इंटरनेशनल लेवल पर महिला दिवस मनाया जा रहा है। भारत में भी चारों ओर महिला दिवस की बधाईयां दी जा रही हैं। कुछ महिलाओं को आज सम्मानित किया जाएगा और उनके संघर्षों की बात की जाएगी। लेकिन इस पूरे विमर्श से बहुजन महिलाओं का संघर्ष गायब है। सैंकड़ों बहुजन महिलाएं देश को मजबूत बनाने और देश की तरक्की के लिए संघर्ष कर रही हैं। लेकिन उनको मुख्य धारा के विमर्श से बाहर रखा गया है।
सावित्री बाई फुले
सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थी। सावित्री बाई फुले ने ही ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला। महिलाओं के अधिकार और समानता के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। इस संघर्ष के चलते उनको घर भी छोड़ना पड़ा था। देश की बहुत सारी कुप्रथाओं के खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया।
फातिमा शेख
फातिमा शेख पहली मुस्लिम शिक्षिका थी। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने ज्यातिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले को स्कूल खोलने के लिए अपना घर दिया था। और उसी स्कूल में फातिमा शेख ने पढ़ाना शुरू किया था।
उदा देवी पासी
ऊदा देवी ने वर्ष 1857 के ‘प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था ।इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वे अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया। ऊदा देवी 16 नवम्बर, 1857 को 32 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुईं। ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें उस समय गोली मारी, जब वे पेड़ से उतर रही थीं। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।लंदन टाइम्स’ के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचार में उदा देवी का विशेष उल्लेख किया था ।
फूलनदेवी
विद्रोह की प्रतीक वंचित तबके से आने वाली फूलन देवी जिन्होंने सामंती वर्चस्व को चुनौती दी। और खुद के उपर हुए जुर्म के ख़िलाफ़ डटकर संघर्ष किया। वह खुद को बागी कहती थी, उनका कहना था ‘मैं कोई अपराधी नहीं हुं, मैंने तो अपने ऊपर हुए जुर्म का प्रतिकार किया है।’ मशहूर टाइम मैगज़ीन ने विश्व की 16 विद्रोही महिलाओं में चौथे पायदान पर फूलन देवी को जगह दी है। लेकिन भारत में उनको उचित सम्मान नहीं मिला।
कल्पना सरोज
कल्पना सरोज बड़ी बहुजन उद्यमी महिला हैं। कमानी ट्यूब्स, कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डैवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसे दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं। इन कंपनियों का रोज का टर्नओवर करोड़ों का है। समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश विदेश में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। 12 साल की उम्र में बाल विवाह, घरेलू हिंसा और अमानवीय सामाजिक दंश झेल चुकी कल्पना आज कमानी ट्यूब्स के साथ साथ रियल्टी, फिल्म मेकिंग और स्टील जैसे दर्जनों कारोबार संभाल रही हैं।
डॉ. मनीषा बांगर
मनीषा बांगर सामाजिक सक्रियता और राजनीतिक चेतना के लिए बहुजन आंदोलन में एक प्रसिद्ध नाम हैं। ऐसी बहुत कम महिलायें हुई हैं, जो अपने मेडिकल प्रोफेशनल कैरियर के साथ-साथ सामजिक क्षेत्र में भी बहुत सक्रिय हों। लेकिन मनीषा ने मेडिकल प्रोफेशनल के साथ-साथ समाज में व्याप्त रोगों की पहचान की और वे उनके निदान के लिए लगातार प्रयत्नशील भी हैं। पेशे से डॉक्टर मनीषा अभी डिपार्टमेंट ऑफ़ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डेक्कन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज हैदराबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और हैदराबाद के कॉरपरेट हॉस्पिटल में लीवर ट्रांसप्लांट की विशेषज्ञ हैं।
सोनी सोरी
सोनी सोरी आदिवासी महिला हैं जो खुद पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ रही हैं। सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के एक गाँव में शिक्षिका हैं। पुलिस हिरासत में सोनी सोरी के साथ बहुत अमानवीय व्यवहार हुआ है। उनके चेहरे को भी तेजाब से जला दिया गया। उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार संघर्ष कर रही हैं।
मायावती
मायावती भारत की सबसे बड़ी दलित महिला नेता हैं। चार बार यूपी की सीएम रह चुकी हैं। राजनीति के शुरूआती दौर में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। अपने जीवन के अहम फैसले उन्होंने खुद किए हैं। बावजूद इसके मुख्य धारा के महिला विमर्श में उनकी बात नहीं की जाती। –आर सी रावत,भुसावल