‘भारशिव शोध एवं सांस्कृतिक संस्थान’ शुरू करेगा शिक्षा व चिकित्सा कैम्प

आज दिनांक 29:07:2018 को आयुष्मान हास्पिटल शान्तीपुरम फाफामऊ इलाहाबाद में समाज के उन्नयन और विकास को लेकर स्वजातीय बन्धुओं की एक गोष्ठी सम्पन्न हुई।

गोष्ठी में दलित बाहुल वाले क्षेत्रों में निरन्तर मेडिकल कैम्प और शैक्षिक काउन्सलिंग कार्यक्रम के माध्यम से समाज को लाभान्वित करने का निर्णय लिया गया। कैम्प का दिनांक व स्थान जल्दी ही आपके समक्ष भारशिव शोध एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा समय समय पर सूचित किया जाता रहेगा । फिलहाल कार्यक्रम तय हो चुका है।

गोष्ठी में डॉ यशवंत के साथ-साथ डीजीएम डॉ नागेश सिंह , डॉ अशोक कुमार , सुनील राज , एड. प्रमोद भारतीय, मदन व अजय , संदीप कैथल तथा दिनेश आदि उपस्थित रहे।

चप्पे चप्पे पर निगहेबां सीआरपीएफ देश में पहचान को मोहताज़ क्यों ?

आप सभी को यह बताते हुए हमें गर्व और हर्ष की अनुभूति हो रही है कि विश्व का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल जिसे आपमें से कुछ लोग सी.आर.पी.एफ़. के नाम से जानते हैं आज 27 जुलाई 2018 को देश की सेवा में अपने 79 वर्ष पूर्ण कर रहा है । तीन लाख से भी अधिक जांबाजो का यह समूह देश की आतंरिक सुरक्षा का सबसे बड़ा प्रहरी है , किन्तु यह एक विचारणीय एवं दुखद तथ्य है कि ये महान बल जिसकी वीरता और बलिदानों की कहानियों का साक्षी देश का हर एक जर्रा है आज अपने इस देश में पहचान का मोहताज है |

हमारे देश का तथाकथित पढ़ा लिखा और जागरुक नागरिक जो कि भारतीय सिनेमा और धारावाहिकों में काम करने वाले बड़े सितारों के अलावा चेले-चमचों की भूमिका करने वालों को और पश्चिमी गायकों और सितारों के नाम और आवाज सब पहचानते हैं वो ये भी नहीं जानते कि हम कौन हैं और क्या करते हैं ? और तो और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ और सर्वज्ञ मीडिया के स्वयंभू पत्रकार भी जब हमें देख कर सेना-सेना कह कर बुलाते हैं तो आश्चर्य होता है कि देश के जिन नागरिकों की सेवा और सुरक्षा में हम विगत 78 वर्षों से अहर्निश तत्पर हैं उन्हें हमारी खबर भी नहीं है |

इस लिए आज आप सब को यह बताना जरूरी है कि हम कौन हैं और आपकी सेवा में कहाँ-कहाँ और क्या क्या कर रहे हैं तो सुने ,सन 1939 में स्थापित यह बल जिसने आजादी के बाद रियासतों के हिन्दुस्तान में विलय में प्रमुख भूमिका निभाई, चम्बल के डाकुओं का सफाया करने वाले , चीन युद्ध के दौरान हॉट स्प्रिंग में सर्वप्रथम शहादत देने वाले हम ही थे , हम वही हैं जो बस मुट्ठी भर (120) हो कर भी 1965 की लड़ाई के दौरान कच्छ के रेगिस्तान में पाकिस्तानी ब्रिगेड के 3500 की हथियारबंद टोली को घुटनों पर ले आये थे ।

हम वो हैं जिन्होंने उत्तर-पूर्व से उग्रवाद और पंजाब के आतंकवाद को अपनी बंदूकों के जोर पर ख़त्म किया है । हम वो हैं जिन्होंने आतंकवादियों के हमलों से देश की संसद और अयोध्या के राम मंदिर की रक्षा की है , सांप्रदायिक दंगों के दौरान नीली वर्दी पहने द्रुत गति से आने वाले भी हम हैं और मध्यभारत के जंगलों में नासूर बन रहे नक्सलवाद के खिलाफ हरी धारीदार वर्दी पहने बारूद बिछाई गयी धरती को अपने खून से सींच कर तिरंगा थामें हुए संविधान और क़ानून की रक्षा करने वाले भी हम ही हैं |

लोकतंत्र के उत्सव चुनाव के दौरान शांतिपूर्ण और निष्पक्ष मतदान का बीड़ा उठाने वाले हम वो हैं जिनके बूटों की धमक सुनकर उपद्रवियों के दिल में दहशत फ़ैल जाती है | कश्मीर की घाटी में एक हाथ में लाठी , दूसरे में ढाल थामे पड़ोसी मुल्क के टुकड़ों की लालच और मानवाधिकारों की आड़ में गद्दारों के हाथों बरसते पत्थरों को चुपचाप सहने वाले भी हम हैं और श्रीनगर एयरपोर्ट की निगेहबानी करने वाले भी हम हैं, हम वो हैं जो अयोध्या, मथुरा , काशी , माँ वैष्णो देवी और अमरनाथ की यात्रा के दौरान आपके मुहाफ़िज़ हैं और प्राकृतिक आपदा के समय एन डी आर एफ के रूप में , काली वर्दी पहने एन.एस.जी. में और सफारी सूट पहने एस.पी.जी. में हम ही हैं |

बलिदान और वीरता की सूची में सर्वप्रथम हम ही हैं हम हर जगह आपकी और देश की सेवा और रक्षा में तत्पर हैं बस यही अभीलाषा है कि हमें पहचानों हम केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल हैं जो बस नाम के लिए रिजर्व हैं और देश के लिए सदैव तैनात हैं , तत्पर है ……जय हिन्द( कमांडेंट नितीन्द्र नाथ के व्हाट्सएप से प्राप्त)

दलित पिछड़ो को कावड़ थमाकर, कहाँ गायब हो गए सवर्ण

प्रस्तावना: मेरे एक मित्र की मेरठ जिले में ड्यूटी लगी थी कांवड़ रुट पर. मैंने उन्हें एक सोशल एक्सपेरिमेंट करने के लिए रिक्वेस्ट किया.

हाइपोथिसिस : कांवड़ यात्रा में जाना सवर्णों ने छोड़ दिया है.

शोध प्रश्न – मेरठ के कांवड़ा यात्रा रूट से गुजरने वाले भक्त जनेऊधारी हैं या नहीं?

शोध विधि – 500 कांवड़ यात्रियों के सैंपल साइज में जनेऊधारी और गैरजनेऊधारी देखना था. उन्होंने एक जगह पर सिक्युरिटी चेक के नाम पर बैरियर लगाकर खुद चेकिंग की. इसके लिए उन्हें सिर्फ कंधे पर हाथ रखना था. सारा डाटा प्राइमरी हैं और इंपीरिकल तरीके से इकट्ठा किया गया. डाटा संग्रह में गलती की संभावना इतनी है कि किसी व्यक्ति ने अगर उस खास दिन जनेऊ नहीं पहना है, तो इसका असर डाटा पर पड़ेगा.

निष्कर्ष – आप जानते हैं क्या पता चला? उस सैंपल में एक भी जनेऊधारी नहीं था.

विमर्शः भारत में धर्म का बोझ ओबीसी और दलित अपने कंधे पर ढो रहा है. उस धर्म को, जो उसे सवर्ण जातियों से नीच बताता है. जो उसकी ज्यादातर तकलीफों का कारण हैं. जिसने उसके साधारण नागरिक होने के मार्ग में बाधाएं खड़ी हो गई हैं.

इसे ग्राम्शी “हेजेमनी बाई कसेंट” यानी सहमति से चल रहा वर्चस्ववाद कहते हैं. यह जबरन या दबाव की वजह से काम नहीं करता. नीचे वाला ऊपर वाले को ऊपर वाला मानता, इसलिए जातिवाद चल रहा है.

एक बार दलितों और ओबीसी रीढ़ की हड्डी सीधी करके खड़ा हो गया, तो जातिवाद का खेल खत्म.।

कांवड़ यात्रा आरएसएस की सोंची समझी रणनीति का हिस्सा था ,जिसका लाभ भाजपा को मिल गया, और सवर्ण हिंदुत्व ऐजेंडे पर सत्ता पर काबिज़ हो गया।

अब वह शासन सत्ता बैठकर अपने व आने वाली पीढ़ियों का बंदोबस्त में लगा है। और दलित पिछड़े लोग कावड़ यात्रा लेकर ‘बोल बम.. बोल बम’हर हर महादेव करने में मस्त है।

इलाहाबाद में पूर्व पार्षद पति राजेश उर्फ बादल पासी को बदमाशो ने मारी गोली, हालत गम्भीर

इलाहाबाद : यूपी के इलाहाबाद जिले में फिर एक बार दिल दहला देने वाली वारदात हुई है। सोरांव थानाक्षेत्र के फाफामऊ में राजेश कुमार उर्फ बादल को दौड़ाकर गोली मारी गयी है। घटना बीती देर रात की है। राजेश पर दो महीने पहले भी जानलेवा हमला किया गया था। बताते चलें कि राजेश की पत्नी पूर्व पार्षद भी रह चुकी है। उसका पूरा नाम राजेश कुमार है। जिले के सोरांव थाना अंतर्गत फाफामऊ के वृंदावन गेस्ट हाउस पास पूर्व पार्षद पति राजेश कुमार उर्फ बादल को देर रात दौड़ाकर गोली मारी गई। बता दें कि दो महीने पहले राजेश पर जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें वह बच गया था। घअना के बाद परिजनों ने आधा दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। राजेश बादल को गोली मारे जाने के बाद पूरे इलाके में हड़कंप मच गया है।

बताया गया है राजेश बादल पर शुक्रवार की देर रात फाफामऊ के वृंदावन गेस्ट हाउस के पास दौड़ाकर गोली मारी गयी। घटना में वह बुरी तरह घायल हो गया। राजेश को गंभीर हालत में फाफामऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस के मुताबिक गोली राजेश के पेट में लगी है। सूत्रों के मुताबिक राजेश बादल का चिल्ला के रहने वाले कई लोगों के साथ जमीनी विवाद भी चल रहा है। इसके चलते उसे पहले भी मारने की कोशिश की जा चुकी है।

राजेश पर शिवकुटी इलाक़े में उसके कार्यालय में घुसकर बीते पांच मई को बदमाशों ने गोली मारी थी। इस घटना में उसे तीन गोलियां लगीं फिर भी वह बच गया। इस मामले में बादल के परिजनों ने आधा दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज कराया था। बादल शहर के शिवकुअी थानान्तर्गत चिल्ला का रहने वाला है, पुलिस रिकार्ड में राजेश एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी है। उसकी पत्नी रेखा चिल्ला इलाके की पार्षद रह चुकी है।

न्यायपालिका के जरिये आरक्षण खत्म कर रहीं है मोदी सरकार

भोजपुरी में एक कहावत है कि ” जइसने रसूलन बीबी, ओइसने भभकर मियां” मसला यह है कि सरकार, न्यायपालिका एवं यूजीसी सब मिलकर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित वर्गों का संवैधानिक प्रतिनिधित्व खत्म कर ही रही है, लेकिन इसका विरोध करने के लिए भी आरक्षित तबके के प्राध्यापक एवं शोधार्थी आगे नहीं आ रहे है। पूरे देश मे लगभग 200 के करीब ही प्राध्यापक एवंशोधार्थी है जो इस मसले पर चिंतित है। बाकी सब उस फिल्मी भीड़ की तरह मृतप्राय है जो सिर्फ काम खत्म हो जाने पर तालियां बजाने का इंतज़ार करते है।

यह स्थिति बहुत ही भयावह है। यदि आरक्षित वर्ग के प्राध्यापक एवं शोधार्थी इस आंदोलन में शरीक नहीं हुए तो वे झुनझुना बजाने लायक भी नहीं रह जाएंगे। फिर दूल्हे के फूफा की तरह रूठते रहिएगा की मुझे किसी ने पूछा ही नहीं? खुद आगे बढिये औऱ इस अकादमिक अन्याय का विरोध कीजिये। जैसे भी कर सकें।इसको राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाना पड़ेगा वरना हमारा बहुत नुकसान हो सकता है।

आज का प्रकाश जावेडकर जी का बयान बहुत निराशाजनक है। उन्होंने कहा है कि यूजीसी नहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहा है। हमें अपनी पूरी ताकत लगाकर के अपने प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों को जगाना पड़ेगा। आपसे इसमें और अधिक सक्रियता की अपेक्षा है_rajesh paswan

यूपी का विपक्ष मौन क्यों है ?

वो 72 में से 56 यादव एसडीएम की फर्जी खबर व्हाट्सएप से फैलाते रहे। इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और रिटायर्ड आईपीएस सूर्यप्रताप सिंह इसे फेसबुक पर लिखता रहा। अखबार इशारों में एक जाति विशेष के यादव एसडीएम छापते रहे। अखिलेश सरकार का कोई प्रवक्ता इसपर सफाई तक न दे पाया। यूपी सरकार की वेबसाइट पर पूरा रिजल्ट पड़ा था।

अफवाह सच मान ली गयी। अब गोरखपुर विश्वविद्यालय में 71 पदों पर मुख्यमंत्री के एक जातीय के 52 असिस्टेंट प्रोफेसर चुने गए हैं। देश के सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय में केवल ब्राह्मण जाति के लोगों की खुला नियुक्ति पत्र देकर असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया जा रहा है.

अपने ट्वीटर से इसपर टिप्पणी करने के कारण सचिवालय में निजी सचिव पद पर तैनात अमर सिंह पटेल के ऊपर योगी की सरकार विभागीय कार्यवाही करने जा रही है। क्या कोई हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का वकील राजकीय कर्मचारी-अधिकारी के लिए वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप बदली हुई गाइड लाइन की स्पष्ट व्याख्या कोर्ट से नही ला सकता क्या ? याद रहे विश्वविद्यालयों के कुलपति कैम्पस में खुलेआम संघ की शाखा लगवा रहे हैं, खुलेआम राम मंदिर निर्माण की शपथ के कार्यक्रम आयोजित करवा रहे हैं।

पर आज भी विपक्ष में बैठी उत्तर प्रदेश के दोनों बड़ी पार्टी सपा-बसपा के सभी प्रवक्ता काठ के उल्लू तरह मौन बैठें हैं…..©मारुति मानव

पुलिस के डर से ताड़ी उतारते समय कारू राजवंशी गिरे, चोटिल होकर पहुँचे अस्पताल

पेट के खातिर जान दाव पर लगानी पड़ जाती है ,कुछ ऐसा ही हुआ, मौहली (नवादा,बिहार)के रहने वाले कारू राजवंशी के साथ ,कारू जी जाति से तो रजवार(अनुसूचित जाति) है ,पर पेट के खातिर ताड़ से ताड़ी उतार कर बेचना इनका पेशा है , ताड़ के पेड़ से ताड़ी उतार कर बेचने का खानदानी पेशा पासी जाति का है ,पर पेट के खातिर और भी कई जातियां इस व्यवसाय को करती है ,उन में से ही एक है कारु राजवंशी जी जो रविवार को रोज की तरह ताड़ चढ़ने गए और ताड़ के शीर्ष से नीचे जमीन पर गिर गए ,उनके दाहिने पैर की जांघ वाली हड्डी बिल्कुल टूट चुकी है , दाहिना पैर दो जगहों से टूटा हुआ है ,कमर की हड्डी भी खिसकी हुई है ,रह रह कर सीने में दर्द हो रहा है जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है ।
उनसे मिलने पहुँचा और इनका इलाज अच्छे से हो इसकी व्यवस्था में लग गया ,मेरे साथ अम्बेडकर छात्रावास के छात्रनायक विजय चौधरी भी थे , कारु जी से पूँछने पर पता चला वो बचपन से ही ताड़ चढ़ते है ,काफी एक्सपीरियंस है फिर ये चूक कैसे हो गई ?

कारु राजवंशी जी ने बताया ,ताड़ी पर प्रतिबंध लगा हुआ है ,पुलिस कई बार आ कर हमारे लमनी-चुक्का को तोड़-फोड़ कर हमें पीट कर कहती है ये सब बन्द करो नही तो पकड़ कर जेल में बंद कर देंगे ।हम ये रोजगार बचपन से करते आ रहे है अब अगर ये नही करेंगे तो क्या करें ? न चाहते हुए भी पेट के खातिर पुलिस से छुप छुपा कर ताड़ चढ़ लेता हूँ ,कल रोड़ के किनारे एक ताड़ के पेड़ पर चढ़ा हुआ था तो पास से पुलिस जीप गुजरते देखी ,मुझे लगा वो ताड़ी व्यवसाय वालो को पकड़ने आ रही ,जल्द बाजी में पेड़ से उतरने के कारण पैर फिसल गया और मैं जमीन पर गिर पड़ा ,वो तो शुक्र है जिस जमीन पर गिरा वो जमीन खेती के लिए सिचाई की हुई थी जिसके कारण कुछ कम चोट आई ।

अब सवाल ये उठता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के अनुसार ताड़ी पर प्रतिबन्ध नीरा प्रॉडक्ट होने के बाद लगाई गई है ,शराब बन्दी के करीब एक वर्ष बाद ताड़ी पर प्रतिबन्ध लगा था ,कारण – एक साल के भीतर नीरा का उत्पादन शुरू करवा कर ही ताड़ी पर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा । नीरा का प्लांट लगा तो सही में पर चला नही । अगर कहीं उत्पादन चालू है तो सरकार बताए कहाँ कहाँ चालू है ,मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ नीरा का उत्पादन बन्द है ।

विकास के दावे करने वाले बाते पासी जाति और ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों का विकास कहाँ हुआ? रोजगार दिए नही पर रोजगार छीन कर गरीब असहाय लोगों को भूखे मारने पर तुले हुए है। अखिल भारतीय पासी समाज सह ताड़ी व्यवसाय संघ आप से पूछना चाहती है ,जब नीरा का उत्पादन ही नही हो रहा तो किस आधार पर ताड़ी पर प्रतिबन्ध लगाया गया है क्या आपकी यही मंशा है ,इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भूखे पेट मार देने की ?
हम मांग करते है, ताड़ी व्यवसाय को प्रतिबंद से मुक्त किया जाए साथ ताड़ी व्यवसाय के कारण जितने भी लोग जेल में बंद है ,उन्हें रिहा किया जाए ।

निशान्त चौधरी
प्रदेश प्रधान महासचिव ,अखिल भरतीय पासी समाज ,युवा मोर्चा बिहार ।

बागपत जेल में डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या

*कौन है मुन्ना बजरंगी*

मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह है. उसका जन्म 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ था. उसके पिता पारसनाथ सिंह उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे. मगर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने उनके अरमानों को कुचल दिया. उसने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी. किशोर अवस्था तक आते आते उसे कई ऐसे शौक लग गए जो उसे जुर्म की दुनिया में ले जाने के लिए काफी थे.

मुन्ना को हथियार रखने का बड़ा शौक था. वह फिल्मों की तरह एक बड़ा गैंगेस्टर बनना चाहता था. यही वजह थी कि 17 साल की नाबालिग उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. जौनपुर के सुरेही थाना में उसके खिलाफ मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद मुन्ना ने कभी पलटकर नहीं देखा. वह जरायम के दलदल में धंसता चला गया.

*अस्सी के दशक में की थी पहली हत्या*

मुन्ना अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगा था. इसी दौरान उसे जौनपुर के स्थानीय दबंग माफिया गजराज सिंह का संरक्षण हासिल हो गया. मुन्ना अब उसके लिए काम करने लगा था. इसी दौरान 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या कर दी. उसके मुंह खून लग चुका था. इसके बाद उसने गजराज के इशारे पर ही जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या करके पूर्वांचल में अपना दम दिखाया. उसके बाद उसने कई लोगों की जान ली.

पूर्वांचल में अपनी साख बढ़ाने के लिए मुन्ना बजरंगी 90 के दशक में पूर्वांचल के बाहुबली माफिया और राजनेता मुख्तार अंसारी के गैंग में शामिल हो गया. यह गैंग मऊ से संचालित हो रहा था, लेकिन इसका असर पूरे पूर्वांचल पर था. मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा और 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधायक निर्वाचित हुए. इसके बाद इस गैंग की ताकत बहुत बढ़ गई. मुन्ना सीधे पर सरकारी ठेकों को प्रभावित करने लगा था. वह लगातार मुख्तार अंसारी के निर्देशन में काम कर रहा था.

*ठेकेदारी और दबंगई ने बढ़ाए दुश्मन*

पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के कारोबार पर मुख्तार अंसारी का कब्जा था. लेकिन इसी दौरान तेजी से उभरते बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय उनके लिए चुनौती बनने लगे. उन पर मुख्तार के दुश्मन ब्रिजेश सिंह का हाथ था. उसी के संरक्षण में कृष्णानंद राय का गैंग फल फूल रहा था. इसी वजह से दोनों गैंग अपनी ताकत बढ़ा रहे थे. इनके संबंध अंडरवर्ल्ड के साथ भी जुड़े गए थे. कृष्णानंद राय का बढ़ता प्रभाव मुख्तार को रास नहीं आ रहा था. उन्होंने कृष्णानंद राय को खत्म करने की जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को सौंप दी.

*मुन्ना ने की थी भाजपा विधायक की हत्या*

मुख्तार से फरमान मिल जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को खत्म करने की साजिश रची. और उसी के चलते 29 नवंबर 2005 को माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कहने पर मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत की नींद सुला दिया. उसने अपने साथियों के साथ मिलकर लखनऊ हाइवे पर कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर AK47 से 400 गोलियां बरसाई थी. इस हमले में गाजीपुर से विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे 6 अन्य लोग भी मारे गए थे. पोस्टमार्टम के दौरान हर मृतक के शरीर से 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थी. इस हत्याकांड ने सूबे के सियासी हलकों में हलचल मचा दी. हर कोई मुन्ना बजरंगी के नाम से खौफ खाने लगा. इस हत्या को अंजाम देने के बाद वह मोस्ट वॉन्टेड बन गया था.

*कभी सात लाख का इनामी बदमाश था मुन्ना*

भाजपा विधायक की हत्या के अलावा कई मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस, एसटीएफ और सीबीआई को मुन्ना बजरंगी की तलाश थी. इसलिए उस पर सात लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया. उस पर हत्या, अपहरण और वसूली के कई मामलों में शामिल होने के आरोप है. वो लगातार अपनी लोकेशन बदलता रहा. पुलिस का दबाव भी बढ़ता जा रहा था.

*मुंबई में ली थी पनाह*

यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार मुन्ना बजरंगी को तलाश कर रही थी. उसका यूपी और बिहार में रह पाना मुश्किल हो गया था. दिल्ली भी उसके लिए सुरक्षित नहीं था. इसलिए मुन्ना भागकर मुंबई चला गया. उसने एक लंबा अरसा वहीं गुजारा. इस दौरान उसका कई बार विदेश जाना भी होता रहा. उसके अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ते भी मजबूत होते जा रहे थे. वह मुंबई से ही फोन पर अपने लोगों को दिशा निर्देश दे रहा था.

*राजनीति में आजमाई किस्मत*

एक बार मुन्ना ने लोकसभा चुनाव में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना एक डमी उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश की. मुन्ना बजरंगी एक महिला को गाजीपुर से भाजपा का टिकट दिलवाने की कोशिश कर रहा था. जिसके चलते उसके मुख्तार अंसारी के साथ संबंध भी खराब हो रहे थे. यही वजह थी कि मुख्तार उसके लोगों की मदद भी नहीं कर रहे थे. बीजेपी से निराश होने के बाद मुन्ना बजरंगी ने कांग्रेस का दामन थामा. वह कांग्रेस के एक कद्दावर नेता की शरण में चला गया. कांग्रेस के वह नेता भी जौनपुर जिले के रहने वाले थे. मगर मुंबई में रह कर सियासत करते थे. मुन्ना बजरंगी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नेता जी को सपोर्ट भी किया था.

*ऐसे गिरफ्तार हुआ था मुन्ना

उत्तर प्रदेश समते कई राज्यों में मुन्ना बजरंगी के खिलाफ मुकदमे दर्ज थे. वह पुलिस के लिए परेशानी का सबब बन चुका था. उसके खिलाफ सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हैं. लेकिन 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मलाड इलाके में नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया था. माना जाता है कि मुन्ना को अपने एनकाउंटर का डर सता रहा था. इसलिए उसने खुद एक योजना के तहत दिल्ली पुलिस से अपनी गिरफ्तारी कराई थी. मुन्ना की गिरफ्तारी के इस ऑपरेशन में मुंबई पुलिस को भी ऐन वक्त पर शामिल किया गया था. बाद में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि दिल्ली के विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या में मुन्ना बजरंगी का हाथ होने का शक है. इसलिए उसे गिरफ्तार किया गया. तब से उसे अलग अलग जेल में रखा जा रहा है. इस दौरान उसके जेल से लोगों को धमकाने, वसूली करने जैसे मामले भी सामने आते रहे हैं. मुन्ना बजरंगी का दावा है कि उसने अपने 20 साल के आपराधिक जीवन में 40 हत्याएं की हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जेल में हुई हत्या के न्यायिक जांच के आदेश दिए है।

पदोन्नति में आरक्षण तत्काल लागू कराने को इलाहाबाद में मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

●अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी दलितों के लिए माँगा आरक्षण

इलाहाबाद । एससी /एसटी उत्पीड़न निवारण एवं शसक्तीकरण केंद्र इलाहाबाद के जिला प्रभारी अजय प्रकाश सरोज के नेतृत्व सहित विभिन्न संगठनों के लोग संविधान प्रदत दो सूत्री मांगों को लेकर मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा है ।

बताते चले कि प्रोन्नति में आरक्षण के प्रकरण में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी )दिनांक 15 जून 2018 के आदेश द्वारा सभी राज्य सरकारों एवं संस्थानों में पदोन्नति में आरक्षण की कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिये है।

जिसका हवाला देते हुए संगठन के प्रतिनिधि मंडल ने जिलाधिकारी की अनुपस्थिति में एडीएम सिटी रजनीश राय को ज्ञापन सौंपकर पदोन्नति में आरक्षण लागू करने की मांग की है।।

इस दौरान डॉ आंबेडकर महासभा के पदाधिकारी प्रो0 कौलेश्वर प्रियदर्शी ने कहा कि 11 जनवरी ,2015 को तथा उसके बाद भी वर्तमान भारत सरकार ने अपने एटॉर्नी जनरल के माध्यम से यह भी यह बात कहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अल्पसंख्यक संस्थान नही है।लेकिन 70 वर्षो से अलीगढ़ विश्विद्यालय प्रशासन के भेदभाव पूर्ण रवैये के चलते अभी तक दलितों को विश्विद्यालय में भागीदारी नही मिल पाई है।

जिला प्रभारी अजय प्रकाश सरोज ने कहा कि दोनों संवेदनशील मामले में है हम मांग करते है कि “उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण लागू कर दलित कर्मचारियों / अधिकारियों को उनका खोया हुआ सम्मान वापस दिया जाए। ” साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दलितों का आरक्षण लागू कराने हेतु अविलंब संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाना चाहिए। ताकि दलितों के शसक्तीकरण का रास्ता साफ हो सकें ।

इस दौरान एडवोकेट प्रमोद भारतीय ,बीके बगड़िया, संजीव पुरुषार्थी, अजीत भारतीय, रामकृष्ण , सुनील राज पासी ,एडवोकेट अनूप चंद वर्मा ,आरडी धारिया, नीरज पासी, महेंद्र कुशवाहा, सतीश चन्द्रा , नाथूराम बौद्ध, सुनील चौधरी, एडवोकेट पवन मिश्रा, चन्द्र बहादुर गौतम,राम बाबू ,पवन शंकर , अभय वर्मा , राकेश पासी, हैदर अब्बास , शिवचंद्र वर्मा,आलम एडवोकेट आदि लोग उपस्थित रहें।

प्यार की कहानी 25 साल पहले 25 साल बाद

20 साल बाद आज मेरी मुलाकात रमेश से हुई 18 साल की उम्र में जो रमेश गांव का सबसे खूबसूरत लड़का था आज उसके बाल पक चुके हैं उसकी सुंदरता खत्म हो चुकी है उसने बताया बेटी की शादी हो चुकी है बेटा कालेज जा रहा है ।

मैंने पूछा रमेश आप सुमन से बहुत प्यार करते थे उसकी शादी के इतने वर्षों बाद क्या कभी उसकी याद आती है अचानक रमेश की आंखों में चमक और होंठों पर मुस्कुराहट आयी और फिर चली भी गयी ।
प्रायमरी स्कूल में जब मैने जाना स्टार्ट किया था उस समय रमेश शायद आठवीं में था वह गांव का सबसे ज्यादा खूबसूरत लड़का था गांव की बहुत सी लड़कियां और भाभियां उससे बातें करना पसंद करती थी ।

सुमन गांव के जमीदार की बेटी थी जमीदार ने सुमन को लड़कों से दूर रखने के लिए नही पढ़ाया
रमेश के स्कूल का रास्ता सुमन के घर के सामने से ही गुजरता था मुझे याद है रमेश अक्सर खाकी आफ पैंट और सफेद शर्ट पहनकर स्कूल जाता था सुमन अक्सर उसे दरवाजे पर खड़ी दिखती थी और रमेश को देखकर मुस्कुरा देती थी कुछ दिनो बाद दोनों में बात भी होने लगी और दोनों में धीरे धीरे प्यार हो गया पर वे भारतीय परम्परा के अनुसार प्यार को ढंककर नही रख सके और गाँव मे मसहूर हो गए ।

सुमन और रमेश ने लोगों से बचकर बात करने की अनोखी तरकीब खोजी थी गांव से बाहर रास्ते से थोड़ा हटकर एक आम का पेड़ था जिसकी डाल पर रमेश बैठ जाता और सुमन नीचे आकर खड़ी हो जाती थी और दोनों प्यार भरी बातें कर लेते दूर से देखने वाला यही समझता कि सुमन अकेली खड़ी है।

एक दिन सुमन कि भाभी ने अपने 5 साल के बेटे को उसे बुलाने भेजा बेटा सुमन के पास पहुंचा और बोला बुआ चलो ममी बुला रही है सुमन बोली चलो मैं आ रही हूँ लेकिन लड़का वहीं रुका रहा सुमन ने कई बार उसे जाने को कहा तो लड़का बोल पड़ा बुआ यहां कहीं रमेश हैं तभी तुम नही चल रही सुमन ने कहा नही यहाँ कोई नही है ब्च्चे ने कहा नही यहाँ पर रमेश कहीं जरूर छुपे हैं तभी रमेश ऊपर डाल से बोल पड़ा ऊपर देख , बच्चे ने ऊपर देखा और हा हा हा करते हुए घर की तरफ दौड़ पड़ा सुमन उसके पीछे दौड़ पड़ी ।

दो साल बाद सुमन की बारात आयी थी मैं भी वहाँ पर था रमेश अपने पिताजी की बंदूक लेकर बैठा था बाराती एक फायर करते तो रमेश दो फायर करता तब जमीदार ने उससे कहा बारात वालों कि बराबरी न करो । दूसरे दिन सुमन बिलखकर रोते हुए विदा हो गयी रमेश तन्हा रह गया ।

आज 20 वर्ष बाद रमेश ने बताया कि एक साल पहले सुमन अपनी बेटी के साथ गांव आयी थी और उसे देखकर आज भी वैसे ही मुस्कुराई तो उसकी बेटी बोली ममी क्या हुआ वह बोली कुछ नही
मैं रमेश कि यह बात सुनकर हंस पड़ा मैने कहा अच्छा किया तुझे मामा तो नही बुलवाया !

रमेश बातचीत में मुस्कुराया भी और आँसू भी छलके मैने कहा तुम और सुमन तो एक ही जाति के थे फिर भी शादी नही कर पाए उसने जवाब देने के बजाय मुझसे सवाल किया कि तुमने बर्फी फ़िल्म देखी है मैन कहा हां उसने कहा कितनी बार मैंने कहा एक बार वह बोला उसने दस बार देखा है उसने शायद जवाब दे दिया था तभी उसका मोबाइल बजा उसकी पत्नी ने फोन पर सब्जी के लिए उसे डांटा और जल्दी घर पहुंचने को कहा हम दोनों उठकर चल दिये वह बोला सुमन ने कभी भी मुझे नही डाटा था मैंने कहा शादी हो जाती तो वह भी डांटती रमेश कुछ नही बोला।
मैन सोचा रमेश और सुमन की शादी यदि हो जाती तो उनकी यादें शायद इतनी मधुर नही होती ।

– लेखक : दयाराम रावत