रायपुर की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे की  नक्सल समस्या की टिप्पणी पर सरकार नाराज !


मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुदबखुद सामने आ जाऐगी… घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं…भारतीय हैं । इसलिए कोई भी मरे तकलिफ हम सबको होत है । लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना… उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाऐं नक्सली है या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दुध निकालकर देखा जाता है । टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों के जल जंगल जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है जबकि संविधान अनुसार 5 वी अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमींन को हड़पने का…. 

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है । नक्सलवाद खत्म करने के लिए… लगता नहीं । सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्ही जंगलों में है जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है । आदिवासी जल जंगल जमींन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है । वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केशों में चार दिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है । तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाऐ… ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहता है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत कहता है । जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हो चाहे पत्रकार… उन्हे फर्जी नक्सली केशों में जेल में ठूस दिया जाता है । अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है । ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता ।

मैनें स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था । उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था जिसके निशान मैने स्वयं देखे । मैं भीतर तक सिहर उठी थी। कि इन छोटी छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए। मैनें डाक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा ।


हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें…।

इसलिए सभी को जागना होगा ।राज्य में 5 वी अनुसूची लागू होनी चाहिए । आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए । उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जावे । आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं । हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक । पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझे । किसान जवान सब भाई भाई है । अतः एक दुसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा। संविधान में न्याय सबके लिए है।इसलिए न्याय सबके साथ हो ।

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए । लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई प्रलोभन रिश्वत का आफर भी दिया गया वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं । लेकिन हमने इनके सारे ईरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई ।आगे भी होगी ।

अब भी समय है। सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे ।

ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे….

जय संविधान जय भारत
रायपुर जेल की डिप्टी जेलर
वर्षा डोंगरे की वाल से

मोदी सरकार पर जोरदार व्यंगात्मक टिप्पणी!

J&K में हुए आतंकवादी हमले की सरकार ने कड़ी निंदा की है, इस कड़ी निंदा से आतंकवादी संगठन थर-थर कांप गये । सरकार ने ठोस कदम उठाने की बात है, जिससे करीब 2000 आतंकवादी घायल हो गए है ।

इस कड़ी निन्दा से आतंकवादी संगठनो में दहशत छा गयी है और वो लोग बोल रहे हैं की हमे कड़ी निंदा से बहुत डर लगता है, हमारी कड़ी निंदा बन्द की जाए वरना हम आत्मसमर्पण 🏳 कर देंगे।

सरकार ने जो 2 बड़े हथियार आतंकवादी संगठनो के विरुद्ध उपयोग किए, वो हैं …..

(1) कड़ी निंदा

(2) ठोस कदम

आशा है, इन दो खतरनाक हथियारो से आतंकवादी संगठन जल्दी समाप्त हो जाएंगे।गृहमंत्री माननीय राजनाथ सिंह जी ने जो आतंकबादी तथा नक्सलवादियों की जिस प्रकार घोर निंदा की इससे डरकर पाकिस्तान के सभी आतंकवादियो ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा पडोसीदेश चीन ने भी घुटने टेक दिए तथा उसकी सेना ने भी आत्म समर्पण कर दिया बहीं बांग्लादेश ने भी हमारे नेताओं के आगे अपने आप को आत्मसमपर्ण कर दिया।इस प्रकार की निंदा की कार्यबाही से डरकर समस्त यूरोपीय देशों ने तथा अमेरिका ने भी भारत के आगे आत्मसमर्पण करने का सरकार से कल तक का समय मांगा है।इस प्रकार हमारे देश के नेताओ का उत्साह अपने चरम पर है और वह सभी एक स्वर में घोर घोर निंदा कर विश्व के और देशो को भी घुटने टेकने को मजबूर कर रहे हैं।धन्य है भारत देश धन्य है भारत देश के नेता।

अभिनेत्री काजोल प्रकरण से एक बार फिर साबित हुआ की ब्राह्मण भी न सिर्फ़ माँसाहारी होते है बल्कि बीफ़ भी खाते है ।

हमारे उत्तर भारत में ख़ास तौर पर लोग मानते है की ब्राह्मण शुद्ध शाकाहारी होते है । ब्राह्मण भी कभी माँस खाते थे ऐसा सोच भी नहि सकते । जबकि ग्रंथो में भी माँस खाने और पशु बलि का ज़िक्र है । नेपाल के मंदिरो में तो आज भी पशु बलि चढ़ाई जाती है । 
पर उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में इस पर विश्वास नहि किया जाता उन्हें लगता है की ब्राह्मण सिर्फ़ शाकाहारी होते है । जबकि आज भी बंगाल और महाराष्ट्र के कोंकण के ब्राह्मण माँसाहारी होते है ।
जब बात बीफ़ की आती है तो टार्गट सिर्फ़ मुसलमान होते है या २-४% केसेस में दलित भी । जबकि कई रिपोर्ट आइ है जिनसे पता चलता है की बीफ़ के व्यापार में सबसे बड़ा बिज़नेस ब्राह्मण के ही है । यहाँ तक की कुछ ब्राह्मण व्यापारी दुनिया के टॉप १० बीफ़ व्यापारियों में आते है ।पर बीफ़ के लिए टार्गट सिर्फ़ दलित और मुस्लिम ही होते है ।
कल अभिनेत्री काजोल का एक विडीओ वाइरल हुआ था जिसमें वह बीफ़ पार्टी के आयोजन का हिस्सा थी । उनके प्लेट में बीफ़ परोसा हुआ था । हालाँकि ज़्यादा विरोध होने पर काजोल ने वह विडीओ अपने अकाउंट से हटा लिया । पर फिर भी कई लोगों तक पहुँच चुका था । इसलिए कल कलेरिफिकेशन देते हुए काजोल ने कहा वह मीट बीफ़ का था पर भैंसे का था जिस पर कोई बंदिश नहि है देश में । 
बता दे की महाराष्ट्र सहित कुछ प्रदेशों में गाय और बैल के माँस पर पाबंदी है पर भैंस के मटन पर नहि ।
काजोल ने ऐक्सेप्ट किया की वह सिर्फ़ भैंसे का मटन था । यह बताने की ज़रूरत नहि की काजोल बंगाल के ब्राह्मण सोमू मुखर्जी परिवार से संबंध रखती है।
आप सोचिए अगर यही बात किसी मुस्लिम या दलित ने ऐक्सेप्ट की होती तो मीडिया और धर्म के ठेकेदार कितना बवाल मचाते । अख़लाक़ और पहलू खान और गुजरात के बहूजनो पर हुए हमले को अभी ज़्यादा दिन नहि हुए है ।

इससे तो यही लगता है कि ब्राह्मण ही इस देश में ऐसा है जो कुछ भी खा सकता है पर बाक़ियों ने हिम्मत की तो .?

राजेश पासी,मुंबई

ताकि हम कभी तो हों पाएं कामयाब एक दिन..!


आज फिर एक मई है। आज फिर श्रम दिवस है। इसमें नया क्या है! इसमें कुछ भी तो नया नहीं है। हर साल आता है। हर साल इस दिन के पहले वाली शाम को मजदूरी करती महिलाएं या पुरुषों की फोटो अखबारों में फाइल होती हैं। हम उसे छापते रहे हैं, अब तो छापते भी नहीं। अब तो हममें श्रम दिवस के औपचारिक सम्मान की भी शर्म नहीं बची। श्रम दिवसों के विभिन्न आयोजनों में ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गाते हुए अपने आप को कोसते हुए से घर लौट आते हैं। हम ऐसे ही श्रमिक हैं। या कुछ ऐसे भी छद्मी श्रमिक हमारी जमात में शामिल हैं, जो सत्ता-पूंजी-पीठों के दलाल हैं, उन्हीं का खाते हैं, उन्हीं का गाते हैं और हमें भरमाते हैं। हमारा जागना भी मर रहा है और हमारा सपना भी मर रहा है. यह किसी के सरोकार का मसला नहीं रहा, यह सत्ता, व्यवस्था और समाज की चिंता का विषय नहीं रहा। चिंताजनक और अफसोसजनक बात यह है। पिछले दिनों जब वोट पड़ रहे थे तब लाइन में खड़े एक मजदूर किस्म के अधेड़ से आदमी ने झुंझला कर कहा था, ‘देर हो रही है, काम नहीं हुआ तो खाएंगे क्या आज! वोट तो हर साल देते हैं, वोट ही देते-देते तो आज खाने-खाने को मोहताज हो गए। क्या मिलेगा वोट डालने से। बस हर बार कुछ न कुछ प्रलोभन के चक्कर में फंस कर आ जाते हैं। अब तो बंद कर देंगे वोट डालना। कुछ बदलना ही नहीं है तो वोट क्यों डालना? एक श्रमिक की बोली यह संदेश दे रही थी कि अब देश के श्रमिकों का सपना मर रहा है। पत्रकार भी खुद को श्रमजीवी कहते हैं। गंदे रास्ते से पत्रकारों के वित्तीय स्रोत बंद हो जाएं तो उनकी भी दशा उसी मजदूर की तरह है, जिसे अब सपने देखना भी गवारा नहीं। श्रम दिवस के दिन श्रमजीवियों के मरते स्वप्न पर हृदय से सहानुभूति प्रकट करता हूं. यह ठीक वैसे ही है जैसे जिंदा रहते हुए अपना श्राद्ध करना… अवतार सिंह पाश की एक कविता है, उसमें थोड़ा सामयिक-फेरबदल करके, आपके सामने रखता हूं। पाश, ऐसा श्रमचेता कवि है जो सपनों के मुर्दा होने के खिलाफ जीता है और जिसे युवावस्था में ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। हम-सब वह कविता पढ़ें और जतन करें कि हमारे सपने जिंदा रह पाएं, ताकि हम कभी तो हो पाएं कामयाब एक दिन..! 

…कपट के शोर में, सही होते हुए भी दब जाना- बुरा है,

मुट्ठियां भींचकर बस वक्त गुजार लेना- बुरा है।

सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना,

तड़प का न होना, सब सहन कर जाना।

सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना।

सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है,

जो हमारी कलाई पर चलती हुई भी,

हमारी नजर में रुकी होती है।

सबसे खतरनाक वो आंख होती है,

जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है, 

जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है,

जो लोगों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है, 

जो रोजमर्रा के चलन को पीती हुई, जीती हुई, 

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है।

सबसे खतरनाक वो चांद होता है, 

जो हर हत्याकांड के बाद,

वीरान हुए आंगन में चढ़ता है,

लेकिन हमारी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं चुभता।

सबसे खतरनाक वो गीत होता है,

जो हमारे कानों तक पहुंचने के लिए मरसिए पढ़ता है,  

डरे-सहमे लोगों के दरवाजों पर गुंडों की तरह अकड़ता है।

सबसे खतरनाक वह रात होती है, जो जिंदा रूह के कलेजों पर ढलती है, 

जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते हैं और हुआं-हुआं करते हैं गीदड़, 

हमारे मन के दरवाजे-चौखठों पर वही उल्लू साधने वाली बोलियां,

और हुआं-हुआं की रुदालियां चिपक जाती हैं।

सबसे खतरनाक वो दिशा होती है, 

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए,

और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्म के बाएं हिस्से में चुभ जाए।

सबसे खतरनाक होता है, 

हमारे जीते-जी हमारा स्वप्न मर जाए…
-वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन

मज़दूर दिवस पर एक रचना “बाँध”

जो श्रम के मोर्चे पर आगे रखे जाएँगे,

निश्चित है दुर्घटना में वही मारे जाएँगे।

जब होगा बाँधो कारख़ानो का निर्माण,

दीहाड़ी मज़दूर ही देंगे सर्वोच्च बलिदान।

कहीं मज़दूर चुपचाप दफ़न किए जाएँगे,

कहीं अभागे होंगे जो कफ़न नहि पाएँगे ।

प्रबन्धक इंजीनियर होंगे ख़तरे से दूर ,

ख़तरा वही लेंगे जो होंगे मज़बुर ।

बाँध के लेख पर नेता का नाम लिखा होगा ,

बलिदानी मज़दूरों का ज़िक्र नहि होगा ।

मज़दूर दीहाड़ी लेकर चले जाएँगे,

इंजीनियर बाँध निर्माता कहलायेगें।

– दयाराम रावत

Mobile-+91 96509 99404

जानिए पासी सत्ता के आगे ‘श्री ‘ शब्द क्यों लगाया गया 


प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक प्रो0 राजेन्द्र सिंह के अनुसार-
पालि में जो ” थेर/थेरी ” है, वही उत्तर भारत में ” श्री ” है, दक्षिण में ” तिरु ” है और लोक बोलियों में ” सिरी ” है।
नामों के अंत में ” श्री ” जोड़ने की परंपरा बौद्धों की है।
पालि साहित्य में पटचारा थेरी, सुभा थेरी, उसभ थेर, चित्तक थेर आदि में थेर/ थेरी नामों के अंत में जुड़ा है।
बाद में भी थेर/ थेरी का संस्कारित रूप श्री बौद्ध नामों के अंत में मिलेगा जैसे मंजू श्री, राज्य श्री।
बौद्धों की यह परंपरा काफी बाद में हिंदी में आई है। सुश्री वगैरह का लेखन तो आधुनिक काल के छायावाद युग में आया है।

सभी पंडित ,पुरोहित और ब्राह्मण ऐसा करने लगे तो हमारी आधी मेहनत कम हो जाएगी !

प्रतीकात्मक इमेज
 
पंडित ने फेरे कराने से किया इनकार तो अनुसूचित परिवार ने बौद्ध परंपरा से कराई शादी

हिसार (हरियाणा): लोकतांत्रिक भारत में बहूजनो के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। ताजा मामला यहां के बिडमड़ा गांव का है जहां पंडितों ने दलित परिवार की बेटी के फेरे कराने से इनकार कर दिया, जिसके बाद एससी परिवार ने बौद्ध परंपरा से लड़की की शादी कराई। गांव की रविदास सभा ने फैसला लिया कि आगे भी बौद्ध धर्म के तरीके से शादी कराएंगे।      

गांव बिडमड़ा में 24 अप्रैल को एस सी परिवार के मूर्ताराम की बेटी की शादी थी। परिवार ने पंडितों से संपर्क किया तो एक पंडित ने शादी कराने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि मैं थका होने के कारण शादी नहीं करा सकता। दूसरे पंडित ने कहा कि मेरे पास काफी काम हैं। 

तीसरे ने कहा कि मैंने शादी कराई तो समाज के लोग मुझे जीने नहीं देंगे। लड़की की शादी को लेकर परिवार के लोगों के सामने संकट आ गया, जिसके बाद परिवार के लोगों ने फैसला लिया कि बौद्ध धर्म के तरीके से शादी कराएंगे। भीमराव अंबेडकर और गौतम बुद्ध की प्रतिमा रखकर कैंडल जलाई। इसके सामने दूल्हा-दुल्हन को बैठाया गया। दोनों ने एक-दूसरे के प्रति वचन लेकर शादी की रस्म को पूरा किया।

गुरु रविवाद सभा के प्रधान जयभगवान चौहान ने बताया कि 400 के करीब परिवार हैं। इनमें चार सेलवाल, सोड, दहिया, चौहान गौत्र के परिवार हैं। गांव के दलित परिवारों ने फैसला लिया कि जहां तक होंगे, बौद्ध धर्म तरीके से कराएंगे शादी। जयभगवान चौहान ने अपने फेसबुक पर इस खबर को पोस्ट किया है। बताया जा रहा है कि सरपंच के चुनाव के समय से लेकर गांव में जातीय तनाव है।

एससी कैटेगरी के छात्र का दम: IIT की परीक्षा में लाया 360 में 360 नंबर, देशभर में किया टॉप!


नई दिल्ली: जहां एक तरफ देश में एससी और आदिवासियों से छुआछूत और अत्याचार की खबरें आती रहती हैं वहीं इन सबके बीच राजस्थान के 17 साल के एक एससी छात्र कल्पित वीरवल ने आईआईटी की जेईई-मेन्स परीक्षा में 360 में 360 नंबर लाकर सबको चकित कर दिया। इस परीक्षा में फुल मार्क्स लाकर उन्होंने न सिर्फ जेईई-मेन्स की परीक्षा में दलित वर्ग में टॉप किया है बल्कि जनरल कटेगरी में भी टॉप कर सबको पीछे छोड़ दिया। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत का सहारा लिया और अपने भरोसे के दम पर यह सफलता हासिल की। आपको बता दें CBSE ने आज आईआईटी-जेईई की मेन्स परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया है।
‘हिंदुस्तान टाइम्स’ से फोन पर बातचीत करते हुए कल्पित वीरवल ने बताया कि CBSE के अध्यक्ष आर के चतुर्वेदी ने सुबह फोन करके उन्हें इसकी खबर दी थी। वीरवल ने कहा कि जेईई-मेन्स में टॉप करना मेरे लिए खुशी की बात है लेकिन मैं अभी जेईई-एडवांस की परीक्षा के लिए फोकस करना चाहता हूं जो कि अगले महीने आयोजित होगी।

आपको बता दें कि वीरवल ने इसी साल MDS पब्लिक स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी है जिसका रिजल्ट आना अभी बाकी है। कल्पित ने बताया कि उन्होंने रेगुलर क्लास करके और कभी भी क्लास मिस नहीं करके अपने आत्मविश्वास को ऊंचा बनाए रखा। वीरवल ने बताया कि कोचिंग और स्कूल की पढाई के अलावा वे रोजाना पांच से छ: घंटे की पढ़ाई करते हैं। 

कल्पित ने बताया कि उनकी इस सफलता के पीछे उनके मम्मी-पापा और उनके शिक्षकों का अहम योगदान है। उनके पिता पुष्कर लाल वीरवल उदयपुर के महाराणा भूपल राजकीय अस्पताल में कंपाउंडर हैं और उनकी मां सरकारी स्कूल में टीचर हैं। उनके बड़े भैया भी देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले मेडिकल संस्थान एम्स से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं।

कल्पित को क्रिकेट और बैंडमिंटन खेलना अच्छा लगता है और उन्हें संगीत का भी शौक है। उन्होंने बताया कि अभी फिलहाल उन्होंने अपना करियर प्लान नहीं बनाया है लेकिन वह आईआईटी मुंबई में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन लेना चाहते हैं। कल्पित ने इससे पहले इंडियन जूनियर साइंस ओलंपियाड और नेशनल टेलेंट सर्च एग्‍जामिनेशन में भी टॉप किया है।

Source – nationaldastak.com

यादव , पाल, मौर्य, तेली , पासी , चमार  कैसे हुए राजा से रंक़ ?


यादव, पाल,मौर्य, धोबी, मौर्या ,चमार , तेली लोहार और पासी अपने-अपने महासभा में चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं कि पहले हम राजा हुआ करते थे … मैं भी मानता हूं कि पहले यह लोग राजा हुआ करते थे .. किंतु आज यह लोग यह नहीं सोचते हैं कि किसकी वजह से किस व्यवस्था की वजह से आज हम लोग राजा से रंक हो गए।

यह सभी जातियों के अधिकतर लोग अपने को शूद्र नहि मानते पर हिंदू मानते है । अपनी जाती पर गर्व करेंगे हिंदू होने पर गर्व करेंगे । पर यह नहि सोचेंगे की …कि किसकी वजह से किस व्यवस्था की वजह से यादव समाज गाय और भैंस का गोबर बहाने को मजबूर हुआ, पाल राजवंशी भेड़ बकरी पालने वाले हो गया । मौर्य, महान सम्राट अशोक वंशज मुराई सब्जी बेचने वाला बन गया। धोबी समाज कपडे धोने के लिए मजबूर हुआ, मौर्य समाज सब्जी बेचने को मजबूर हुआ , और चमार समाज मरे हुए पशुओं को बहाने और जूता बनाने को मजबूर हुआ , और पासी समाज सूअर पालन और ताड़ी निकालनेको मजबूर हुआ… और आज भी इन्हें वर्ण व्यवस्था के अनुसार शुद्र ही माना जा रहा है….भले ही यह जातियाँ अपने आपको क्षत्रिय माने ।
जब तक यह लोग अपने असली दुश्मन के खिलाफ विद्रोह नहीं करेंगे तब तक रंक से राजा कभी नहीं बन पाएंगे और आजाद जिंदगी कभी जी नहीं पाएंगे….

           जब गुलाम गुलामी में आनंद मनाने लगे तो वह गुलाम गुलामी के खिलाफ कभी विद्रोह नहीं करता है आज यही स्थिति इन बिरादरियों की हो गई है l 

सभी अपनी अपनी बिरादरी में ख़ुश है की हमसे नीचे के पायदान पर कोई जाती तो है । जब यह लोग पढ़े लिखे नहि थे तब के समय में जातीय घमंड और नीचे की जातियों को ख़ुश होना समझ आता है पर आज …????
कैसे राजा से रंक़ हुई यह जातियाँ ? किस व्यवस्था के कारण ? कही वही कारण लेकर हम गर्व करना तो नहि सीख रहे है ,सोचिएगा कभी फ़ुरसत में की जिस चीज़ पर हम गर्व कर रहे है वह जातियाँ गर्व करने लायक है या मानव समाज के लिए एक धब्बा है ?शर्म करने लायक है ।
जय भीम , जय भारत

मुंबई में जैसवार विकास संघ द्वारा बाबा साहेब और संत रविदास की जयंती हज़ारों लोगों के साथ मनाई गई !



मुंबई : मुंबई एक ऐसा शहर जहाँ अधिकतर लोग महाराष्ट्र सहित देश के कई कोनो से यहाँ रोज़ी रोटी के लिए इकट्ठा हुए थे । मुंबई को आज की आधुनिक मुंबई बनाने में महाराष्ट्र , गुजरात के लोगों के साथ उत्तर प्रदेश के लोगों का भी बहुत अहम योगदान है ।आज उत्तर प्रदेश के बहुत से लोगों की तीसरी पीढ़ी मुंबई में रह रही है तो ज़ाहिर है मुंबई अब उनके लिए कोई परदेश नहि रहा गया जैसा पहले कहते थे । ज़ाहिर है जब मुंबई अपना घर गया बन गया है तो सारे समारोह , उत्सव , मिलन समारोह यहीं मनाएँगे ।
इसी कड़ी में कल २३ अप्रैल २०१७ को मुंबई के जैसवार समाज के लोगों ने जैसवार विकास संघ के बैनर के तले बाबा साहेब और संत रविदास की संयुक्त जयंती मनाई । बाबा साहेब के विचारों को फैलाने में उत्तर प्रदेश के लोगों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है , यही नज़ारा कल भी दिखा मुंबई के एक बहुत ही भीड़ भाड़ भरे इलाक़े में सड़क के एक तरफ़ हज़ारों कुर्सियाँ लगी थी , वयस्तम इलाक़ा होने के कारण हज़ारों लोगों की आवाजाही थी और इन सबके बीच सड़कों पर बाबा साहेब और जैसवार विकास संघ के बड़े बड़े बैनर मंच तक पहुँचने वाले हर रास्ते पर लगे थे ।मंच भी काफ़ी बड़ा और भव्य था साज सज्जा का काफ़ी ख़याल रखा गया  था ।

हज़ारों लोगों के बीच कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वंदना के साथ गई । कितनी ही बार जय भीम का उद्घगोष किया गया । महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश , गुजरात हरियाणा से आए वक्ताओ ने बाबा साहेब पर अपने विचार रखे । उत्तरप्रदेश से आए युवा डीआईजी डा० बी पी अशोक जी ख़ास आकर्षण थे कार्यक्रम में । वहाँ पहुँचने वाले सभी समाज सेवियों का भी गर्मजोशी से स्वागत किया गया ।


विशेष अतिथियों में – डा० बी पी अशोक जी DIG U.P, जी न्यूज़ की निदेशक कांता अगड़िया, हरियाणा ,ओम् प्रकाश – असिस्टेंट कमिश्नर कस्टम , सूरत,नगरसेविका – सेवाली जी ,महाराष्ट्र होम मिनिस्टर – प्रकाश मेहता,डा० जय प्रकाश , बैंगलोर जैसी हस्तियाँ मौजूद थी और सभी ने अपने महत्वपूर्ण विचार रखे ।
मुंबई जैसे शहर में आम लोगों के लिए यह सब मैनेज करना आसान नहि होता , आर्थिक परेशानियों से लेकर प्रशासनिक वस्था को सम्भालना प्रदेश के बाहर से वक्ताओ को बुलाना काफ़ी मुश्किल होता है । फिर भी यह जैसवार विकास संघ टीम की मेहनत का नतीजा था । टीम वर्क हर जगह दिखाई दे रहा था , अध्यक्ष मानननिय , छोटेलाल जैसवार जी , प्रकाश सच्चन जैसवार जी , राम समूझ आर गौतम जी , निम्बुलाल जैसवार जी , सभी प्रमुख अतिथियों को आमंत्रण से लेकर आने जाने , ठहरने से लेकर सभी तरह के मैनेजमेंट को सम्भालने वाले ज्ञान देव कोरी जी , और संस्था के सभी पदाधिकारी और कार्यकरता बहुत प्रशंसा के अधिकारी है । यह ऐसे लोग है जो मुंबई जैसे शहर में भी बाबा साहेब के मिशन का अलख जगाए हुए है ।
जय भीम , जय भारत 

राजेश पासी , मुंबई