आखिर क्या है पूना पैक्ट , पढ़िए जानिए और शेयर कीजिए ।

आखिर क्या हैं पूना पैक्ट…???

पूना पैक्ट के बारें में बहुत कम लोगों को जानकारी हैं… आखिर क्या हैं पूना पैक्ट… यह जानना जरूरी हैं…. २४ सितंबर १९३२ को पूना पैक्ट लागु हुआ । बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़कर जी पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहते थे । उनको हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया । पूना पैक्ट सलाह-मशवरा कर, चर्चा या विचार-विमर्श कर नहीं हुआ । यानि पूना पैक्ट, एक पार्टी ने दूसरे पार्टी के विरोध में गुंडागर्दी की । वह गुंडा मोहनदास करमचन्द गांधी था, और संगठन का नाम कॉग्रेस था ।  बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने अपने दस्तावेज में लिखा ”पूना पैक्ट एक शरारतपूर्ण धोखाधडी हैं । इसको मैंने स्वीकार क्यों किया ? मैंने पूना पैक्ट इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि गांधीजी ने षड्यंत्रपूर्वक मेरे ऊपर दबाव डालने के लिए यरवदा जेल में आमरण अनशन किया था । उस आमरण अनशन के षड्यंत्रपूर्ण दबाव की वजह से मैंने पूना पैक्ट का स्वीकार किया । उस समय गांधी और काँग्रेस के लोगों ने मुझे आश्वासन दिया था, कि अनुसूचित जाति का, जो पूना पैक्ट अन्तर्गत संयुक्त मताधिकार के तहत जो चुनाव होगा, उसमें हस्तक्षेप करने का काम नहीं करेंगे, यह आश्वासन १९३२ में गांधी और कॉग्रेस के लोगों ने बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी को दिया था । यह आश्वासन १९३७ में  इण्डिया एक्ट ३५ अंतर्गत प्रोविंशियल गव्हर्नमेंट के लिए भारत में चुनाव हुआ और उस चुनाव में कॉग्रेस और गांधी ने उस दिए हुए आश्वासन का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया और इतना ही नहीं इन दोनों ने १९३७ चुनाव में हस्तक्षेप भी किया । हमारे लोग एक तो पढते नहीं है, और अगर पढते भी हैं तो समझ नहीं पाते और अगर समझ आ भी जाता हैं तो वह अन्य लोगों को बताते नहीं, क्योंकि बताने के लिए उन्हें हिम्मत और साहस ही नहीं होता हैं । 

विशेष तथ्य :- 

  • 24 सितम्बर 1932 को साय पांच बजे यरवदा जेल पूना में गाँधी और डा. अंबेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से मशहूर हुआ
  •  इस समझौते मे डॉ. अंबेडकर को कम्युनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ना पडा तथा संयुक्त निर्वाचन (जैसा कि आजकल है) पद्धति को स्वीकार करना पडा ।
  • गोलमेज कॉन्फ्रेंस में बाबा साहेब के तर्क और विचार विमर्श के फलस्वरूप घोषित कम्युनल अवार्ड के तहत दलितों को मिलने वाले पृथक निर्वाचन क्षेत्र और दोहरा मताधिकार के अधिकार से वंचित रखने के लिए गांधी और कांग्रेस ने आमरण अनशन का नाटक करके बाबा साहब अम्बेडकर से एक षड्यंत्र के तहत पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करवाये 

इस तरह से सिध्द होता है कि पूना पैक्ट के विरोध में बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने तीन किताबें लिखी

१ ) गांधी और कांग्रेस ने अछूतों के साथ क्या व्यवहार किया ? 

२ ) गांधी और अछूतों की आजादी, 

 ३ ) राज्य और अल्पसंख्यक । 

ये तीनों किताबें में इन सारी बातों की जानकारी विस्तारपूर्वक से लिखी गई हैं । जब बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी को मजबूर होकर पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करना पडा, तो दूसरे ही दिन उन्होंने पूना से चलकर बम्बई आये और पूना पैक्ट का धिक्कार किया । और उन्होंने तीन बातें कहीं

१ ) जो लोग ऐसा कहते हैं कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र ( Separate Electorates ) से नुकसान होता है, मुझे उन कहने में किसी किस्म का तर्क या दलील नजर नहीं आता ।

२ ) दूसरा मुद्दा उन्होंने कहाँ कि जो लोग ऐसा सोंचते हैं कि संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र ( Joint Electorates ) से अछूत, हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बन जाऐंगे, अर्थात संयुक्त हो जाएंगे इस पर मेरा बिलकुल यकिन और विश्वास नहीं हैं । 1932 में यह बात बाबासाहब ने कही । आज 2017 साल चल रहा हैं, परन्तु अछूतों के ऊपर सारे देशभर में अत्याचार और अन्याय हो रहे हैं, इससे सिद्द होता हैं कि अछुत हिन्दू समाज का अभिन्न अंग नहीं हैं । उस समय सवर्ण हिन्दुओं ने कहाँ था कि संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र से अछुत हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बनेंगे, ऐसा नहीं हो पाया ।

अछूत इस वजह से दुखी थे, और दुखी होने का उनका जायज कारण था । यह सारी बातें बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने 24 सितंबर 1932 में पूना से बम्बई आकर एक सभा को संबोधित करते हुए कहाँ यह वास्तविक बातें आप लोगों को इसलिए बतायी जा रही हैं, कि बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़कर जी किसी भी परिस्थिति में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करनेवाले नहीं थे । क्योंकि वे जानते थे कि भविष्य में ऐसा भयानक षड्यंत्र हो सकता हैं।इसलिए साथियो पूना पैक्ट के माध्यम से ही दलालो एवं भडुओ की पहचान की गई है । 

गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श के फल स्वरूप कम्युनल अवार्ड की घोषणा की गई। जिसके तहत बाबा साहेब द्वारा उठाई गयी राजनैतिक प्रतिनिधित्व की माँग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार मिला। एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तथा दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनेंगे । इस प्रकार दलित प्रतिनिधि केवल दलितों की ही वोट से चुना जाना था । दूसरे शब्दों में उम्मीदवार भी दलित वर्ग का तथा मतदाता भी केवल दलित वर्ग के ही।

दलित प्रतिनिधि को चुनने में गैर दलित वर्ग अर्थात सामान्य वर्ग का कोई दखल ना रहा । परन्तु दूसरो ओर दलित वर्ग अपनी दूसरी वोट के माध्यम से सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनने से अपनी भूमिका निभा सकता था। गाँधी इस समय पूना की यरवदा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होते ही पहले तो उन्होंने प्रधानमत्री को पत्र लिखकर इसे बदलवाने का प्रयास किया, परंतु जब उन्होंने देखा के यह निर्णय बदला नहीं जा रहा, तो उन्होंने मरण व्रत रखने की घोषणा कर दी।
डॉ. अंबेडकर ने बयान जारी किया कि यदि गांधी “भारत की स्वतंत्रता के लिए मरण व्रत रखते, तो वह न्यायोचित थे । परंतु यह एक पीड़ादायक आश्चर्य है कि गांधी ने केवल अछूत लोगो को ही अपने विरोध के लिए चुना है, जबकि भारतीय ईसाइयो, मुसलमानों और सिखों को मिले इसी (पृथक निर्वाचन के) अधिकार के बारे में गाँधी ने कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने आगे कहा की महात्मा गांधी कोई अमर व्यक्ति नहीं हैं। भारत में ऐसे अनेकों महात्मा आए और अनेको चले गए, जिनका लक्ष्य छुआछूत को समाप्त करना था, परंतु अछूत, अछूत ही रहे । उन्होंने कहा कि गाँधी के प्राण बचाने के लिए वे अछूतों के हितों की बलि नहीं दे सकते।
गांधी के प्राणों पर भारी संकट आन पड़ा । पूरा हिंदू समाज डा. अंबेडकर का दुश्मन हुए जा रहा था । एक ओर डॉ. अंबेडकर से समझौते की वार्ताएं हो रहीं थी, तो दूसरी ओर डॉ. अंबेडकर को धमकियां दी जा रही थीं। अखबार गाँधी की मृत्यु पर देश में दंगो की भविष्यवाणियां कर रहे थे । एक और अकेले डा. आंबेडकर और अनपढ़, अचेतन और असंगठित दलित समाज, तो दूसरी ओर सारा सवर्ण हिंदू समाज । कस्तूरबा गांधी व उनके पुत्र देवदास बाबासाहब के पास जाए और प्रार्थना की कि गांधी के प्राण बचा ले। डा. अंबेडकर की हालत उस दीपक की भाँति थी, जो तूफान के सामने अकेला जूझ रहा था कि उसे जलते ही रहना है और उसे उपेक्षित वर्गो को प्रकाश प्रदान कर, उन्हें मंजिल तक पहुंचाना है।
24 सितम्बर 1932 को साय पांच बजे यरवदा जेल पूना में गाँधी और डा. अंबेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से मशहूर हुआ । इस समझौते मे डॉ. अंबेडकर को कम्युनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ना पडा तथा संयुक्त निर्वाचन (जैसा कि आजकल है) पद्धति को स्वीकार करना पडा, परन्तु साथ हीं कम्युनल अवार्ड से मिली 78 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली । साथ ही अछूत लोगो के लिए प्रत्येक प्रांत मे शिक्षा अनुदान मे पर्याप्त राशि नियत करवाईं और सरकारी नौकरियों से बिना किसी भेदभाव के दलित वर्ग के लोगों की भर्ती को सुनिश्चित किया। पूना पैक्ट आरक्षण का जनक बना। इस समझौते (पूना पैक्ट) पर हस्ताक्षर करके बाबा साहब ने गांधी को जीवनदान दिया।

जेएनयू छात्र संघ चुनाव में वामपंथ का कब्ज़ा रहा बरक़रार , बीजेपी के कैलाश्वर्गीय ने एबीवीपी के जित की फैलायी थी झूठी खबर

 देर रात जेएनयू के आये चुनाव परिणामो में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री, संयुक्त मंत्री के पद पर वामपंथ (लेफ्ट ) के प्रत्याशियों ने भारी बहुमत से जीत हासिल कर लिया है। 

प्रेसीडेंट पद पर गीता कुमारी ने, वाइस प्रेसीडेंट पद पर सिमोन जोया खान, जेनरल सेक्रेटरी पद पर दुग्गीराला श्रीकृष्ण एवं ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर शुभांशु सिंह ने जीत दर्ज की है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पूरा पैनल परास्त हो चुका है , वही इस छात्रसंघ चुनाव में एक उभरता हुआ दलित छात्र संगठन बापसा (Bapsa) बिरसा आम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने भी बेहतर प्रदर्शन किया और इस चुनाव के सभी पद के परिणाम में तीसरे और संयुक्त सचिव के पद के लिए चुनाव परिणामो में दुसरे स्थान पर आकर एबीवीपी को भी पछाड़ दिया ।

वही कल देर रात  में कुछ बीजेपी और संघ के लोग अपने संगठन एबीवीपी के जितने की खुशिया मना रहे थे और अपनी ख़ुशी सोशल साइट्स पर व्यक्त कर रहे थे  देर रात से कुछ संघी लोग जेएनयू में जीतने का दावा करते हुए मन मे फुलझड़ियां उड़ा रहे थे । कैलाश विजयवर्गीय जी तो बाकायदे ट्विटर पर बधाई देते हुए मन ही मन लड्डू हुए जा रहे थे  ऐसे ही झूठ को सच बनाने का कारखाना ये आरएसएस और बीजेपी के लोग खोल करके झूठ को सच बनाने के अपने उत्पाद को बेच डालते हैं ,

           विशेष खबर 

  • कुल 4620 विधार्थियों ने किया मतदान ,अध्यक्ष पद पर 127 ने नोटा का उपयोग किया ,20 वोट खाली पड़े , और 50 वोट अमान्य हो गये  
  • अध्यक्ष पद पर बापसा ने तीसरे स्थान पर आकर एबीवीपी को दी जोरदार टक्करए
  • आईएसएफ की अपराजिता राजा अध्यक्ष पद के लिए 500 वोट भी नही ला सकी , जबकि पूर्व अध्यक्ष कन्हैया ने जमकर प्रचार किया था 

जीत के बाद लेफ्ट की अध्यक्ष गीता कुमारी ने जित का श्रेय कैंपस के छात्रो को दिया और कहा की जिस तरह से कैंपस में अटैक बाधा है , उससे हमारा संघर्ष मजबूत हुआ है इस संघर्ष में साथ देने वाले साथियो को सलाम करते हुए मै विचारधारा से हटकर सभी विधार्थियों के लिये काम करुँगी , वही दुसरे स्थान पर रही एबीवीपी  की निधि त्रिपाठी ने कहा की हम जनमत को स्वीकार करते है .

पटना विश्वविधालय के पटना साइंस कॉलेज में एकदिवसीय दलित छात्र बैठक हुआ सम्पन्न , उपस्थित लोगो ने अनेको मुद्दों पर रखे बिचार

पटना (बिहार) :- आज बिहार की राजधानी पटना के पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत पटना साइंस कॉलेज के प्राक् परीक्षा प्रशिक्षण केंद्र में इंडियन स्टूडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (इसवा) और द ग्रेट भीम आर्मी बिहार के तत्वाधान में एकदिवसीय दलित छात्र बैठक का आयोजन किया गया । इस एकदिवसीय बैठक में दलित छात्रो के अनेको समस्याये रोजगार की समस्या, छात्रवृति में कटौती , अम्बेडकर छात्रवास संबंधी समस्याओं,  और दलित उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की गयी ।

विशेष बाते  :- 

  • इस बैठक में दलित छात्रो के समस्याओ और उसके समाधान पर की गयी गम्भीर चर्चा 
  • बैठक में बिहार के लगभग सभी जिलो से दलित छात्र, बुद्धिजीवी और अम्बेडकर छात्रवास के छात्रनायक शामिल हुए ।
  • बैठक में आगामी नवम्बर माह में बिहार में राष्ट्रिय दलित छात्र संसद आयोजित करने हेतु विचार विमर्श किया गया । 


बैठक में बिहार के लगभग सभी जिलो से दलित छात्र , बुद्धिजीवी , अम्बेडकर छात्रवास के छात्र नायक और द ग्रेट भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष भी उपस्थित हुए , और पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामशंकर आर्या ने  भी बैठक के दौरान अपना विचार रखे । बैठक में प्रमुखता से अपनी बात रखने वालो में द ग्रेट भीम आर्मी बिहार के चीफ अमर आजाद, गौतम कुमार , अजय यादव , चन्दन कुमार चौधरी , अमित कुमार , निशांत चौधरी , विजय चौधरी , चन्दन पासवान उर्फ अम्बेडकर , धर्मवीर धर्मा थे । अमर आजाद ने तमाम मुद्दों पर विस्तर से बात किया तथा पटना में आगामी नवम्बर माह में राष्ट्रिय दलित छात्र संसद आयोजित करने की बात कही । और इस तरह ये एकदिवसीय दलित छात्र बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ ।

पासी समाज की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में गहन विचार-विमर्श

लखनऊ (सं.): अखिल भारतीय पासी समाज के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिनांक 19 एवं 20 अगस्त 2017 को डीलक्स गेस्ट हाउस, गोमती नगर, लखनऊ (उ0प्र0) में सम्पन्न हुई। बैठक में राष्ट्रीय संरक्षक आर.पी. सरोज- पूर्व आई.पी.एस. एवं आर.सी. कैथल- पूर्व पुलिस महानिदेशक, झारखण्ड शामिल हुए। बैठक की अध्यक्षता आर.ए. प्रसाद, पूर्व आई.ए.एस. एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष पासी समाज ने किया। बैठक का संचालन राम कृृपाल पासी एडवोकेट- प्रधान राष्ट्रीय महासचिव ने किया। बैठक में गुलाब चैधरी- राष्ट्रीय महासचिव, इन्दौर, जगदीश चैधरी- प्रदेश अध्यक्ष, बिहार, आर.पी. चैधरी- प्रदेश अध्यक्ष, झारखण्ड, विक्रम राम राजेश- प्रदेश अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश, गोविन्द बावरिया- प्रदेश अध्यक्ष, मध्य प्रदेश, राधेश्याम पासी- प्रदेश अध्यक्ष, तेलंगाना, बिहारी प्रसाद चैधरी- अध्यक्ष, जगलाल चैधरी स्मृृति संस्थान बिहार, सुन्दरलाल सरोज- राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, विष्णुदेव- प्रदेश उपाध्यक्ष, उ.प्र., के.पी. वर्मा- प्रदेश महासचिव, उ.प्र., सुरेश पासी- प्रदेश महासचिव, उ.प्र., सत्य नारायण एडवोकेट- राष्ट्रीय संगठन मंत्री, जयकरन कैशियर- प्रदेश उपाध्यक्ष, उ.प्र., बी.डी. राम- जिलाध्यक्ष, रांची एवं सदस्य कार्यकारिणी, शूकर पासी- कार्यकारी अध्यक्ष, झारखण्ड प्रान्त, दिलीप कुमार महथा- सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, साधूराम चैधरी- सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, रामपाल रावत- सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, विश्वजीत- राष्ट्रीय सचिव, राजाराम चैधरी- राष्ट्रीय सचिव, माधो प्रसाद एडवोकेट- राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के तमाम सदस्यगण, उत्तर प्रदेश के तमाम जिलाध्यक्षों एवं वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भाग लिया। 

बैठक में एजेन्डावार तमाम बिन्दुओं पर गहन चर्चा हुई। बैठक में तेलंगाना प्रान्त में पासियों को पिछड़ी जाति घोषित किये जाने पर गम्भीर विचार-विमर्श हुआ। यह तय हुआ कि इस बारे में भारत सरकार के गृृह मंत्री मा. श्री राजनाथ सिंह से समय लेकर एक मांग पत्र प्रस्तुत किया जाये। साथ ही इस मामले को लोकसभा में उठवाया जाये। इसके अलावा हैदराबाद में विधानसभा के सामने एक धरना देकर मांग पत्र मुख्यमंत्री को दिया जाये।

बिहार में नीतीश सरकार द्वारा ताड़ी को शराब के समकक्ष मानकर पासियों को प्रताड़ित किये जाने के बारे में भी चर्चा हुयी। यह तय हुआ कि इस बारे में बिहार इकाई मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपे और आवश्यकतानुसार पटना में धरना एवं प्रदर्शन किया जाये। पटना में अभी तक मा. श्री जगलाल चैधरी की प्रतिमा स्थापित न किये जाने पर रोष प्रकट किया गया और यह तय हुआ कि एक मांग पत्र मुख्यमंत्री को दिया जाये। यदि तब भी मूर्ति न लगायी जाये तो धरना एवं प्रदर्शन किया जाये। बिहार में चुनाव भी होना है, इस बारे में शीघ्र प्रभावी कदम उठाया जाये।

झारखण्ड प्रान्त के कई पदाधिकारियों ने झारखण्ड प्रान्त में वर्तमान नेतृत्व से नाखुशी जताई। झारखण्ड में चुनाव होना है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि वे झारखण्ड के प्रभारी हीरालाल चैधरी को शीघ्र ही झारखण्ड भेजेंगे। यहाँ शीघ्रातिशीघ्र चुनाव कराया जायेगा।

उत्तर प्रदेश में राजा बिजली पासी के किले के संरक्षण में सरकार की उदासीनता के बारे में एक डेलीगेशन लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष से मिलेगा। मुख्यमंत्री से भी समय माँगा गया है। समय मिलते ही उन्हें भी पासी समाज की समस्याओं से अवगत कराया जायेगा। राजा टीकन नाथ पासी के किले पर लाइब्रेरी भवन एवं एक शौचालय बनाने हेतु सहयोग राशि हेतु सभी प्रदेश अध्यक्षों से अनुरोध किया जाये।

मध्य प्रदेश की स्थिति पर विचार- विमर्श हुआ। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि मध्य प्रदेश में संगठन को सक्रिय करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भोपाल में प्रतिनिधित्व शून्य है जबकि भोपाल राजधानी है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने गुलाब चैधरी- राष्ट्रीय महासचिव मध्य प्रदेश से कहा कि वे व्यक्तिगत ध्यान देकर भोपाल, इन्दौर एवं जबलपुर में संगठन को सक्रिय करें। नये लोगों को जोड़ा जाये, ताकि संगठन में सक्रियता आये। श्री गुलाब चैधरी एवं प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द बावरिया ने कहा कि जबलपुर में एक पासी भवन बन रहा है। इसके तैयार होते ही जबलपुर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक करायी जायेगी।

दिल्ली प्रदेश के बारे में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया िक दिल्ली प्रान्त के अध्यक्ष मोहनलाल, जो रेलवे में कार्यरत थे, रिटायर हो गये हैं। इसके बाद वे सक्रिय नहीं हैं। उनके स्थान पर नयी कार्यकारिणी का गठन प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि नयी कार्यकारिणी का गठन हो जाने के बाद दिल्ली में बैठक करायी जाये।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की साल में तीन बैठकें होनी हैं। 22 दिसम्बर 2017 को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में वार्षिक अधिवेषन होना है। अगली कार्यकारिणी की बैठक अप्रैल/मई 2018 में होनी है। यह बैठक बिहार में आयोजित की जायेगी। वहीं यह तय होगा कि उसके बाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अगली बैठक कहाँ होगी।

यह भी तय हुआ कि संगठन को जिला स्तर, तहसील स्तर एवं ब्लाक स्तर पर यथाशीघ्र गठित कर लिया जाये। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि प्रत्येक प्रदेश जिले तक के कार्यकारिणी की सूचना राष्ट्रीय अध्यक्ष को दो माह में अवश्य भेज दें, ताकि उनको संकलित कर बुकलेट बनाया जा सके।

यह भी तय हुआ कि प्रत्येक प्रदेश अपने-अपने यहाँ के हर जिले को यह निर्देश जारी करेंगे कि वे पासी समाज को नशामुक्त बनाये जाने के बारे में हैन्डबिल छपवा कर वितरित करायें और सम्मेलन का यह विषय लागू करायें। यह भी तय हुआ कि प्रत्येक जिलों को लिख् जाये कि वे दहेज रूपी दानव के विरुद्ध अभियान चलायें। पासियों के गांवों में आज भी बाल-विवाह प्रचलित हैं। इसके विरुद्ध अभियान चलाने हेतु प्रदेशों को निर्देश दिये गये। 

एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी हुआ कि प्रत्येक राज्य मुख्यालय पर कम से कम पचास हजार रुपये का एक कोष बना लिया जाये। इससे पासी समाज के गरीब मेधावी छात्रों को पुस्तक हेतु अनुदान दिया जाये। इस कोष से प्राकृृतिक आपदा से प्रभावित गरीब पासियों को आर्थिक सहयोग दिया जाये। यदि पासी समाज की गरीब विधवा की पुत्री का विवाह हो, तो वहाँ भी मदद की जाये। यह कोष दो माह में बना लिया जाये एवं इसकी सूचना राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी दी जाये। यह प्रदेश अध्यक्षों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी। बिहार में यह राशि एक लाख रुपये होगी। वहाँ गछवाहों के पेड़ पर से गिरने से हुयी मृृत्यु अथवा घायल होने पर अहेतुक सहायता इस मद से दी जायेगी।

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि बिहार में स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगलाल चैधरी की मूर्ति बने वर्षों हो गये लेकिन इसकी स्थापना आज तक नहीं हो पायी है। इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री को प्रतिवेदन दिया जाये। फिर भी यदि तीन माह में मूर्ति नहीं लगती, तो पटना में कम से कम एक हजार पासी एकत्र होकर धरना देंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि वे स्वयं इस धरने में शामिल होंगे। 

यह भी तय हुआ कि संगठन में युवाओं एवं महिलाओं को अधिकाधिक भागीदारी दी जाये। उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, तेलंगाना सभी से अनुरोध किया गया कि वे युवा संगठन के अध्यक्ष, महामंत्री, उपाध्यक्ष, संगठन मंत्री, सचिव एवं कार्यकारिणी के सदस्य के पदों पर दो माह में नियुक्ति करके राष्ट्रीय अध्यक्ष को अवगत करायें। इसके साथ ही प्रत्येक प्रान्त अपने यहाँ प्राथमिकता पर प्रचार मंत्री/ मीडिया प्रभारी नियुक्त करे। मीडिया प्रभारी प्रदेश में होने वाली घटनाओं की सूचना राष्ट्रीय अध्यक्ष को उनके ई-मेल पते पर भेजना सुनिश्चित करेंगे।

यह भी तय हुआ कि प्रत्येक राज्य अपने यहाँ ‘महाराजा बिजली पासी प्रगतिशील पत्रिका’ जो संगठन का मुख पत्र है, के दो माह में 100-100 सदस्य अनिवार्य रूप से बनाकर मुख्यालय को सूचित करेंगे। पासी साहित्य को भी गाँवों तक पहुँचाने का कार्य प्र्रत्येक प्रदेश अध्यक्ष करेंगे।

प्रथम दिन के पूर्वाह्न में एजेन्डावार चर्चा हुयी। उसके बाद कमेटी ने बस के द्वारा राजा टीकन नाथ पासी के किले के भ्रमण के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में मोहान में ग्रामवासियों ने कमेटी का भव्य स्वागत किया। महोना में चेयरमैन रमेश रावत व बख्शी का तालाब के अध्यक्ष रामेश्वर प्रधान ने कमेटी का स्वागत किया, जहाँ कई प्रधान मौजूद थे। 

20 अगस्त को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उ.प्र. के जिलाध्यक्षों एवं वरीय पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। कुल मिलाकर दो दिवसीय बैठक अत्यन्त सफल रही। कमेटी के ठहरने, बेड टी, नाश्ते एवं भोजन की व्यवस्था श्रीमती शकुन्तला प्रसाद- अध्यक्ष महिला शाखा ने बखूबी निभाया, जिसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के प्रतिभागियों ने खूब सराहना की। अंत में कमेटी के सदस्य 22 दिसंबर 2017 को वार्षिक अधिवेषन एवं राजा बिजली पासी के जन्मोत्सव में पुनः आने के निमंत्रण के साथ विदा हुए।

एक दूरदर्शी क्रांतिकारी थे बिहार-लेनिन जगदेव प्रसाद कुशवाहा , शहादत दिवस पर नमन


“जिस लड़ाई की बुनियाद आज मै डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी. चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं. इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे. जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी.” -जगदेव बाबू ( 2 फरवरी 1922- 5 सितम्बर  1974), 25 अगस्त, 1967 को दिए गए ओजस्वी भाषण का अंश.
महात्मा ज्योतिबा फूले, पेरियार साहेब, डा. आंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा के विचारों को कार्यरूप देने वाले जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को महात्मा बुद्ध की ज्ञान-स्थली बोध गया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी ग्राम में अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था. इनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ थी. अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की. उनकी इच्छा उच्च शिक्षा ग्रहण करने की थी, वे हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए.
निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव जी की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू रही तथा बचपन से ही ‘विद्रोही स्वाभाव’ के थे. जगदेव प्रसाद जब किशोरावस्था में अच्छे कपडे पहनकर स्कूल जाते तो उच्चवर्ण के छात्र उनका उपहास उड़ाते थे. एक दिन गुस्से में आकर उन्होंने उनकी पिटाई कर दी और उनकी आँखों में धुल झोंक दी, इसकी सजा हेतु उनके पिता को जुर्माना भरना पड़ा और माफ़ी भी मांगनी पडी.  जगदेव जी के साथ स्कूल में बदसूलकी भी हुयी. एक दिन बिना किसी गलती के एक शिक्षक ने जगदेव जी को चांटा जड़ दिया, कुछ दिनों बाद वही शिक्षक कक्षा में पढ़ाते-पढाते खर्राटे भरने लगे, जगदेव जी ने उसके गाल पर एक जोरदार चांटा मारा. शिक्षक ने प्रधानाचार्य से शिकायत की इस पर जगदेव जी ने निडर भाव से कहा, ‘गलती के लिए सबको बराबर सजा मिलना चाहिए चाहे वो छात्र हो या शिक्षक’.

जब वे शिक्षा हेतु घर से बाहर रह रहे थे, उनके पिता अस्वस्थ रहने लगे. जगदेव जी की माँ धार्मिक स्वाभाव की थी, अपने पति की सेहत के लिए मंदिर में जाकर देवी-देवताओं की खूब पूजा, अर्चना किया तथा मन्नते मांगी, इन सबके बावजूद उनके पिता का देहावसान हो गया. यहीं से जगदेव जी के मन में हिन्दू धर्म के प्रति विद्रोही भावना पैदा हो गयी, उन्होंने घर की सारी देवी-देवताओं की मूर्तियों, तस्वीरों को उठाकर पिता की अर्थी पर डाल दिया. इस ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म से जो विक्षोभ उत्पन्न हुआ वो अंत समय तक रहा, उन्होंने ब्राह्मणवाद का प्रतिकार मानववाद के सिद्धांत के जरिये किया.

जगदेव जी ने तमाम घरेलू झंझावतों के बीच उच्च शिक्षा ग्रहण किया. पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया. वही उनका परिचय चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ, चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया, अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए. इसी बीच वे ‘शोसलिस्ट पार्टी’ से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र ‘जनता’ का संपादन भी किया. एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी. 1955 में हैदराबाद जाकर इंगलिश वीकली ‘Citizen’ तथा हिन्दी साप्ताहिक ‘उदय’ का संपादन आरभ किया. उनके क्रन्तिकारी तथा ओजस्वी विचारों से पत्र-पत्रिकाओं का सर्कुलेशन लाखों की संख्या में पहुँच गया. उन्हें धमकियों का भी सामना करना पड़ा, प्रकाशक से भी मन-मुटाव हुआ लेकिन जगदेव बाबू ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, उन्होंने हंसकर संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया.

बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सद्धान्तिक मतभेद था. जब जे. पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया, उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया. जे.पी. मुख्यधारा की राजनीति से हटकर विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आन्दोलन में शामिल हो गए. जे. पी. नाखून कटाकर क्रांतिकारी बने, वे हमेशा अगड़ी जातियों के समाजवादियों के हित-साधक रहे. भूदान आन्दोलन में जमींदारों का ह्रदय परिवर्तन कराकर जो जमीन प्राप्त की गयी वह पूर्णतया उसर और बंजर थी, उसे गरीब-गुरुबों में बाँट दिया गया था, लोगो ने खून-पसीना एक करके उसे खेती लायक बनाया. लोगों में खुशी का संचार हुआ लेकिन भू-सामंतो ने जमीन ‘हड़प नीति’ शुरू की और दलित-पिछड़ों की खूब मार-काट की गयी, अर्थात भूदान आन्दोलन से गरीबों का कोई भला नहीं हुआ उनका Labour Exploitation’ जमकर हुआ और समाज में समरसता की जगह अलगाववाद का दौर शुरू हुआ. कर्पूरी ठाकुर ने विनोबा भावे की खुलकर आलोचना की और ‘हवाई महात्मा’ कहा. (देखे- कर्पूरी ठाकुर और समाजवाद: नरेंद्र पाठक)
जगदेव बाबू ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, 1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था) के उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की.  उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार संविद सरकार (Coalition Government) बनी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया. जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले लोहिया से अनबन हुयी और ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की स्थिति देखकर संसोपा छोड़कर 25 अगस्त 1967 को ‘शोषित दल’ नाम से नयी पार्टी बनाई, उस समय अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था-
“जिस लड़ाई की बुनियाद आज मै डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी. चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं. इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे. जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी.” आज जब देश के अधिकांश राज्यों की तरफ नजर डालते है तो उन राज्यों की सरकारों के मुखिया ‘शोषित समाज’ से ही आते है.

जगदेव बाबू एक महान राजनीतिक दूरदर्शी थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया. मार्च 1970 में जब जगदेव बाबू के दल के समर्थन से दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने, उन्होंने 2 अप्रैल 1970 को बिहार विधानसभा में ऐतिहासिक भाषण दिया-
“मैंने कम्युनिस्ट पार्टी, संसोपा, प्रसोपा जो कम्युनिस्ट तथा समाजवाद की पार्टी है, के नेताओं के भाषण भी सुने है, जो भाषण इन इन दलों के नेताओं ने दिए है, उनसे साफ हो जाता है कि अब ये पार्टियाँ किसी काम की नहीं रह गयी है इनसे कोई ऐतिहासिक परिवर्तन तथा सामाजिक क्रांति की उम्मीद करना बेवकूफी होगी. इन पार्टियों में साहस नहीं है कि सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी जो असली कारण है उनको साफ शब्दों में मजबूती से कहे. कांग्रेस, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी ये सब द्विजवादी पूंजीवादी व्यवस्था और संस्कृति के पोषक है. …….. मेरे ख्याल से यह सरकार और सभी राजनीतिक पार्टियाँ द्विज नियंत्रित होने के कारण राज्यपाल की तरह दिशाहीन हो चुकी है. मुझको कम्युनिज्म और समाजवाद की पार्टियों से भारी निराशा हुयी है. इनका नेतृत्व दिनकट्टू नेतृत्व हो गया है.” उन्होंने आगे कहा- ‘सामाजिक न्याय, स्वच्छ तथा निष्पक्ष प्रशासन के लिए सरकारी, अर्धसरकारी और गैरसरकारी नौकरियों में कम से कम 90 सैकड़ा जगह शोषितों के लिए आरक्षित कर दिया जाये.
बिहार में राजनीति का प्रजातंत्रीकरण (Democratisation) को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता महसूस किया. वे मानववादी रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित ‘अर्जक संघ’ (स्थापना 1 जून, 1968) में शामिल हुए. जगदेव बाबू ने कहा था कि अर्जक संघ के सिद्धांतो के द्वारा ही ब्राह्मणवाद को ख़त्म किया जा सकता है और सांस्कृतिक परिवर्तन कर मानववाद स्थापित किया जा सकता है. उन्होंने आचार, विचार, व्यवहार और संस्कार को अर्जक विधि से मनाने पर बल दिया. उस समय ये नारा गली-गली गूंजता था-

मानववाद की क्या पहचान, ब्रह्मण भंगी एक सामान, पुनर्जन्म और भाग्यवाद, इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद.

7 अगस्त 1972 को शोषित दल तथा रामस्वरूप वर्मा जी की पार्टी ‘समाज दल’ का एकीकरण हुआ और ‘शोषित समाज दल’ नमक नयी पार्टी का गठन किया गया.  एक दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नयी उर्जा का संचार हुआ. जगदेव बाबू पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया. वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे. सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था-


 

दस का शासन नब्बे पर,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
सौ में नब्बे शोषित है,
नब्बे भाग हमारा है.                                    
धन-धरती और राजपाट में,                        नब्बे भाग हमारा है.

जगदेव बाबू अपने भाषणों से शोषित समाज में नवचेतना का संचार किया, जिससे सभी लोग इनके दल के झंडे तले एकत्रित होने लगे. जगदेव बाबू ने महान राजनीतिक विचारक टी.एच. ग्रीन के इस कथन को चरितार्थ कर दिखाया कि चेतना से स्वतंत्रता का उदय होता है, स्वतंत्रता मिलने पर अधिकार की मांग उठती है और राज्य को मजबूर किया जाता है कि वो उचित अधिकारों को प्रदान करे.

बिहार की जनता अब इन्हें ‘बिहार लेनिन’  के नाम से बुलाने लगी. इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे.पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ, लेकिन आन्दोलन का नेतृत्व प्रभुवर्ग के अंग्रेजीदा लोगों के हाथ में था, जगदेव बाबू ने छात्र आन्दोलन के इस स्वरुप को स्वीकृति नहीं दी. इससे दो कदम आगे बढ़कर वे इसे जन-आन्दोलन का रूप देने के लिए मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं की तथा सरकार पर भी दबाव डाला गया लेकिन भ्रष्ट प्रशासन तथा ब्राह्मणवादी सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. जिससे 5 सितम्बर 1974  से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनी. 5 सितम्बर 1974  को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में शोषित समाज का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे. कुर्था में तैनात डी.एस.पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए. सत्याग्रहियों पर पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया. जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमें रहे और और अपना क्रांतिकारी भाषण जरी रखा, निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी. गोली सीधे उनके गर्दन में जा लगी, वे गिर पड़े. सत्याग्रहियों ने उनका बचाव किया किन्तु क्रूर पुलिस ने घायलावस्था में उन्हें पुलिस स्टेशन ले गयी. जगदेव बाबू को घसीटते हुए ले जाया जा रहा था और वे पानी-पानी चिल्ला रहे थे. जब पास की एक दलित महिला ने उन्हें पानी देना चाहा तो उसे मारकर भगा दिया गया, उनकी छाती को बंदूकों की बटों से बराबर पीटते रहे और पानी मांगने पर उनके मुंह पर पेशाब किया गया. आज तक किसी भी राजनेता के साथ आजाद भारत में इतना अमानवीय कृत्य नहीं किया गया. पानी-पानी चिल्लाते हुए जगदेव जी ने थाने में ही अंतिम सांसे ली. पुलिस प्रशासन ने उनके मृत शरीर को गायब करना चाहा लेकिन भारी जन-दबाव के चलते उनके शव को 6 सतम्बर को पटना लाया गया, उनके अंतिम शवयात्रा में देश के कोने-कोने से लाखो-लाखों लोग पहुंचे.
जगदेव बाबू एक जन्मजात क्रन्तिकारी थे, उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में अपना नेतृत्व दिया, उन्होंने ब्राह्मणवाद नामक आक्टोपस का सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक तरीके से प्रतिकार किया. भ्रष्ट तथा ब्राह्मणवादी सरकार ने साजिश के तहत उनकी हत्या भले ही करवा दी हो लेकिन उनका वैचारिक तथा दार्शनिक विचारपुन्ज अद्यतन पूर्णरूपेण आभामयी है.
शोषित समाज हेतु जगदेव बाबू का योगदान-
जगदेव बाबू निडर, स्वाभिमानी तथा बहुजन हितचिन्तक थे. जब बिहार नक्सलवाद की आग में जल रहा था और ये प्रतीत हो रहा था कि हथियारबंद आन्दोलन ही सामंतवाद को जड़ से उखड सकता है, जगदेव बाबू ने इसी समय जन आन्दोलन को उभारा. जहाँ नक्सलवाद सामंतवाद को सिर्फ जमीन (Land) से सम्बन्ध करके देखता है, वहीँ जगदेव बाबू जी ने इसको सही ढंग से परिभाषित किया कि सामंतवाद जमींदारी प्रथा का परिवर्तित रूप है यह प्राथमिक अवस्था में जातिवादी सिस्टम के रूप में काम करता है जो निचली जाती के लोगों का आर्थिक तथा सामाजिक शोषण करता है.

उत्तर भारत की राजनीति में उनका सबसे बड़ा योगदान था कि उन्होंने मुख्यमंत्री  पद को सुशोभित करते आये ऊँची जाति के एकाधिकार को समाप्त कर दिया. संसोपा में रहते हुए लोहिया के इस नारे का विरोध किया कि ‘पिछड़ा पावे सौ में साठ’ इसके जवाब में उन्होंने कहा- “सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है.” यद्यपि उनकी हत्या 1974 में ही हो जाती है किन्तु तब से लेकर आज तक बिहार में शोषित समाज के लोगों ने ही मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया (दरोगा प्रसाद राय से लेकर जीतनराम मांझी तक).
वे पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने सामाजिक न्याय को धर्मनिरपेक्षवाद के साथ मिश्रित किया. जब ‘मंडल कमीशन’ कमंडल (तथाकथित राम मंदिर आन्दोलन) की भेंट चढ़ गया तब उनके सामाजिक न्याय के द्रष्टिकोण को भारी चोट पहुँची. आज सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोग पूजा-पाठ करते है, मंदिर खुद बनवाते है लेकिन पुजारी उच्च वर्ग से होता है, पुजारी पद का कोई सामाजिक तथा लैंगिक प्रजातंत्रीकरण नहीं है इसमें शोषण तो शोषित समाज का ही होता है. अर्थात धर्म का व्यापार कई करोड़ों-करोड़ का है और ये खास वर्ण के लोगो की दीर्घकालिक आरक्षित राजनीति है. इसलिए जगदेव बाबू ने लोगों को राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ सांस्कृतिक संघर्ष की आवश्यकता का अहसास दिलाया था. उन्होंने अर्जक संघ को अंगीकार किया जो ब्राह्मणवाद का खात्मा करके मानववाद को स्थापित करने की बात करता है. उन्होंने 1960-70 के दशक में सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंका था उन्होंने कहा था कि- ‘यदि आपके घर में आपके ही बच्चे या सगे-संबंधी की मौत हो गयी हो किन्तु यदि पड़ोस में ब्राह्मणवाद विरोधी कोई सभा चल रही हो तो पहले उसमें शामिल हो’, ये क्रांतिकारी जज्बा था जगदेव बाबू का. आज फिर से जगदेव बाबू की उस विरासत को आगे बढ़ाना है जिसमें 90% लोगों के हित, हक़-हकूक की बात की गयी है.
जगदेव बाबू वर्तमान शिक्षा प्रणाली को विषमतामूलक, ब्राह्मणवादी विचारों का पोषक तथा अनुत्पादक मानते थे. वे समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के पक्ष में थे. एक सामान तथा अनिवार्य शिक्षा के पैरोकार थे तथा शिक्षा को केन्द्रीय सूची का विषय बनाने के पक्षधर थे. वे कहते थे-



चपरासी हो या राष्ट्रपति की संतान,
सबको शिक्षा एक सामान.

जगदेव बाबू कुशवाहा जी की जयंती हर साल २ फरवरी को कुर्था (बिहार) में एक मेले का आयोजन करके मनाई जाती है, जिसमे लाखों की संख्या में लोग जुटते है. हर गुजरते साल में उनकी शहादत की महत्ता बढ़ती जा रही है. दो वर्ष पहले शोषित समाज दल ने उन्हें ‘भारत लेनिन’  के नाम से विभूषित किया है.  उनकी क्रांतिकारी विरासत जिससे उन्होंने राजनीतिक आन्दोलन को सांस्कृतिक आन्दोलन के साथ एका कर आगे बढाया तथा जाति-व्यवस्था पर आधारित निरादर तथा शोषण के विरूद्ध कभी भी नहीं झुके, आज वो विरासत ध्रुव तारा की बराबर चमक रही है. लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़े. ऐसे महामानव  और क्रन्तिकारी को श्री पासी सत्ता परिवार नमन करता है । 

 नोट -यह लेख जनबल न्यूज़ साईट के ब्लॉग से कॉपी की गयी है ।

राजद की रैली में लालू यादव ने उठाया पासी उत्पीड़न का मुद्दा

पटना बिहार :- बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में रविवार 27 अगस्त को आयोजित राजद की भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली में एक बार फिर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नितीश सरकार द्वारा शराबबंदी के नाम पर किये जा रहे पासी उत्पीड़न के मुद्दे को मुख्यता से उठाया । लालू प्रसाद यादव इस मुद्दे पर पूर्व में भी बोल चुके है । 

विशेष बाते :-

  •  लालू यादव ने शराबबंदी की आड़ में पासियो को परेशान करने का सरकार पर लगाया आरोप 
  • लालू यादव ने बोला की 40000 पासी है जेलो में बंद 
  • प्रदेश में 20 लाख पासी ताड़ी के रोजगार पर है आश्रित 
  • बिहार में सरकार और पुलिस कर रही पासियो को प्रताड़ित 

 लालू यादव ने पासी उत्पीड़न के मुद्दे पर बोलते हुए कहा की नितीश सरकार उनके अधिकारी और पुलिस शराबबंदी की आड़ में पासियो को बेवजह प्रताड़ित कर रही है जबकि प्रदेश में अभी फ़िलहाल ताड़ी के बिक्री पर कोई प्रतिबन्ध नही है उन्होंने जानकारी देते हुए कहा की जब तक सरकार द्वारा नीरा की बिक्री का प्रतिबंध नही कर लिया जाता है तब तक प्रदेश में ताड़ी बिक्री पर प्रतिबन्ध नही रहेगा ऐसा बिहार सरकार ने एक निर्देश जारी करके कहा था तब इसी मुद्दे पर उन्होंने सरकार और पुलिस पर सवाल करते हुए कहा की फिर पुलिस क्यों पासियो को गिरफ्तार करके जेल भेज रही है ,क्यों उनका घर जब्त किया जा रहा है क्यों उनलोगो पर शराबबंदी का कानून लगाया जा रहा है , लालू प्रसाद यादव ने जानकारी देते हुए कहा की पुरे बिहार में पासी समुदाय के करीब 40000 चालीस हजार लोग जेल में बंद है । 

लालू यादव पहले भी बोल चुके है ताड़ी पर प्रतिबन्ध हटाने को लेकर 

आपको बता दे की पिछले साल 2016 में जब ताड़ी पर प्रतिबन्ध को लेकर बिहार सरकार और पासी समाज के लोगो के बिच मतभेद और स्पष्ट स्थिति नही थी और लोग सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे तब सरकार के सहयोगी रहे राजद पार्टी के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने पासी समाज के पक्ष में सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए 28 जुलाई 2016 दिन गुरुबार को एक बयान दिया की ताड़ी पर कोई प्रतिबन्ध नही रहेगा , ताड़ी पर हमार कानून लागू रही ।  इसके उलट शुक्रवार 29 जुलाई 2016को नया शराबबंदी कानून सामने आया, जिसमें ताड़ी पर भी पाबंदी का जिक्र था। इसके बाद राजद के तेवर कड़े होने की चर्चा रही। आखिरकार, शनिवार को उत्पाद और मद्य निषेध मंत्री का बयान आया कि राज्य में ताड़ी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा।

  • 1991 मेंलालू प्रसाद ने सीएम रहते ताड़ी के सेवन पर नए नियम बनाए थे।

   1991 में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्वकाल में ताड़ी के उपयोग के बारे में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी की। इसके अनुसार तय हुआ कि ताड़ी, कहां-कहां (किन-किन स्थानों पर) नहीं पी जा सकती है। यानी, यह प्रतिबंधित नहीं है। म्युनिसीपल और कॉरपोरेशन एरिया में- घाट, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, धार्मिक स्थान, फैक्ट्री, पेट्रोल पंप, रेलवे स्टेशन/ यार्ड, बस स्टैण्ड, दलित बस्ती, लेबर कॉलोनी, नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, सार्वजनिक स्थान या कोई स्थान जिसे प्रतिबंध के दायरे में लाया जाना जरूरी हो और गांव के भीतर-वर्जित क्षेत्र माने गए हैं। ताड़ी, म्युनिसीपल और कॉरपोरेशन एरिया की चौहद्दी से कम से कम 50 मीटर दूर। अन्य प्रतिबंधित स्थानों से 100 मीटर दूर बेची जा सकती है। यह दूरी वैसे ही माफी जाएगी जैसे हवाई दूरी (एरियल डिस्टेंस या क्रो-फ्लाई) मापते हैं। इन प्रतिबंधित स्थानों को छोड़कर कहीं भी ताड़ी बेची या पी जा सकती है। 

लालू के अलावा बिहार के दो और नेताओ ने ताड़ी प्रतिबन्ध पर अपना मत स्पष्ट किया है इन नेताओ का कथन देखे निचे । बावजूद इसके पासी लोगो को बिहार सरकार और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है ।
 

  • नीरा कारोबार शुरू होने तक पुरानी स्थिति रहेगी बरकरार। 

                    अशोक चौधरी, 

                पूर्व शिक्षा मंत्री बिहार 

बिहार में ताड़ी पर कोई प्रतिबंध नहीं है। और ही इस पर बैन लगाया जा रहा है। –

              तेजस्वी यादव,

        पूर्व उप मुख्यमंत्री, बिहार

 

राजद की भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली रही सुपरहिट , एक मंच पर जूटा सारा बिपक्ष

पटना बिहार :- बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में कल रविवार को राष्ट्रिय जनता दल और लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया जिसमे बिपक्षी एकता और ताकत को प्रदर्शित किया गया , राजद की इस रैली में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव में देश के 22 विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर बटोरकर एक नया महागठबंधन का सपना बुना , देश बचाओ भाजपा भगाओ रैली में उपस्थित सभी विपक्षी दल के नेताओं ने एकजुटता के साथ देश से भाजपा के सफाये का संकल्प लिया

विशेष बाते 

  • भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली के मंच पर 22 विपक्षी दल के नेताओं को और मैदान में भारी भीड़ जूटा कर राजद प्रमुख ने दिखाई ताकत
  • रैली में आये समस्त नेताओ में देशभर से भाजपा को भागने का लिया संकल्प
  • नितीश और भाजपा के खिलाफ बोले शरद , ममता , अखिलेश और गुलाम नवी  
  • लालू यादव ने शराबबंदी पर तंज कसते हुए 40000 पासियो को नितीश सरकार द्वारा जेल में बंद किये जाने की भी बात की  

 

राजद की इस रैली के मौके पर इस लड़ाई का ऐलान लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव द्वारा बाकायदा शंख फुक कर किया गया , रैली में देशभर के दर्जन भर से अधिक नेता शामिल हुए और उन्होंने आह्वान किया की देश ,संविधान और , लोकतंत्र के लिए खतरा बन चुके भाजपा सरकार को उखाड फेकना है ,इन्होने भाजपा की मोदी सरकार में विरोधियो को परेशान करने , झूठे केसो में  फ़साने की भी एक सुर में निंदा की , उन्होंने भाजपा सरकार में गाय के नाम पर  भीड़ द्वारा हत्या , दलितों पर बढ़ रहे हमलो , और सांप्रदायिक ताकतों का मनोबल बढ़ जाने की भी निंदा की और इसका समाधान के लिए देश से भाजपा के पूर्ण सफाए की बात की

नितीश कुमार रहे निशाने पर 

इस रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , कांग्रेस के बरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद , यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ,और झारखण्ड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश पर हमला बोला , वही शरद यादव और राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह ने नितीश पर ख़ास तौर से हमला बोला

रैली में उठाये गये मुख्य मुद्दे 

मंच पर मौजूद विपक्षी दल के नेताओं ने जोर शोर से बेरोजगारी , साम्प्रदायिकता , दलितों पर बढ़ रहे हमलो , गाय के नाम पर भीड़ द्वारा हत्या  और अन्य मुद्दे उठाये  , कहा की पीएम मोदी के चुनावी वादे जुमले बन कर रह गए है , दो करोड़ लोगो की बजाय पिछले सवा तिन साल में महज डेढ़ लाख लोगो को ही रोजगार मिला है , आरोप लगाया गया की केंद्र सरकार गरीबो और दलितों की जगह अमीर लोगो और साम्प्रदायिक ताकतों का हित साधने और उन्हें बढ़ावा देने मे लगी है , इनके नीतियों से गरीब और गरीब होते जा रहे है और अमीर और अमीर , देश में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ा जा रहा है

ये नेता रैली में आये 

राजद की इस रैली में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी , कांग्रेस के बरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद , सीपी जोशी ,जदयू सांसद शरद यादव , यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव , झारखण्ड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन , पूर्व केन्द्रीय मंत्री तारिक अनवर , झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल  मरांडी , जयंत चौधरी (राष्ट्रिय लोक दल ), एस सुधाकर रेड्डी और डी. राजा (सीपीआइ) ,किरणमयी नंदा और देवेन्द्र प्रसाद यादव (सपा ) , एलांग गोबन (डीएमके) दानिश अली (जदयू -सेक्युलर ) आदि शामिल हुए

बिभिन्न दलों और नेताओं का रैली पर प्रतिक्रिया 

रालोसपा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा की राजद ने रैली में भीड़ तो जूटा ली लेकिन नेताओं के भाषण में ओज नही दिखा , उनमे आत्मबल का घोर अभाव था यह रैली देश निर्माण के लिए नही बल्कि लालू परिवार को बचाने की कवायद भर बस थी बेहतर होता की मंच पर लोग देश और बिहार के निर्माण पर बात रखते , वही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने रैली को ऐतिहासिक बताते हुए कहा की राज्य की जनता ने रैली के जरिये जनादेश का अपमान करने वाले नेताओ को सबक सिखाने का संदेश दी है ,भाकपा के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा की आज की रैली से भाजपा और आरएसएस को सबक मिलेगा जनादेश का अपमान कर्मे वाले नेताओं को भी जनता ने बता दिया है की अब उनके दिन नही बहुरेंगे , भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा की जनादेश के साथ धोखा देने वाले नितीश ने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता का अपहरण किया है उससे नाराज जनता का आक्रोश रैली में खूब दिखा सामंती और साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ एक मंच पर बिपक्ष की एकजुटता देखने लायक थी

लगातार हो रही रेल हादसों की जिम्मेवारी लेते हुए प्रभु ने की इस्तीफे की पेशकश ,मोदी ने कहा इन्तजार करे 

लगातार एक के एक बाद हो रही रेल दुर्घटनाओ को रोक पाने में नाकाम रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इन रेल हादसों की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफे देने की पेशकश की वही प्रधानमन्त्री मोदी ने उनसे इन्तजार करने को बोले है । प्राप्त जानकारी के अनुसार रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने आज कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और हाल में हुई रेल दुर्घटनाओं की पूरी नैतिक जिम्मेदारी ली। उन्होंने संकेत दिया कि उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी। प्रभु ने कहा, ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण हादसों, यात्रियों के घायल होने और बेशकीमती जानों के जाने से बेहद दुखी हूं।’’ प्रभु ने ट्वीट किया, ‘‘मैं माननीय प्रधानमंत्री @ नरेंद्रमोदी से मिला और पूर्ण नैतिक जिम्मेदारी ली। माननीय प्रधानमंत्री ने मुझसे अभी इंतजार करने को कहा।’’
उन्होंने कहा कि बतौर रेल मंत्री करीब तीन साल के दौरान उन्होंने अपना ‘‘खून-पसीना’’ रेलवे को दिया है। उन्होंने ट्वीट की एक श्रृंखला में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सभी क्षेत्रों में व्यवस्थित सुधारों के जरिये दो दशक से उपेक्षा झेल रहे रेलवे को उबारने की कोशिश की। जिससे सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व निवेश हुआ और कई मील के पत्थर स्थापित हुये।’’ पिछले पांच दिनों में एक के बाद एक हुये दो हादसों की वजह से मंत्री के इस्तीफे की मांग की जा रही है। 

खास बाते :-

  • सुरेश प्रभु के तीन साल के कार्यकाल में रेल लगातार हादसों का शिकार होते रही है ।
  • पिछले एक ही हफ्ते में भारतीय रेल लगातार दो बार हादसों का शिकार हो चुकी है । 
  • पहली घटना उत्कल एक्सप्रेस पटरी से उतर गयी जिसमे 23 लोग मारे गए ,दूसरी कैफियत एक्सप्रेस एक डम्पर से भीड़ गयी जिसमे 70 लोग जख्मी हुए ।

आपको बता दे की लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओ के कारण सोशल मीडिया फेसबुक और ट्विटर पर लगातार रेल मंत्री सुरेश प्रभु के इस्तीफे की मांग की जा रही है सोशल मीडिया फेसबुक पर ताइवान के आर्थिक मामलो के मंत्री ली चिन्ह -कुंग का उदाहरण दिया जा रहा था जिन्होंने मात्र बिजली संकट होने पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उनका उदाहरण देकर सुरेश प्रभु का इस्तीफा माँगा जा रहा है की ताइवान के मंत्री की तर्ज पर सुरेश प्रभु को भी लगातार हो रहे रेल हादसों की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे देनी चाहिए । 

पाखंड छोड़ वैज्ञानिक जीवन पध्दति अपनाने पर जोर देते थे अर्जक संघ संस्थापक रामस्वरूप वर्मा , जयंती दिवस पर विशेष

 

महात्मा ज्योतिबा राव फुले और बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के बाद 60 के दशक में जानेमाने मानववादी और समाजवादी विचारक रामस्वरूप वर्मा ने भारतीय समाज को नजदीक से देखा ,परखा  और अर्जक संघ की स्थापना करके देश और समाज को नयी दिशा देने का प्रयास किया , 01 जून 1968 को इन्होने अर्जक संघ की स्थापना करके समाज में व्याप्त अन्धविश्वास और सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों , ब्राह्मणवाद और पाखंड को खतम करने का एक अभियान चलाया , आज 22 अगस्त उनकी जयंती पर उनको नमन करते हुए उनके बारे में जानने की कोशिश करते है ,

ख़ास बाते 

  • समाज में व्याप्त ब्राह्मणवादी कुरीतियों पर प्रहार करने वाले रामस्वरूप वर्मा का कहना था की आत्मा का अस्तित्व ही नही है ,किसी के मरने पर दूसरा जन्म नही होता है ,भाग्य-भगवान , श्राप ,नरक आदि काल्पनिक बातो का डर बनाकर कर्मकांड करके शोषण और ठगी होती है साथ ही इन कर्मकाण्डो के माध्यम से महिलाओ को निचा बनाया जाता है 
  • रामस्वरूप वर्मा उतरप्रदेश  सरकार के चर्चित वित्तमंत्री थे जिन्होंने उस समय 20करोड़ लाभ का बजट पेश कर पूरे आर्थिक जगत को अचम्भित कर दिया 
  •  उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा  की परीक्षा भी उत्तीर्ण की और इतिहास में सर्वोच्च अंक पाये जबकि पढ़ाई में इतिहास उनका विषय नहीं रहा। पर नौकरी न करने दृढ़ निश्चय के कारण साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए।
  • इन्होने अर्जक संघ की स्थापना करके समाज को अनेक कुरीतियों से आजादी दिलाई 

संक्षिप्त परिचय (जीवनी) :-

रामस्वरूप वर्मा

जन्म -22 अगस्त, 1923

मृत्यु -19 अगस्त, 1998

ये एक समाजवादी नेता थे जिन्होने अर्जक संघ  की स्थापना की, इनका जन्म वर्तमान कानपूर देहात के गौरीकरण गाव के एक साधारण किसन परिवार में हुआ था , ये चार भाई थे और सबसे छोटे थे , इनके पिता का नाम वंशगोपाल था इनकी मृत्यु 19 अगस्त 1988 में हुई

शिक्षा 

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कालपी और पुखरायां में हुई जहां से उन्होंने हाई स्कूल और इंटर की परीक्षाएं उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्मा जी सदैव मेधावी छात्र रहे और स्वभाव से अत्यन्त सौम्य, विनम्र, मिलनसार थे पर आत्मस्म्मान और स्वभिमान उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरा हुआ था। उन्होंने १९४९ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी में एम०ए० और इसके बाद कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी उत्तीर्ण की और इतिहास में सर्वोच्च अंक पाये जबकि पढ़ाई में इतिहास उनका विषय नहीं रहा। पर नौकरी न करने दृढ़ निश्चय के कारण साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए।

राजनीतिक  जीवन

सर्वप्रथम वे १९५७ में सोशलिस्ट पार्टी से भोगनीपुर विधानसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश विधान सभा के सद्स्य चुने गये, उस समय उनकी उम्र मात्र ३४ वर्ष की थी। १९६७ में संयुक्त सोशलिस्ट पर्टी से, १९६९ में निर्दलीय, १९८०, १९८९ में शोषित समाजदल से उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये। १९९१ में छठी बार शोषित समाजदल से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। जनान्दोलनों में भाग लेते हुए वर्मा जी १९५५, १९५७, १९५८, १९६०, १९६४, १९६९, और १९७६ में १८८ आई०पी०सी० की धारा ३ स्पेशल एक्ट धारा १४४ डी० आई० आर० आदि के अन्तर्गत जिला जेल कानपुर, बांदा, उन्नाव, लखनऊ तथा तिहाड़ जेल दिल्ली में राजनैतिक बन्दी के रूप में सजाएं भोगीं। वर्मा जी ने १९६७-६८ में उत्तर प्रदेश की संविद सरकार में वित्तमंत्री के रूप में २० करोड़ के लाभ का बजट पेश कर पूरे आर्थिक जगत को अचम्भे में डाल दिया। बेशक संविद सरकार की यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। कहा जाता है कि एक बार सरकार घाटे में आने के बाद फायदे में नहीं लाया जा सकता है, अधिक से अधिक राजकोषीय घाटा कम किया जा सकता है। दुनिया के आर्थिक इतिहास में यह एक अजूबी घटना थी जिसके लिए विश्व मीडीया ने वर्मा जी से साक्षात्कार कर इसका रहस्य जानना चाहा। संक्षिप्त जबाब में तो उन्होंने यही कहा कि किसान से अच्छा अर्थशास्त्री और कुशल प्रशासक कोई नहीं हो सकता क्योंकि लाभ-हानि के नाम पर लोग अपना व्यवसाय बदलते रहते हैं पर किसान सूखा-बाढ़ झेलते हुए भी किसानी करना नहीं छोडता। वर्मा जी भले ही डिग्रीधारी अर्थशास्त्री नहीं थे पर किसान के बेटे होने का गौरव उन्हें प्राप्त था। बाबजूद इसके कि वर्मा जी ने कृषि, सिंचाई, शिक्षा, चिकित्सा, सार्वजनिक निर्माण जैसे तमाम महत्वपूर्ण विभागों को गत वर्ष से डेढ़ गुना अधिक बजट आवंटित किया तथा कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते में वृद्धि करते हुए फायदे का बजट पेश किया।

प्रमुख कृतिया 

इन्होने  “क्रांन्ति क्यों और कैसे”, ब्राह्मणवाद की शव-परीक्षा, अछूत समस्या और समाधान, ब्राह्मणण महिमा क्यों और कैसे? मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक, निरादर कैसे मिटे, अम्बेडकर साहित्य की जब्ती और बहाली, भंडाफोड़, ‘मानववादी प्रश्नोत्तरी’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी जो अर्जक प्रकाशन से प्रकाशित हुई़ं

 

बिहार के पासी समाज के साथ भेदभाव , नवगठित सरकार के मंत्रिमंडल में जगह नही

मनीष कुमार (विधायक धुरैया जदयू ) 

विशेष तथ्य :-

  • मनीष कुमार लगातार तिन बार से है धुरैया के विधायक ।
  •  जदयू -बीजेपी वाली राजग गठबंधन की सरकार में एकमात्र पासी विधायक है मनीष , बावजूद इसके मंत्रिमंडल में शामिल नही किया गया ।
  • राजग और नितीश कुमार ने पासी समाज के साथ किया भेदभाव ।   

 

पटना (बिहार):- बिहार में राजनितिक उठापटक के बीच राजग गठबंधन वाली नई सरकार गठित हो गयी साथ ही साथ नए मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो गया, लेकिन यह मंत्रिमंडल विस्तार बिल्कुल निराशाजनक है महागठबंधन वाली सरकार के तुलना में क्यूंकि इस सरकार के मंत्रीमंडल में इस बार तीन ही महादलित सदस्यों को मंत्री बनाया गया है ।जबकि पिछली सरकार में चार महादलित सदस्य थे जिसमे दो लोग पासी समाज से थे और वो भी अच्छे मंत्रालयो  का प्रभार उन दोनों लोगो के पास था  अशोक चौधरी(कांग्रेस) को शिक्षा मंत्रालय का प्रभार मिला था जबकि राजद के मुनेश्वर चौधरी को खनन व भूतत्व मंत्रालय का प्रभार मिला था ।हालाकि मुख्य्मंत्री नितीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड से एक भी नही थे जबकि उनकी पार्टी से मनीष कुमार जी बांका के धुरैया विधानसभा से लगातार तिन बार जीतते आ रहे है लेकिन इस बार के सरकार में मनीष कुमार जी के सतासिन पार्टी में पासी समाज के एक मात्र सदस्य होने के  कारण उनका मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने की सरकार और नितीश कुमार से बहुत उम्मीद था पासी समाज को लेकिन मनीष कुमार जी को मंत्रिमंडल में जगह न देकर एक बार फिर नितीश कुमार ने पासी समाज का अपमान किया है और अपनी पासी विरोधी नीतियों पर कायम है क्यूंकि जनता दल यूनाइटेड से वैसे वैसे लोगो को मंत्रिमंडल में जगह दिया गया है  जो बहुत कम पढ़ लिखे लोग है उदाहरण के लिए आपलोग निचे दी हुई सूचि देख सकते है किस तरह नितीश कुमार नेआठवी पास ,दसवी पास और बारहवी पास लोगो को नितीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया कई लोगो को तो  दुबारा मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है जैसे संतोष निराला और जयकुमार सिंह इन दोनो लोगो को दुबारा जगह दी गयी है जबकि साफ़ सुथरा छवि वाले सुशिक्षित सीबीएसई सैनिक स्कूल तिलैया से पढ़े और पार्टी के प्रति समर्पित लगातार तिन बार से बांका के धुरैया बिधानसभा क्षेत्र से जितने वाले विधायक मनीष कुमार को नितीश कुमार ने मंत्रिमंडल में जगह नही दिया ये विचारणीय सवाल है ? न तो मनीष कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप है और न ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप है तो फिर उन्हें मंत्रिमंडल में क्यों नही शामिल किया गया  । ये पासी समाज का घोर अपमान है । बिहार राज्य में पासी जाती का सरकार में एक मात्र सदस्य मनीष कुमार है जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नही किया गया है जबकि बिहार में पासी समाज की जनसंख्या करीब 25 से 30 लाख है ।  नितीश ने मनीष कुमार को मंत्रिमंडल में शामिल न करके  अपनी पासी विरोधी छवि को कायम कर दिया है जैसे पिछले दिनो पासी समाज के रोजगार ताड़ी के उतारने और बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर किया था । मनीष कुमार की तमाम उपलब्धियों के बावजूद उनको मंत्रिमंडल में शामिल न करना नितीश कुमार का पासी के प्रति भेद भाव वाली मानसिकता को प्रदर्शित करता है जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनावो में भुगतना पड़ेगा ।

नाम शिक्षा
1.       ललन सिंह ग्रेजुएट
2.       संतोष निराला ग्रेजुएट (एल एल बी )
3.       जयकुमार सिंह इंजीनियरिंग (सिविल)
4.       श्रवण कुमार बारहवी पास
5.       मंजू वर्मा बारहवी पास
6.       खुर्शीद उर्फ़ फिरोज अहमद दसवी पास
7.       कपिल देव कामत आठवी पास
8.       दिनेश चन्द्र यादव दसवी पास
9.       मदन सहनी ग्रेजुएट
10.   बिजेंद्र यादव ग्रेजुएट
11.   रमेश ऋषिदेव पोस्ट ग्रेजुएट

ये सूचि नितीश के पार्टी जदयू के मंत्रियो का है जिसमे उनकी शिक्षा पर प्रकाश डाला गया है आपलोग खुद देखिये नितीश जी का चुनाव मंत्री पद के लिए कितना उपयुक्त है कैसे उन्होंने पार्टी में एक कुशल और लगातार तिन बार से जीत दर्ज करते हुए और पार्टी के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले धुरैया विधायक मनीष कुमार को मंत्रिमंडल में जगह न देकर उनकी उपेक्षा की , क्या मनीष कुमार इन सभी उपर्युक्त नेताओ से किन्ही मायने में कम है जो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नही दिया गया ? या फिर इसका वजह  नितीश कुमार का पासी विरोधी मानसिकता है ? सवाल है ? जरुर सोचियेगा .