तमाम कानूनों के बावजूद नही रुका बाल मजदूरी, विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर विशेष

12 जून आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है और इस दिन तमाम सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा बच्चों से काम न कराये जाने का संकल्प लिया जाता है और इस सम्बन्ध में राज्य और केंद्र में बैठे लोगों पीएम , सीएम और मंत्रियों द्वारा मीडिया (प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक व सोशल) के माध्यम से कुछ आकर्षक सन्देश दे दिया जाता है , भारत मे बाल श्रम रोकने को लेकर तमाम कानून बनाये गए बावजूद इसके बाल श्रम में कोई कमी नही आई , भारत और बिहार में बाल मजदूरी की हकीकत क्या है आइये जानते है ।

देश के कुल बाल मजदूरों में 11 फीसद केवल बिहार में

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 2011 के एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में बाल श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है और इस मामले में भारत शीर्ष पर है और अगर बात बिहार की की जाए तो भारत के कुल बाल मजदूरों में से करीब 11 फीसदी अकेले बिहार में हैं। यह आंकड़ा चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (CRY) ने दिए हैं। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 5 साल से 14 साल के बीच के करीब 40 फीसद बाल मजदूर ऐसे हैं जो कि अपना नाम तक नहीं लिख सकते हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 5 साल से 14 साल की उम्र के बीच के करीब 65 लाख बच्चे खेती और घरेलू कामों में मजदूरी कर रहे हैं। इस आयु वर्ग के बाल मजदूरों की तादाद कुल बाल मजदूरों का 64.1 फीसद है। सूत्र ने बताया, ‘प्रदेश स्तर पर मिले आंकड़े बताते हैं कि बिहार में काम करने वाले 61 फीसद बच्चे या तो कृषि क्षेत्र में मजदूरी करते हैं या फिर घरेलू कामों में उनसे मजदूरी कराई जाती है।’

जहा तक बच्चों के बीच निरक्षरता का सवाल है, तो पूर्णिया, कटिहार और मधेपुरा जिलों में इसका अनुपात 46 फीसद है। इसके बाद 44 फीसद की तादाद के साथ सीतामढ़ी और बांका का नंबर आता है। आंकड़ों के मुताबिक सीवान, भोजपुर, बक्सर और रोहतास 30 फीसद के साथ कुछ बेहतर स्थिति में हैं।

बाल श्रम गरीबी, आर्थिक-प्रवंचना एवं अशिक्षा का परिणाम

बाल श्रम मूलतः गरीबी, आर्थिक-प्रवंचना एवं अशिक्षा का परिणाम है। ऐसा भी कहा जाता है कि यह खंडित श्रम बाजारों एवं कमजोर स्तर के श्रम सशक्तिकरण का प्रतिफलन है। गरीबी बाल श्रम को जन्म देती है क्योंकि गरीब परिवार किसी भी संभव तरीके से जीने के लिए संघर्षरत रहते हैं। परन्तु यह भी समान रूप से सत्य है कि बाल-श्रम गरीबी को स्थायी बनाता है। बच्चे विनाशकारी/विकृत, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली शोषण व्यवस्था एवं गरीबी के दुष्चक्र के शिकार हो जाते हैं। भेदभाव, सामाजिक सुरक्षा की कमजोर एवं अक्षम व्यवस्था एवं गुणात्मक शिक्षा के अभाव में बच्चों के समक्ष कार्य करने के अलावा अन्य कोई बेहतर विकल्प नहीं रह जाता है। कामकाजी बच्चों के प्रति माता-पिता एवं समुदाय की मनोवृति के साथ-साथ इस अमानुषिक अस्तित्व से मुक्ति के साधन के रूप में शिक्षा के महत्व को नहीं समझने की सोच का भी बाल श्रम एवं कामकाजी बच्चों की बढ़ रही संख्या में योगदान है।

आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ ने शुरू किया गरीब बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा

बिहार रोहतास नोखा :- इस देश मे दलित पिछड़ा और वंचित समाज के उत्थान ,एकता एवं सशक्तिकरण को लेकर अनेक संगठनों का गठन हुआ और अभी भी हो रहा है , इनमे से कुछ संगठन काम करते है और कुछ संगठन अपनी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु मीडिया में बने रहने के लिए बिना मतलब का कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित करते रहते है ,उन आयोजनों से वंचित समाज का कुछ भला नही होता है , लेकिन तमाम संगठनों के बीच एक संगठन ऐसा भी है जो लीक से थोडा हटकर है जी हा हम बात कर रहे है “आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ ” की जो अभी बिहार में सक्रिय है , इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद कुमार चक्रवर्ती है जिनके नेतृत्व में इस संगठन द्वारा दलित पिछड़ा अल्पसंख्यक एकता पर बल देने के साथ साथ संविधान प्रदत शिक्षा के अधिकार, और वोट के अधिकार को जन जन तक पहुचाने का काम किया जा रहा है ।

तमाम अभावो और संसाधनों की कमी और कठिनाइयों के बावजूद ये संगठन धरातल पर काम कर रहा है , बिना प्रचार प्रसार किये और बिना राजनीतिक स्वार्थ के । इसी कड़ी में कल 10 जून 2018 दिन रविवार को आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ द्वारा गरीब एवं असहाय बच्चों के लिए एक निःशुल्क शिक्षण संस्थान की व्यवस्था किया गया है तथा बच्चों को पठन पाठन की सामग्री कलम , किताब और पेंसिल वितरित की गई ।

  • आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ तमाम अभावो के बावजूद धरातल पर कर रहा है सामाजिक कल्याण का कार्य
  • संविधान को बचाने की लड़ाई , और संवैधानिक अधिकार वोट और शिक्षा के अधिकार पर लोगो के बीच कर रहा कार्य
  • गरीब एवं असहाय बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का कार्य कर रहा है संघ ।

नोखा में अम्बेडकर कल्याण संघ द्वारा शुरू किया गया निःशुल्क शिक्षण संस्थान कल दिनांक 10 जून 2018 दिन रविवार को रोहतास जिले के नोखा के वार्ड नम्बर 10 में आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ द्वारा गरीब , वंचित एवं असहाय बच्चों के लिए एक निःशुल्क शिक्षण संस्थान खोला गया तथा बच्चों के बीच पठन पाठन की सामग्री कापी , कलम , किताब और पेंसिल वितरित की गई । इस मौके पर एक बैठक भी आयोजित की गई जिसमें आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ और सम सोसाइटी ऑफ इंडिया सयुक्त रूप से शामिल हुए । बैठक की अध्यक्षता अरविंद कुमार चक्रवर्ती और संचालन संजय यादव ने किया । इस बैठक में बाबा साहेब के विचारों को जन जन तक पहुचाने का निर्णय लिया गया ,बाबा साहेब के दिये संवैधानिक अधिकारों शिक्षा का अधिकार , और मत देने के अधिकार के विस्तार पर चर्चा हुई , । राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद कुमार चक्रवर्ती ने अपने सम्बोधन में कहा कि बाबा साहेब ने कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध है जो पियेगा वो दहाड़ेगा , उन्होंने कहा कि भारत मे जो भी विकाश हुआ है वो बाबा साहब के संविधान की वजह से है भारत का संविधान विश्व का सबसे अच्छा संविधान है लेकिन ये संविधान तभी तक ही अच्छा है जब तक इस देश के हुक्मरान अच्छे है । इस कार्यक्रम की शुरुआत बाबा साहेब और तथागत गौतम बुद्ध के तैलचित्र पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित कर के किया गया ,यह कार्यक्रम बाबा चले गाँव की ओर अभियान के तहत गाँव गाँव मे बहुजन महापुरुषों गौतम बुद्ध , बाबा साहब ,ज्योतिबा फुले, पेरियार, रविदास, कबीरदास, गुरुनानक, जगदेवप्रसाद, वीरांगना उदा देवी, सन्त सुकई दास, ललई सिंह यादव आदि महापुरुषों के विचारों को जन जन तक प्रसारित किया जाता है । संजय यादव ने इस मौके पर बाबा साहेब का कारवां आगे बढ़ाने पर अपना विचार प्रस्तुत किया, सामाजिक आर्थिक ,शैक्षणिक ,और राजनीतिक स्थिति को सुधारने पर जोर किया । इस मौके पर गिरिजधारी पासवान, दीपू कुमार दीप, डॉ संजय पासवान, अशरफ , उमेश कुमार धीरज, रंजीत कुमार, जय कुमार, रिंकू देवी , रजनी देवी, पूजा देवी , गीता देवी, माधुरी देवी, आदि बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए ।

न्यायपालिका में आरक्षण के लिए उपेंद्र कुशवाहा का “हल्ला बोल दरवाजा खोल अभियान “

पटना बिहार :- भारत मे न्यायलयों में न्यायधीशों की भर्ती के लिए एक प्रणाली 1993 से सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई है , नाम है कोलेजियम प्रणाली ये एक ऐसी व्यवस्था है जिसमे एक जज ही दूसरे जज की नियुक्ति करता है , न जजो की भर्ती की कोई विज्ञापन सूचना, न कोई कम्पीटीटिव परीक्षा , सीधे मुख्य न्यायाधीश और सीनियर जजो का एक समूह जजो को नियुक्त कर देता है । भारत के न्यायपालिका में न्यायधीशों की इस नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ हमेशा समय समय पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक संगठनों द्वारा आवाज उठायी जाती रही है और न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाये जाने की मांग की जाती रही है ।और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाये जाने की इस मांग के समर्थन में 2014 में मौजूदा सरकार ने 99वे संविधान संशोधन के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति कानून 2014 का अध्यादेश संसद में लाया तथा ये कानून एक साथ संसद तथा 20 विधानसभाओ में एक सुर में पारित हुआ था ,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार देकर रदद् कर दिया ,और सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजो की नियुक्ति और ट्रांसफर की कोलेजियम व्यवस्था को बहाल कर दिया ।

  • कोलेजियम प्रणाली के कारण अन्य लोगो को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज बनने का नही मिलता अवसर ,चाहे वह दलित ,पिछड़ा हो या सामान्य
  • विश्व मे भारत के अलावा किसी अन्य देश मे नही है कोलेजियम प्रणाली
  • न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व के अभाव में लोगो को नही मिलता न्याय

एनडीए गठबंधन में शामिल रालोसपा प्रमुख और केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कोलेजियम प्रणाली के खिलाफ और न्यायपालिका में आरक्षण के लिए ‘हल्ला बोल दरवाजा खोल’ अभियान का किया शुरुआत
केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कॉलेजियम को लोकतंत्र के लिए ‘धब्बा’ बताया है. मंगलवार को पटना में एक कार्यक्रम में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली योग्यता को अनदेखा करता है और यह हमारे लोकतंत्र पर एक धब्बा है ,
पटना में एक कार्यक्रम के दौरान उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि ‘लोग आरक्षण का विरोध करते हैं. कहते हैं कि यह योग्यता को अनदेखा करता है मगर मुझे लगता है कि कॉलेजियम योग्यता को अनदेखा करता है. एक चाय बेचने वाला पीएम बन सकता है, एक मछुआरे का बच्चा वैज्ञानिक बन सकता है और बाद में राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन क्या एक नौकरानी का बच्चा न्यायाधीश बन सकता है? कॉलेजियम हमारे लोकतंत्र पर एक धब्बा है.
केंद्रीय मंत्री कुशवाहा ने आगे कहा कि ‘वर्तमान में न्यायपालिक के रूख के मुताबिक, जज अऩ्य जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं, वास्तव में वे अपने उत्तराधिकारी नियुक्त करते हैं. वे ऐसा क्यों करते हैं? उत्तराधिकारी चुनने के लिए यह प्रणाली क्यों बनाई गई है?

न्यायपालिका में आरक्षण का किया समर्थन

न्यायपालिका में आरक्षण के मुद्दे पर उपेंद्र कुशवाहा का बहुत सकरात्मक पक्ष है , वे बहुत दिनों से न्यायपालिका में आरक्षण का मांग कर रहे है , उनका मानना है कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति , जनजाति ,पिछड़े अति पिछड़े समाज के सभी लोग शामिल होंने चाहिए यहा तक कि गरीब सवर्ण लोगो को भी न्यायालयो में न्यायधीश के रूप में नियुक्ति होनी चाहिए , जिन्हें कोलेजियम प्रणाली के कारण अवसर नही मिलता , न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व न होने का एक स्पष्ट उदाहरण है एससी एसटी एक्ट में बदलाव , और लोगो का न्याय न मिलना , ।

उपेंद्र कुशवाहा का ये कथन बिल्कुल सही है कि न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व के अभाव में लोगो को इंसाफ नही मिलता है बिल्कुल सटीक है क्योंकि देखा जाए तो आज तक बिहार में जितने भी दलित नरसंहार हुए उन सभी मामलों में पीड़ितों को आजतक न्याय नही मिल पाया है और उनलोगों क् धीरे धीरे न्यायपालिका से भरोसा उठ रहा है और वे अपराध की और बढ़ रहे है ।

क्या है कोलेजियम प्रणाली ?
कोलेजियम पांच लोगों का समूह है। इन पांच लोगों में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज है। कोलेजियम द्वारा जजों के नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों की कमेटी (कोलेजियम) नियुक्ति व तबादले का फैसला करती है। कोलेजियम की सिफारिश मानना सरकार के लिए जरूरी होता है। यह व्यवस्था 1993 से लागू है। मतलब न खाता न बही , जो सुप्रीम कोर्ट के जज कहे वही सही , कोलेजियम व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजो की नियुक्ति में परिवारवाद को बढ़ावा देता है एक रिपोर्ट के अनुसार 1993 से ही कोलेजियम व्यवस्था लागू है और तबसे न्यायपालिका में केवल 120 परिवारों का ही कब्जा है और ये लोग अपनी मनमानी कर रहे है और अपने सगे सम्बन्धियो को न्यायधीश के रूप में नियुक्ति कर रहे है । स्पष्ट उदाहरण है मार्केंडेय काटजू जिनके पिता जी भी न्यायधीश थे और उनके पिताजी के पिताजी भी न्यायधीश थे ।

महाराज सुहेलदेव पासी ने विदेशी आक्रमणकारी सालार मसूद को लाखों सेना सहित मार गिराया था

10 जून सन 1034 ई भारतीय इतिहास का एक ऐसा दिन जिस दिन एक भारतीय राजा को एक विदेशी आक्रमणकारी पर विजय मिली थी और ऐसी विजय गाथा की जिस पर सभी भारतीयों का सर गर्व से ऊंचा उठ जाए , जी हा हम बात कर रहे है श्रावस्ती बहराइच के महाराजा सुहेलदेव पासी का जिन्होंने आज के ही दिन यानी 10 जून 1034 ई को विदेशी आक्रमणकारी सालार मसूद गाजी को उसके लाखों की सेना सहित गाजर मूली की तरह काट दिया था और उसको पराजित किया था , पासी महाराजा सुहेलदेव के इस शौर्य और पराक्रम से भयभीत होकर विदेशी आक्रमणकारियों ने करीब 150 सालो तक भारत की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत तक नही की ,

  • आज ही के दिन 10 जून 1034 ई को महाराजा सुहेलदेव पासी ने सालार मसूद गाजी को लाखों सेना सहित मार गिराया था
  • इस बुरी पराजय से भयभीत होकर 150 वर्षो तक विदेशियों ने भारत की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत तक नही की
  • पासी समाज प्रत्येक वर्ष 10 जून को पासी विजयोत्सव दिवस के रूप में मनाता है

महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम की कथा

महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया,लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले। राह में उसे एक भी ऐसाहिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। बहराइच अयोध्या के पास है के राजा सुहेल देव पासी अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे । महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया। महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम की कथा कुछ इस प्रकार से है – 1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि से 17 बार आक्रमण किया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध मंदिरों को लूटने में सफल रहा। सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्जे सैयद सालार मसूद गाजी ने भी भाग लिया था। 1030 ई. में महमूद गजनबी की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने की जिम्मेदारी मसूद ने अपने कंधो पर ली लेकिन 10 जून, 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां के शासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

  • महाराजा सुहेलदेव का जीवन परिचय

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी जिसका प्रारंभिक नाम भरवाइच था। इसी कारण इन्हे बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया। अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है। वे जाति के पासी थे, महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था। गोंडा बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे। इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी पासी राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6. मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल 10. जयपाल 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू 15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21. कल्याण ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव के दो भाई बहरदेव व मल्लदेव भी थे जो अपने भाई के ही समान वीर थे। तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते थे।

अंग्रेजो व जमींदारो के खिलाफ आदिवासियों के आंदोलन उलगुलान के नेता थे बिरसा मुंडा,पूण्यतिथि पर नमन !

झारखंड की जनक्रांति के अग्रदूत , धरती आबा के नाम से जाने जानेवाले , आदिवासियों के जल जंगल और जमीन पर अपने दावों को लेकर अंग्रेज और जमींदारो के खिलाफ एक बड़े आंदोलन ‘उलगुलान’का नेतृत्व करने वाले आदिवासी नायक भगवान बिरसा मुंडा जी का शहादत दिवस है , सबसे पहले हम उन्हें नमन करते है , फिर आइये उनके बारे में कुछ बात करते है ।

  • बिरसा ने ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ यानि ‘हमारा देश, हमारा राज’ का नारा दिया।
  • जेल जाते समय बिरसा ने लोगों से आह्वान किया,“मैं तुम्हें अपने शब्द दिये जा रहा हूं, उसे फेंक मत देना,अपने घर या आंगन में उसे संजोकर रखना। मेरा कहा कभी नहीं मरेगा। उलगुलान! उलगुलान! और ये शब्द मिटाए न जा सकेंगे। ये बढ़ते जाएंगे। बरसात में बढ़ने वाले घास की तरह बढ़ेंगे। तुम सब कभी हिम्मत मत हारना। उलगुलान जारी है।”

कौन थे बिरसा मुंडा?

आज धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन यानी 09 जून सन 1900ई. को उनका रांची के जेल में निधन हुआ था. उस वक्त बिरसा मुंडा की उम्र मात्र 25 साल थी. वे आदिवासियों के एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्हें इतना सम्मान प्राप्त है. झारखंड में बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा दिया गया है. वे मुंडा जनजाति से आते थे और अंग्रेजों व जमींदारो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था जिसे ‘उलगुलान’ कहा जाता है. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त युद्ध छेड़ा था, जिसके कारण अंग्रेज उन्हें किसी भी कीमत पर पकड़ना चाहते थे. नौ जनवरी 1899 को बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों ने अंग्रेजों से जमकर युद्ध किया. इसी दौरान वे एक जगह पर सो रहे थे तो कुछ विश्वासघातियों ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया

कुछ देर उन्हें बंदगांव और और खूंटी में रखा गया, फिर रांची लाया गया जहां नौ जून 1900 को उनका निधन हो गया. कहा जाता है कि हैजा से उनकी मौत हुई, लेकिन किसी को इसपर भरोसा नहीं कहा जाता है कि अंग्रेजों ने उनकी हत्या की थी.

  • जीवन-परिचय

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर सन् 1875 को वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले के अंतर्गत चालकाड़ के निकट उलिहातु गाँव में माता करमी हातू और पिता सुगना मुंडा के घर हुआ था।

  • क्या था ‘उलगुलान’ ?

‘मैं केवल देह नहीं
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मैं भी मर नहीं सकता
मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता
उलगुलान!
उलगुलान!!
उलगुलान!!!’’
‘बिरसा मुंडा की याद में’ शीर्षक से लिखी आदिवासी साहित्यकार हरीराम मीणा के कविता की ये पंक्तियां बिरसा मुंडा का आंदोलन ‘उलगुलान’ को समझने के लिए काफी है, उलगुलान यानी आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी का संघर्ष।
अंग्रेजों ने ‘इंडियन फारेस्ट एक्ट 1882’ पारित कर आदिवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया। अंग्रेजी सरकार आदिवासियों पर अपनी व्यवस्थाएं थोपने लगी। अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वे गांव, जहां वे सामूहिक खेती करते थे, ज़मींदारों और दलालों में बांटकर राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी। और फिर शुरू होता है अंग्रेजों एवं तथाकथित जमींदार व महाजनों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों का शोषण।इसी बीच बिरसा बाल अवस्था से किशोरावस्था और युवावस्था में पहुँचते हैं। वह आदिवासियों की दरिद्रता की वजह जानने और उसका निराकरण करने की उपाय सोचते हैं।आदिवासियों की अशिक्षा का लाभ लेकर गाँव के जमींदार, महाजन अनैतिक सूद-ब्याज में उलझाकर उनकी जमीन लेते रहते थे। आदिवासियों का कर्ज प्रतिदिन बढ़ता ही रहता। महाजन भी तो यही चाहते थे कि आदिवासियों का कर्ज बढ़े और खेत का पट्टा लिखवा लें फिर आदिवासी खेत में काम करें, पालकी उठायें, उनके नासमझ बच्चे खेत पर मुफ्त में पहरा भी देंगे। हुआ भी यही। आदिवासी अपनी ही जमीन पर गुलाम बन गये। वन के उत्पादों पर आदिवासियों के पुश्तैनी अधिकारों पर पाबंदी, कृषि भूमि के उत्पाद पर लगान और अन्य प्रकार के टैक्स और इन सब के पीछे अंग्रेज अधिकारी, उनके देसी कारिन्दे-सामंत, जागीरदार और ठेकेदार, ये सब आदिवासियों के लिए दिकू (शोषक/बाहरी) थे।आदिवासियों की हालत बद् से बद्तर होती गई।बिरसा समझ गया शोषणकारी बाहरी इन्सान होता है और जब तक उसे नहीं भगाया जायेगा तब तक दुःखों से मुक्ति नही मिलेगी। अपने भाइयों को गुलामी से आजादी दिलाने के लिए बिरसा ने ‘उलगुलान’ की अलख जगाई।
1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई छेड़ी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के ख़िलाफ़ भी जंग का ऐलान किया। यह मात्र विद्रोह नहीं था। आदिवासी अस्मिता, स्वायत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था – उलगुलान।

साभार -फॉरवर्ड प्रेस

बिहार में नही थम रहा दलित अत्याचार ,सामंती प्रवृति के होते जा रहे यादव

बिहार (नवादा ,मेसकौर):- बिहार में पिछले कुछ दिनों से दलितों पर अत्याचार का मामला बढ़ा है लेकिन इन सब मामलों में स्थिति कुछ हटकर है पहले के मामलों में ज्यादातर आरोपी सवर्ण मतलब ब्राह्मण , राजपूत , भूमिहार हुआ करते थे लेकिन बड़े दुख और अफसोस के साथ यह बताना पड़ रहा है पिछले कुछ दिनों से हुए दलित उत्पीड़न के मामलों में आरोपी यादव जाती के लोग है अभी हाल में ही हुए वैशाली जिले के राघोपुर में दलित लोगो की बस्तिया यादवो के द्वारा फूक दी गयी , एक अन्य मामला रोहतास के नासरीगंज प्रखंड के मौना गांव में भी एक अन्य मामला प्रकाश में आया जिसमे की मुस्लिम समाज के उच्च जाति के दबंग अपराधियो (खान,पठान टाइटल वाले) द्वारा ही दलितों के घरों में आग लगा दिया गया था , अभी इन सब घटनाओ को बीते कुछ दिन ही हुए की कल नवादा में दबंग यादव समाज के लोगो ने पासी परिवार को मामूली जमीन विवाद में बुरी तरह से मार कर घायल कर दिया ।दबंगो ने महादलित समुदाय के अंतर्गत आने वाले पासी जाती के परिवार की महिलाओं को भी नही छोड़ा ,महिलाओ को भी बुरी तरह मारा पीटा गया

  • बिहार सरकार के सुशासन की दावों की खुली पोल , पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रहे है दलितों पर हमले
  • बिहार पुलिस आरोपियों पर कार्रवाई के बदले पीड़ितों पर कर रही कार्रवाई
  • पहले वैशाली जिले के राघोपुर , फिर रोहतास के नासरीगंज और अब नवादा के मेसकौर में तीसरी दलित उत्पीड़न की घटना आयी प्रकाश में
  • दो बड़ी घटनाओं में आरोपित यादव जाती के लो
  • बेखौफ अपराधियो ने सभी घटनाओं में परिवार के पुरुषों के साथ साथ महिलाओ पर भी किया बुरी तरह से हमला

घटना नवादा जिले के मेसकौर थाना क्षेत्र के अंतर्गत मिर्ज़ापुर गांव की है ,जहाँ दबंगो ने 5/6/2018 दिन मंगलबार को सुबह 8 बजे घटना को अंजाम दिया ,घायल में रामस्वरूप चौधरी,दशरथ चौधरी,लखन चौधरी,मीणा देवी का कहना है कि हम लोग अपने जमीन पर घर बनाने के लिए दावा खोद रहे थे ,तभी गांव के ही यादव समाज के राजो माहतो,विनोद माहतो,रामचन्द्र माहतो,निमेष माहतो,उमेश यादव आए और लाठी से पीट कर बुरी तरह से हमलोगों को घायल कर दिया ,बड़ी मुश्किल से जान बचा कर भागे और इलाज करवाने के लिये नवादा सदर अस्पताल में भर्ती हुए । जहाँ हम लोगो ने प्रशासन को इस घटना की सूचना दिये ,वही घटना की जानकारी मिलते ही अखिल भारतीय पासी समाज,युवा मोर्चा के जिला सचिव चंदन कु. चौधरी, साथ मे विजय कुमार चौधरी पीड़ित परिवार से मिलने नवादा सदर अस्पताल पहुँचे और उचित इलाज की व्यवस्था करवाई ,अखिल भारतीय पासी समाज युवा मोर्चा ,के प्रदेश प्रधान महासचिव निशांत चौधरी के नेतृव में एक टीम घटना स्थल पर पहुँच कर परिजनों से मुलाकात की, परिजनों का भी कहना है , यादव लोग मेरी जमीन से रास्ता चाहते है जब कि उनलोगों के घर का रास्ता गांव की मेन गली से ही है ,उन लोगो की मानशिकता है हम गरीब पासी के जमीन को हड़प करने की ,साथ ही ये भी कहना है ,धटना होने के 30 घण्टे बाद भी कोई पुलिस या जनप्रतिनिधि हमारे न्याय और सुरक्षा के लिए नही पहुँचे। उन यादवो का इलाके में इतना बर्चस्व है इस गाँव के मुखिया तक हम लोगो की सहायता करने से डरते है ।

वंचितों के हिमायती थे स्व.मुरली पासवान, पूण्य तिथि पर नमन

स्व. मुरली पासवान (फ़ाइल फ़ोटो)

बिहार(बक्सर राजपुर) :- बिहार के बक्सर जिले की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले और बिहार में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के नेतृत्व में समता पार्टी के गठन में विशेष भूमिका निभाने वाले बक्सर जिले के राजपुर प्रखंड के एक प्रखर समाजसेवी और समाजवादी विचारधारा के नेता स्व. मुरली पासवान का भले ही आज के राजनीतिक गलियारों में कही नाम नही है , लेकिन एक समय ऐसा भी था जब स्व. मुरली पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ,जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव के बहुत खास हुआ करते थे और समता पार्टी जो बाद में जनता दल यूनाइटेड में विलय हो गयी उसके गठन में विशेष भूमिका थी

  1. समता पार्टी के गठन में थी विशेष भूमिका
  2. वंचित तबकों दलित पिछडो अल्पसंख्यको के विकाश और सामाजिक न्याय में रखते थे विश्वास
  3. राजनीतिक प्रतिद्वंदीता के कारण एक साजिश के तहत हुई हत्या।

पत्नी स्व. श्यामप्यारी देवी बनी राजपुर की विधायक

जी हा हम बात कर रहे है राजपुर की पूर्व विधायिका स्व. श्यामप्यारी देवी के पति स्व. मुरली पासवान की , अपने समय के प्रखर समाजसेवी और नेता जो समाजवाद के सिद्धांत में विश्वास रखते थे और हमेशा शोषित ,पीड़ित और दबे कुचले लोगो के हित की बात और सामाजिक न्याय की लड़ाई करते थे , आज उनकी पुण्य तिथि है ,आज ही के दिन 6जून1996 को राजनीतिक प्रतिद्वंदीता के कारण एक साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी गयी ,जब वे पटना से वापस अपने गाँव आ रहे थे , आज उनके शहादत दिवस के अवसर पर उनके सुपुत्र धर्मपाल पासवान से बातचीत में बताया गया कि उस समय के दौर में मुरली पासवान का नाम बिहार की राजनीति में एक खासा नाम हुआ करता था , पूरे प्रदेश में उनकी एक अलग ही छवि थी और बक्सर जिले में आज भी लोग उनको याद करते है और उनके नेतृत्व का लोहा मानते है जो कभी उनके शागिर्द हुआ करते थे , आज भले ही उनका बिहार के राजनीति में कही नाम नही है लेकिन अपने जमाने के वे एक अनुभवी राजनीतिज्ञ थे और समता पार्टी के गठन में उनकी विशेष भूमिका थी यही कारण था कि वे जॉर्ज फर्नांडिस, नीतिश कुमार और शरद यादव के सबसे खास थे , बाद में उनकी पत्नी राजपुर विधानसभा की पूर्व विधायिका स्व. श्यामप्यारी देवी को जदयू ने टिकट दिया और वो जीतकर विधानसभा पहुची ,

उनके राजनीतिक विरासत को संभाल रहे उनके सुपुत्र धर्मपाल पासवान

आज उनके सुपुत्र धर्मपाल पासवान भी अपने पिता स्व. मुरली पासवान की राजनैतिक विरासत को संभालते हुए बिहार की राजनीति और समाजसेवा में सक्रिय है और अभी भीम आर्मी बिहार के प्रदेश महासचिव पद पर है और दलित पिछडो और अल्पसंख्यको के मुद्दों पर शासन और प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाते रहते है ।

भोजपुर बिहार के शहीद जवान मुजाहिद खान की याद में आखिल भारतीय अंबेडकर कल्याण संघ द्वारा निकाला गया कैंडल मार्च !

नोखा /रोहतास /बिहार।:- जम्मू के सुजवां कैम्प में आतंकी हमले से शहीद हुए जवान भोजपुर जिले के पिरो निवासी खैरा खान के पुत्र मुजाहिद खान के शहादत पर नोखा में भी, अखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ के राष्ट्रीय अध्य्क्ष अरविंद चक्रवर्ती द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया और जम कर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। कैंडल मार्च नोखा के पश्चिम पट्टी से निकल कर मुख्य बाजार होते हुए काली मंदिर बस स्टैंड पहुच कर समाप्त हो गईं।

जुलूस में शामिल मुस्लिम युवा वर्गों के लोगो के साथ साथ बुजुर्ग वर्गों के लोगो मे भी पाकिस्तान के विरुद्ध भारी आक्रोश था,अरविंद चक्रवर्ती,राजा राम पटेल ,हाजी हसामुदिन,आफताब आलम,जय प्रकाश सिंह(प्रधानाध्यापक) शिवजी यादव,विरेंदर यादव, अशोक कुशवाहा,मो0 समीम मांशूरी,इरसाद आलम, इम्तियाज अंसारी, मकसूद हासमी, अख्तर आलम,सोनू आलम,मनसा सहित सैकड़ों लोगों ने इस कैंडल मार्च में भाग लिया , ईस मौके पर संघ के अध्य्क्ष अरविंद कुमार चक्रवर्ती ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा शहीद मुजाहिद खान के साथ भेदभाव किया गया है ,कुछ दिन पहले एक शहीद की पत्नी को ११ग्यारह लाख का मदद बिहार सरकार द्वारा किया गया था ,लेकिन शहीद मुजाहिद खान के परिजनों को मात्र पाच लाख मदद की ही पेशकश की गई है जो कि शहीद मुजाहिद खान के साथ बिहार सरकार के भेदभाव को उजागर करती है।प्रदेश अध्य्क्ष बिरेन्द्र यादव ने कहा कि एक के बदले दस सर लाने का वादा करके सरकार बनाने वाले के मोदी के शासन मे पाकिस्तान द्वारा लगातार सीजफायर का उल्लंघन किया जाता रहा है जिसके कारण हमारे जवान शहीद हो रहे है , कैंडल मार्च में आखिल भारतीय अंबेडकर कल्याण संघ के  कार्यकर्ताओं सहित सैकड़ो लोग शामिल हुए 

दिलिप सरोज को न्याय दिलाने को आखिल भारतीय अंबेडकर कल्याण संघ ने सासाराम मे निकाला कैंडल मार्च

बिहार रोहतास सासाराम:- आज दिनांक 14/02/2018 दिन बुधवार संध्या करीब 6बजे रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम में ईलाहाबाद के एक दलित एलएलबी छात्र दिलिप सरोज की की गई नृशंस हत्या के विरोध में आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ के तत्वाधान में कैंडल मार्च निकाला गया, यह कैंडल मार्च पोस्ट आफिस चौक से होते हुए धर्मशाला चौक तक निकाला गया ।

ईस मौके पर संघ के ऱाष्ट्रीय अध्यछ अरविंद कुमार चक्रवर्ती ने युपी सीएम योगी पर तंज कसते हुए कहा कि योगी सरकार मे अपराधमुक्त समाज निर्माण के नाम पर दलित पिछड़ों और मुस्लिमों का एनकाउंटर किया जा रहा है बावजुद ईसके अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है । संघ के विधिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यछ उमेश कुमार ने कहा कि हिंसा की सारी घटनाए दलित पिछड़ों के खिलाफ ही हो रही है । 


मौके पर संघ के प्रदेश अध्यछ विरेन्द्र यादव, मिडिया प्रभारी सह राष्ट्रीय सचिव अमित कुमार ,विरेन्द्र कुशवाहा, कृष्णा पटेल , अर्जुन कुमार चौधरी, आलोक यादव , अरुण कुमार मिश्रा, शुभम यादव, राज यादव, सोनु यादव, एजाज आलम, मो.आमिर अली, फरहान अख्तर,सोनु यादव , शोएब,संदीप,राहुल यादव, अंकुश यादव, गोल्डन यादव, राहुल यादव, शिटु कुमार , मितांशु , बाबुलाल सिंह, सिकंदर यादव, प्रितम यादव, राजकुमार यादव  सहित संघ के सैकडों कार्यकर्ता मौजुद थे ।

भीमा कोरेगाव दलित हमले के विरोध में बिहार के सासाराम में पीएम मोदी और सीएम फणनवीस का हुआ पुतला दहन !

बिहार (सासाराम) :- महाराष्ट्र के पूना भीमा कोरेगाव में हुए दलित हमलो को लेकर देश भर में हो रहे विरोध का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है , देशभर के कोने कोने से तमाम बहुजन संगठन आगे आ रहे है और इस घटना के विरोध में धरना प्रदर्शन , प्रतिरोध मार्च और पुतला दहन कर रहे है और केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार से इस घटना की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे है

इसी कड़ी में आज बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम शहर जिसका अपना एक एतिहासिक महत्व भी रहा है जिसे शेरशाह सूरी की धरती भी कहा जाता है ,में महाराष्ट्र पूना भीमा कोरेगाव दलित हमलो के विरोध में आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ और भीम आर्मी रोहतास के संयुक्त तत्वाधान में प्रतिरोध मार्च और पीएम नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फणनवीस का पुतला दहन किया गया

इस कार्यकम में उपस्थित सभी लोग सासाराम शहर के तकिया मोहल्ले से प्रतिरोध मार्च करते हुए शहर के पोस्टऑफिस चौराहे पर पहुचे , जहा पर उपस्थित सैकड़ो लोगो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस का पुतला दहन किया

इस कार्यक्रम में  मुख्य रूप से आखिल भारतीय अम्बेडकर कल्याण संघ के राष्ट्रिय अध्यक्ष अरविन्द कुमार चक्रवर्ती , भीम आर्मी रोहतास के जिला अध्यक्ष कृष्ण आनन्द , बिरेन्द्र यादव , रविरंजन पासवान , अविनास कुमार पिंटू , इम्ताय्जुल हक़ , अम्बेडकर कल्याण संघ के मीडिया प्रभारी अमित कुमार , धर्मपाल पासवान और तमाम सैकड़ो अम्बेडकरवादी मौजूद थे , सबने एक स्वर में कहा की जबसे केंद्र में भाजपा की सरकार आई है , दलितों पर हमले बढ़ गये है गुजरात के उना और महराष्ट्र के भीमा कोरेगाव हमलो का जिक्र करते हुए लोगो ने कहा की देश में बीजेपी शाषित प्रदेशो में दलित पर हमले और उत्पीडन ज्यादा होते है , अगर समय रहते दलितों पर हमले नही रुके तो जनक्रांति होगी ,