सामाजिक न्याय के लिए सौ वर्षों तक जेल में रहने को तैयार हूँ

सामाजिक न्याय के नायक लालू प्रसाद का आप सबके नाम खत ————————-

आप सबों के नाम ये पत्र लिख रहा हूँ और याद कर रहा हूँ अन्याय और ग़ैर बराबरी के खिलाफ अपने लम्बे सफ़र को, हासिल हुए मंजिलों को और ये भी सोच रहा हूँ कि अपने दलित पिछड़े और अत्यंत पिछड़े जनों के बाकी बचे अधिकारों की लड़ाई को. बचपन से ही चुनौतीपूर्ण और संघर्ष से भरा रहा है जीवन मेरा। मुझे वो सारे क्षण याद आ रहे हैं जब देश में गरीब पिछड़े शोषित और वंचित लोगों की लड़ाई लड़ना कितना कठिन था।

वो ताकतें जो सैकड़ों साल से इन्हें शोषित करती चली आ रही थी वो कभी नहीं चाहते थे कि वंचित वर्ग के हिस्से का सूरज भी कभी जगमगाए। लेकिन पीड़ितों की पीड़ा और सामूहिक संघर्ष ने मुझे अद्भुत ताकत दी और इसी कारण से हमने सामंती सत्ता के हजारों साल के उत्पीड़न को शिकस्त दी. लेकिन इस सत्ता की जड़ें बहुत गहरी हैं और अभी भी अलग अलग संस्थाओं पर काबिज़ हैं.

आज भी इन्हें अपने खिलाफ उठने वाला स्वर बर्दास्त नहीं होता और येनकेन प्रकारेण विरोध के स्वर को दबाने की चेष्टा की जाती है. आप तो समझ ही रहे होंगे कि छल, कपट, षड्यंत्र और साजिशों का ऐसा खेल खेला जाता है जिससे सामाजिक न्याय की धारा कमज़ोर हो और इस धारा का नेतृत्व करने वाले लोगों का मुंह बंद कर दिया जाए. इतिहास गवाह है कि मनुवादी सामंतवाद की शक्तियां कहाँ कहाँ और कैसे सक्रिय होकर न्याय के नाम पर अन्याय करती आई हैं. शुरू से ही इन शक्तियों को कभी हजम नहीं हुआ कि एक पिछड़े ग़रीब का बेटा दुनिया को रास्ता दिखाने वाले बिहार जैसे राज्य का मुख्यमंत्री बने। यही तो जननायक करपुरी ठाकुर के साथ हुआ था।

मुझे बचपन की वो सामजिक व्यवस्था याद आ रही जहाँ ‘बड़े लोगों’ के सामने हम ‘छोटे लोगों’ का सर उठाकर चलना भी अपराध था. फिर बदलाव की वो बयार भी देखी जिसमें असंख्य नौजवान जे.पी के आंदोलन से प्रभावित हो उसमे शामिल हो गए. आपका अपना लालू भी उनमें से एक था जो कूद पड़ा था सत्ता के खिलाफ संघर्ष में, और निकल पड़ा तानशाही, सामंतवाद और भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध लौ जलाने. सफ़र में अनगिनत मुश्किलें थी लेकिन काँटों भरी इस यात्रा ने आपके लालू को और उसके इरादों को और मज़बूत किया. आपातकाल के दौरान आपके इसी नौजवान को जेल में डाल दिया गया था, लौ चिंगारी में जहाँ परवर्तित हुई थी वो जेल ही थी और आज महसूस करता हूँ की वो चिंगारी अब ऐसी मशाल बन चुकी है जो जब तक रोशन रहेगी, तानशाही और सामंतवादी के खिलाफ लोगो को जगाने का काम करेगी।

भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर की भी यही इच्छा थी तथा इन्हीं उद्देश्यों के किए डॉ लोहिया, स्व जगदेव बाबू, स्व चौधरी चरण सिंह, जननायक करपुरी ठाकुर तथा वीपी सिंह ने समय-समय पर इस संघर्ष को मज़बूत किया था। सच कहूं तो जिस दिन आंदोलन में कूदा था उस दिन से ही मुझे आभास था की राह आसान नहीं होगी, जेल में डाला जायेगा, प्रताड़ित किया जाएगा, झूठे आरोपों की बरसात होगी, झूठे तमगे दिए जायेंगे लेकिन एक बात तय थी कि मेरी व्यक्तिगत परेशानी गरीब और वंचित जनता की सामूहिक ताकत को बलवती बनाकर सामाजिक न्याय की धारा के लोगों की राह आसान बनाएगी.

आप लोग मेरे लिए परेशान ना हों मेरी एक-एक कुर्बानी आपको मजबूती देगी. किसी की मजाल नहीं की आपके हिस्सेदारी से कोई ताकत आपको महरूम कर दे. आपकी लड़ाई, आपका संघर्ष और मेरे लिए आपका प्रेम ही मेरी सबसे बड़ी पूँजी है और मैं आपके लिए सौ वर्षों तक जेल में रहने को तैयार हूँ. सामाजिक-राजनितिक व्यवस्था में आपकी सम्पूर्ण भागीदारी की ये छोटी सी कीमत हैं और मैं और मैं इसे चुकाने को तैयार हूँ. जब मैं जातिगत जनगणना के खुलासे की बात करता हूँ, आरक्षण के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ता हूँ। किसान, मज़दूर और ग़रीबों की आवाज़ बुलंदी से उठाता हूँ तो सत्ता की आँखों में खटकता हूँ, क्यूंकि निरकुंश सत्ता को गूंगे-बहरे चेहरे चाहिए। इस सत्ता को ‘जी हाँ हुज़ूर’ वाले लोग चाहिए जो आपका लालू कभी हो नहीं सकता. क्या हम नहीं जानते हैं कि तानाशाही सत्ता को विरोध की आवाज़ हमेशा खटकती है, इसलिए उसका जोर होता है की साम-दाम-दंड-भेद से उस आवाज़ को खामोश कर दिया किया जाए। लोकतंत्र को ज़िंदा रखने के लिए विरोध का स्वर जरूरी है। आपका लालू अपने आखिरी दम तक आवाज़ उठाता रहेगा। जो बिहार के हित में है, जो देशहित में हैं , गरीबों, पिछड़ों, दलितों के हित में है और सबसे आगे जो मानवता के हित में है। लालू ने हमेशा वो किया और करता रहेगा. …. और मैं ये सब इसलिए कर पाया हूँ और करता रहूँगा क्योंकि मेरी ताकत आप करोड़ों लोग हैं..खेत-खलिहानों में, मलिन बस्तियों में, शहर और गाँव की गुमनाम बस्तियों में… लालू का रास्ता सच के लिए संघर्ष का रास्ता है इसलिए हमारे लिए जनता ही जनार्दन है और उसकी बेहतर ज़िन्दगी ही मेरे जीवन का ध्येय है ना की कुर्सी। यही वजह है आडवाणी का रथ रोकते हुए मैंने सत्ता नहीं देखी, मेरे ज़मीर ने कहा की ये रथ बिहार के भाईचारे को कुचलता है, तो रोक दिया रथ … कितना कुछ खेल खेला है इन मनुवादियों नें ….CBI पीछे लगाई, मेरे परिवार को घसीटा गया, मुझे अरेस्ट करने के लिए आर्मी तक बुलावा भेजा। मेरे नादान बच्चों पर मुक़दमे कर उन्हें प्रताड़ित कर उनका मनोबल तोड़ने का कुचक्र रचा, देश की सभी जाँच एजेन्सीयों के छापे, चूल्हे से लेकर तबले तक को झाड़-पोंछकर खोजबीन की, पूछताछ की। चरित्रहनन करने के षढयंत्र रचे, सभी नज़दीकियों को प्रताड़ित किया, चोर दरवाज़े से घुसकर सत्ता से बेदखल किया….लेकिन परेशानियाँ और प्रताड़ना अपनी जगह आपके लालू के चेहरे पर शिकन नहीं आई.. जानते हैं क्यों..क्योंकि जिसके पास करोड़ों ग़रीबों की बेपनाह मुहब्बत हो उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता.

आप तो देख ही रहे हैं किस प्रकार देश का प्रधानमंत्री, राज्य का मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य की सरकारें, देश की तीन सबसे बड़ी एजेन्सीयाँ इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी, सरकार समर्थित अन्य संस्थान और कई प्रकार के ज़हरीले लोग हमारे पीछे लगे हैं. बच्चों को भी झूठ और फरेब की कहानियाँ बनाकर दुश्मनी निकाल रहे है। इन मनुवादियों ने सोचा इतना करने के बाद अब तो लालू खामोश हो जायेगा, समझौता कर लेगा लेकिन लालू बिहार की महान माटी का लाल है किसी अत्याचार के खिलाफ खामोश नहीं होने वाला। लालू किसी से डरकर नहीं डटकर लड़ाई लड़ता है। वह आँखों में आँख नहीं ज़रूरत पड़ने पर आँखो में ऊँगली डालकर भी बात करना जानता है। और ये कर पाने का बल और उर्जा आपकी ताकत, आपके संघर्ष और मेरे लिए आपके असीम स्नेह के कारण संभव हो पाता है. आप हैं तो आपका लालू है. हाँ आपके लालू का एक दोष ज़रूर है कि उसने जातिवाद और फासीवाद की सबसे बड़ी पैरोकार संस्था आरएसएस के सामने झुकने से लगातार इनकार किया. इन मनुवादियों को ये पता होना चाहिए कि करोड़ों बिहारियों के स्नेह की पूँजी जिस लालू के पास है उसे पाताल में भी भेज दो तो वहां से भी तुम्हारे खिलाफ और तुम्हारी दलित-पिछड़ा विरोधी मानसिकता के खिलाफ बिगुल बजाता रहेगा. क्या आप नहीं समझते कि इन मनुवादियों को अपनी सत्ता का इतना घमंड हो गया है कि भैस-गाय पालने वाले, फक्कड़ जीवनशैली अपनाने वाले आपके लालू को घोटालेबाज़ कहते हैं. ज़िन्दगी भर गरीब आदमी के लिए लड़ने वाले के सिर पर इतनी बड़ी तोहमत के पीछे का सच क्या किसी से छुपा हुआ है? अरे सत्ता में बैठे निरंकुश लोगो!! असली घोटालेबाज तो तुम हो जो कमल छाप साबुन से बड़े बड़े घोटालेबाजों की ‘समुचित’ सफाई कर उन्हें मनुवादी-फासीवाद का सिपाही बनाते हो..

मेरे भाइयों और बहनों! परेशान और हताश न होयें आप.. बस ये ज़रूर सोचना और बार-बार सोचना कि ‘तथाकथित’ भ्रष्टाचार के सभी मामलों में वंचित और उपेक्षित वर्गों के लोग ही जेल क्यों भेजे जाते है? ये भी सोचना ज़रूर कि कुछ हमारे जमात के लोग इनके दुष्प्रचार का शिकार क्यों हो जाते है? ये सारी नापाक हरकते और पाखंड सिर्फ लालू को प्रताड़ित करने के लिए नहीं हो रहा है बल्कि इनका असली निशाना आपको सत्ता और संसाधन से बेदखल करना है. लालू तो बहाना है असली निशाना है कि दलित,महादलित,पिछड़े-अतिपिछड़ों और अल्पसंख्यकों को फिर से हाशिये पर धकेल दिया जाए.

आप में से कई लोग सोचते होंगे कि आपका लालू चुप क्यों नहीं हो जाता, समझौता क्यों नहीं कर लेता ? तो सुन लो …. आपका लालू आज भी ज़मीन पर ग़रीब के बीच रहता है और देखता है कि किस कदर लोगो को सताया जा रहा है। आज भी दलित-पिछड़े समाज की हर मुसीबत मेरी व्यक्तिगत मुसीबत है. आज भी इन वर्गों की हर परेशानी मुझे चैन से सोने नहीं देती. मैं मानता हूँ कि ,”कदम कदम पर पहरे है , सत्ता तेरे गरीबों को दिए ज़ख्म बहुत गहरे हैं”। शायद इसलिए बाकी लोगो की तरह आपका लालू भी अगर समझौता कर सत्ता की गोद में बैठ जायेगा तो बेबस जनता की आवाज़ कौन सुनेगा, उनके हक़ के लिए कौन लड़ेगा? लालू को लोकतंत्र की परवाह है इसलिए बोलता है , लालू को भाईचारे की परवाह है इसलिए बोलता है।

झूठ अगर शोर करेगा तो लालू भी पुरज़ोर लड़ेगा मर्ज़ी जितने षड्यंत्र रचो, लालू तो जीत की ओर बढ़ेगा अब, इंकार करो चाहे अपनी रज़ा दो साज़िशों के अंबार लगा दो जनता की लड़ाई लड़ते हुए, आपका लालू तो बोलेगा चाहे जो सजा दो

मैं सिर्फ हाथ जोड़कर आप सबों से विनती करता हूँ कि आप हताश और निराश ना हों… आप रोये नहीं.. जैसा मैंने पहले कहा कि आपका स्नेह और मुहब्बत आपके लालू को ताकत देता हैं…आपकी परेशानी से आपका लालू परेशान होता है. भरोसा देता हूँ कि मुझे डर नहीं, मुझे भय नहीं। मेरे साथ समूचा बिहार है। आप सब मेरे परिवार हैं… जिस व्यक्ति के पास इतना बड़ा करोड़ों लोगों का परिवार हो उसे दुनिया की कोई ताकत डरा नहीं सकती। आपकी ताक़त ही आपके लालू को लालू बनाती है।

सत्यमेव जयते। जय हिन्द।

आपका, लालू प्रसाद यादव

भारत में महिलाओं की शिक्षा की देवी सावित्रीबाई फूले

नाम– सावित्रीबाई फूले , जन्म– 3 जनवरी सन् 1831 , मृत्यु– 10 मार्च सन् 1897

*उपलब्धि- कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए अनेक कल्याणकारी काम किये.उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है।

*जन्म व विवाह*- सावित्रीबाई फूले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फूले से हुआ।

महात्मा ज्योतिबा फूले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही पिछड़े समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय थी और उन्हें पढ़ने लिखने की अनुमति तक नहीं थी। इस रीति को तोड़ने के लिए ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने सन् 1848 में लड़कियों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला स्त्री विद्यालय था।

*सावित्रीबाई फुले कहा करती थीं* – अब बिलकुल भी खाली मत बैठो, जाओ शिक्षा प्राप्त करो! 💡 सचमुच जहाँ आज भी हम लैंगिक समानता (gender equality) के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं अंग्रेजों के जमाने में सावित्रीबाई फुले ने ओबीसी महिला होते हुए हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जो संघर्ष किया वह अभूतपूर्व और बेहद प्रेरणादायक है. ऐसी महान आत्मा को शत-शत नमन!

*समाज का विरोध* –

सावित्रीबाई फूले स्वयं इस विद्यालय में लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। उन्हें लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने न केवल लोगों की गालियाँ सहीं अपितु लोगों द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों की मार तक झेली। स्कूल जाते समय धर्म के ठेकेदार व स्त्री शिक्षा के विरोधी सावित्रीबाई फूले पर कूड़ा-करकट, कीचड़ व गोबर ही नहीं मानव-मल भी फेंक देते थे। इससे सावित्रीबाई के कपड़े बहुत गंदे हो जाते थे अतः वो अपने साथ एक दूसरी साड़ी भी साथ ले जाती थीं जिसे स्कूल में जाकर बदल लेती थीं। इस सब के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी व स्त्री शिक्षा, समाजोद्धार व समाजोत्थान का कार्य जारी रखा।

*विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष–

स्त्री शिक्षा के साथ ही विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया। साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके। आज देश में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति को देखते हुए उस समय कन्या शिशु हत्या की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना और उसे रोकने के प्रयास करना कितना महत्त्वपूर्ण था इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। विधवाओं की स्थिति को सुधारने और सती-प्रथा को रोकने व विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी उन्होंने बहुत प्रयास किए। सावित्रीबाई फूले ने अपने पति के साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को न केवल आत्महत्या करने से रोका अपितु उसे अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल की और समय पर डिलीवरी करवाई।

बाद में उन्होंने उसके पुत्र यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और ख़ूब पढ़ाया-लिखाया जो बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना। *कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फूले* उन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखीं- ‘काव्य फूले’ ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’ बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करने के लिए वे कहा करती थीं- “सुनहरे दिन का उदय हुआ आओ प्यारे बच्चों आज हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज” *पिछड़ा शोषित उत्थान में अतुलनीय योगदान* सावित्रीबाई फूले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने जीवनकाल में पुणे में ही उन्होंने 18 महिला विद्यालय खोले। 1854 ज्योतिबा फूले और सावित्रीबाई फूले ने एक अनाथ-आश्रम खोला, यह भारत में किसी व्यक्ति द्वारा खोला गया पहला अनाथ-आश्रम था। साथ ही अनचाही गर्भावस्था की वजह से होने वाली शिशु हत्या को रोकने के लिए उन्होंने बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी स्थापित किया। समाजोत्थान के अपने मिशन पर कार्य करते हुए ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ *‘सत्यशोधक समाज’* नामक संस्था का निर्माण किया। वे स्वयं इसके अध्यक्ष थे और सावित्रीबाई फूले महिला विभाग की प्रमुख।

इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शूद्रों(obc) और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त कराना था। ज्योतिबा के कार्य में सावित्रीबाई ने बराबर का योगदान दिया। ज्योतिबा फूले ने जीवन भर निम्न जाति, महिलाओं और पिछड़े शोषितों के उद्धार के लिए कार्य किया।

इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फूले ने जो योगदान दिया वह अद्वितीय है। यहाँ तक की कई बार ज्योतिबा फूले स्वयं पत्नी सावित्रीबाई फूले से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। 28 नवम्बर 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के साथ ही सावित्रीबाई फूले ने भी सत्य शोधक समाज को दूर-दूर तक पहुँचाने, अपने पति महात्मा ज्योतिबा फूले के अधूरे कार्यों को पूरा करने व समाज सेवा का कार्य जारी रखा।

*मृत्यु- इतनी बड़ी करुणा की देवी कि, मौत को भी गले लगा लिया* सन् 1897 में पुणे में भयंकर प्लेग फैला। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए, प्लेग से तड़पते हुए अछूत जाति के बच्चे को पीठपर लाद कर लाने के कारण सावित्रीबाई फूले स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च सन् 1897 को उनका भी देहावसान हो गया।

*सन्देश- उस ज़माने में ये सब कार्य करने इतने सरल नहीं थे जितने आज लग सकते हैं। अनेक कठिनाइयों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद महिलाओं का जीवनस्तर सुधारने व उन्हें शिक्षित तथा रूढ़िमुक्त करने में सावित्रीबाई फूले का जो महत्त्वपूर्ण दया, त्याग और योगदान रहा है उसके लिए देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

समाज की धरोहर के साथ हो रहा खिलवाड़ , किले का अस्तित्व खतरें में

महाराजा बिजली पासी किले को देख कर जितनी खुशी हुई उससे कही ज्यादा दुख हुआ क्योकि किले के विकास के लिये जो फण्ड आता है उसका प्रयोग किले पर कही देखने को नही मिला किले की हालत बद से बत्तर हो चुकी है किले पर समाज द्वारा 25 दिसम्बर 2017 को कार्यक्रम किया गया था कुछ जानकारी के अनुसार उस कार्यक्रम के लिये किले की समिति ने पैसे चार्ज किये थे उसका भी कोई प्रयोग नही हुआ किले पर कि उसी पैसे से किले की सफाई करवा दी जाती वो भी नही हुई।

-पासी स्वाभिमान स्तम्भ टूटा हुआ है। -किले की लाईट गायब है खम्भे माए से। – बहुत से खम्भे ही गायब है। – महाराजा बिजली पासी के मूर्ती के पास दिवाल टूटी हुई है। -फर्स टूटी हुई है। -सीढिया टूटी हुई है। -मैदान मे कचड़ा भरा पडा है। – मैदान मे जानवर टहल रहे है।

आदि बहुत सी कमिया है किले पर इसका जिम्मेदार कौन? पासी शिरोमणि महाराजा बिजली पासी बहुउद्देशीय कल्याण ट्रस्ट इसकी देख रेख कर रहा है तो जिम्मेदारी भी इसकी बनती है किन्तु ये ट्रस्ट सिर्फ समाज के साथ धोखा कर रही है। आप सब से निवेदन है आप सब इस पोस्ट को लाइक करने के बजाये ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और ये बात इस ट्रस्ट के कानो व समाज तक और सरकार तक जरूर पहुचे जिससे सब को पता चले कि समाज की धरोहर के साथ कितना बडा खिलवाड़ हौ रहा है।

-वेद प्रकाश सरोज लालगंज प्रतापगढ़

महाराजा बिजली पासी की जयंती समारोह में एकजुटता पर दिया बल

नवादा : अखिल भारतीय पासी समाज नवादा के बैनर तले सोमवार को चौधरी नगर स्थित चौधरी भवन में समाज के सम्राट महाराजा बिजली पासी की जयंती मनाया गया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षक चन्द्रिका चौधरी ने किया जबकि मंच का संचालन सुनील कुमार चौधरी ने किया । कार्यक्रम की शुरुआत बिजली पासी के तस्वीर पर माल्यार्पण कर किया गया ।कार्यक्रम के मुख्य उदघाटनकर्ता सुरेन्द्र कुमार चौधरी प्रदेश कार्यकरी अध्यक्ष ,मुख्य अतिथि राजा चौधरी प्रदेश युवा अध्यक्ष ,विशिष्ट अतिथि रेखा चौधरी प्रदेश महिला प्रकोष्ट संयोजक एवं पिंकी भारती जिला परिषद सदस्या सिरदला मौजूद थे । कार्यक्रम में चौधरी भवन के ज़मीन दाता हरि चौधरी एवं जगदीश चौधरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश चौधरी के द्वारा दिया गया मानद उपाधि ‘पासी रत्न ‘ सम्मान का शील्ड देकर सम्मानित किया गया ।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार चौधरी ने कहा समाज के महान सम्राट बिजली पासी महाराजा थे यह उस विकट स्थिति में महाराजा बने जब हमारे समाज का शोषण होता था । हमारे समाज के लोगों को पूर्वजों से सीख लेनी चाहिए कि चाहे स्थिति जो हो संघर्ष कर सफलता हासिल करना होगा । हमारा समाज महापुरूषों का रहा है । समय बदला शिक्षा का आभाव हुआ और धीरे -धीरे पतन की ओर चलते चले गए । प्रदेश महिला प्रकोष्ट के नेत्री रेखा चौधरी ने कहा समाज को आगे ले जाने के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है शिक्षा की ज्योति जलाना । शिक्षा वह शेरनी का दुध है जो पियेगा वह दहाड़ मारेगा । यानी बिना शिक्षा हमारे समाज का विकास सम्भव नहीं है ।

जिला पार्षद पिंकी भारती ने कहा समाज उत्थान के लिए सभी वर्ग के लोगों को आगे आना होगा । आज समाज के जो भी लोग विभिन्न उच्च पड़ पर है वे समाज के प्रति सोचें उसके उत्थान के लिए प्रयास करें । कुछ लोग सरकारी सेवा रिटायर्ड हो जाते हैं तब समाज की याद आता है । मुख्य अतिथि राजा चौधरी प्रदेश युवा अध्यक्ष ने कहा लखनऊ के महाराजा लाखन पासी तेरह सौ साल पहले के महाराजा थे ।जब रामायण काल का भी पता नहीं था पर इतिहास के पन्नों में कुछ साछ्य को छुपाया गया । साथ उन्होंने कहा 20 फरवरी को पटना में पासी समाज के लोगों को एक कार्यक्रम में आने का आग्रह किया ।

कार्यक्रम में विजय चौधरी , परमेश्वर मंडल ,रामदेव चौधरी अधिवक्ता ,पोस्टमास्टर राजेश्वर कुमार चौधरी , सीआईडी ऑफिसर राज़ कुमार भारती ,निशांत चौधरी ,चंदन कुमार भीम आर्मी जिलाध्यक्ष ,राजेश कुमार चौधरी शिक्षक ,देव कुमार चौधरी प्रदेश महासचिव वैशाली ,योगेन्द्र चौधरी ,मनोज चौधरी ,संजय चौधरी ,राजेंद्र भारती सिरदला ,भोला चौधरी पोस्टमास्टर ,गोरेलाल चौधरी ,केडी चौधरी ,सत्येन्द्र कुमार सत्येंद्र ,जानकी मेहता ,नरेश चौधरी सरपंच आदि लोग उपस्थित हुए ।

प्रजावत्सल शासक महाराजा बिलजी पासी ने राज्य के स्वाभिमान से समझौता नही किया

आज की पासी जाति में अनेक राजाओं महाराजाओं ने जन्म लेकर इस जाति के स्वभिमान को बढ़ाया है । इतिहासकारों का मानना है कि आज की पासी जाति के पुरखें जो हीनयान बौद्ध औऱ फिर भारशिव थें उनका सम्राज्य पहली शताब्दी से लेकर 12वीं सदी तक रहा है। जिनके राज्य में प्रजा खुश रहती थीं। इन राजाओं में किसी भी अन्य राजा की स्वाधीनता स्वीकार नही की , पूरे स्वभिमान के साथ अपने शासनकाल को चलाया करते थे । समय बदलता है कोई बहुत दिनों तक राज्य तो कर नही सकता । पासी राजाओं के साथ भी ऐसा ही हुआ।

बारहवीं शताब्दी पासी राजाओं के साम्राज्य के लिए बहुत अशुभ साबित हुई। इसी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अवध के सबसे शक्तिशाली पासी महाराजा बिजली वीरगति को प्राप्त हुए थे। सन् 1194 ई. में इससे पहले राजा लाखन पासी भी वीरगति को प्राप्त हुए।

महाराजा बिजली पासी की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा। बिजली पासी के कार्य शेत्र में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नटवा के नाम पर नटवागढ़ की स्थापना की। यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की द्रिष्टि से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली पासी किला पड़ा। जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।

राजा बिजली पासी महाराजा बिजली पासी के नाम से विभूषित हो चुके थे। यह किला लखनऊ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर सदर तहसील लखनऊ के अंतर्गत दक्षिण की ओर बंगला बाजार के आगे सड़क के दाहिनी ओर आज भी महाराजा बिजली पासी के साम्राज्य के मूक गवाह के रूप में विद्यमान है।

महाराजा ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे। 1- नटवागढ़ 2- बिजनौरगढ़ 3- महाराजा बिजली पासी किला 4- माती 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम किलों के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। 7- पुराना किला 8- औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसेंड किला। उत्तर में पुराना किला, दक्षिणी में नींवाढक जंगल सीमा सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। इसके मध्य में महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी के अंतर्गत 94,829 एकड़ भूमि अथवा 184 वर्ग मील का भू-भाग सम्मिलित था, इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ थी, धान, गेहूं, चना, मटर, ज्वार। बाजरा आदि की खेती होती थी।

महाराजा बिजली पासी की प्रगति से कन्नौज का राजा जयचंद्र चिन्तित रहने लगा क्योंकि महाराजा बिजली पासी पराक्रमी उत्साही और महत्वकांक्षी थे। बिजली पासी के सैन्य बल एवं वीर योद्धाओं का वर्णन सुनकर जयचंद्र भयभीत रहता था। लेकिन अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए जयचंद्र की भी इच्छा रहती थी।

सातन कोट उन्नाव के शाषक राजा सातन पासी और लखनऊ नरेश राजा बिजली पासी आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ थें। यह एक दूसरे की सैन्य रूप से मदत करते थें। जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन पासी के किले पर आक्रमण कर दिया। महाराजा बिजली को कमजोर करने के लिए जयचंद ने सातन पासी के राज्य पर आक्रमण कर दिया । लेकिन इस लड़ाई में बिजली पासी अपनी सेनाओं के साथ सामिल होकर जयचंद को खदेड़ दिया ।

इस अपमान जनक पराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था। किंतु बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। इसके बाद पहाड़ नगर टिकरिया गये। बिजनौरगढ़ से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर सरवन टीलें पर उन्होंने डेरा डाला। यहां से उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा बिजली पासी किले से संबंधित सूचनाएं एकत्र की।

जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनता स्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासी घबराये नही। बल्कि धैर्य से उसका मुंह तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक अंश भी देने को तैयार हैं। जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल झुंझलाकर आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी। यह खुला मैदान था, यहां पेड़ पौधे नही थे। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ।

यह मैदान इतिहास में गांजर भांगर के नाम से मशहूर है। यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। गांजर भूमि पर तलवार और खून ही खून था इसलिए इसे लौह गांजर भी कहा जाता है। वर्तमान में इस स्थान पर गंजरिया फार्म है। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी पासी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

यह युद्ध सन् 1194 ई. में हुआ था। यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। परन्तु आल्हा ऊदल के साले जोगा भोगा राजा सातन ने खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और पड़ोसी राज्य से सच्ची मित्रता तथा पासी समाज के शौर्य का परिचय दिया। महाराजा बिजली पासी के किले के अलावा उनके अधीन 11 किलों का वर्णन इतिहास में बहुत ही सतही ढंग से किया गया है।

अज़ादी के बाद कि सरकारों ने महाराजा बिजली पासी की बीरता को पाठ्यक्रम में दर्ज तो नही किया । लेकिन उनके नाम से डाक टिकट जारी कर तथा महाविद्यालय खोलकर उनके अस्तित्व को संरक्षित करने का काम किया है।

– लेखक: अजय प्रकाश सरोज

(इतिहास कारो से मिले साक्ष्यों से साभार)

पूर्व मंत्री आरके चौधरी की बीएस-4 का समाजवादी पार्टी में विलय

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक सदस्य पूर्व मंत्री तथा बीएस-4 के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री आर.के. चौधरी ने आज अपने संगठन का समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया। पूर्व मंत्री श्री ओमवेश ने भी आज अपने सैकड़ों साथियों के साथ समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। दोनों नेताओं ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में आस्था जताते हुए भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने में अपने सभी साथियों से एकजुट होने का आव्हान किया।

समाजवादी पार्टी मुख्यालय, लखनऊ में आज बसपा के हजारों साथियों एवं पूर्व सांसदों पूर्व विधायकों के अतिरिक्त बीएस-4 के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। इनमें प्रमुख थे पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव, राणा प्रताप सिंह, मो0 निजामुल्ला खान, मुन्नू राम आदि। स्वामी ओमवेश के साथ श्री आदित्यवीर सिंह और चौधरी जयपाल सिंह आदि भी पार्टी के सदस्य बने। इनके अतिरिक्त सीतापुर की श्रीमती प्रतिभा सिंह तथा यशस्वी सिंह ने भी सदस्यता ली। समाजवादी पार्टी में आए सभी नेताओं का स्वागत करते हुए श्री अखिलेश यादव ने उम्मीद जताई कि इनके आने से समाजवादी पार्टी को मजबूती मिलेगी।

उन्होंने कहा कि गुजरात के चुनावों से भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही सन् 2019 में भाजपा का रास्ता रोकेेगी। उन्होंने कहा भाजपा मुद्दो से ध्यान हटाने का काम करती है। सबको मालूम हो गया है कि गुजरात माॅडल धोखा है। अब समाजवादी जमींन की लड़ाई लडे़ंगे और भाजपा को रोकेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बदतर है। राजधानी में एक पूर्व विधायक के बेटे की हत्या हो गई। अपराध बढ़े हुए हैं। भाजपा गरीब, किसान, नौजवान की बात नहीं करती है। आलू किसान परेशान हैं। धान की खरीद नहीं हुई हैं। बिजली के दाम बढ़ा दिए गए हैं। आज जिस तरह की राजनीति हो रही है उससे देश आगे नहीं बढ़ सकता हैं।

श्री यादव ने कहा कि केंद्र और राज्य की सरकारों ने कोई काम नहीं किया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार यूपीकोका के माध्यम से जनता को डराना चाहती हैं। एक यूनिट बिजली नहीं बनाई लेकिन बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं। जनता को बहकाने की कला में भाजपाई पारंगत हैं। हमने एक्सप्रेस-वे पर लड़ाकू जहाज, मालवाहक जहाज उतार दिए लेकिन पानी पर जहाज उतार कर गुजरात में चुनाव जीत लिया। भाजपा कों मूल मुद्दों से ध्यान बटाने की कला आती हैं।

जातियों को संख्या के आधार पर मिले भागीदारी–

श्री अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी वंचितों, दलितों को उनका हक दिलाएंगे। हम चाहते हैं कि हर किसी को उसकी जनसंख्या के आधार पर हक मिलें। हम किसी का हक छीनना नहीं चाहते हैं। हक की लम्बी लड़ाई जीतने के लिए बूथ स्तर पर संगठन को सृदृढ़ करना होगा। तभी हमारी जीत होगी।

श्री आर.के. चौधरी ने अपने साथियों से कहा कि वे समाजवादी पार्टी के नेताओं-कार्यकताओं के साथ तालमेल से काम करें। अब हम सबको समाजवादी पार्टी को मजबूती देनी है। स्वामी ओमवेश ने कहा कि अब देश के भाईचारे को जाति-धर्म के बहाने तोड़ने की साजिश हो रही है। उन्होंने श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में विश्वास जताया और कहा कि वे अपनी सांस रहते समाजवादी पार्टी की मजबूती के लिए काम करेंगे।

इस अवसर पर सर्वश्री माता प्रसाद पाण्डेय, बलराम यादव, राजेंद्र चौधरी, अवधेश प्रसाद, इंद्रजीत सरोज, सुशीला सरोज, एसआरएस यादव, अरविन्द सिंह गोप, अरविन्द कुमार सिंह, जावेद आब्दी, पवन पाण्डेय, विकास यादव, विजय यादव आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

पूर्वमंत्री धर्मवीर जी को श्रद्धांजली व माल्यार्पण

आज दिनांक 22 दिसम्बर 2017 को पूर्व ग्रहमंत्री उ०प्र० व केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार स्व० श्री धर्मवीर जी की 33वी पुण्यतिथि पर प्रातः 10:00 बजे सुलेम सराय स्थित उनके आवास पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती इंदिरा देवी, पुत्रगण सांसद कौशंभी शैलेंद्र कुमार व पूर्व विधायक सोराव सत्यवीर मुन्ना सहित सम्पूर्ण परिवार व निकट सहयोगियों द्वारा वैदिक रीति से पूजा/हवन किया गया।

तत्पश्चात् ट्रान्स्पोर्ट नगर, इला० स्थित *स्व० धर्मवीर मूर्तिस्थल पर 11:00 से 11:30 बजे के मध्य माल्यार्पण के कार्यक्रम व ग़रीबों को कड़कती ठंड में सैकड़ों की संख्या में कम्बल वितरण का कार्यक्रम संपन्न हुआ।* माल्यार्पण के पश्चात् अपने सम्बोधन में *पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार ने कहा की स्वर्गीय धर्मवीर जी राजनीतिक सुचिता व समाज सेवा रूपी साध्य का सदैव पालन करते रहे जिसका आज के राजनीतिक परिदृश्य में अभाव सा हो गया है*।

इस अवसर पर अपने नेता को श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में सर्वश्री दरियाव सिंह पटेल, रवीन्द्र पाण्डे, आनंद आर्य, अशोक सिंह, कालीचरण पाल, अशोक केसरवानी, दिनेश केसरवानी, मोईंनउद्दीन, छात्र नेता अखिलेश यादव, राम सुरेमन आर्य, उषा शैलेंद्र, मधुवीर, दीक्षा आर्य, मनोज कुमार, शाश्वत वीर, सूर्यवीर, वेदांत आर्यन, चंदन पासी, बहादुर सरोज, समर सरोज, बबलू पटेल, रामभजन त्रिपाठी, अचल यादव, राजीव पासवान, मनीष गुप्ता, राकेश पासी अन्नू कुशवाह, महेंद्र, उत्तम शर्मा आदि थे।

अंत में पधारे हुए लोगों का ‘धर्मवीर सामाजिक संस्थान ‘ के प्रबंधक व पूर्व विधायक सत्यवीर मुन्ना ने धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि यह संस्थान सदैव स्व० धर्मवीर जी के पदचिंहो पर चलते हुए ग़रीबों व मजलूमो की सेवा में तत्पर रहेगा।

नवादा पासी समाज की बैठक,28 जनवरी को होगा अधिवेशन

बिहार ।। अखिल भरतीय पासी समाज , जिला इकाई – नवादा की आज अम्बेडकर पुस्तकालय मे जिला अध्यक्ष प्रमोद कुमार चौधरी की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया , जिसमे 28 जनवरी 2018 को होने वाले पासी महाअधिवेशन को लें कर विचार विमर्श की गई।

अधिवेशन संयोजक के रूप में कृष्ण चौधरी उर्फ पड़कन चौधरी को नियुक्त किया गया ,इनके अलावा 25 सदस्यीए संचालन समिति का भी गठन हुआ ।

राजेश्वर कुमार(हिसुआ) , सुनील पत्रकार(हिसुआ) , अशोक चौधरी(हिसुआ), राजीव नयन (चौधरी नगर नवादा), बसंती देवी(रजौली) , चंद्रिका चौधरी(चौधरी नगर नवादा) , सीताराम चौधरी(चौधरी नगर नवादा)निशान्त चौधरी (मिर्जापुर नवादा), सतेंद्र कुमार नूनू चौधरी(वारिसलीगंज) , दिनेश महथा(वारिसलीगंज) के.के . चौधरी(पकरीवर्मा) परमेश्वर मंडल (पकरीवर्मा) ,सरोज चौधरी(रोह) संजय कुमार(नवादा) रजेन्द्र भारती(सिरदला)अरुण कुमार(नरहट) बाढ़ो चौधरी(रजौली) सुरेश चौधरी(अकबरपुर) नरेश चौधरी(गोविंदपुर) श्याम देव चौधरी(नारदीगंज)चंदन चौधरी(डोभरा पर ) धर्मेन्द्र चौधरी(सोहजाना) किशोरी चौधरी(भोला बीघा) मुंद्रिरका चौधरी को बनाया गया ।

अधिवेशन की तैयारी पर विचार विमर्श हेतू अगली बैठक चौधरी भवन (चौधरी नगर नवादा )मे दिनांक 31/12/2017 दिन रविवार को समय 11 बजे दिन मे होगा ! आप सभी आमंत्रित है ।

रिपोर्ट : निशान्त चौधरी ,नवादा

शिष्य ज्ञान साहब कर रहें है सन्त सुकई दास के विचारों का प्रचार

पासी समाज में जन्में महान समाज सुधारक “पेरियार सन्त सुकई दास परमहंस साहेब” के परम् शिष्य “सन्त ज्ञानदास साहेब” से आज इलाहाबाद में मिलना हुआ । उनसे सामाजिक रीतिरिवाजों से सम्बंधित कई मसलों पर चर्चा हुई।

सन्त जी समाज मे ब्याप्त ब्राह्मणवाद पाखण्डवाद को समूल नष्ट करने के तरीकों पर गंभीरता से अपना पक्ष रखा । सन्त ज्ञान दास साहेब का जन्म 21 मार्च 1944 में नई सड़क बाराबंकी में हुआ । 18 वर्ष की अल्पायु में ही आप सामाजिक परिवर्तन के नायक सन्त सुकई दास जी के शरण में आकर समाज सुधार में लग गए ।

आप अविवाहित रहकर दलितों – पिछड़ो के समाज मे ब्याप्त कुरूतियों तथा अंधविश्वास ,पाखण्ड के खिलाफ अभियान चला रहे हैं । इनके साथ अन्य कई सन्त अविवाहित रहकर आपमे गुरु सन्त सुकई दास के विचारों को समाज में फ़ैलाने के लिए प्रचार प्रसार कर रहे है।

पूर्व आईपीएस व लेखक रामप्रकाश सरोज से एक मुलाकात! पासी जाति की ‘सरोज’ टाइटिल है इनकी देन

दो दिन लखनऊ में रहा इस दौरान पासी समाज के दो बड़े महान ब्यक्तित्यों से मुलाकात हुई।

प्रथम मुलाकात : 1964 में पासी समाज के पहले आईपीएस बने राम प्रकाश सरोज (पूर्व एडीजीपी ) से मिलकर उनके द्वारा पासी समाज पर लिखी पुस्तकें प्राप्त किया ।

अनुभव में सरोज जी ने बताया कि सत्र 1997में मुझे ‘उत्तर प्रदेश पासी जागृत मण्डल ‘ ने एक सामाजिक कार्यक्रम में बोलने के लिए आमंत्रित किया था। जाने से पहले मैं पासी समाज के बारें पढ़कर जानकारी करना चाहा तो मुझे कोई किताब नही मिली ! तभी मेरे मन आया कि इस समाज के लिए लिखना चाहिए ।

क्योंकि इस बहादुर कौम का गौरवशाली इतिहास रहा है जिसे लेखनबद्ध नही किया गया ? लेखन में पासी समाज की उपेक्षा को उन्होंने भरने का पूरा प्रयास किया।

अब तक पासी समाज सहित 14 पुस्तकों का लेखन सरोज जी द्वारा किया जा चुका है । जिनमे से ” पासी समाज दर्पण, क्रांतिवीर मदारी पासी एवं एका आंदोलन, आज़ादी के दीवाने पासी , आरक्षण का सच एवं लोक सेवा में पासी , लोकतांत्रिक सत्त्ता ,पासी, अनुभव, पासी समाज के गौरव , हमारे प्रेरणा स्रोत , जीवन के अजब गजब रंग प्रमुख रूप में शामिल है।

“किसान का बेटा आईपीएस” के नाम से सरोज जी की आत्मकथा भी छपकर आ गई है। जिसे मुझे भेंट स्वरूप उन्होंने दिया।

जिसमे उन्होंने अपने जीवन के कथा -क्रम का बिस्तार से चर्चा किये मुझे अभी सारी किताबे पढ़ना है । इस दौरान साथी संजीव पुरूषार्थी , राजू पासी डॉ महेन्द्र , मोनू पासी को भी श्री सरोज जी ने अपनी लिखी पुस्तकें भेंट की । 82 वर्षीय सरोज जी चर्चा , परिचर्चा ज्ञान ,अनुभव प्राप्त कर बाहर निकलते ही मित्रों ने कहाँ सर तो समाज की धरोहर है । ख़ास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में पासी जाति के लोग जो ‘सरोज’ टाइटिल का इस्तेमाल करते हैं। वह इन्ही के नाम पर लगाते हैं। आरपी सरोज जी पासी समाज के गौरव के रूप में देखे जाते हैं।

लेखक– अजय प्रकाश सरोज

द्वितीय मुलाकात : डॉ0 राम लाल राम (पूर्व एडीजीपी ) के साथ …”परिवर्तन की क़ूवत तो नेता में ही होती हैं” ……पोस्ट के लिए इंतजार कीजिये