आज नागपंचमी है जो बड़े धूम धाम से मनाते है इसे गुड़िया भी कहते है। बचपन के वो दिन आज भी याद आते है सुबह से ही घर की सफाई धुलाई होती थी और फिर दूध और लावा चढ़ाया जाता था और फिर पुरे घर में छिड़का जाता था और घर में कई तरह के पकवान बनते थे ,गुझिया, सेवई, पूरी, आदि । फिर सब खा पीकर आराम करते तो चाचियां बोलती आओ गुड़िया बनाये शाम को तुम लोग ले जाओगे न हम पूछते कहा ले जायेंगे आपलोग को बता दू ,हमारे यहाँ का रिवाज पता नहीं आपलोग के यहाँ था या है और कई जगह अभी भी है खासकर मेने प्रतापगढ़ की तरफ ज्यादा देखा है क्योंकि हमारा बचपन वही पर बिता है ।कि लड़कियां (बहन)गुड़िया बनाती है और लड़के (भाई) उसे पीटते थे और पीट पीट कर उसे एकदम खराब कर देते थे जैसे मनो वो मर गई हो ।पहले तो हम लोग को बड़ा अच्छा लगता था हम लोग सौख से गुड़िया बनाते थे और उसे शाम को पोखर पर जाते और भाइयो के सामने फेकते और वो उसे पीटते और खूब खेलते क्योंकि बचपन में किसी को कुछ पता नहीं होता जैसे में बड़ी हुई में इसका विरोध की और चाचियों से पूछा चाची ऐसा क्यों करते है तो बोलती पुराने रिवाज है किया जाता है लेकिन मुझे अच्छा नही लगता था तो मैने ये सब करना बंद कर दिया और जब कोई पूछता तो बोल देती क्या हम लडकिया इस तरह पीटने लायक है हमारी कोई इज्जत नहीं है हम इतने प्यार से वो गुड़िया बनाते और भैया लोग उसे इतनी बेरहमी से पीट पीट कर खराब कर देते है ये कहा लिखा है कि ये त्यौहार ऐसे मनाओ। उस समय से आज तक हमारे घर में गुड़िया (नागपंचमी )मीठे पकवानों का त्यौहार है न की गुड़िया पीटने का और हम गुड़िया नहीं बनाते और न ही कही जाते है। हमें तो यही लगता था कि ये पितृसत्ता का एहसास दिलाया जाता है और मनुवादी शोच को थोपा जाता है ,हम आज की नारिया पुरषों से कम नहीं।हम आपलोग से पूछते है ये कहाँ कहा गया है कि आप लोग गुड़िया के दिन एक नारी को ऐसे पीटो और ख़ुशी मनाओ । नारी घर की पहचान है उसका सम्मान करो अपमान नहीं । नारी है तो कल है ।
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रागिनी पासी
(इलाहाबाद)