अधिवक्ताओं के प्रयास से कु० साक्षी सरोज की फीस हुई माफ 


दिनांक 8 अगस्त दिन मंगलवार समय लगभग 12:30 बजे अधिवक्ताओं का एक प्रतिनिधि मण्डल उ०प्र० मूक बधिर विधालय ,जार्ज टाऊन,इलाहाबाद के निदेशक श्री के०एन० मिश्रा जी से मिला और दिनेश पासी पुत्र भारत लाल पासी निवासी ग्राम अकबरपुर सराय दीना,सोरॉव,जिला इलाहाबाद की पुत्री कु० साक्षी सरोज  जो ना तो कान से सुन पाती है और ना ही मुँह से बोल पाती है। एक प्रकार से वो दिव्यांग लडकी है।
साक्षी के पिता दिनेश पासी जो की एक किसान है और इनकी दोनों किडनी में इन्फैक्सन होने के कारण घर कि माली हालत ठीक नहीं है जिसके कारण अपने दोनों बच्चों एक छोटा लडका और एक बडी लडकी (साक्षी) को इस समय पढाने में दिक्कतें आ रही थी,इस समस्या से दिनेश जी लगभग एक माह से बहुत परेशान थे,एक दिन अचानक साक्षी के पिता दिनेश पासी एडवोकेट अरूण विधार्थी से मिलकर अपनी समस्या बताई तो अरूण जी बिना देर किये एडवोकेट प्रमोद भारतीया व सुनील राजपासी से मिलकर इलाहाबाद शहर उत्तरीय के विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी से मिलकर इसका एडमिशन इलाहाबाद के मूक वधिर विधालय में जार्ज टाऊन में कराया। साथ ही  निदेशक श्री के०एन०मिश्रा से मिलकर पूरी फीस व अन्य सुविधाओं को माफ करवा दिया गया।

इस कार्य में महात्वपूर्ण भूमिका विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी जी और साथ ही अधिवक्ता प्रतिनिधि मण्डल के एडवोकेट प्रमोद भारतीया,सुनील राजपासी,अरूण विधार्थी,पंकज कुमार आदि ने निभाई।

बहुजन समाज की दुर्दशा के दोषी हैं  ब्राह्मण —आरके चौधरी

इलाहाबाद। रविवार। समाज के दलितों, शोषितों व वंचितों के अधिकार की आवाज बुलंद करने वाले बहुजन मिशनरी नेता श्री आर के चौधरी ने हिन्दुस्तानी एकडमी हाॅल में आयोजित BSEF के एक दिवसीय कैडर प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आर्यों के आगमन से पूर्व भारत सोने की चिड़िया था। यहाँ दूध-दही की नदियां बहा करती थी, लोग बहुत संपन्न हुआ करते थे। समाज में उत्तम शासन व्यवस्था थी। तब न कोई सवर्ण था और न कोई शूद्र ….!! आर्यों ने ही आ कर यहाँ के लोगों को दास बनाया और ऊँच-नीच पैदा किया,  समाज में व्याप्त समता को विषमता में बदल कर तमाम समस्याओं को उत्पन्न किया।

श्री चौधरी जी ने अपने तीन घंटे के प्रशिक्षण संबोधन में विस्तार से भारतीय सामजिक व्यवस्था का विद्वतापूर्ण विश्लेषण करते हुए बताया कि वैदिककाल में पैदा की गयी सामजिक विषमता सल्तनतकाल तक जारी रही। व्यवस्था में सुधार बौद्धकाल से शुरू हुआ और ब्रिटिशकाल में तेज गति पकड़ी व आजादी के बाद संवैधानिक व्यवस्था लागू होने पर सबको समान अधिकार प्राप्त हुए। फिर भी पुरातनपंथी आज भी मानसिक छुआछूत से मुक्त नहीं हो पाए हैं।  आरक्षण के प्रति ऐसे लोग आए दिन उग्र आन्दोलन की धमकी देते रहते हैं।

श्री चौधरी जी ने संयुक राज्य अमेरिका में 27.5% अश्वेतों का उदाहरण देते हुए बताया कि अफ्रीकी महाद्वीपीय देशों से दास के रूप में लाए गए अश्वेत आज अपने संघर्षों के बल पर वहाँ की व्यवस्था में हर जगह अपना ससम्मान अधिकार पा लिए हैं। वहीं भारत में बाहर से आए 15% आर्यों ने यहाँ के मूल नागरिकों के समस्त अधिकार छीन कर उन्हें दास बना दिये थे, जिसके लिए दलित मसीहा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कड़ा संघर्ष कर वंचितों को अधिकार दिलाया।

       कार्यक्रम का सफल संचालन लखनऊ से आए वरिष्ठ बहुजन मिशनरी साथी श्री रामयश विक्रम जी ने किया। उपस्थित गणमान्य साथियों में सर्वश्री राम सूचित भारतीय, भानु प्रकाश , गौरी शंकर, इंद्रेश सोनकर,बसन्त लाल , अजय प्रकाश सरोज, संजीव कुमार ,धर्मेंद्र भारतीय, संजीव चौधरी, सरोज योगी, अच्छेलाल सरोज, कु० रागिनी सरोज,राजू पासी , हीरा लाल, पासी सतीश, उमाशंकर सरोज, सत्य प्रकाश सरोज, संतोष कुमार, सिद्धार्थ सोनकर, बड़े लाल , राजेश कुमार सरोज , रमेश पासी , आरपी सरोज , राजबहादुर सरोज, रामजी विश्वकर्मा, श्री मनोज गौतम, अर्जुन कनौजिया, रवि गौतम व डा० सुभाष पासी आदि उपस्थित रहे।

रिपोर्ट– सतीश पासी इलाहाबाद। 

टिप्पणी◆  इंद्रजीत सरोज का निकलना कोई आश्चर्य नही 

उत्तर प्रदेश के ​पूर्व मंत्री  इंद्रजीत सरोज को बहुजन समाज पार्टी से निकाले जाने की ख़बर सुनकर मुझे परेशानी तो थोड़ी हुई पर आश्चर्य नही हुआ क्योंकि जब से बसपा को समझ रहा हूँ वह पासी समाज के नेताओं के लिए राजनीतिक ज़हर जैसा ही लगा। लेकिन इसलिए कम बोलता रहा कि क्योकि पासी समाज का  सरकारी  कर्मचारी /अधिकारी बसपा को अपना माई बाप मान बैठा है इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझता रहा परंतु बहुत दिनों तक बर्दास्त नही हो पाया तो लिखने लगा । 

 बसपा ने राम समुझ पासी  को खत्म करने के लिए आर के चौधरी का इस्तेमाल किया। चौधरी के लिए इंद्रजीत को मजबूत किया। फिर इंद्रजीत को भी रास्ता दिखा दिया। अब जोनल कोर्डिनेटर अमरेंद्र भारतीय को मजबूत किये जाने की ख़बर है। क्योंकि मायावती तथा उसकी जाति के कुछ लोग सतीश मिश्रा के कहने पर संघठन पर एक ही जाति का वर्चस्व चाहते है। 
यह सच है कि बहुजन समाज पार्टी ने दलितों को सत्ता में भागीदार बनाया । उनके अंदर के स्वभिमान को जगाया। उन्हें शासक होने का एहसास कराया कि लोकतंत्र में आपको भी शासन करने का अधिकार है। सत्ता की प्राप्ति के बाद अनुसूचित जातियों के अधिकारी कर्मचारी का अपने विभागों में सम्मान बढ़ा । कथित उच्च वर्ग के छोटे कर्मचारी -अधिकारी अपने से बड़े बड़े दलित अधिकारियों का सम्मान करने लगे । स्कूल में प्याप्त जातीय भेदभाव कम हो गया । 
गांवों में जिस दलित के घर लोग पानी पीना पसंद नही करते थे । सत्ता के करीब रहने वाले दलितों के घर उच्च वर्ग के लोग आकर बैठने लगे। यह सब एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था। 

लेकिन इस परिवर्तन की वजह कोई यह कहता फिरे की बहन जी ने ही सब कर दिया तो यहां मेरा विरोध रहता है। 
इस सामाजिक परिवर्तन में बहुत से नवजवानों ने अपनी आहुति दीं है। बहुजन आंदोलन के लिए कोई स्कूल छोड़ दिया तो कितने नौकरी । न जाने कितनी हत्या हो गई। बहुतो का घर परिवार बर्बाद हो गया। स्वभिमान की इस लड़ाई में  कई लोग सवर्णो  के हत्या के आरोप में जेलों में बंद है। 
बहुजनों की इस लड़ाई में यादव ,कुर्मी ,  मौर्य , भर -पासी- खटीक, बाल्मिकी जैसी जातियाँ प्रमुख रूप से आगे आयी । जिनके बलबूते अन्य दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों ने बसपा को वोट देने बूथों में जाने लगे। लेकिन धीरे धीरे इन सभी जातियों के नेताओं को बाहर कर दिया गया। 
संगठन के ढांचे में मायावती के चलते एक जाति का वर्चस्व हो गया। सेक्टर अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष तक के पदों पर जाटव  और चमार का कब्जा हो गया। ब्राह्मण दलित गठजोड़ से सत्ता पाने बाद मायावती का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच गया । संघठन पर सतीश मिश्रा का कब्जा होते ही अन्य सभी दलित और पिछड़ी जातियाँ  उपेक्षित होती चली गई।
यादवों ने समाजवादी पार्टी को अपना लिया तो कुर्मियों ने अपना दल बना लिया। राजभरों ने भी पार्टी खड़ी कर ली। खटिक अधिकांश भाजपाई हो चले। पासी भटकता रह गया क्योंकि पासी बसपा को ही अपना मानने की भूल स्वीकार ही नही किया। आज भी यही हालत है। 
पासी नेता भले ही बाहर हुए लेकिन उनका समाज बसपा का झंडा ही ढों रहा है। पढ़े लिखे पासी अपने समाज के नेताओं को रोंये बराबर भी नही समझता है। जब तक कि पासी जाति का नेता सत्ता में नही है। पासी समाज के लोग उसे बेरोजगार समझ कर टालते रहते है। 
पासी जाति की गौरवशाली ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। लेकिन वर्तमान में सभी जातियों में यह राजनीतिक रूप से उपेक्षित है।   

(सम्पादक अजय प्रकाश सरोज की कलम से)

  

राष्ट्रीय महासचिव पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज भी बसपा से बाहर

​इलाहाबाद. बसपा के बड़े नेता इंद्रजीत सरोज को बुधवार को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। वे बसपा सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे। उन्हें बसपा चीफ मायावती का बेहद करीबी माना जाता था और इलाहाबाद व कौशांबी में वे बसपा के मजबूत और बड़े नेताओं में गिने जाते थे। दूसरी ओर, सरोज के निष्कासन से नाराज सैकड़ों बसपा वर्कर्स ने तत्काल पार्टी से इस्तीफा दे दिया। पैसा न वसूल कर पाने के चलते निकाला गया… 
 

– वहीं, पार्टी से निकाले जाने के बाद इंद्रजीत सरोज ने आरोप लगाया कि मायावती मुझसे 15 लाख रुपए मांग रही थीं। जब मैंने विरोध किया तो मुझे निकाल दिया गया। पैसों के लिए किडनी तक बेचने को कहा जाता है।

– सरोज के मुताबिक, मंगलवार शाम 5 बजे मायावती ने खुद फोन पर उनसे बात की और पैसा वसूली न कर पाने की वजह से पार्टी से निकाले जाने की जानकारी दी। सरोज ने आगे कहा कि मायावती का मानसिक संतुलन खराब हो चुका है। उन्हें अपना इलाज कराना चाहिए।

 

1996 में पहली बार चुने गए विधायक… 

– इंद्रजीत सरोज 1996 में 13वीं विधानसभा में पहली बार बसपा की ओर से कौशांबी जिले की मंझनपुर से विधायक चुने गए। वे 1997 से 1998 के बीच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति समितियों के मेंबर रहे। इसके अलावा वह याचिका समिति के भी मेंबर रहे। 

– साल 2001 में उन्हें बसपा के विधानमंडल दल का सचेतक बनाया गया। 2002 में हुए 14वीं विधानसभा चुनाव में वे फिर से विधायक चुने गए। मई 2002 से अगस्त 2003 तक मायावती मंत्रिमंडल में वे समाज कल्याण मंत्री, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण मंत्री और बाल विकास पुष्टाहार मंत्री रहे। 

– इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश समाज कल्याण निर्माण निगम के अध्यक्ष रहे। साथ ही वह सदस्य कार्य मंत्रणा समिति के भी मेंबर रहे। 

 

2007 से 2012 के बीच मिली कई विभागों की जिम्मेदारी 

– 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में इंद्रजीत सरोज एक बार फिर कौशांबी के मंझनपुर से निर्वाचित हुए। बसपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी। इस बीच 2007 से 2012 के दौरान सरोज को मायावती मंत्रिमंडल में कई विभागों की जिम्मेदारी मिली।

– वे समाज कल्याण विभाग, बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग, कृषि विपणन विभाग और अनुसूचित जाति एवं जनजाति विभाग के मंत्री बनाए गए। इस बीच वह नियम समिति, विशेषाधिकार समिति, कार्य मंत्रणा समिति के सदस्य चुने गए। 

– 2012 के विधानसभा चुनाव में वह चौथी बार मंझनपुर से विधायक चुने गए। जून 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी में शामिल होने के बाद इंद्रजीत सरोज को प्रतिपक्ष का नेता बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन बाद में मायावती ने गयाचरण दिनकर को ये जिम्मेदारी दे दी। इसी के बाद से पार्टी के अंदर दिक्कतें शुरू हो गईं। 

 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की पढ़ाई… 

– कौशांबी जिले के नगरोहा गांव में 14 जनवरी 1963 को जन्मे इंद्रजीत सरोज ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन तक की एजुकेशन प्राप्त की। 

– 2 नवंबर 1984 को उनकी पुष्पा सरोज से शादी हुई थी। दोनों के एक बेटा और तीन बेटियां हैं। 

नाराज नेता जिन्होंने  बसपा  छोड़ी-

गुजरात में पासी जाति ,एक अवलोकन

गुजरात मे पासी जाति की बड़ी आबादी है। कि जिले पासी बहुल हो चुके है लेकिन सरकार द्वरा  जनगणना न कराये जाने कारण इनकी संख्या कम बतलाई जाती है।

 पासी जाति की मुख्य उप जाति गूजर  है। जो यहाँ की बहुतायत मात्रा में पाई जाति है। “गूजर” जातियों के निवास के कारण ही यह क्षेत्र महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात बना । उत्तर प्रदेश के गुजर असज भी अपने को पासी बताते है। वो जानते और मानते है कि हमारे पुरखे पासी थें। जाति की पहचान पुरखों की वजह से होती है।
पासी जाती  भारत की एक मुख्य उपजाति हैं जिसे भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। यह उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की दूसरी बड़ी आबादी वाली उपजाति है । अनुसूचित जाति की आबादी में 16 प्रतिशत पासी हैं।

गुजरात राज्य में अनुसूचित जाति की सूची में पासी जाति को 24 वा स्थान प्राप्त हुआ है जबकि हरियाणा में 27 वे क्रम पर हिमाचल में 42 वे क्रम पर झारखंड में 10 वा स्थान प्राप्त हुआ है।
गुजरात सरकार द्वारा कराये गए 2001 के सर्वेक्षण के आंकड़ों से प्राप्त जानकारी के तहत पासी जाति के लोग 2,278 हैं लगभग पूरे गुजरात में 20,000 से अधिक पासी जाति के लोग का समावेश है।
किंतु पासी जाति के लोग अपनी जाति अधिकतर भिन्न-भिन्न लिखते हैं इसलिए सही आंकड़ों का मिल पाना संभव नहीं हो पाता जैसे —पासी,राजपासी,पासवान, गूजर ,अहेरिया ,बहेलिया ताड़मालि,चौधरी,भारतीय,सरोज,रावत,बोरासी,बहेरिया,रघुवंशी,नागवंशी,वर्मा,कैथवास’पसमांगता इत्यादि ।
वर्षों से शोषित वंचित तिरस्कृत यह समाज आजादी के बाद तेजी से विकास किया है। आज  के दौर में यह जाति भारतीय समाज में सम्मानजनक स्थान पर है। अपनी मेहनत लगन और काबिलियत से यह स्थान पासी जाति ने प्राप्त किया है ।
पासी जाति सामाजिक रुप से संगठित होने के कारण अपनी ही जाति के लोगों में ज्यादातर विवाह होता है । पर आज के आधुनिक युग में अब अंतरजातीय विवाह भी देखने को मिल रहा है जो बच्चों के उज्जवल भविष्य को देखते हुए समाज में स्वीकार होने लगे हैं।

गुजरात में पासी समाज ऐसे घुल मिल गया है जैसे शरबत में शक्कर आज पुलिस,वकील डॉक्टर,जज,बिजनेसमैन,इत्यादि सम्मानजनक स्थान पर पासी जाति के लोग कार्यरत हैं
गुजरात में पासी समाज की अनेक संस्थाएं हैं “गुजरात पासी विकास ट्रस्ट”,  ‘पासी समाज वडोदरा ‘जो कि समय समय पर कार्यक्रम करती रहती हैं । 26 जनवरी 15 अगस्त इन दिनों में कार्यक्रम होते हैं जिसमें मुख्य मुद्दे होते हैं।
जाति के प्रमाण पत्र को लेकर जो कि अभी यह कोर्ट में चल रहा है पासी समाज के बच्चों के भविष्य को  लेकर वरिष्ठ लोग उनका मार्गदर्शन करते हैं
युवक-युवती परिचय इस मौके पर कराया जाता है जिसमें लडके एवं लडकिया अपना परिचय देते हैं वह क्या करते हैं कहां से हैं इत्यादि।
पासी समाज द्वारा अहमदाबाद में *पासी समूह विवाह* का भी आयोजन 2008 में किया गया था जिसमें कई वरिष्ठ अतिथियों को बुलाया गया था 
लखनऊ से इलाहाबाद,आगरा मध्य प्रदेश से विवाह में सम्मिलित होने के लिए अतिथिगणों ने आकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी । एवं वर वधू को बधाई और शुभ आशीर्वाद दिया था । 
गुजरात में पासी संस्थाएं अब और भी सक्रिय भूमिका अदा करने लगी हैं 2017 में वडोदरा में हुए 26 जनवरी के कार्यक्रम में देखने को मिला दूर-दूर से लोग कार्यकर्म में समिलित होने के  लिए आये थे।

इस से ही पता लगता है कि पासी समाज की संस्थाएं अपनी सक्रिय भमिका अदा कर रही है।

(लेखिका –शोभा सरोज सोलंकी  जी मूलतः  गुजरात की है विवाह के बाद अब मुम्बई में रहकर पढ़ाई के साथ सामाजिक कार्य भी करती है)

पासी समाज से मंत्री नहीं बनाये जाने पर नाराजगी


बिहार की नवगठित एनडीए की सरकार में पासी जाति के मंत्री नहीं बनाये जाने पर राष्ट्रीय पासी सेना ने नाराजगी जाहिर की है। पासी सेना के अध्यक्ष सुजीत कुमार चौधरी ने कहा कि पिछली सरकार में पासी जाति के दो मंत्री मुनेश्वर चौधरी एवं डॉ. अशोक चौधरी थे, पर इस बार मंत्रिमंडल में पासी जाति की उपेक्षा की गयी है, जिसके कारण देशभर के पासी जाति के लोगों में घोर निराशा है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि एनडीए में पासी जाति के विधायक नहीं है, मनीष कुमार एनडीए में एकमात्र जदयू के विधायक हैं, जो पासी जाति के हैं। ये लागातार तीन बार से जीत रहे हैं। फिर भी इन्हें नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि हम मुख्यमंत्री से मिलकर पासी जाति के मंत्री बनाने की मांग करेंगे।

सिकंदरा से कांग्रेस विधायक बंटी चौधरी ने भी पासी समाज से मंत्री नहीं बनाये जाने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ताड़ी पर प्रतिबंध लगा कर पहले ही पासी समाज का परंपरागत रोजगार छीन कर सबको बेरोजगार कर दिए हैं।
समावेशी विकास की बात करने वाले नीतीश ने पासी समाज की उपेक्षा क्यों कि इस सवाल का जबाब पासी समाज के लोग जानना चाहते है।

सड़क पर है चयनित दलित सहायक समीक्षा अधिकारी 

उत्तर प्रदेश में लोकसेवा आयोग से चयनित ७८ दलित सहायक समीक्षाधिकारी योगदान न कर पाने के कारण पिछले 5 वर्ष से सडक पर हैं |उनका अपराध यह है कि वे दलित हैं |दलित होने के कारण इनकी ज्वाइनिंग नही हो पा रही है |पिछली सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और वर्तमान सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के समक्ष सार्वजनिक रूप से मैंने इनके मुद्दे को उठाया था और लिख कर भी दिया था |तमाम दलित सांसद और विधायक भी मुख्यमंत्री ,मुख्य सचिव से मिल कर इनकी पैरवी कर चुके हैं |पिछले महीने प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन और कार्मिक तथा न्याय विभाग के अधिकारी  मुख्य सचिव के यहाँ बैठक किये और तय हुआ कि पद उपलब्ध है तो इन्हें ज्वाइन कराने के लिए कैबिनेट के समक्ष प्रस्ताव भेजा जाय |प्रस्ताव भेजा जाता इसके पहले प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन जो दलित समाज के थे स्थानांतरित हो गये |अब बदले हालात में फिर पत्रावली विपरीत दिशा में चलने की सूचना मिल रही है |
इतना सब होने के बाद भी चयनित दलित अधिकारी हिम्मत से लड़ रहे हैं |ये बिना किसी राजनैतिक भेदभाव के भाजपा,समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी के कार्यालयों पर भी फरियाद कर चुके हैं |बसपा कार्यालय में तो बहन जी से मिलने की जिद पर  इन अभ्यर्थियों के साथ मारपीट भी की गई |वहीँ पिछले वर्षों में  एक मंत्री के कहने पर सैफई गये इन अभ्यर्थियों से एक बेहद जिम्मेदार पदाधिकारी ने यहाँ तक कह दिया कि तुम लोग दलित हो तुम्हारी ज्वाइनिंग नही होगी |भाजपा के सांसद कौशल किशोर ,संसद सदस्य  सावित्री बाई फूले भी इनकी पैरवी कर रही हैं किन्तु इन्हें न्याय नहीं मिल रहा |मैंने इस केस को स्टडी किया है इनका अधियाचन सही था इनका चयन भी सही था ,अडचन सिर्फ यह आ रही है कि ७८ दलित अधिकारी एक साथ कैसे ज्वाइन करा दिए जायं |इनका अपराध सिर्फ यह है की ये दलित है |ये लड रहे हैं ये जीतेंगे ,हम सब इनके साथ हैं |यह जुलुस इन्ही का है न्याय के लिए लड़ रहे ७८ लोकसेवा आयोग से चयनित  दलितसहायक  समीक्षाधिकारी |(– लाल जी प्रसाद निर्मल की वाल से )

संघ मुक्त भारत से संघ युक्त क्यों हुए नीतीश कुमार ?

•अजय प्रकाश सरोज 

बात वर्ष 2014 में हुए लोकसभा से शुरू करता हूँ जब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा बनाना तय किया। तब बिहार में भाजपा के सहयोग से चल रहीं नीतीश ने सरकार गिरा दीं। क्योंकि नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी का चेहरा पसन्द नही था। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी पर गुजरात में दंगे कराने का गम्भीर आरोप है। 

बिहार में सरकार गिरने के बाद नीतीश ने लालू यादव से समर्थन मंगा तो धुर विरोधी लालू की पार्टी ने नीतीश को समर्थन देकर सरकार बचा ली । नीतीश पुनः मुख्यमंत्री बनें फिर लोक सभा का चुनाव हुआ तो नरेंद्र मोदी चुनाव भारी बहुमत से जीतकर प्रधानमंत्री बन गए। नरेंद्र मोदी की जीत नीतीश कुमार पचा नही पाएं तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन जल्दी ही राजनीतिक भविष्य पर संकट देखा तो मांझी को हटा कर पुनः मुख्यमंत्री बन बैठे । मांझी ने कहा था कि नीतीश सत्ता के लोभी है बिना सत्ता के वो नही रह सकते ,उनका सत्ता का त्याग सिर्फ दिखावा हैं। 
फिर विधानसभा के चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू के  राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन किया जिसमें कांग्रेस भी शामिल हुई। धर्मनिर्पेक्षता वाले इस गठबंधन को बिहार की जनता ने मुहर लगा दी ,गठबंधन की सरकार बन गई। जिसमे मुख्यमंत्री पुनः नीतीश कुमार ही बनें। लेकिन 20 महीने बाद नीतीश ने तेजस्वी पर लगे आरोप का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए। और राष्ट्रीय जनता दल ,कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर चौबीस घण्टे के अंदर अपने विरोधी भाजपा से गठबंधन बनाकर पुनः मुख्यमंत्री बन गए। 

सवाल यह है कि नीतीश को बार बार इस्तीफ़ा देना फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेने में इतनी दिलचस्पी क्यों है ? लोकसभा चुनाव में भाजपा से हारने के बाद ही नीतीश ने विपक्ष की गोलबंदी करनी शुरू की। भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ खूब बोलते रहे। यहां तक कह दिया कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन दुबारा भाजपा से हाथ नही मिलाऊँगा । संघ मुक्त भारत का नारा देकर नीतीश ने विपक्षी पार्टियों को एक करने का अभियान शुरू किए। 

उत्तर प्रदेश में भी कई रैलियां करके गठबंधन को मजबूत करने लिए सपा – बसपा को साथ आने के लिए न्योता दिया। लेकिन बात बनी नही ।  इस दौरान उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल और आरके चौधरी के नेतृत्व वाली बीएस4 के साथ इनका सम्बन्ध कुछ महीनों तक चला लेकिन यह गठबंधन परवान नही चढ़ा पाया।
केंद्रीय राजनीति में जाने को उत्सुक नीतीश कुमार ने विपक्ष के कई नेताओ से सम्पर्क किया। जिसमे अरविंद केजरीवाल ,ममता बनर्जी आदि शामिल है। सबकी सहमति लेकर नीतीश तेजी से आगे बढ़ रहे थे लेकिन उनकी पार्टी का संघठन बिहार के अलावा कहीं मजबूत न होने के कारण नीतीश चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें अपना प्रत्यासी बनाये इसकी पुष्टि उनके इस बयान से किया जा सकता है कि ”जब हम भाजपा के खिलाफ़ बोलना शुरू करते है तो कांग्रेस बीच मे रोड़ा डाल देती है। ” इसका मतलब कांग्रेस नीतीश को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा नही बनाना चाहती  थीं ।

 कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों की मदत से मोदी पर हमला करना तो चाहती है लेकिन किसी अन्य नेता को चेहरा बनाना नही चाहती। लोकसभा के चुनाव में रामविलास पासवान ने भी कांग्रेस पर इसी तरह का आरोप लगा लगाया था। भाजपा से गठनबधन के समय राम विलास पासवान और चिराग पासवान ने कई बार कहा कि हम अपने पुराने साथी कांग्रेस को छोड़ना नही चाहते थे लेकिन गठबधन को लेकर राहुल गांधी और सोनिया से समय मांगा तो समय नही दिए । कई महीने इंतजार के बाद हमने एनडीए में जाने का फैसला लिया। 

सम्भव है नीतीश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हो कि नीतीश की छवि मोदी के खिलाफ एक बड़े चेहरे के रूप में देश मे देखा जाने लगा था लोग नीतीश को लेकर चर्चाएं शुरु कर रहे थें लेकिन यह कांग्रेस को नागवार गुजर रहा था कि भाजपा के सत्ता से ऊब कर जनता फिर कांग्रेस को ही सत्ता सौंपीगी ,तो नीतीश को चेहरा क्यों बनाएं।
 जबकि नीतीश बार बार यह कह रहे थे कि विपक्ष अपना एजेंडा तय करें प्रतिक्रिया की राजनीति देश की जनता के लिए ठीक नही। परन्तु कांग्रेस आलाकमान ने कोई फैशला नही लिया। तेजस्वी के मामले में भी नीतीश ने राहुल से हस्तपक्षेप की मांग की लेकिन कुछ न हुआ। पिछले दिनों रामचंद्र गुहा ने लिखा था कि कांग्रेस को चाहिए की नीतीश को अपना नेता मान लेना चाहिए क्योंकि नीतीश बिना पार्टी के नेता है और कांग्रेस बिना नेता की पार्टी हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करना मुनासिफ नही समझा। 

यहीं कारण की सारा देश घूम कर नाउम्मीद नीतीश कुमार पुनः मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला लिया , और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही कांग्रेस को भी सत्ता से बाहर करके ठेंगा दिखाया । इस कारण नीतीश अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को त्याग कर संघ युक्त बिहार का रास्ता चुन लिया। 
(लेखक-नेहरू ग्राम भारती विश्वद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार का शोधार्थी है)

नागवंशी -भारशिव पासी जाति की सभ्यता से जुड़ा है नागपंचमी

आज नाग पंचमी है । यह नाग शब्द भारत की मूलनिवासी मानव जाति हैं। जिसे आर्यो ने अपने आगमन के बाद इन्हें जीव जंतु बना दिया । ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि नाग वंश, साँप जैसे जन्तुओ की वंश परंपरा है। हालांकि कई प्रसंग पौराणिक कथाओं में मिलता है की नाग कन्या का विवाह फला राजा से हुई। इसका मतलब की कन्या लड़की थीं जो मानव जाति से है। लेकिन ब्राह्मणवादियों ने पूरी नाग वंश की ऐतिहासिकता को मिटाने का षणयंत्र रचा रखा है। 

भारत का  मूल निवासी/ आदि द्रविण / नाग वंश / भारशिव सब एक ही है। जिसमे आज की पासी जाति का अपनी संस्कृति को थोड़ा बहुत बनाये हुए है। अधिकांश पासी जाति के घरों में शिव की पूजा की जाती है। मंदिर बनाये जाते है। या उनके घर पर प्राचीन शिव मंदिर देखने को मिल जायेंगे। 
इतिहाकार राजकुमार ने अपने पुस्तक’ पासी वंश में लिखा है कि ‘ पासी – आदिवासी (द्रविण) नाग उपासक थे इस कारण इन्हें नाग पुकारा जाता है। तो वही अंग्रेज लेखक आर.वी रसेल के अनुसार” pasi in Dravidian community and tribe ,whose original occupation was toddy drawings” 

उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि पासी जाति नाग वंश की परंपरा से है। जो बाद में चीनी महायानी बौद्धों को भगाकर नव नागों  ने शिव लिंगो को अपने कंधों पर उठाकर गंगा में स्नान कराकर पवित्र किया । जिसके कारण इन नवनागों को  भारशिव कहा गया। जिसका सम्बन्ध आज की पासी जाति से है।  

भारशिवो का एक लंबा इतिहास है जिसे केपी जायसवाल की पुस्तक “अंधकार युगीन भारत” में पढ़ा जा सकता है। 

आज का यह त्योहार जिसे नाग पंचमी से जाना जाता है । यह नाग वंशियो का बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन आर्यो की राजनैतिक चालाकी से मूल निवासी इसे साँप सपेरों से जोड़कर देखते है। क्योंकि नाग वंशियो को तोड़कर कर ही आर्यो ने इन्हें पराजित किया। और भगवान का डर दिखाकर  खुद का संरक्षक भी बना लिया। क्योकि नाग टोटम सिंधु सभ्यता में नाग वंशियो की पहचान थीं। 
आप देखिये की जितने भी इनके देवता है उनके सिर पर प्रतीकात्मक रूप से नाग का फन दिखाया जाता है। इसका मतलब की नागवंशी राजाओं ने ही इनकी सुरक्षा भी करते रहें। यह सब एक षणयंत्र है हमे अपनी मूल संस्क्रति की ओर लौटना होगा। 

— — अजय प्रकाश सरोज

क्रांतिकारी शोधार्थी दिलीप यादव को जेएनयू के हॉस्टल से बाहर किया गया 

जेएनयू में पीएचडी दाखिले के लिए मौखिक परीक्षा का वेटेज करने वाले Dileep Yadav को हॉस्टल से निकाल दिया गया है। दिलीप और उनके साथी पीएचडी पहले से ही कर रहे थे।

वो अपने लिए नहीं लड़ रहे थे। वो सारे छात्रों के लिए लड़ रहे थे। सभी छात्रों के लिए अनशन कर रहे थे।अब कुलपति जगदेश कुमार इन सभी आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं को न पीएचडी पूरी करने दे रहा है, और न ही हॉस्टल में रहने दे रहा है। 

ये आपके लिए अपना कैरियर दाँव पर लगा चुके हैं। आप लोग सलामत रहिए। पढ़िए-लिखिए, कैरियर बनाइए..बधाई हो- 
-महेंद्र यादव दिल्ली