लन्दन जाकर जालियावालाबाग हत्याकांड का प्रतिशोध लिये थे बहुजन क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह ने , शहादत दिवस पर नमन !

             

जन्म 26 दिसम्बर 1899
मृत्यु 31 जुलाई 1940 (उम्र 40)
पेंटोविले जेल , यूनाइटेड किंगडम
अन्य नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद
संगठन गदर पार्टीहिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशनभारतीय श्रमिक संघ
आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
धार्मिक मान्यता सिक्ख (दलित)

     जलियांवाला बाग नरसंहार, किसका खून नही खुल जाता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर? ऐसा कोई भारतीय नही , जिसका दिल और दिमाग अंग्रेजों के प्रति घृणा से भर नहीं उठता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर। पर बहुजन क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह  जैसे देश के वीर सपूत ने अंग्रेजों की इस कायरता का भरपूर जवाब दिया , और लन्दन में जाकर जलियांवाला बाग नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को उसी की सरजमीं पर गोलियों से भून डाला  ,  शहीद उधम सिंह की सबसे बड़ी बात ये थी की उन्होंने माइकल ओ डायर के सिवाय और किसी को भी निशाना नही बनाया और ठीक भगत सिंह जी के अंदाज में आत्मसमर्पण कर दिया , अंग्रेजों ने फांसी की सजा की सुनवाई के दौरान जब उधम सिंह से पूछा कि उन्होंने किसी और को गोली क्यों नहीं मारी, तो वीर उधम सिंह का जवाब था कि सच्चा हिंदुस्तानी कभी महिलाओं और बच्चों पर हथियार नहीं उठाते। ऐसे थे हमारे शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह। उधम सिंह को बाद में शहीद-ए-आजम की वही उपाधि दी गई, जो सरदार भगत सिंह को शहादत के बाद मिली थी।    आज  31 जुलाई को शहीद वीर उधम सिंह जी का शहादत दिवस है श्री पासी सत्ता परिवार उनको श्रध्दांजलि अर्पित करता है !

  विशेष जानकारी  

  • जालियावाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे उधम सिंह         
  •    शहीद उधम सिंह ने लन्दन जाकर जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लिया  
  •     सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है
  •   उत्तर भारतीय राज्य उतराखंड के एक ज़िले का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है   

जीवनी :- 

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर  जिले के सुनाम  गाँव में सिक्ख (दलित ) परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

  • जलियावालाबाग हत्याकांड के 21 सालो  बाद लन्दन जाकर लिया बदला 

उधम  सिंह के सामने ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। वे प्रत्यक्षदर्शी थे ,  राजनीतिक कारणों से जालियावाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई, सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी। अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका , नैरोबी ,ब्राज़ील और अमेरिका  की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

  • शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है.

आइये आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर , सुनाम  स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रन्तिकारी का  घर है… कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए करोडो रुपये बहाती है, बीजेपी सरकार संघियों के स्मारक और मुर्तिया लगाने के लिए करोडो खर्च करती है लेकिन आजतक इस देश के सच्चे वीर सपूत के नाम से कोई स्मारक नही बना और न ही इनके घर और पूर्वजो की निशानी को संरक्षित किया गया

     

 

 

भभुआ कैमूर में छत्रपति शाहूजी महाराज के 143वी जयंती के उपलक्ष्य में हुआ संगोष्ठी का आयोजन ।

 

भभुआ (कैमूर, बिहार ) :- आज दिनांक 30-07-2017 को बिहार राज्य के कैमूर जिले के जिला मुख्यालय भभुआ में छत्रपति शाहूजी महाराज के 143वी जयंती के उपलक्ष्य में एकदिवसीय बहुजन संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी “आज के सामाजिक परिदृश्य में आरक्षण पर बहुजन छात्र /युवाओ की भूमिका “ बिषय पर आयोजित की गयी ।                                      


       मुख्य बाते

  • आरक्षण के जनक थे छत्रपति शाहूजी महाराज ।
  • कुर्मी जाति में जन्म लिए थे ।
  • 143वी जयंती के अवसर पर संगोष्ठी आयोजित की गयी ।
  • संगोष्ठी का विषय “ आज के सामाजिक परिदृश्य में आरक्षण पर बहुजन छात्र ,युवाओ की भूमिका।     

       

भभुआ में आयोजित इस जयंती समारोह सह संगोष्ठी में शामिल होने के लिए पुरे देश के तमाम विख्यात बहुजन चिन्तक, और सामाजिक कार्यकर्त्ता उपस्थित हुए । प्रमुख रूप से दिल्ली विश्वविधालय के हिन्दू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल , अम्बेडकर चेतना मंच के चेयरमैन बुद्ध शरण हंस , आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ के इंजिनियर हरीकेश्वर राम ,वाराणसी हिन्दू विश्वविधालय से किशोर कुणाल, रोहतास जिले के विख्यात दलित चिन्तक अरविन्द कुमार चक्रवर्ती , मनीष रंजन , डॉ विनोद पाल, संतोष यादव ,इ. सुजीत कुमार, संजय कु. सुमन , उत्पल बल्लव ,रजनीश कुमार अम्बेडकर आदि लोग उपस्थित हुए , तथा इन सभी वक्तो ने बारी बारी से आपने विचार प्रस्तुत किये । इस सभा में पुरे कैमूर और निकटवर्ती रोहतास जिले के सैकड़ो बहुजन छात्र और युवा शामिल हुए , और समारोह सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ।

नवगठित बिहार सरकार के गठन पर पटना हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

पटना (बिहार) :- बिहार राज्य की सर्वाधिक विधायको वाली पार्टी राजद को बिना बुलाये  राज्यपाल द्वारा जदयू और भाजपा के गठबंधन वाली पार्टी को सरकार बनाने का आमंत्रण दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर पटना हाईकोर्ट 31 जुलाई को सुनवाई करेगा , पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश राजेंद्र मेनन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दो अलग अलग याचिकाओ पर एक साथ सुनवाई करने के लिए 31 जुलाई की तारीख निर्धारित की गयी है

                                                  

           विशेष

  • 31 जुलाई को मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ करेगी सुनवाई
  • असंवैधानिक है नवगठित सरकार
  • बडहरा के राजद विधायक सरोज यादव व नौबतपुर के समाजवादी नेता जितेन्द्र कुमार ने दायर की है याचिका

आपको बता दे की बिहार राज्य में नई सरकार के गठन में बिहार के राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 163, 164 व 174 का खुला उल्लंघन किया गया , ऐसा भी माना जा रहा है की राज्यपाल ने सबसे ज्यादा विधायको वाली पार्टी राजद को बिना बुलाये ही सर्कार गठित करके सरकारिया कमिशन का भी उल्लंघन किया है राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट  में दो जनहित याचिका दायर किया गया है , जिसमे पहली याचिका बडहरा के राजद विधायक सरोज यादव जबकि दूसरी याचिका नौबतपुर के समाजवादी नेता जितेन्द्र कुमार ने दायर की है याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के फैसले पर हैरानी जाहिर कर कहा है ली नियमत: सबसे पहले राजद को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना चाहिय्रे था ,लेकिन अफरातफरी में नितीश कुमार को बुला लिया गया , ऐसा कर राज्यपाल ने गैर संवैधानिक कार्य किया   इस तरह की राजनीती से पुरे देश में गलत सन्देश जाएगा याचिका में एसआर बोमई केस का हवाला दिया गया है जब ऐसी स्थिति बनती है तो राज्यपाल व् केंद्र सरकार को क्या करनी चाहिए ? साथ साथ  सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में रामेश्वर प्रसाद और भारत सरकार के मामले में भी व्यवस्था दी थी की सबसे अधिक विधायको वाली पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए न्योता पहले दी जनि चाहिए उसके इंकार के बाद ही दुसरे दलों को मौका दिया जाना चाहिए , याचिकाकर्ता के वकील जगन्नाथ सिंह ने बताया की पूरा घटनाक्रम गैर संवैधानिक तरीके से हुआ इसमें हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए

बिहार के सीएम नितीश कुमार ने दिया इस्तीफा , बिहार में राजनितिक भूचाल 


पटना बिहार:-  बिहार के मुख्यमंत्री नितीश जी ने अपने पद से इस्तीफा देकर बिहार की राजनीती में एक नया संकट पैदा कर दिया है ।मुख्यमंत्री नितीश के इस्तीफे पर बिहार में गहमागहमी है । मुख्यमंत्री नितीश ने इस्तीफा देते हुए कहा की मैंने ये इस्तीफा भ्रष्टाचार के मुद्दे और अपने जीरो टॉलरेंस की निति को कायम रखने के लिए दिया है । आपको बता दे की मुख्यमंत्री नितीश ने तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपो पर सफाई माँगा था और इसके लिए समय भी दिया गया था और तेजस्वी के इस्तीफे की मांग भी की गयी थी लेकिन तेजस्वी यादव , राजद सुप्रीमो लालू यादव इस्तीफा देने के पक्ष में नही थे । नितीश जी ने इस्तीफे का कारण लालू का अड़ियल रवैया बताया उन्होंने लालू यादव पर आरोप लगाये की लालू यादव संकट में बचाने का दबाव डाल रहे थे अतः उन्होंने इस्तीफा दे दिया । वही बीजेपी में नितीश के इस्तीफे को लेकर ख़ुशी है । प्रधानमंत्री मोदी ने नितीश को ट्वीट कर के इस्तीफे की बधाई दी और लिखा की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुटने के लिए बधाई । वही बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा की बिहार की जनता को मध्यविधि चुनाव का सामना नही करने देंगे अगर समर्थन देना पड़ा तो नितीश को समर्थन दे सकते है । नितीश ने बीजेपी के समर्थन के सवाल पर कहा की अगर यह राज्य के हित में हो तो हम समर्थन ले सकते है । 

वही नितीश के इस्तीफे पर लालू यादव ने कहा की नितीश ने बिहार की जनता को थप्पड़ मारा है । महागठबंधन के टूटने के सवाल पर उन्होंने कहा की महागठबंधन टुटा नही है केवल मुख्यमंत्री का इस्तीफा हुआ है हमलोग महागठबंधन के तीनो सदस्य पार्टियो के बिधायक आपस में बैठ कर नया नेता चुन लेंगे । वही एक बड़ा बयान देते हुए लालू यादव ने कहा की नितीश कुमार पर हत्या का केस है उन्होंने एक पुराने केस का हवाला दिया । वही कांग्रेस पार्टी का कहना है की उन्हें नितीश कुमार के इस्तीफे की जानकारी नही थी । सोनिया गांधी ने नितीश कुमार से बातचीत करने को बोली है । हालांकि अभी बिहार का कोई भी राजनितिक पार्टी मध्यविधि चुनाव के पक्ष में नही है ।लालू यादव ने एक बयान देते हुए कहा की नितीश कुमार को जनता के दिए बहुमत का सम्मान करना चाहिए उन्हें बीजेपी के साथ नही जाना चाहिए बिहार की जनता ने उन्हें बीजेपी के खिलाफ मैंडेट दिया था और पांच साल के लिए मैंडेट दिया था और हमारी महागठबंधन की जिम्मेवारी है की आपसी मतभेद आपस में सुलझा कर जनता के मैंडेट का सम्मान करते हुए पांच साल तक सरकार चलाए ।

असमानता के खिलाफ लड़ाई में भारत का बेहद खराब प्रदर्शन ,152 देशो की सूची में भारत 132वे स्थान पर ।

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफेम एंड डेवलपमेंट इंटरनेशनल द्वारा विश्व के 152 देशो के असमानता को कम या खत्म करने की प्रतिबद्धता को लेकर एक रैंकिंग इंडेक्स जारी किया गया है जिसमे भारत का बेहद ख़राब प्रदर्शन है और भारत इस 152 देशो की सूची में 132वे स्थान पर है जबकी स्वीडन शीर्ष पर है और इस सूचकांक में नाइजीरिया सबसे निचले पायदान पर है ।इस इंडेक्स में ओईसीडी (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) में शामिल देशों ने स्वीडन की अगुवाई में सर्वोच्च प्रदर्शन किया है जबकि नाइजीरिया सबसे निचले पायदान पर है. विकसित देशों में अमेरिका सबसे असमानता वाला देश है. हालांकि, यह दुनिया के इतिहास में सबसे धनी देश रहा है. हैरत की बात यह है कि ‘ग्रॉस नेशनल हैपिनेस’ का टर्म इजाद करनेवाला भूटान इस इंडेक्स में भारत से भी नीचे 143वें नंबर पर है. भारत के निकट पड़ोसी देशों में नेपाल (81) और चीन (87) को छोड़कर सभी का स्थान 138 से 150 के बीच है. इस तथ्य के मद्देनजर कि इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी गरीब आबादी रहती है, यह खबर चिंताजनक है. अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) आक्सफैम और डेवलपमेंट फाइनेंस इंटरनेशनल ने मिलकर सूचकांक एवं असमानता रिपोर्ट जारी की है. इसका मकसद उन देशों की सरकारों के असमानता मिटाने की दिशा में अब तक के प्रयासों का आकलन करना है, जिन्होंने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के तहत असमानता घटाने का संकल्प लिया था. इंडेक्स में मुख्य रूप से उन कदमों पर फोकस किया गया है, जो सरकारें समाज में बराबरी लाने के लिए उठा सकती हैं, न कि उन कदमों पर जिनसे बढ़ती असमानता पर ब्रेक लग सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर सरकारी खर्च आश्चर्यजनक रूप से कम है. टैक्स का ढांचा भी कागजों पर तो आम लोगों के हित में दिखता है, लेकिन व्यावहारिक धरातल पर कई प्रोग्रेसिव टैक्स वसूले नहीं जाते. श्रम अधिकारों के पैमाने पर भी भारत का प्रदर्शन कमजोर है. यही हाल वर्क प्लेस पर महिलाओं के सम्मान का भी है. रिपोर्ट कहती है कि भारत को व्याप्त असमानता में एक तिहाई कटौती करनी होती तो अब तक 17 करोड़ लोगों को गरीबी से निजात दिला दी जाती. लेकिन, इसके उलट नामीबिया ने स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करके अपने यहां गरीबी की दर 53% को आधा कम कर 23% पर ला दिया है.। 

भारत देश का असमानता ख़त्म करने की प्रतिबद्धता खत्म करने को लेकर जारी की सूचकांक में 132वे स्थान पर आना चिंताजनक है और यह सरकारो(केन्द्र एवं राज्य) का विकाश की रेस में पिछड़े लोगो के प्रति उदासीन रवैये को प्रदर्शित करता है ।अगर समय रहते स्थित्ति में सुधार नही लाया गया तो देश की दशा और बिगड़ सकती है ।

रंगभेद के पुरजोर विरोधी तथा समानता के पक्षधर थे नेल्सन मंडेला, जयंती पर नमन

नेल्सन मंडेला का नाम आपलोगो ने सुना ही होगा । जी हा वही मंडेला जो दक्षिण अफ्रीका में श्वेतों द्वारा अश्वेतों के साथ किये जा रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाया था तथा इस आवाज को उठाने के कारण उन्हें लंबे समय तक कारावास भुगतना पड़ा था ।हम बात कर रहे है दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की । आज 18 जुलाई उनका जयंती दिवस है इस अवसर पर उनको नमन तथा श्रध्दांजलि । आइये कुछ चर्चा करते है इनके बारे में । 
संक्षिप्त परिचय

नेल्सन रोलीह्लला मंडेला  दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत भूतपूर्व राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहेरंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रहे। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 वर्ष रॉबेन द्वीप के कारागार में बिताये जहाँ उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नये दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। वे दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गये। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनके जन्म दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। 
प्रारंभिक जीवन 

मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को म्वेज़ो,ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी के यहाँ हुआ था। वे अपनी माँ नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थे। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते थे, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला।उनके पिता ने इन्हें ‘रोलिह्लाला’ प्रथम नाम दिया था जिसका खोज़ा में अर्थ “उपद्रवी” होता है। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। मंडेला ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की। उसके बाद की स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली। मंडेला जब 12 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी।
राजनितिक जीवन 


1941 में मंडेला जोहन्सबर्ग चले गये जहाँ इनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। उन दोनों ने राजनीतिक रूप से मंडेला को बहुत प्रभावित किया। जीवनयापन के लिये वे एक कानूनी फ़र्म में क्लर्क बन गये परन्तु धीर-धीरे उनकी सक्रियता राजनीति में बढ़ती चली गयी। रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने के उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1944 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आन्दोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में वे लीग के सचिव चुने गये। 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जुलाई 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें रॉबेन द्वीप की जेल में भेजा गया किन्तु सजा से भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने जेल में भी अश्वेत कैदियों को लामबन्द करना शुरू कर दिया था। जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताने के बाद अन्ततः 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई। रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किये और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। दक्षिण अफ्रीका के नये संविधान को मई 1996 में संसद की ओर से सहमति मिली जिसके अन्तर्गत राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों की जाँच के लिये कई संस्थाओं की स्थापना की गयी। 1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात् उन्होंने 1999 में कांग्रेस-अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया। 

विचारधारा 

नेल्सन मंडेला बहुत हद तक महात्मा गांधी की तरह अहिंसक मार्ग के समर्थक थे। उन्होंने गांधी को प्रेरणा स्रोत माना था और उनसेअहिंसा का पाठ सीखा था। 

मृत्यु 

5 दिसम्बर 2013 को फेफड़ों में संक्रमण हो जाने के कारण मंडेला की हॉटन, जोहान्सबर्गस्थित अपने घर में मृत्यु हो गयी। मृत्यु के समय ये 95 वर्ष के थे और उनका पूरा परिवार उनके साथ था। उनकी मृत्यु की घोषणा राष्ट्रपति जेकब ज़ूमा ने की। 
स्त्रोत:- विकिपीडिया

बक्सर राजपुर के पूर्व जदयू विधायिका श्यामप्यारी देवी के पुत्र को भाजपाई गुंडों ने दी जान मारने की धमकी


बक्सर (बिहार) :-  बिहार के बक्सर जिला के राजपुर बिधानसभा की पूर्व जदयू विधायिका स्व. श्यामप्यारी देवी के सुपुत्र धर्मपाल पासवान को कुछ गुण्डा तत्वों ने उनके मोबाइल फ़ोन पर कॉल करके जान से मारने की धमकी दिए। प्राप्त जानकारी और धर्मपाल पासवान से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया की बुधबार की शाम करीब 7:30 बजे वे घर पर बैठे थे तभी उनके मोबाइल पर विदेश के नम्बर 558562 से कॉल आया कॉल रिसीव होते ही उधर से कॉल करने वाले शख्स ने गालिया देते हुए जान मारने की धमकी दी । तथा अपने आप को भाजपा का नेता बताया तथा बोला की मैं गाजीपुर उत्तरप्रदेश से बोल रहा हु उसने धमकाते हुए कहा की नेता मत बनो भाजपा के खिलाफ मत लिखो शांत रहो वरना मार दिए जाओगे । इन सब बातो के बाद पीड़ित ने फोन काट दिया और इस धमकी वाले कॉल के बारे में तुरंत राजपुर पुलिस थाने को सूचित किया । 


राजपुर थाना प्रभारी को दिए आवेदन में उन्होंने उल्लेख किया है की बीजेपी के खिलाफ राजनितिक प्रचार प्रसार करने के कारण इनको जान मारने की धमकी मिली है । इस सम्बन्ध में राजपुर थाना प्रभारी का कहना है की कॉल करने वाले नंबर का सीडीआर खंगाला जा रहा है वही इस धमकी वाले कॉल को लेकर विधायक के पुरे परिवार में दहशत है । आपको बता दे की इस परिवार पर इस तरह के हमले पहले भी हो चूका है पूर्व विधायिका स्व. श्यामप्यारी देवी के पति और धर्मपाल पासवान के पिता जी स्व. मुरली पासवान जी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी । धर्मपाल पासवान पटना रहकर पढाई करते है तथा छात्र राजनीती करते है तथा द ग्रेट भीम आर्मी बिहार की कोर कमिटी के सदस्य तथा बक्सर जिला के जिलाध्यक्ष है । पुलिस को इनके और इनके पुरे परिवार की सुरक्षा करनी होगी अन्यथा बिहार के दलित छात्र आंदोलन करेंगे और आंदोलन की शुरुआत बक्सर में चक्का जाम से किया जायेगा । उक्त बाते धर्मपाल पासवान ने बातचीत के दौरान बताया ।

शर्मनाक – देश को सिल्वर मेडल दिलाने वाली पैरा एथलीट को भूखे रहकर टिकट के लिए बर्लिन में मांगना पड़ा भीख ।

पीएम मोदी अपने भाषणों और मन की बात में देश के खिलाडियों , और एथलीटों की बात जरूर करते है । और विदेशो में भारत की छवि ठीक करने पर कुछ ख़ास ही ध्यान देते है । लेकिन मोदी  सरकार के खेल मंत्रालय, अथॉरिटी और सिस्टम की गलती और लापरवाही के चलते भारत को विदेश में शर्मसार तो होना ही पड़ा तथा साथ ही साथ इन सब गलतियों का खामियाजा भारत की बेटी पैरा एथलीट कंचनमला पाण्डे को भूखे रहकर और टिकट के लिए पैसे न रहने पर भीख मांगकर भुगतना पड़ा । यह कितनी शर्म की बात है किसी देश के लिए की उस देश के लिए खेलने गयी खिलाडी को विदेशो में खाने और घूमने के लिए भीख माँगना पड़े।

दरअसल बर्लिन में आयोजित वर्ल्ड पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में भारत की तरफ से प्रतिभाग करने वाली पैराएथलीट कंचनमाला पांडे को पैसों के अभाव में बर्लिन में भीख मांगने को मजबूर होना पड़ा। कंचनमाला और पांच अन्य पैरा एथलीट्स को जर्मनी पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए भेजा गया था। लेकिन सरकार द्वारा भेजी गई सहायता राशि उन तक नहीं पहुंची। पैसा न होने के कारण उन्हें अनजान शहर में भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। जैसे ही ये खबर भारत पहुंची खेल प्रेमियों के साथ ही देश के लोगों ने सिस्टम के खिलाफ खूब गुस्सा निकाला। वही इस मामले में खेल मंत्रालय ने जांच के आदेश दिये हैं । 

“वहीं इस पूरे मसले पर कंचनमाला ने कहा कि ‘बर्लिन की यात्रा को सरकार ने मंजूरी दे दी थी।’ भारत की पैरालंपिक समिति (पीसीआई) ने हमें बताया कि वे पैसे नहीं दे सकते क्योंकि उनके खाते को रोक दिया गया है और हमें अपना पैसा खर्च करना है। उन्होंने कहा कि ‘मैं एक ट्राम में यात्रा कर रही थी। ट्राम में यात्रा करने के लिए, एक पास की जरूरत थी, जो मेरे कोच की जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। कंचनमाला ने कहा कि उन पर बिना टिकट यात्रा करने के लिये जुर्माना भी लगाया गया। लेकिन जुर्माना देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, ऐसे में उन्हें अपनी एक दोस्त से पैसा लेने के लिये बाध्य होना पड़ा । हालांकि इन हालातों में भी कंचन और सुयाश जाधव ने हार नहीं मानी और दोनों ने देश के लिए सिल्वर मेडल जीता और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई किया। 

    दोषी कौन जाँच का विषय   

जवाब में खेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वह जानकारी ले रहें है कि परेशानी कहां हुई? उन्होंने लिखा ‘हमने पीसीआई को फंड दे दिया था।  ‘फिलहाल खिलाड़ियों के साथ हुई इस अनदेखी के लिए पीसीआई ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को दोषी ठहराया। वहीं स्पोर्ट्स अथॉरेटी पीसीआई को इस गलती का जिम्मेदार मान रही है। दरअसल खिलाडियों की विदेश में इस तरह हुई परेशानियो की ख़ास वजह खेल मंत्रालय , पीसीआई , और सिस्टम व् अथॉरिटी की लापरवाही है साथ ही साथ वे लोग भी दोषी है जो सरकारी खर्चे पर खेल के नाम पर ऐश मौज करते है लेकिन खिलाडीयो की मुलभुत जरुरतो पर ध्यान नही देते । इस मामले की जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि देश को मैडल दिलाकर सम्मान दिलाने वाले खिलाडीयो को पैसे के आभाव में विदेश में भिख मांगने जैसा शर्मनाक काम न करना पड़े ।

अमरनाथ हमला – कई अनसुलझे रहस्य , निंदा करने और कराने के बजाय कड़ी कारवाई करे मोदी


एक तरफ अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले को लेकर पूरा देश स्तब्ध है तो वही पीएम मोदी इस घटने की निष्पक्ष जांच और कड़ी कारवाई करने के बजाय कड़ी निंदा करने और कराने में लगे हुए है। अमरनाथ यात्रा हमले में कई अनसुलझे रहस्य है जिनकी जाँच होनी अनिवार्य है और जाँच में सामने आई गलतियों या सुरक्षा -व्यवस्था में हुई भूल को सुधारना अनिवार्य है । पहली और सबसे बड़ी बात की जिस बस पर हमला हुआ वो बस अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्टर्ड नही था और जिस मार्ग से बस जा रही थी वो मार्ग भी यात्रा के लिये अधिकृत नही थी ऐसे में वो बस उस रास्ते पर कैसे चली गयी थी ये भी एक सवाल है और इसमें सुरक्षाकर्मियों की भी भारी चूक नजर आती है ।तनावपूर्ण माहौल के बिच अनधिकृत मार्ग पर बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस का चलना खतरे से खाली नही था और यही हुआ भी हमले का डर था और हमला भी हुआ । ये जाँच पड़ताल और इन्क्वायरी का विषय है की गुजरात के तीर्थयात्री कैसे बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस में सवार हुए और अनधिकृत मार्ग से अमरनाथ की और रवाना हुए । एक बात और ये अमरनाथ हमला हमेशा भाजपा के शासन काल में ही क्यों होता है आपको बता दे की पिछली बार 2000 ई में अटल बिहारी बाजपेयी के शासन में अमरनाथ हमला हुआ था और अब इस बार मोदी के शासन में हमला हुआ जिसमे गुजराती मारे गए ये बात भी मन में एक सवाल पैदा करता है । दूसरी बात यह है की अमरनाथ यात्रा पर आतंकियों की नजर रहती ही है वजह है हमला करने से दो समुदायो के लोगो के बिच नफरत और बिभेद हो सकता है और आतंकियों का उद्देश्य भी यही होता है।अब सवाल यह है की इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी एक अनधिकृत रास्ते पर बस दौड़ कैसे रही थी ? जाहिर है यह सुरक्षा व्यवस्था की चूक है।इसीलिए सिर्फ यात्रियों को ही जिम्मेवार नही ठहराया जा सकता बल्कि पुलिस-व्यवस्था की गड़बड़ी की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। कही किसी तरह के भ्रष्टाचार का पोषण करके निजी गाड़िया सड़को पर तो नही दौड़ रही ? इसकी भी जांच होनी चाहिए। 

इन हमलो से निपटने का एकमात्र ही तरीका है बंदूक का जबाब बंदूक। बेशक हम राजनितिक समाधान तलाशे, बातचीत करे, पर जो बंदूक लेकर आए उसे गोली के जरिये ही जबाब दे केवल कड़ी निंदा करना ही इसका उपाय नही है। प्रधानमन्त्री मोदी ने लोकसभा के चुनाव के दौरान चुनावी रैली में कहा था की बन्दुक और बम की आवाज में बातचीत की आवाज सुनाई नही देती । मगर भारत की बिडम्बना यह है की चुनाव में कही गयी बातो पर सत्ता में आने पर अमल नही किया जाता ।जबकि हमारी राष्ट्रीय नीति भी यही होनी चाहिए, गोली और गोली का जबाब गोली और बम ही है ,और जो वार्ता के इच्छुक है , वह पहले संघर्ष विराम करे। दोनों चीजे एक साथ नही चल सकती ।

  इन हमलो का जबाब पीएम मोदी, रक्षा मंत्री जेटली ,और गृह मंत्री राजनाथ सिंह गोली और  बम से ही दे केवल निंदा और कड़ी निंदा से काम नही चलने वाला । उनलोगो को आपके कड़ी निंदा करने से कोई परवाह नही पड़ता । वो लोग बदस्तूर हमले जारी रखे और आपलोग अपने दो विश्वविख्यात शस्त्र निंदा और कड़ी निंदा का उचित अवसर देखकर प्रयोग करते रहे । 

बिहार के रोहतास जिले के दलित उत्पीड़न मामले का राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने स्वतः लिया संज्ञान , गृह सचिव ,डीजीपी तलब

बिहार (रोहतास):-  विगत 28 जून 2017 को बिहार राज्य के रोहतास जिले के कोचस थाना के अंतर्गत परसिया गांव में अनुसूचित जाति के दो लोगो की पिट पिट कर हत्या कर दी गयी थी । दोनों मृतक भाई थे बड़ा भाई बबन मुशहर उम्र 40 वर्ष , मुराहु मुशहर 35 वर्ष पिता – सरयू मुशहर रोहतास जिले के शिवसागर थाना के पडरी गांव के निवासी थे । पीड़ित मुसहर जाती से है जो बिहार में महादलित में आते है तथा समाज के सबसे कमजोर और दबे और निचले पायदान पर है , मुशहर लोग चूहा भी खाते है ,। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री जितन राम मांझी भी मुशहर जाती से है । 

   राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है । आयोग ने इस मामले में बिहार राज्य के गृह सचिव , पुलिस महानिदेशक , रोहतास जिला के जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक को 13 जुलाई को नई दिल्ली आयोग कार्यालय में उपस्थित होने को कहा है ।जिलाधिकारी को पीड़ित परिवार के सदस्यों को भी दिल्ली लाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है । 

 रविवार को आयोग के  सदस्य डॉ योगेन्द्र पासवान जी ने प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी जानकारी दी ।उन्होंने बताया की आयोग ने पुरे मामले में शाहाबाद प्रक्षेत्र के डीआईजी पुलिस की भूमिका पर संदेह जताते हुए उनके स्थानांतरण की भी अनुशंसा की है । डॉ पासवान ने बताया की आयोग की टीम ने पांच जुलाई को घटनास्थल पर जाकर इस घटना की वास्तविकता की जांच की थी। उस समय तक रोहतास जिले का कोई वरिष्ठ पदाधिकारी पीड़ित परिवार से मिलने तक नही गए थे ।आयोग ने जिला प्रशासन को 15 जुलाई तक पीड़ित परिवार को अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण संशोधित अधिनियम नियम 2016 के अनुसार आर्थिक सहायता एवं अन्य सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है ।