पासी समाज के वैवाहिक संपर्क पर विचार गोष्ठी का हुआ आयोजन

आज दिनांक 16/12 /2018 को पासी विवाह संपर्क मंच प्रयागराज की विचार गोष्ठी का कार्यक्रम विज्ञान परिषद सिविल लाइंस प्रयागराज में सफलता पूर्वक संपन्न हुई कार्यक्रम का संचालन गौरी शंकर जी ने किया ।

कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप उपस्थित श्रीमान रामानंद भारतीय जी, श्रीमान् सत्यवीर मुन्ना पासी जी, श्रीमती गीता पासी जी, एवं श्रीमान बच्चा पासी जी सभी ने पासी विवाह संपर्क मंच को और बेहतर दिशा की ओर आगे बढ़ाने हेतु उत्कृष्ट सुझाव के साथ उचित मार्गदर्शन देते हुए आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया गया एवं हर संभव सहयोग प्रदान करने का आश्वासन भी पासी विवाह संपर्क मंच को दिया गया!!

कार्यक्रम में उपस्थित सभी सम्मानित सदस्यों के
सहमति से पासी विवाह संपर्क मंच प्रयागराज उत्तर प्रदेश को पंजीकृत कराने का भी निर्णय लिया गया

कार्यक्रम में मुख्य रूप से अजय प्रकाश सरोज जी अमरनाथ जी , संजीव पुरूषार्थी , नीरज पासी , श्री सुरेश कुमार ,श्री बटुक नाथ जी , अरविंद कुमार जी श्री रामपाल सरोज जी ,श्री राम भजन सरोज जी श,दयानंद जी श्री पंचम लाल जी श्री नितेश कुमार भारती जी डॉ अखिलेश कुमार जी श्री रमेश चंद्र चौधरी जी श्री फूल चंद्र जी श्री देवेंद्र प्रकाश जी श्री चंद्र भूषण जी श्री बृजेश कुमार जी श्रीमती सरोज देवी ,श्रीमती सुशीला देवी श्री प्रवीण शेखर जी श्री शिव बाबू सरोज जी आदि सम्मानित सदस्यों ने पासी विवाह संपर्क मंच के विकास हेतु उचित सुझाव एवं विचार व्यक्त करते हुए आर्थिक सहयोग प्रदान किया गया!!

संयोजक – विनय प्रकाश पासी
पटेल नगर झूंसी प्रयागराज

क्रिमिनल ट्राइब एक्ट नें तोड़ी दीं पासियों की कमर

सन् 1871 में अंग्रेजी शासन ने प्रथम जनगणना जातीय आधार पर करवाया था।उसी के बाद एक बड़ी जनसंख्या जिसने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था उसको जरायम ऐक्ट की धारा 109,110के आधार पर अपराधशील घोषित किया जिसमें सम्पूर्ण भारत की 197 जातियों को शामिल किया गया था।इनमें से 50% जातियाँ उत्तर प्रदेश में निवास करती थीं।इन सभी जातियों पर आई पी सी की धारा 30 के अन्तर्गत कार्यवाही होती थी जिसके अनुसार दूसरीबार अपराध करने पर सात वर्ष की सजा और तीसरी बार अपराध करने पर आजन्म कारावास या कालापानी की सजा का प्रावधान था।

प्रत्येक थाने में एक रजिस्टर होता था जिसे रजिस्टर नं. 8 से जाना जाता था इसमें अपराधशील जातियों के प्रत्येक व्यक्ति के नाम को दर्ज करने के शख्त आदेश थे साथ ही यदि वे लोग कहीं जाते थे तो थाने में सूचित करना अनिवार्य था कि कहाँ जा रहे हैं और जहाँ जाते थे उसकी जिम्मेदारी थी कि वह सम्बंधित थाने में सूचित करे कि हमारे यहाँ अमुक थाना निवासी अमुक आये हैं।इस रजिस्टर में जिन बच्चों की आयु दस वर्ष की हो जाती थी उनका नाम लिखा जाना अति आवश्यक था।

सन् 1871 से 1924 तक आते-आते प्रत्येक जनगणना में इन जातियों में सुधार का भी आंकलन किया जाता था जिसके विश्लेषण के आधार सन् 1924 में 50 जातियों को विमुक्त कर दिया गया जिसमें डॉ.बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर जी की जाति महार भी शामिल हो गई इस प्रकार सहित 50 जातीयों के उन्नति का मार्ग1924 से खुल गया।
शेष बची 147जातियों के लिए श्री अनन्त शयनम् अय्यंगर(सांसद)जी की अध्यक्षता में गठित आयोग की शिफारिश के आधार पर अगस्त 31,1952 को जरायम एक्ट से मुक्त किया गया।

अय्यंगर आयोग तथा बाद में बने लोकर कमीशन दोनों की रिपोर्टों में कहा गया कि देश की एक बड़ी जनसंख्या को आजादी की लड़ाई लड़ने के कारण अंग्रेज़ी शासन में अपराधशील घोषित किया गया और जरायम एक्ट लगाकर मुख्यधारा से अलग कर दिया गया था मुक्त किया जाता है तथा इन विमुक्त जातियों को विशेष सुविधाओं और विशेष अवसर देने की संस्तुति की जाती है।इन दोनों की संस्तुति के आधार पर विमुक्त हुई जातियों को साथ में दिये गए विशेष सुविधाओं और विशेष अवसर आज तक स्वपन ही हैं और एक पहेली बन कर रह गए। इन जातियों को पहले विमुक्त जाति बाद में परिगणित जाति और अब अनुसूचित जाति लिखा जाता है।

एक कथाकार नें इस तरह दीं बेटी को जन्मदिन की बधाई!

आज हमारी बड़ी बेटी Dr. Kriti Mohan का जन्मदिन है। हमारी अनन्त शुभकामनायें .. ।
इसके जन्म, शिक्षा, शादी, करियर तक हमें कुछ खास पता नहीं चला। सब एक प्रवाह की तरह होता चला गया। ट्रांसफर वाली नौकरी होने से हम गाँव, कस्बा, नगर, महानगर सामान उठाये, बच्चे लिये घूमते रहे।

बच्चों की शिक्षा टुकड़े-टुकड़े में होती रही। इसने 5 जगहों पर पढ़ते हुए इण्टरमीडिएट किया। अनेक स्थानों पर पढ़ते हुए भी यह हमेशा उच्च अंकों से परीक्षाएँ उत्तीर्ण करती रही।

इसके छात्र जीवन में स्थायित्व तब आया, जब MBBS की पढ़ाई की, लेकिन परिश्रम कई गुणा अधिक करना पड़ा, फिर लगे हाथ MD भी। उ. प्र. के मेडिकल कॉलेजों में अध्यापन करने के बाद, अब AIIMS में अध्यापन करते हुए शायद इसके जीवन में सन्तोष आ पाया है।

जब इसने MD पूरा किया तो मैंने यूँ ही पूछ लिया था, “बहुत पढ़ना पडा होगा!”इसका जवाब था, “बहुत पढ़ाई की है पापा! इससे कम पढ़ाई करके मैं कलेक्टर बन सकती थी।”

—बृज मोहन , वरिष्ठ कथाकार ,झाँसी यूपी

नही रहें अमेरिका में रहने वाले प्रखर अम्बेडकरवादी चिंतक वीके चौधरी , 11 दिसम्बर को हुआ निर्वाण

● Engr. V.K. Chowdhary, passed away (Nirvana) today 11 December 2018 at Allahabad Native place.
●Great lion of Buddhism and Ambedcarite in the world.

आज दिनांक 11 दिसम्बर 2018 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में इंजीनियर वी0के0 चौधरी USA न्यूजर्सी का निर्वाण (मृत्यु ) प्राप्त हुए। भगवान बुद्ध उनकी यशकीर्ति इस संसार मे बनाये रक्खे यही मेरी कामना है।
परिनिर्वाण प्राप्त श्री वी0के0 चौधरी जी का जन्म इलाहाबाद में हुआ था इन्होंने 1955 में हवाई जहाज उड़ाने का शौक पूरा किये जो दलित समाज के प्रथम व्यक्ति थे,श्री चौधरी 1965 के दिल्ली विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की।

आप अपने कॉलेज की विद्यार्थी संस्था के अध्यक्ष तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी यूनियन में सुप्रीम काउंसलर भी रहे,
भारत मे 6 वर्षो तक प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरी करने के बाद 1971 में न्यूयार्क गये।आपने अमेरिका में कई कम्पनियोकेनिदेशक भी रहे , 1978 में ए0टी0 एन्ड टी बेल लैब में पदभार ग्रहण किये। चौधरी जी शसक्त अम्बेडकरवादी तथा बुद्धिवादी विचारक थे।

आप VISION नामक संस्था के संस्थापक और चेयरमैन रहे।आप AIC नामक संस्था के संथापक सदस्यों में है।आपने बुद्धिज़्म तथा अम्बेडकरी विचारधारा को पूरे विश्व मे आजीवन फैलाते रहे।

-राम विशाल पासवान , कौशाम्बी, उत्तर प्रदेश ,भारत।

वह चाहती तो गद्दारी कर सिंहासन हासिल कर लेती !

शहीद वीरांगना ऊदा देवी पासी के बलिदान दिवस 16 नवबंर पर विशेष —

वह चाहती तो ! अंग्रेजों से मिलकर बेगम हज़रत महल को धोखकर अंग्रेजों की दया पात्र बन सिंहासन हासिल कर लेती ।

वह चाहती तो ! पति मक्का पासी की शहादत का पूरा मुवाज़ा ले लेती । बड़ी नौकरी धन दौलत, सब नाम अपने कर लेती ।

वह चाहती तो ! भाग खड़ी हो जाती जान बचाकर भी , कर लेती जौहर भी किसी डरपोक राजघराने जैसी ।

लेकिन उसके धमनियों में गद्दारी का खून न था , वफादारी से बढ़कर भी दिल पुरखों का स्वाभिमान था । मरते दम तक लड़ी बहादुर पासी की बिटिया प्यारी, वीरगति को प्राप्त हुई छोड़के जिम्मेदारी सारी ।

आइये संकल्प लें देश के वीर शहीदों की कुर्बानी को मंजिल तक पहुँचाएँ —-देश समाज के निर्माण में एक साथ मिल जुट जाएं

—अजय प्रकाश सरोज ,संपादक ,श्रीपासी सत्ता मासिक पत्रिका

जिला पंचायत अध्यक्ष के भेदभाव नीतियों से तंग आकर टोनी ने दिया इस्तीफ़ा, कहा वार्ड में नही कराते कोई काम

जितेंद्र कुमार रावत ‘टोनी ‘ ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखते है -जनता ने क्षेत्र के विकास के प्रतिनिधित्व की जो जिम्मेदारी मुझे सौंपी थी उसको पूरा करने में अध्यक्ष जिला पंचायत लखनऊ भेदभाव कर रहे हैं। जिसके कारण मलिहाबाद वार्ड नंबर 15 के विकास कार्यों को कार्य योजनाओं में शामिल नहीं किया जा रहा है।

मैं अनुसूचित जाति ब्यक्ति को सामान्य सीट से प्रतिनिधि होने के कारण क्षेत्र में विगत 2 वर्षों से कोई भी विकास कार्य मेरे प्रस्ताव पर अध्यक्ष जिला पंचायत द्वारा नहीं कराया गया । इस भेदभाव के चलते आहत होकर मुझे इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा । क्षेत्र की जनता ने मुझे जिस प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी सौंपी थी उसको पूरा करने में मैं अपना योगदान अध्यक्ष की भेदभाव नीति और मनमानी के कारण नहीं दे पा रहा हूं। जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए पद महत्वपूर्ण नहीं है।

इसलिए आज दिनांक 14.11.2018 को श्रीमान जिलाधिकारी, लखनऊ को स्पीड पोस्ट के माध्यम से मैंने अपना इस्तीफा भेज दिया है।

वीरांगना ऊदा देवी पासी की क्रांतिकारी जीवनगाथा

भारत में यूरोपियों का आगमन व्यापारियों के रूप में हुआ किंतु दो शताब्दियों के भीतर यूरोपियों में से अंग्रेज सशक्त होकर उभरे और विभिन्न रूढ़ियों में बंधा तथा जाति-पाति में बिखरा भारतीय समाज इन अंग्रेजों का सामना नहीं कर पाया और दासता की एक लम्बी दास्तां का प्रारम्भ हुआ…. इतिहास वीरांगना उदा देवी पासी के अप्रतिम वीरता का परिचय देते हुए ऐसे प्रतिमान स्थापित किए, जो इतिहास में विरले ही दिखाई पड़ते हैं.

ऊदा देवी का जन्म लखनऊ के समीप स्थित उजिरावां गांव में पासी परिवार में हुआ था. भारतीय समाज में विभिन्न जातियों के अन्तर्गत पासी जाति भी निम्न व अछूत ही समझी जाती थी. पासी जाति की सामान्य समाज से अलग क्षेत्र में बस्ती होती थी. इन बस्तियों में उच्च जाति के लोग प्रायः नहीं जाया करते थे. पासी समाज सीमित स्तर पर हस्तकलाओं द्वारा अपना जीवन यापन करता था अथवा उच्च समृद्ध लोगों के खेत में कृषक मजदूर के रूप में भी कार्य किया करता था. जब जीवनयापन के स्रोत सीमित हों और आस्तित्व की रक्षा प्रमुख चुनौती होती है तो वीरता और आत्मस्वाभिमान स्वतः ही आ जाता है. पासी जाति भी इसका अपवाद नहीं थी. यह जाति वीर और लड़ाकू जाति के रूप में भी जानी जाती थी. इसी वातावरण में उदा देवी का पालन-पोषण हुआ. जिसे इतिहास की रचना करनी होती है, उसमें कार्यकलाप औरों से न चाहते हुए भी अलग हो ही जाते हैं. उदा बचपन से ही निर्भीक स्वभाव की थी. बिना किसी झिझक के घने जंगलों में अपनी टोली के साथ खेलने चली जाती थी. खेल भी क्या थे, पेड़ पर चढ़ना, छुपना और घर लौटते समय जंगल से फल और लकड़ियां एकत्रित करके लाना.

जैसे-जैसे उदा बड़ी होती गई, वैसे-वैसे वह अपने हमउम्रों का नेतृत्व करने लगी. सही बात कहने में तो उदा पलभर की भी देर नहीं करती थी. अपनी टोली की रक्षा के लिए तो वह खुद की भी परवाह नहीं करती थी. खेल-खेल में ही तीर चलाना, बिजली की तेजी से भागना उदा के लिए सामान्य बात थी.

किशोरावस्था में प्रवेश करते-करते उदा में गम्भीरता का समावेश होने लगा. पढ़ना-लिखना उस समय असामान्य सी बात थी अतः उदा भी इससे दूर रही किंतु परिस्थितियों ने उसे शीघ्र निर्णय लेने वाली, साहसी, दृढ़ निश्चयी और कठोर हृदय वाला बना दिया था. आगे चलकर यही गुण उदा को इतिहास में उच्च स्थान दिलाने वाले थे.

सन् 1764 ई. भारतीय इतिहास में निर्णायक वर्ष था. इसी वर्ष बक्सर में अंग्रेजों, बंगाल में नवाब मीर कासिम, अवध में नवाब शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्त सेना को परास्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी थी. इस युद्द के बाद अवध भी अंग्रेजों की परोक्ष सत्ता के अधीन आ गया और अंग्रेजों ने अवध को नचोड़ना शुरू कर दिया जिससे उसकी स्थिति दिन-ब-दिन जर्जर होती गई. सन् 1856 में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया गया और नवाब वाजिद अली शाह को नवाब के पद से हटा कर कलकत्ता भेज दिया गया. सन् 1857 ई. में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया. इस समय अवध की राजधानी लखनऊ थी और वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और उनके अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कादिर ने अवध की सत्ता पर अपना दावा ठोंक दिया.

अवध की सेना में एक टुकड़ी पासी सैनिकों की भी थी. इस पासी टुकड़ी में बहादुर युवक मक्का पासी भी था. मक्का पासी का विवाह उदा से हुआ था. जब बेगम हजरत महल ने अपनी महिला टुकड़ी का विस्तार किया तब उदा की जिद और उत्साह देखकर मक्का पासी ने उदा को भी सेना में शामिल होने की इजाजत दे दी. शीघ्र ही उदा अपनी टुकड़ी में नेतृत्वकर्ता के रुप में उभरने लगी.

10 मई 1857 मेरठ के सिपाहियों द्वारा छेड़ा गया संघर्ष शीघ्र ही उत्तर भारत में फैलने लगा एक महीने के भीतर ही लखनऊ ने भी अंग्रजों को चुनौती दे दी. मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानुपर आदि क्षेत्रों में अंग्रेजों के पैर उखड़ने लगे. बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अवध की सेना भी अंग्रेजों पर भारी पड़ी. किंतु एकता के अभाव व संसाधनों की कमी के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों का मुकाबला करना मुमकिन नहीं हुआ और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुनः नियंत्रण पाने के प्रयास शुरू कर दिए. दस जून 1857 ई. को हेनरी लॉरेंस ने लखनऊ पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया. चिनहट के युद्ध में मक्का पासी को वीरगति की प्राप्ति हुई. यह उदा देवी पर वज्रपात था किंतु उदा देवी ने धैर्य नहीं खोया. वह अपनी टुकड़ी के साथ संघर्ष को आगे बढ़ाती रही.

नवंबर आते-आते यह तय हो गया था कि अब ब्रिटिश पुनः लखनऊ पर कब्जा कर ही लेंगे. भारतीय सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए लखनऊ के सिकंदराबाग में छुप गए. किंतु इस समय लखनऊ पर कोलिन कैम्पबेल के नेतृत्व में हमला हुआ. उदा देवी बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं हुई. अंग्रेजी सेना ने सिकंदराबाग को चारो ओर से घेर लिया. उदा देवी सैनिक का भेष धारण कर बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर समीप के एक पेड़ पर चढ़ गई और अंग्रेजों पर गोलियां बरसाने लगी. उदा की वीरता देख शेष सैनिक भी अंग्रेजों पर टूट पड़े. काफी समय तक अंग्रेजों को पता ही नहीं चला कि उन पर कहां से गोलियां चल रही हैं. अंत में कैम्पबेल की दृष्टि उस पेड़ पर गई जहां काले वस्त्रों में एक मानव आकृति फायरिंग कर रही थी. कैम्पबेल ने उस आकृति को निशाना बनाया. अगले पल ही वह आकृति मृत होकर जमीन पर गिर पड़ी. वह व्यक्ति लाल रंग की कसी हुई जैकेट और गुलाब रंग की कसी हुई पैंट पहने था नीचे गिरते ही एक ही झटके में जैकेट खुल चुकी थी समीप जाने पर कैम्पबेल यह देखकर हैरान रह गया कि यह शरीर वीरगति प्राप्त एक महिला का था.वह महिला पुराने माडल की दो पिस्तौलों से लैस थी एक में गोलियां भरी थी दूसरी खाली थी उसकी आधी जेब में गोलियां भरी थीं,अन्य गोलियों से अब तक यह वीरांगना 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार चुकी थी। बारलेस को जब मालूम हुआ कि वह पुरुष नहीं महिला है यह जानकर वह जोर से रोने लगा। यह घटना 16 नवंबर सन् 1857 ई. की है संग्राम में क्रांती के दीवानों ने रेजिडेंशी को लखनऊ को घेर लिया था अंग्रेजों को बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था यह देख कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जनरल कैम्पबेल था। जिसे कानपुर से लखनऊ जाते समय रास्ते में तीन बार अमेठी और बंथरा के पासी वीरों से हारकर वापस लौट जाना पड़ा था। अब सोचना है कि एक ओर अंग्रेजी फौज के साथ बंदूक थी दूसरी ओर लाठियां, कितने पासी जवान तीन बार में मारे गये होंगे। जब कैम्पबेल चौथी बार आगे बढ़ने सफल रहा तो उसने सबसे पहले महाराजा बिजली पासी के किले ही अपनी छावनी बनाई थी।

जब तक उदा देवी जीवित रहीं तब तक अंग्रेज सिकंदराबाग पर कब्जा नहीं कर सके थे. उदा देवी के वीरगति प्राप्त करते ही सिकंदराबाग अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेजी विवरणों में उदा देवी को ‘ब्लैक टाइग्रैस’ कहा गया. दुःख व क्षोभ की बात यह है कि भारतीय इतिहास लेखन में उदा देवी के बलिदान को वो महत्व नहीं दिया गया जिसकी वो अधिकारिणी हैं।
वीरांगना ऊदा देवी पासी के क्रांतिकारी त्याग संघर्ष व बलिदान को शत शत नमन।

राकेश कुमार (प्रदेश प्रवक्ता)
अखिल भारतीय आम्बेडकर महासभा
9415443546(उ. प्र)

अपार जन समर्थन से आरबीएम का विशाल भागीदारी रैली सम्पन

●गुलाबी रंग से रंग गया रायबरेली का जीआईसी मैदान
●मुख्य अतिथि सुशील पासी ने ठेका ,पट्टा, शिक्षा ,रोजगार दान ,अनुदान तथा शस्त्र लाइसेंस में संख्या के अनुपात में भागीदारी देनें की माँग उठाई
●शोषण अत्याचार के खिलाफ गुलाबी सेना के गठन का एलान

24 अक्टूबर ,बुद्धवार को राष्ट्रीय भागीदारी मिशन के तत्वावधान में विशाल भागीदारी रैली सम्पन्न हुई । लगभग दस हजार से ज्यादा अपार भीड़ व जन समर्थन से गदगद मुख्य अतिथि सुशील पासी जी ने रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि 70 सालों से देश में जाति विशेष की पार्टियों की सरकार चलती रही लेकिन संविधान में वर्णित जनता के हक और अधिकारों को किसी ने नही दिया।

आज भी ठेका ,पट्टा, ब्यवसाय ,राजनीति ,शिक्षा ,नौकरियों दलितों -अतिपिछड़ों – अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं की भागीदारी नहीं मिल पाई है । आगे उन्होंने कहा कि शक्ति के सभी स्रोतों में जहां से धन का अर्जन होता है ,उन सभी संस्थाओं में देश के 90 % जनसंख्या को समुचित भागीदारी नही मिलीं है जिसके कारण ही देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है ।
उन्होंने अमेरिका का काले और गोरे के बीच हुए वर्ग संघर्ष को उदाहरण देते हुए कहा कि पूरी दुनियां में अमेरिका का आज जो प्रभुत्व स्थापित है वह अस्वेत नागरिकों को हर जगह भागीदारी देकर के उन्हें मुख्यधारा में लाने से हुआ ।

लेकिन भारत में कुछ धूर्त लोगों द्वारा एक साजिश के तहत बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बनायें हुए संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी करके बहुसंख्यक समाज को उसके हक और अधिकारों से वंचित रखा गया है । इस देश का विकास तभी संभव है जब देश के वंचितों को उनका हक और अधिकार सुनिश्चित किया जाएगा। सबकों समान अवसर देने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय भागीदारी अधिनियम बनाने की भी बात कही।

उन्होंने कहा की मैं कोई विधायक सांसद व अभिनेता नही हूँ लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मुझें सुनने के लिए आएं है मैं आप सबके चरणों में वंदन करता हूँ । इस बात का यकीन दिलाता हूं कि आपने जो हिम्मत और हौसला मुझे दिया है इससे राष्ट्रीय भागीदारी मिशन का संगठन पूरे प्रदेश में खड़ा करने का काम करूंगा। साथ ही एक गुलाबी सेना का भी निर्माण करूँगा । जिससे जुल्म अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकें।

विशिष्ट अतिथि पत्रकार व चिंतक अजय प्रकाश सरोज ने कहा कि आधी आबादी के प्रतीक गुलाबी रंग में रंगे राष्ट्रीय भागीदारी मिशन सबकी भागीदारी सुनिश्चित कराने का संकल्प लिया है। राष्ट्रीय भागीदारी मिशन इसलिए राष्ट्रीय है क्योंकि इसके राष्ट्रीयता में देश का हर नागरिक शामिल है यह देश का पहला संगठन है जो संख्या के आधार पर सबके लिए दरवाजा खोल रखा हैं। क्योंकि देश को जातीय संघर्ष और धार्मिक उन्माद में झोंक जा रहा हैं ।

एक जाति को दूसरे जाति से लड़ाने की साजिश रची जा रहीं हैं। इसको खत्म करने के लिए अनुपातिक भागीदारी ही एक रास्ता है ,विकल्प है जिससे देश को एक सूत्र में बाँधे रखा जा सकता हैं। और विश्वपटल पर भारत का सम्मान बचाया जा सकता हैं ।
साथ ही उन्होंने कहा कि रायबरेली के उन सभी जातियों के बौद्धिक बनौजवानों के साहस को सलाम जिन्होंने सुशील पासी जैसे संघर्षशील ने नेता के साथ पूरी तन्मयता से लगकर मिशन को आगे बढ़ा रहें है। उम्मीद है आने वाले दिनों में आप के दम से पूरे प्रदेश में गुलाबी रंग का डंका बजेगा।

मिशन के नेता योगेश पासी कहा जो पार्टियां सबकी भागीदारी सुनिश्चित ना कर पाए उसे सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह देश सबका है अंतिम ब्यक्ति का विकास ही सर्वप्रिय होना चाहिए। ऐसे में राष्ट्रीय भागीदारी मिशन पूरे देश में यह दावा करता है कि एक देश एक टैक्स की बात करने वालें की अम्मा ने दूध पिलाया हो तो एक देश एक शिक्षा कर के दिखाओ ? दोहरी शिक्षा नीति खत्म कर समान शिक्षा नीति लागू करों ।

जिला प्रभारी सुरेंद्र मौर्य ने कहा हम जाति जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित करने की मांग कर रहे हैं इसके आधार पर देश की सभी वंचित जातियों को उनकी संख्या के आधार पर भागीदारी सुनिश्चित कराना चाहतें है । मिशन समाज के कमजोरों पर होने वाले जुल्म अत्याचार के खिलाफ हैं।
इस अवसर पर वेद प्रकाश मौर्य , बाराबंकी से रामयश विक्रम , हरदोई से आदित्य वर्मा , अमेठी से लीलावती , सीतापुर से इंदु रावत , इंद्रपाल पासी, फ़तेहपुर से अतुल पासवान , लखनऊ से अनिल पासी, मलिहाबाद से अखिलेश रावत ,इलाहाबाद से राम प्रवेश पासी , संजय गोस्वामी ,संजीव पुरूषार्थी ,नीरज पासी, अजीत भारती ,शहीद दिलीप सरोज के पिता राम लाल जी सहित हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहें । अध्यक्षता जिलाध्यक्ष यशपाल जी ने किया।

सबसे बड़ा सच मौत : माइकल जैक्सन डेढ़ सौ साल जीना चाहता था!

माइकल जैक्सन डेढ़ सौ साल जीना चाहता था! किसी के साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था !उसकी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे !

जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! उसको व्यायाम करवाने के लिए 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था!

अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की!

नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया।

18 मई 1995 में किंग ऑफ पॉप ने रॉक के शहजादे एल्विस प्रेस्ली की बेटी लिसा प्रेस्ली से शादी कर ली। एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवॉर्ड्स में इस जोड़ी के ऑनस्टेज किस ने बहुत सुर्खियाँ बटोरी! हालाँकि यह जोडी सिर्फ दो साल तक ही साथ रह पाई और 18 जून 1996 में माइकल और लिसा ने तलाक ले लिया।

वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था,उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था,ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत पड़ने पर वह आकर दे दे।

उसको लगता था वह पैसे और अपने रसूख की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है लेकिन वह गलत साबित हुआ 25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी मैं हालत काबू में नहीं आए, सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए वह भी उसे नहीं बचा पाए।

उसने 25 साल तक बिना डॉक्टर से पूछे कुछ नहीं खाया! अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी 50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था! लगभग उसने बच्चों का यौन शोषण किया वह घटिया हरकतों पर उतर आया था! और 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया जिसने जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने इंतजाम कर रखा था!उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया!

जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया! कि उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था! उसका सिर गंजा था उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे! उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे!

माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था। यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं।

माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानी 25 जून 2009 को 3:15 PM पर, Wikipedia,Twitter और AOL’s instant messenger यह सभी क्रैश हो गए थे।

उसकी मौत की खबर का पता चलता है गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया! ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और गूगल क्रैश हो गया ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया!

मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं! सार यही है,बनावटी दुनिया के बनावटी लोग कुदरती मौत की बजाय बनावटी मौत ही मरते हैं!

मृत्यु निश्चित है।इससे डरना क्या-क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर ,-मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर✍

विकल्प की राजनीति क्यों ?

विकल्प की राजनीति वही लोग करते हैं जो यथास्थिति से संतुष्ट नहीं हैं। मतलब अगर आज का समाज हिंसक, और लुटेरा है तो एक नया समाज बनाना ही होगा। अगर इतिहास में जिनके साथ अन्याय हुआ है तब नए विकल्प की तलाश जरूरत बन जाती है। गैरबराबरी में सनी व्यवस्था को उखाड़ फेकना तो ठीक है लेकिन उसके बरक्स एक नया विकल्प देना भी जरूरत है।लेकिन क्या विकल्प सिर्फ राजनितिक ही होगा ?

सांस्कृतिक, धार्मिक विकल्प कहाँ से लाएंगे। सीधे शब्दों में कहूं तो दीपावली और दशहरा का विकल्प कुछ है की नहीं ? डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को भारत में जीवित करके एक नया विकल्प दिया था। आज के दिन ही बाबासाहब ने 1956 में हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

जनता को राजनितिक विकल्प के साथ साथ सांस्कृतिक और धार्मिक विकल्प चाहिए। धर्म अफीम है, या मै नास्तिक हूँ कह देने से काम नहीं चलेगा।

– डॉ 0 चंद्रसेन ,जेएनयू