शहीद वाल पर वीरांगना उदा देवी पासी तस्वीर के नीचे शीतल जल  का उदघाटन


इलाहाबाद में  पासी समाज के लोगों ने जिस शहीद ऊदादेवी पासी की तस्वीर को शहीद वाल सिविल लाइंस में लगाया था।
 उसी के नीचे निशुल्क शीतल जल की व्यवस्था का उद्घाटन माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पंकज मित्तल ने किया।

आपको बता दे कि श्री पासी सत्ता पत्रिका द्वारा तैयार वीरांगना ऊदा देवी पासी की जीवनी व चित्र के साथ 16 नवम्बर2016 की पूर्व संध्या पर पासी समाज के नवयुवकों ने शहीद वाल पर स्थापित किया था। 

यह शहीद वाल सिविल लाइन बस स्टॉप के सामने हिन्दू इंटर कालेज की दीवाल पर बनाया गया है। इसे देखने वाले लोग आते रहते है। गर्मी आते ही न्यायधीश पंकज मित्तल ने इसी तस्वीर के नीचे एक शीतल प्याऊ का उदघाटन किये। 

आप भी उधर गुजरे तो ठंडा पानी पीकर जाएं । 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा के लिए राज्य सरकार उत्तरदायी। दोषियों के खिलाफ हो सख़्त कार्यवाई  –स्वराज इंडिया 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिला में अप्रैल महीने से ही असुरक्षा व हिंसा का माहौल बना हुआ है। अम्बेडकर जयंती पर समाज सुधारकों की मूर्तियां स्थापित करने से रोका गया और इजाजत न होने का बहाना बनाया गया।  यही सवाल फिर 5 मई को महाराणा प्रताप के जन्मदिन के अवसर पर उठाया गया। दबंगों द्वारा लोगों के घर जलाए गए, मारपीट की गयी और जातीय पहचान के मंदिर को नुकसान पहुँचाया गया। 
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि समाज में कितना जातीय द्वेष फैला हुआ है। ऐसी घटनायें इस बात का भी सबूत हैं कि सरकार समाज में समरसता स्थापित करने और जातीय द्वेष को मिटाने में नाकामयाबी साबित हुई है। हिंसा की इन घटनाओं के खिलाफ 9 मई को जब प्रदर्शन हुआ तो उस पर पुलिस ने ताकत का इस्तेमाल किया और उग्र टकराव हुआ।
स्वराज इंडिया राज्य सरकार से पूछना चाहती है कि समाज में समता व जीने के अधिकार की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह करने में असफल हुई सरकार अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करते हुए घटना की जिम्मेवारी लेगी या नहीं? आज समाज के ज्यादा ताकतवर वर्ग द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों पर हमला किया जा रहा है और किसी व्यक्ति या समूह के सम्मानजनक जीने के सांवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश की जा रही है। 
सहारनपुर की यह हिंसक घटना बताती है कि यदि इस तरह के हमले रोकने में राज्य सरकार नकारा साबित होती है तो पीड़ित समाज की तरफ से प्रतिक्रिया होना अवश्यम्भावी है जिससे संघर्ष की चिंगारियाँ उठने की आशंका बनी रहेगी। इससे समाज में पहले से व्याप्त असुरक्षा और अधिक बढ़ेगी। 
इन हालातों के लिए राज्य व केंद्र सरकार हर हालात में उत्तरदायी होंगी। इसके दो कारण हैं। एक, समाज में हिंसा व जातीय दायित्व का मौजूद होना; और  दूसरा, राज्य सरकार की वह समझ जो जातीय श्रेष्ठता व वर्चस्व के विचार को मजबूत करने के पक्ष में दिखती है। ऐसे में, स्वराज इंडिया समाज में अमन व बराबरी के पक्ष में खड़े व्यक्ति व समूह  से आह्वान करती है कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ संघर्ष के लिए पूरी ताकत के साथ उतरें।

शहीद ओम प्रकाश पासवान के दूसरे बेटे विमलेश पासवान भी बांसगांव से बने विधायक 

(शहीद ओम प्रकाश पासवान जी अपने पुत्र कमलेश और विमलेश पासवान के साथ)

गोरखपुर  : पूर्व विधायक ओम प्रकाश पासवान के छोटे बेटे और बीजेपी के संसद कमलेश पासवान के भाई विमलेश पासवान भी भाजपा के टिकट पर विधान सभा पँहुच गये है। 36 साल के युवा विमलेश ब्लॉक प्रमुख रहते हुए विधान सभा का चुनाव ज़ीतने में सफल हुए है। 
बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेक्चररशिप की नौकरी छोड़ डॉ विमलेश पासवान ने अभी संपन्न हुए विधान सभा के चुनाव में जिले की बांसगांव विधान सभा की सीट जीत ली है। यह सीट इनके परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है । 
गौरतलब है की पूर्वांचल में लोकप्रिय व दबंग नेता   पूर्व विधायक ओम प्रकाश पासवान की बम मारकर हत्या कर दी गई थी। पिता की हत्या के वक्त विमलेश की उम्र 14 साल थी और दिल्ली में पढ़ाई करते थे और उसके बाद वह गोरखपुर में ही पढ़ाई शुरू कर दिए।
पासवान जी की हत्या के बाद उनकी माँ सुभावती पासवान को जनता ने सहानुभूति लहर में सत्ता सौंपी। साथ ही चाचा चंद्रेश पासवान भी मानीराम विधान सभा से विधायक चुनकर सत्ता के गलियारे में भेजा। विमलेश पासवान ने किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एमडीएमएस (मैक्सिलो फेशियल सर्जन) किया है।

माँ के राजनीतिक सन्यास के बाद उनके बड़े भाई कमलेश पासवान बांसगांव से बीजेपी से दो बार से सांसद हैं, जबकि मां सुभावती भी विधायक रह चुकी हैं। ऐसे में लाज़मी है कि जब पूरा कुनबा ही राजनितिक रहा हो तो एक बेटा क्यों न राजनीतिक ककहरा पढ़ेगा।
विमिलेश की पत्नी डॉक्टर मोहिता पासवान भी जबलपुर मेडिकल कालेज से बी डी एस कर दन्त चिकित्सा के पेशे से जुडी है और अपने आवास में ही क्लीनिक चलाती है।

विमलेश पासवान राजनितिक रूप से काफी समृद्ध है। उनके पिता ओम प्रकाश पासवान 1979 से लेकर दस वर्षो तक लगातार चरगांवा ब्लाक के प्रमुख थे।  यही से उनका राजनीतिक सफ़र गोरक्षनाथ मंदिर के साये में रहकर मानीराम विधानसभा क्षेत्र से 1989-1991 और 1993 में लगातार विधायक और 1996 में सपा के बैंनर तले सांसदी का सफ़र शुरू हुआ।  जहां 1996 में बांसगांव से लोकसभा चुनाव में सभा के दौरान बांसगांव क्षेत्र में कुख्यात अपराधी राकेश यादव ने बम मारकर उनकी हत्या कर दी थी। पासी समाज में जन्मे अमर शहीद ओम प्रकाश जी का परिवार राजनीतिक रूप से जनता की सेवा करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। गरीबो के मशीहा ओम प्रकाश का 25 मार्च को 21 पुण्यतिथि मनाई गयी । उनके पूण्य तिथि पर नमन

इण्डिया गेट का इतिहास और अमर जवान ज्योति 

(दिल्ली इण्डिया गेट पर श्रीपासी सत्ता की टीम में क्रमशः संजीव ,प्रमोद,संपादक अजय,और चन्द्रसेन विमल जी)

अमर जवान ज्योति ( अमर योद्धाओं की लौ ) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उन भारत के सैनिकों के लिए जिन्होंने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अपनी जान गंवाई, का सम्मान करने के लिए बनाया गया 
अमर जवान ज्योति काले संगमरमर से बना है और एक बंदूक और चोटी पर एक सैनिक की टोपी है. अमर जवान ज्योति इंडिया गेट के बगल में स्थित है. ये उन सैनिकों को याद करने के लिए बना था जिनकी भारत-पाक युद्ध में मृत्यु हो गई थी. तब से यह अभी तक जल रहा है.
1971 से अमर जवान ज्योति लगातार जल रही है.1971 से पाकिस्तान से युद्ध के बाद अमर जवान ज्योति जली.काफी समय से LPG से अमर जवान ज्योति जलती रही, अब PNG से जलती है.कस्तूरबा गांधी मार्ग से इंडिया गेट तक 500 मीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछी है.26 जनवरी और 15 अगस्त को अमर जवान ज्योति पर सभी चारों ज्योति जलती है.आम दिनों में सिर्फ एक ज्योति जलती है.26 जनवरी पर देश के पीएम परेड से पहले अमर जवान ज्योति पर पहुंच शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं.

यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्‍ली शहर भारत की राजधानी है जो प्राचीन और गतिशील इतिहास के साथ एक चमकदार आधुनिक शहर है। इस शहर में बहुपक्षीय संस्‍कृति है जो पूरे राष्‍ट्र का एक लघु ब्रह्मान्‍ड कहा जा सकता है। इस शहर में एक साथ दो अनोखे अनुभव होते हैं, नई दिल्‍ली अपनी चौड़ी सड़कों और ऊंची इमारतों के साथ एक समकालीन शहर होने का अनुभव कराता है जबकि पुरानी दिल्‍ली की सड़कों पर चलते हुए आप एक पुराने युग का नजारा ले सकते हैं, जहां तंग गलियां और पुरानी हवेलियां देखाई देती हैं। दिल्‍ली में हजारों पुराने ऐतिहासिक स्‍मारक और धार्मिक महत्‍व के स्‍थान हैं।

शहर के महत्‍वपूर्ण स्‍मारक, इंडिया गेट 80,000 से अधिक भारतीय सैनिकों की याद में निर्मित किया गया था जिन्‍होंने प्रथम विश्‍वयुद्ध में वीरगति पाई थी। यह स्‍मारक 42 मीटर ऊंची आर्च से सज्जित है और इसे प्रसिद्ध वास्‍तुकार एडविन ल्‍यूटियन्‍स ने डिजाइन किया था। इंडिया गेट को पहले अखिल भारतीय युद्ध स्‍मृति के नाम से जाना जाता था। इंडिया गेट की डिजाइन इसके फ्रांसीसी प्रतिरूप स्‍मारक आर्क – डी – ट्रायोम्‍फ के समान है।
यह इमारत लाल पत्‍थर से बनी हैं जो एक विशाल ढांचे के मंच पर खड़ी है। इसके आर्च के ऊपर दोनों ओर इंडिया लिखा है। इसके दीवारों पर 70,000 से अधिक भारतीय सैनिकों के नाम शिल्पित किए गए हैं, जिनकी याद में इसे बनाया गया है। इसके शीर्ष पर उथला गोलाकार बाउलनुमा आकार है जिसे विशेष अवसरों पर जलते हुए तेल से भरने के लिए बनाया गया था।
इंडिया गेट के बेस पर एक अन्‍य स्‍मारक, अमर जवान ज्‍योति है, जिसे स्‍वतंत्रता के बाद जोड़ा गया था। यहां निरंतर एक ज्‍वाला जलती है जो उन अंजान सैनिकों की याद में है जिन्‍होंने इस राष्‍ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
इसके आस पास हरे भरे मैदान, बच्‍चों का उद्यान और प्रसिद्ध बोट क्‍लब इसे एक उपयुक्‍त पिकनिक स्‍थल बनाते हैं। इंडिया गेट के फव्‍वारे के पास बहती शाम की ठण्डी हवा ढेर सारे दर्शकों को यहां आकर्षित करती हैं। शाम के समय इंडिया गेट के चारों ओर लगी रोशनियों से इसे प्रकाशमान किया जाता है जिससे एक भव्‍य दृश्‍य बनता है। स्‍मारक के पास खड़े होकर राष्‍ट्रपति भवन का नज़ारा लिया जा सकता है। सुंदरतापूर्वक रोशनी से भरे हुए इस स्‍मारक के पीछे काला होता आकाश इसे एक यादगार पृष्‍ठभूमि प्रदान करता है। दिन के प्रकाश में भी इंडिया गेट और राष्‍ट्रपति भवन के बीच एक मनोहारी दृश्‍य दिखाई देता है। 

हर वर्ष 26 जनवरी को इंडिया गेट गणतंत्र दिवस की परेड का गवाह बनता है जहां आधुनिकतम रक्षा प्रौद्योगिकी के उन्‍नयन का प्रदर्शन किया जाता है। यहां आयोजित की जाने वाली परेड भारत देश की रंगीन और विविध सांस्‍कृतिक विरासत की झलक भी दिखाती है, जिसमें देश भर से आए हुए कलाकार इस अवसर पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

प्रस्तुति- संजीव कुमार (प्रतियोगी छात्र ) नई दिल्ली

सामाजिक न्याय के अधिकांश नेता पैसा बनाने में लग गए –सांसद शरद यादव 

भारतीय  राजनीती को सामाजिक न्याय से सींचने और उसे पालने तक के संघर्ष  में ,जो काम शरद यादव जी द्वारा किया गया है  वह मील का पत्थर है।  आज उनके आवास 7 तुगलक रोड  नई दिल्ली पर मुलाक़ात करके बहुजन राजनीती की सौदागरी करने और सामाजिक न्याय की राजनीति को पीछे करने वाले नेताओं पर चर्चा शुरू किया तो वे बेबाकी से बोले ऐसे लोग केवल पैसा बनाने में लगे है। और अपने परिवार ,जाति तक सीमित हो गए है। इन्हें सिर्फ पैसा बनाने से मतलब रह गया है । राज्यसभा में अपने दोनों बगल बैठने वाले नेता मायावती और रामगोपाल पर प्रश्न पूछने पर उन्होंने कहा कि दोनों को हार का कोई गम नहीं दोनों मस्त रहते है। 
ईवीएम घोटाले पर चर्चा करते हुए  उन्होंने कहा बहुजन राजनीति से भटक कर ब्राह्मणों के वोट की लालच में सब बर्बाद कर दिए और अब ईवीएम को दोष  देकर बचना चाहते है। अब इनके भरोसे बहुजन राजनीति गर्त में ही जायेगी। सामाजिक न्याय की राजनीती करने वाले लोग अपनी अपनी जातियों तक सीमिति होते जा रहे है। युवाओं को बड़ा दिल रखना होगा। सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष करना होगा। 

दिल्ली से #बहुजन बचाओ अभियान’ के लिए अजय प्रकाश सरोज

पासी और महार जाति एक समान है , जानिए कैसे ?

कई विद्ववानों के शोध में यह बात  सामने आई  है कि पासी राजवंश और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी का वंश  एक ही व्रक्ष कि दो शाखाएँ हैं। 

इस बात की पुष्टि के लिए दोनों में समानताओं पर द्रष्टिपात करिए

1- महार जाति की उत्पत्ति डा0 अंबेडकर के अनुसार नागकुल से हुई है अर्थात महार नाग कुल की एक शाखा है उसी तरह पासी की उत्पत्ति भी नाग कुल से हुई है 

2- नई खोजों के अनुसार पासी शब्द भारशिव नागवंशी टाक शाखा से निकल कर गुप्तकालीन दंड-पाशिक से पासी या भर-पासी बना फिर नवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में राजपासी के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था। महार भी टाकवंशी नाग हैं। (people of Indian)

3- उ0प्र0में पासी लोगों का मुख्य कार्य शासन से बाहर होने के बाद चौकीदारी या ताड़ी निकालना पाया जाता है। महार जाति का भी मुख्य पेशा चौकीदारी पाया जाता है। 

4- पासी जाती का मुख्य गढ़ मुख्यतः उ0प्र0 और बिहार हैं तो महार जाति ,का गढ़ महाराष्ट्र है 

5- महाराष्ट्र में महार धरतीपुत्र कहे जाते हैं उ0प्र0 में पासी शासकों की भूमिका निभा चुके हैं 

6- दोनों ही जातियाँ अपराधशील रह चुकी हैं। 

7- महारों ने 1925 कट यातना झेलीं तो पासियों ने अगस्त 1952 तक जरायम एक्ट की लंबी अवधि पार की। 

8- पासी और महरों का रक्त ग्रुप ए,बी,ओ है

9- वीरता के गुण पासी और महारों में समान रूप से पाया जाता है। पासी तो दंडपासी ही था 

10- इसी लिए कहा जाता है की पासी का लट्ठ पठान ही झेले श्री अमृतलाल ने ‘एकदा नैमिषारण्य’ उपन्यास में कहा है कि बनवासी समाज को वश  में करने के किए पहेले भर और पासी लठैत भर्ती किए। महार जाती का नाम भी काठी वाला अर्थात काठीवाला कहलाता है। काठ का अर्थ लकड़ी होता है। ‘Kathi wala means man with  a stick which is word inductive of his profession 

11- उ0प्र0 में पासी यदि राजवाशी कहलाते हैं तो महार लोग सोमवंशी हैं। यानी शिव भूषण चंद्र के वंशज। पासी तो भारशिव वंशज हैं ही। 

12. पासी जाति के लोग अलग अलग टाईटल से देश के 14 राज्यो में पाये जाते है। 

(स्रोत -इतिहासकार राम दयाल वर्मा की पुस्तक, विखरा राजवंश और  भारशिव राजवंशानाम से लिया गया है। ) 

आज़ादी के बाद प्रदेश के मंत्रीमण्डल में पासी समाज को जगह क्यों नहीं ? पढ़िए पूरा लेख़

“राजनाथ टीम के पासी नेता मंत्रीमण्डल से आउट,  स्मृति ईरानी कोटे से सुरेश पासी को बनाया गया है राज्यमंत्री”

उत्तर प्रदेश के नवगठित मंत्री मण्डल में आज़ादी के बाद पहली बार किसी पासी नेता क्यों नहीं लिया गया ? इस प्रश्न का ज़बाब खोजने बैठा तो कुछ सूझ नहीं रहा, मन में सवाल उठ रहा था कि भाजपा जो ‘सबका साथ ,सबका विकास ‘के साथ सामाजिक और जातीय समरसता की दुहाई आजकल कुछ ज्यादा ही दे रही है तो ऐसे में प्रदेश की अनुसूचित जाति में 25 प्रतिशत हिस्सा रखने वाली जाति ‘पासी’ को असन्तुष्ट क्यों करेगी ? जबकि भाजपा के रणनीतिकार इस बात से बिल्कुल परिचित है पूरे अवध क्षेत्रों में भारी मात्रा में फैले पासी जाति की संख्या प्रदेश की 125 से ज्यादा विधानसभाओं में निर्णायक भूमिका में है।

चुनाव पूर्व इसी को ध्यान में रखकर भाजपा ने पासी जाति के जूझारू नेता सांसद कौशल किशोर को अनुसूचित मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इसके अलावा रामनरेश रावत को पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर पासी नेताओ  की गोलबंदी की । यह सभी गृहमंत्री राजनाथ के समर्थक के तौर पर पहचाने जाते है। 
बावजूद इसके प्रदेश भर में पासियों का एक हिस्सा बीएस4 के अध्यक्ष पूर्व मंत्री आरके चौधरी के साथ लगा रहा । जिसे साधने के लिए भाजपा  ने चौधरी की सीट मोहनलालगंज में गठबंधन कर बीएस4 के लिए छोड़ दिया । यह अब सपा बसपा से उपेक्षित हुआ पासी समाज आस्वस्थ हो गया कि भाजपा में  पासियो का सम्मान बढेगा, उसके नेताओं को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा । इस सोच के साथ प्रदेश का 80 प्रतिशत पासी समाज भाजपा को अपना मतदान किया , और भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गई । लेकिन दुर्भाग्य से बीएस4 के अध्यक्ष आरके चौधरी चुनाव हार गए।
लेकिन भाजपा के टिकट पर 20 विधायक पासी समाज से चुनकर आये। समाज के चिंतक कयास लगा रहे थे कि नवगठित मंत्रीमंडल में पासी समाज से कम से कम 2 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्री बनाये जा सकते है। यह संभावना और बढ़ गई जब राजनाथ सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाये जाने चर्चा हुई। 
परन्तु बीजेपी नेतृत्व ने बड़े नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्य नाथ को बना दिया। और राजनाथ सिंह के प्रभाव को कम करने के लिए  योगी ने भारी मतों से जीते उनके बेटे पंकज सिंह को मंत्री मंडल मे जगह नहीं दी । जिसकी नाराजगी शपथ ग्रहण समारोह राजनाथ जी के चेहरें पर दिखी । अब आप समझ सकते है कि जब उनके बेटे को मन्त्री मण्डल में जगह नहीं तो उनके चाहने वाले पासी नेता कैसे ? 

इससे इतर अमेठी के जगदीशपुर विधानसभा के युवा विधायक सुरेश पासी को स्मृति ईरानी से की वफादारी का इनाम मिला क्योकि ब्लाक प्रमुख रहते हुए लोकसभा के चुनाव में सुरेश ने अपना ब्लाक उन्हें जिताया था। स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र अमेठी पासी बाहुल इलाका है जिसे साधने के लिए सुरेश पासी को राज्यमंत्री बनाया गया है। 

पासी समाज के साथ हुई इस उपेक्षा से  समाज का बुद्धजीवी तपका आक्रोशित है । लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ा है उसे लग रहा है कि मंत्री मंडल के विस्तार में पासी समाज को कैबिनेट जगह मिलेंगी । अंत में उपेक्षित भाजपाई पासी नेताओ को शुभकामना सम्भावनाओ के खेल राजनीति में कुछ भी हो सकता है।

लेख़क -अजय प्रकाश सरोज ( सम्पादक -श्री पासी सत्ता) whatsap no. 9838703861


 पासी समाज के साथ भाजपा ने की गद्दारी ,कैबिनेट में नहीं किया पासी को शामिल , सुरेश पासी को अंतिम में  दिलाई गई राज्यमंत्री की शपथ  

उत्तर प्रदेश की गठित नई सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और  दो उप मुख्यमंत्रियों सहित 44 मंन्त्रियो ने आज शपथ ली  है। जिनमे अधिकांश सवर्ण ही कैबिनेट में शामिल किये गए है।  उत्तर प्रदेश में अनुसूचित समाज में 25 प्रतिशत की बड़ी आबादी वाली जाति पासी के साथ भाजपा ने बड़ा धोखा किया है। यह समाज अबकी बार जमकर भाजपा को वोट किया है। लेकिन इस समाज से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया।

आजादी के बाद पहली बार यह भेदभाव है जब प्रदेश की सरकार में पासी समाज का कोई भी नेता  कैबिनेट मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। जबकि पासी समाज से 20 विधायक भाजपा के टिकट पर जीते हुये है। यह माना जा रहा है कि अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद कौशल किशोर पासी समाज को सरकार में भागीदारी दिलाने में नाकाम  रहे । 
सपा और बसपा के जातिवादी मानसिकता से त्रस्त होकर पासी समाज के लोगो ने इस बार सामाजिक समरसता की बात करने वाली भाजपा को वोट दिया कि ,पासी समाज को सत्ता में भागीदारी मिलेगी। 

पासी वोट पाने के बाद मनुवादी ब्यवस्था से ग्रसित सवर्ण भाजपाई वर्षो से सत्ता के वनवास से लौटे है। उनकी भूख का अंदाजा उनकी कैबिनेट को देखकर लगा सकते है। फैज़ाबाद में टीवी देंख रहे एक बुद्धजीवी ने फोन पर बताये कि अंतिम दौर में एक सुरेश पासी नाम के युवक को राज्यमंत्री का शपथ दिलाया गया है। 

पूर्व मंत्री बैजनाथ रावत, पूर्व एमएलसी व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष  राम नरेश रावत, कृष्णा पासवान , पूर्व सांसद कमलरानी ,रामपाल वर्मा पासी समाज के वरिष्ठ नेता व बीजेपी विधायक है जिनके मंत्री बनने की प्रबल संभावना थीं

लेकिन भाजपा का अनुसूचित विरोधी मानसिकता ही कहा जा सकता है  कि पासी समाज के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर पासी चिंतको के बीच चर्चा गर्म है। कोई सुरेश पासी को बधाई देने में मस्त है तो कोई कैबिनेट में समाज की उपेक्षा से दुखी है। पासी समाज के बौद्धिक तपके की मानें तो बीजेपी का यह रवैया बर्दास्त के लायक नहीं है। लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए वरना परिणाम घातक होते है। —-अजय प्रकाश सरोज( संपादक -श्रीपासी सत्ता) 

​कमलरानी को मिल सकता है उत्तर प्रदेश की नई सरकार में  बड़ी जिम्मेदारी 

कानपुर / किसी-किसी के जीवन में राजयोग होता है तो आता है, जाता है और फिर आता है। सुश्री कमलरानी ने राजनीति में पहला कदम सीसामऊ, कानपुर से भाजपा सभासद के रूप में रखा और वर्ष 1996 म़े वहीं से सीधे घाटमपुर लोक सभा से सांसद के रूप में शोभायमान हुईं।  हलाकि 11 वीं लोकसभा अल्प अवधि की रही। सत्र 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए तो घाटमपुर से ही वें 12 वीं लोकसभा की फिर सांसद चुनी गयीं। अब हाल में हुए उ०प्र० विधानसभा चुनाव में घाटमपुर से ही भाजपा विधायक चुनी गई हैं ।        

(अपनी बेटी ट्विंकल के साथ नव निर्वाचित विधायक कमलरानी जी )

कानपुर के 218 ,घाटमपुर क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी कमलरानी ने 45000 के रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर ली है।  इसके पहले भी वह लोक सभा में इस सीट को पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लिए जीत चुकी हैं और कमलरानी भाजपा की वरिष्ठ नेता है जो कि अटल जी के काफी करीब मानी जाती हैं । जिन्होनें महिला सशक्तिकरण तथा युवा कल्याण के लिए अपने सांसद कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं | बीजेपी हमेसा से ही अपने पुराने कार्यकर्ताओ मंत्रियो, नेताओ का सम्मान करती है और उनके ऊपर अत्यधिक विश्वास भी करती है | इसलिए कयास लगाये जा रहे है की दो बार लोकसभा में सांसद रही पासी समाज से सम्बन्ध रखने वाली कमलरानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है |  

कमल रानी जी दो बार लोकसभा सांसद रही हैं | कमल रानी जी के अनुसार वे हमेशा ही पार्टी के आदर्शों पर चलते हुए जीत हांसिल की है ।  कमल रानी अपनी जीत का श्रेय जनता और प्रधानमंत्री मोदी का कामकाज को बताती है।  उनकी शक्शियत अपने आप में अलग है उन्हें देश की जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत दे कर देश की जनता ने हमारी पार्टी पर विश्वास दिखाया है जिसे हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन  में जनता के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे | घाटमपुर की जनता के सभी वर्गों ने उन पर भरोसा किया और अपना अमूल्य समर्थन देकर वोट किया | 
उन्होंने  अपने द्वारा किये गए कामो के बारे में बताया था कि हमने अपना अनुदान यहाँ तबसे दिया है जब हम यहाँ सांसद हुए थे | उस समय हमें केवल डेढ़ वर्ष का समय मिला था | इतने कम  समय में  किये गए कामो को लोग आज तक याद करते है | अब इस बार हम 18 वर्ष के अन्तराल पर चुनाव लड़ रहे है | लोगो को पता है कि अगर इतने कम समय मिलने पर हमने घाटमपुर का विकास किया है | तो आगे आने वाले समय में भी यहाँ का विकास करेंगी | इसलिए जनता हमारा समर्थन करती है।  कमलरानी जी मूलरूप से बाराबंकी की रहने वाली है । उनकी शादी कानपुर जिले में हुई है। वे अपनी राजनीतिक पारी भाजपा से एक सभासद के रूप में शुरू की है। 

(उनका यह चित्र वर्ष 2008 में लेखक व कथाकार बृज मोहन जी द्वारा एक निजी समारोह में लिया गया है। जिसमे लेखक की पत्नी श्रीमती मनोरमा मोहन जी पीछे बैठी है।  ) 

धर्मेंद्र भारतीय का असिस्टेंट प्रोफ़ेसर में चयन

इलाहाबाद निवासी धर्मेंद्र कुमार भारतीय हिंदी अर्थशास्त्र,समाजकार्य , विषयों में परास्नातक के साथ ही शिक्षाशास्त्र से नेट( NET )है। इसके अलावा बीएड, एम.एड, एम.फिल की डिग्रियां भी प्रॉप्त की है। धर्मेंद्र अब तक 11 राष्ट्रीय और 2 अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग ले चुके है। कई शोध पत्रिकाओं में इनके लेख भी छपे है। कल उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी रिजल्ट में धर्मेन्द्र का चयन शिक्षाशास्त्र के लिए हुआ है।
वर्तमान में आप सीतापुर जिले में एक इंटर कॉलेज में लगभग छः वर्षो से अर्थ शास्त्र के प्रवक्ता पद पर शिक्षण कार्य कर रहें  है। इनके चयन से कॉलेज के शिक्षक और बच्चे भी ख़ुशी है।

अध्यापन के साथ आप सामाजिक संघठनो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते है। इनकी सामाजिक सक्रियता को देंखकर माध्यमिक शिक्षक संघ ने सीतापुर का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। जिसकी जिम्मेदारी बख़ूबी  निभा रहे है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान आप छात्र महापरिषद के सदस्य भी रह चुके है। मूलतः  ग्राम दलापुर,पोस्ट हनुमानगंज के रहने वाले धर्मेंद्र के पिता श्री सूर्यदीन भारतीय का देहावसान हो चुका है। माता श्रीमती बड़का देवी गांव में ही रहती है। जबकि एजी ऑफिस में सीनियर ऑडिटर बड़े भाई अरविन्द पत्नी सीमा भारतीय और बच्चों के संग शहर के अशोक नगर  मोहल्ले रहते है। धर्मेंद्र अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता और भैया -भाभी को देते है ।
साधारण ब्यक्तितत्व और मृदुभाषी धर्मेंद्र जी के सफ़लता पर इनसे जुड़े मित्रो ने सोशल मीडिया  व्हाट्सअप ,फेशबुक के जरिये बधाई दें रहे है। पासी समाज के लिए यह गर्व का विषय है कि हमारे समाज के युवक सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं बल्कि उच्चशिक्षण संस्थाओं में भी पहुँचने लगे है। जँहा से देश और समाज को नई नई जानकारियां उपलब्ध होती है। नए विचार ही समाज को आगे ले जाएंगे। धर्मेंद्र जी से यहीं अपेक्षा की जाती है। सफलता की बधाई और शुभकामना — अजय प्रकाश सरोज ,सम्पादक