबी, इत्यादि को अध्यक्ष या प्रमुख के पद पर आसीन होने दिया है ।
– क्या इनकी कार्य प्रणाली मन में शंका नहि पैदा करती ?
वहीं दूसरी तरफ़ पेरियार साहब तमिलनाडु में पिछड़े और परिगणित जातियों के लिए एक पार्टी का गठन किया जो की बाद में दो भागो AIDMK और DMK में विभाजित हुई दोनो के ही मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे है । मान्यवर स्वर्गीय श्री कांशीराम साहब ने बामसेफ और बीएसपी की स्थापना की स्थापना लोअर तबके लिए किया परंतु आज इसमें ब्रह्मणो को बराबर सम्मान मिलता है पर क्या वंचित समाज को सम्मान मिलता है ?मात्र एक-दो राज्यों में इनकी सरकार क्या बनी माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया की जाती और धर्म के आधार पर वोट न माँगे जाए मैं पूछना चाहता हु की जाती और धर्म की इस देश को ज़रूरत क्या है ?
उसे समाप्त क्यों नहि कर दिया जाता ? कटघरे में खड़े व्यक्ति को गीता और क़ुरान पर हाथ रखकर क़सम क्यों खिलाई जातीहै ?
– क्या गीता जातिवादी पुस्तक नहि है ?
– क्या गीता रामायण महाभारत जातिवाद को बढ़ावा नहि देते ? ऐसी पुस्तकें जिसमें कपोल कथाएँ है उससे नागरिकों को क्या फ़ायदा है ?
– ऐसी पुस्तक न्याय के मंदिर में प्रयोग क्यों की जाती है।
– आज भारत की जो स्थिति है उसका ज़िम्मेदार कौन है ? कहीं नक्सलवाद कहीं उल्फ़ा ,कहीं एल॰टी॰टी॰ कही आतंकवाद जगह जगह अलगाववाद को बढ़ावा क्यों मिल रहा है ? क्या इसके पीछे केंद्र की कमज़ोर जीती नहि है ?
– भारत के तत्कालिक परिवेश को देखने पर लेनिन के ये शब्द याद आते है – साम्राज्यवाद पूँजीवादी सर्वोत्तम अवस्था है ?
– राज्य धनवान वर्ग के हाथ की कठपुतली है वह सर्वहित या जैन कल्याण का साधन नहि हो सकता ।
– राज्य जनसंख्या के अधिकांश भाग पर शासन करने वाले पूँजीपतियों के हाथो में शोषण का साधन है ।लेनिन के उपरोक्त कथनो और भारत के मोदी युग का विश्लेषण करे रो आज का मोदी युग पूँजीवादी की ओर अग्रसर हो रहा है ।
– मोदी एंड कम्पनी देश को किस दिशा में ले जा रहे है ?
– क्या पूँजीवाद और समराज्यवाद देश के लिए ख़तरा नहि है
– क्या मोदी कंपनी लेनिन के उपरोक्त कथन की ओर नहि बढ़ रहे है
– क्या भाजपा की ये कार्यशैली प्लेटो के आदर्श राज्य के विपरीत नहि जा रहे है ?
– क्या इस देश में प्रत्येक समझके प्रत्येक वक्ति राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह करने का मौक़ा मिलता है ?
– क्या इस वर्ग को आरक्षण के तहत जो अधिकार है उसके अंतर्गत जीवन जीने का मौक़ा मिलता है ?
– १९९२ से अब तक लगातार अयोध्या के ऊपर राजनीति की रोटी क्यों सेकी जा रही है ? २५ वर्ष हो रहे है जो बनाना है या नहि बनाना है फ़ाइनल करिए क्यों जनता को बेवक़ूफ़ बाना रहे है
– भाजपा नेता विनय कटियार का यह कहना की सुप्रीम कोर्ट कहे ना कहे मंदिर ज़रूर बनेगा । क्या ये मानननिय सुप्रीम कोर्ट से ऊपर होग गए है ।
– यदि सम्पूर्ण जनता को साथ लेकर चलना चाहते है तो क्यों नहि आदिवासियों के ज़मीन संभ्धित अधिकार उन्हेंसौंप देते ?
– क्यों आरक्षण का पेंच फँसा कर बैठे है ?क्यों नहि उसे पास करवाते ?
– आरक्षण पर मानननिय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उसका पालन क्यों नहि करवा रहे है ?
– बार – बार संविधान संशोधन और आरक्षण पर बहस क्यों छिड़तीं है ?
– क्या ये वर्ग क्रांति चाहता है ?
– यदि किसी वर्ग विशेष के अधिकारों का दमन किया गया तो क्या देश के लिए विनाशकारी नहि होगा ?
– उससे देश को क्या फ़ायदा होगा
– क्यों मीडिया और न्यूज़ चैनल इस ओर आमादा है ?
– क्या इससे देश की तरक़्क़ी में बाधा नहि पहुँचेगी ?
– देश की जनता को भ्रमित क्यों किया जा रहा है ?
क्या आज माननिय प्रधानमंत्री और उनके मंत्रालय अर्थात भारत सरकार को इस विषय पर गम्भीरता से विचार नहि करना चाहिए ?
जय भीम
लेखक – डा ० यशवंत सिंह ,लखनऊ